शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के लिये 9 नवम्बर को मतदान होने जा रहा है और 8 नवम्बर को नोटबंदी के फैसले को लागू हुए एक वर्ष पूरा हो रहा है। विपक्ष ने 8 नवम्बर का ब्लैक डे तो सत्तापक्ष ने इसे कालेधन का प्रहार के रूप मे मनाने का फैसला लिया है। इस परिदृश्य में नोटबंदी के फैसले की समीक्षा किया जाना आवश्यक हो जाता है। रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया है कि नोटबंदी के बाद 99% पुराने नोट उसके पास वापिस आ गये है और इसी के साथ यह भी स्वीकारा है कि इस फैसले के बाद जीडीपी में कमी आयी है। नोटबंदी के बाद ही ‘‘एक देश एक टैक्स’’ के तहत जीएसटी का फैसला लागू हुआ है। नोटबंदी के फैसले की समीक्षा करना, उस पर प्रतिक्रिया देना आम आदमी के लिये आसान नही है। लेकिन जीएसटी के फैसले से जिस कदर आम आदमी प्रभावित हुआ है उसका असर इसी सेे
इन फैसलों का अभी हिमाचल और गुजरात के चुनावों पर क्यों और क्या असर पड़ेगा। इसकी पड़ताल करने से पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि जब यह फैसले लिये गये थे उस समय की आर्थिक स्थिति क्या थी? किसी देश की अर्थव्यवस्था में करंसी उस देश के जीडीपी के अनुपात में छापी जाती है। चीन हमारे से बड़ा देश है उसका जीडीपी दस लाख करोड़ अमेरीकी डाॅलर है और हमारा दो लाख करोड़ अमेरीकी ड़ाॅलर है। चीन में करंसी 9% तथा भारत में 10.6 के अनुपात में छापी जाती है। रिजर्व बैंक इस सन्तुलन को बनायेे रखता है। रिजर्व बैंक की साईट पर आये मनी स्टाक के आंकड़ो के मुताबिक जुलाई 2016 को 17,36,177 करोड़ की कुल करंसी परिचालन में थी। इसमें से 475034 करोड़ बैंको की तिजोरी में थी और 16,61,143 करोड़ बैंको के बाहर जनता के पास थी। लेकिन जनता के पास इतनी ज्यादा कंरसी होने के वाबजूद जनता खरीददारी नही कर रही थी। बैंको के पास पैसा आ नही रहा था। बैंक भुगतान के संकट में आ गये थेे ऊपर से सरकार और बैंको को मार्च 2019 तक ब्रेसल-3 के मानक परे करने थे। इसके लिये प्रोविज़निग की जानी थी जिसके लिये पांच लाख करोड़ की नकदी चाहिये थी। इस स्थिति को सरकार ने यह माना कि जब जनता इतनी कंरसी होने के वाबजूद खरीददारी नही कर रही है तो निश्चित रूप से इतना पैसा लोगों के पास कालेधन के रूप में है। यह कुल कंरसी का 86% था। इससे उबरने के लियेे एक तरीका यह था कि जो कर्ज दिया गया है उसकी सख्ती से वसूली की जाए। लेकिन ज्यादा कर्ज बड़े उद्योगपतियों के पास था और सरकार उन पर सख्ती नही करना चाहती थी। इसलिये सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया। सरकार को विश्वास था कि 500 और 1000 के नोटों का परिचालन बंद करके उसे नये सिरे से 86% कंरसी छापने का अधिकार मिल जायेगा और पुराने नोट क्योंकि कालाधन है तो वह उसके पास वापिस नही आयेंगे। इस तरह नयी कंरसी के सहारे वह बड़े घरानों के कर्ज भी माफ कर देगी और बैंक भी संकट से निकल जायेेंगे। इसीलिये नोटबंदी की घोषणा के साथ ही यह कहा गया 2.5 लाख से ज्यादा जमा करवाने पर जांच की जायेगी। जब जनधन खातों में पैसा जमा होने लगा तो इन खातों में पुराने नोटे जमा करवाने पर पाबंदी लगा दी। एफडी इन्दिरा विकास पत्र आदि बचत खातोें में पुराने नोटों पर पाबंदी लगा दी। ग्रामीण क्षेत्र के सहकारी बैंको में पुराने नोट बदलने में रोक लगा दी। पहले कहा 30 दिसम्बर 2016 के बाद 31 मार्च 2017 तक रिर्जब बैंक में पुराने नोट जमा करवा सकते हैं लेकिन बाद में कहा कि केवल विदेशी ही करवा सकते हैं।
इस तरह पुरानी करंसी को वापिस आने से रोकेने के लिये किये गये सारे प्रयास असफल हो गये। क्योंकि आयकर विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक नकद कंरसी के रूप में कालाधन केवल 5 से 6 प्रतिशत ही रहता है। सरकार का इस तरह सारा आंकलन फेल हो गया और 99% पुरानी कंरसी उसके पास वापिस आ गयी । लेकिन बड़े घरानो का कर्ज वापिस नही आया अब बैंको को संकट से बचाने के लिये प्रोविजनिंग करने हेतु तथा ब्रेसल -3 के मानको को पूरा करने के लिये 5 लाख करोड़ की आवश्यकता है जिसे इस तरह से जीएसटी आदि के माध्यम से पूरा करने की योजना पर काम किया जा रहा है फिर सरकार ने स्मार्ट सिटी, मेक-इन-इण्डिया, डिजिटल इन्डिया और स्र्टाट अप जैसी जितनी भी विकास योजनाएं घोषित की हैं वह सब विदेशी कर्जे पर आधारित हैं। लेकिन विदेशी निवेशकों ने यह निवेश करने से पहले आम आदमी को दी जाने वाली सब्सिडि आदि की सरकारी राहतों को तुरन्त बन्द करने की शर्ते रखी हैं। विदेशी निवेशक बैंको का निजिकरण चाहता है। सरकार द्वन्द में फंसी हुई है। वित्त मन्त्री ने बार-बार घोषणा की हैं कि चुनावों का वित्तिय सुधारों पर कोई असर नही पड़ेगा वह जारी रहेंगे।अब आम आदमी को सरकार के इन फैसलों का प्रभाव व्यवहार रूप में देखने को मिल रहा है। माना जा रहा है कि इसका असर इन चुनावों पर अश्वय पड़ेगा।