भाटिया के पत्र से उठा सवाल
शिमला/शैल। आने वाले चुनावी में प्रदेश के तीसरे दलों की भूमिका क्या होगी इसको लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि दलित समाज के कुछ संगठनों ने पिछले दिनों एक आयोजन करके यह मुद्दा उठाया था कि उनके लिए आवंटित बजट का सरकार 7 प्रतिश्त भी खर्च नहीं कर रही है। इस आशय का एक ज्ञापन भी प्रदेश के राज्यपाल को सौंपा गया था। इसमें राज्यपाल से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया था। इसी दौरान कुछ स्वर्ण संगठनों ने जातिगत आरक्षण समाप्त करके आर्थिक आधार पर करने तथा इसके लिये एक स्वर्ण आयोग गठित करने की मांग की। इसके लिये आंदोलन हरिद्वार तक की पदयात्रा और शिमला में एट्रोसिटी एक्ट को लेकर एक शव यात्रा तक आयोजित की गयी। स्वर्ण समाज के इस आंदोलन को देखकर सरकार ने सामान्य वर्ग आयोग का गठन भी कर दिया।
सामान्य वर्ग के लिए आयोग गठित कर दिये जाने के बाद दलित समाज ने एट्रोसिटी एक्ट की शव यात्रा को राष्ट्रद्रोह करार देने के लिए बसपा के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन दिया। अब संत रविदास धर्म सभा के प्रदेशाध्यक्ष कर्मचन्द भाटिया ने राज्यपाल को पत्र लिखकर मांग की है कि भू अभिलेख के शजरा नसब में जाति, गोत्र, समुदाय, बिरादरी और वंशावली दर्ज होती है। इस अभिलेख कि जब नकल लेने के लिये जा रहे हैं तब उनकी परिवार नकल प्रति पर अनुसूचित जाति समुदाय के कॉलम में हरिजन शब्द लिखा जा रहा है। सामान्य वर्ग के लोगों के लिए स्वर्ण शब्द लिख रहे हैं। हरिजन और स्वर्ण शब्दों को भूलेख में अंकित करना संविधान की भावना तथा सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशों की अवमानना माना जा रहा है। राज्यपाल से अनुरोध किया गया है कि वह इसे बंद करवाये।
प्रदेश में इस समय दलितों की संख्या करीब 30%होने का दावा किया जा रहा है। ऐसे में जिस तरह से इस समाज के लिये आबटित बजट भी पूरा नहीं खर्च किया जा रहा है और ऊपर से अभिलेखों की नकल लेने में हरिजन शब्द दर्ज किया जा रहा है उससे इस समाज के भीतर एक रोष अवश्य पनपता जा रहा है। यह रोष यदि आने वाले समय में एक अलग राजनीतिक राह अपना लेता है तो इसका प्रदेश राजनीतिक समीकरणों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा यह तय है।