Thursday, 18 September 2025
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शिमला और मंडी में कांग्रेस की रणनीतिक कमजोरी नुकसान देह हो सकती है

क्या विधानसभा उपचुनावों के लिये सरकार और कांग्रेस भी बराबर की जिम्मेदार नहीं है

शिमला/शैल। चुनाव प्रचार अन्तिम चरण में पहुंच चुका है। कांग्रेस और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व प्रदेश में चुनावी रैलियां संबोधित कर गया है। इससे दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय एजेंडे सामने आ चुके हैं। लेकिन क्या प्रदेश में राष्ट्रीय एजेंडे कहीं चुनाव का मुद्दा बन भी पाये हैं यह अपने में बड़ा सवाल हो गया है। क्योंकि प्रदेश में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के लिये हो रहे छः उपचुनाव ने चुनावी एजेंडे को ही बदल दिया है। विधानसभा के लिये हो रहे छः उपचुनावों पर प्रदेश सरकार का भविष्य टिका हुआ है। यह छः उपचुनाव राज्यसभा में चुनाव में कांग्रेस के छः और तीन निर्दलीयों द्वारा भाजपा के पक्ष में वोटिंग करने से उत्पन्न स्थिति के कारण हो रहे हैं। इन नौ लोगों के भाजपा के पक्ष में वोट करने से राज्यसभा में कांग्रेस और भाजपा के 34-34 वोट हो गये थे और पर्ची के माध्यम से चुनाव परिणाम का फैसला होने से यह निर्णय भाजपा के पक्ष में आ गया। इस परिणाम के बाद कांग्रेस ने अपने छः लोगों को दल बदल कानून के तहत सदन की सदस्यता से बाहर कर दिया। लेकिन तीन निर्दलीयों को कानूनी दाव पेचों में उलझाकर आज तक उनके त्यागपत्र स्वीकार नहीं किये हैं। जबकि छः कांग्रेसियों ने अपने निष्कासन और तीनों निर्दलीयों ने त्यागपत्र देने के बाद भाजपा ज्वाइन कर ली थी। भाजपा ने सभी नौ लोगों को उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया था। यदि निर्दलीयों की तर्ज पर ही कांग्रेस के छः लोगों के खिलाफ भी कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेकर उनके भाजपा में जाने को लटका दिया जाता तो शायद यह छः उपचुनाव न हो रहे होते। लेकिन ऐसा इसीलिये नहीं किया गया क्योंकि उनके जाने से सरकार को कोई खतरा नहीं था। आज इन छः का भाजपा में जाना चुनाव का कांग्रेस की ओर से मुख्य मुद्दा बना हुआ है। यदि कांग्रेस के पास यह मुद्दा न आता तो किन मुद्दों पर लोकसभा चुनाव लड़ा जाता। निश्चित रूप से तब सरकार की पन्द्रह माह की परफारमैन्स और विधानसभा चुनाव में दी गयी गारंटीयां इस समय बड़े सवाल होते। सरकार द्वारा पन्द्रह माह में दिया गया कर्ज चर्चा का विषय होता। भ्रष्टाचार न तो जयराम सरकार के समय में कोई मुद्दा रहा और न ही अब सुक्खू सरकार के समय में कोई मुद्दा है। जयराम ने भाजपा के आरोप पत्रों पर कोई कार्यवाही नहीं की। ठीक उसी तर्ज पर आज सुक्खू सरकार भी कांग्रेस के आरोप पत्र पर कोई कारवाई नहीं कर रही है। बल्कि मुख्यमंत्री जिस तरह धन बल के सहारे सरकार गिराने के प्रयास करने का आरोप भाजपा पर लगा रहे हैं उसका कोई ठोस जवाब दिया जा रहा है। अभी धर्मशाला में मुख्यमंत्री ने सुधीर शर्मा पर भू-माफिया होने के जो आरोप लगाये हैं और सुधीर शर्मा ने दस्तावेजी प्रमाणों के साथ मुख्यमंत्री को घेरा है उस पर भी भाजपा नेतृत्व की चुुप्पी अपने में बहुत कुछ बयां कर जाती है। इस चुप्पी से यह संकेत उभर रहे हैं कि दोनों पार्टियों में लोकसभा और विधानसभा को लेकर कोई अघोषित सहमति है। चारों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की कार्यशैली से यह संदेह पुख्ता हो जाता है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सारे वायदों के बावजूद के 0.6% के अंतर से सरकार की जीत हुई है और पन्द्रह माह में इस अन्तर को सरकार बड़ा नहीं कर पायी है।

 

शिमला लोकसभा

 

शिमला लोकसभा में कांग्रेस का विधायकों में बहुमत है। इसी क्षेत्र से पांच मंत्री और तीन मुख्य संसदीय सचिव हैं। इसी के साथ सलाहकार और ओएसडी भी इस क्षेत्र से दूसरों की तुलना में ज्यादा हैं। लेकिन यह सब होने के बाद बद्दी क्षेत्र के उद्योगों को लेकर जो सवाल उठे और उद्योग मंत्री को एक समय मुख्यमंत्री को पत्र लिखना पड़ा। सिरमौर के हाटी प्रकरण पर सरकार की कार्यप्रणाली सवालों में आयी। सोलन में भाजपा का एक भी विधायक न होते हुये भी नगर निगम सोलन में सरकार की फजियत होना सरकार और संगठन की कार्यशैली पर एक बड़ा सवाल है। इसी कार्यशैली के कारण दोनों सहकारी बैंकों के निदेशकों के चुनाव में पार्टी की फजीहत हुई है। सरकार होने के बाद भी ऐसा हुआ दूसरी ओर संगठन के स्तर पर चौपाल में कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. सुभाष मंगलेट का भाजपा में शामिल होना अपने में एक सवाल है। इसी तरह अर्की में पिछले विधानसभा चुनाव में आजाद लड़े राजेन्द्र ठाकुर का भाजपा में जाना कांग्रेस के लिये नुकसानदेह माना जा रहा है। राजेन्द्र ठाकुर को हॉलीलाज का विश्वस्त माना जाता है। पूर्व मंत्री गंगूराम मुसाफिर का कांग्रेस में वापस आना जिस ढंग से लटकाया गया था उससे भी कांग्रेस और संगठन में सब ठीक न होने का ही संदेश गया है। चुनाव के समय यह सब होना पार्टी की चुनावी सेहत के लिये स्वस्थ नहीं माना जाता है। फिर यह सीट पिछले दो चुनावों से भाजपा के पास है।

 

मंडी लोकसभा क्षेत्र

 

मंडी लोकसभा सीट में विधायकों का बहुमत भाजपा के पास है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी मंडी से ही हैं। यहां से भाजपा ने पद्म श्री कंगना रणौत को प्रत्याशी बनाया है। सफल अभिनेत्री और फिल्म निदेशक कंगना रणौत पहली बार राजनीति में आ रही हैं। पारिवारिक पृष्ठ भूमि कांग्रेस की रही है। राजनीति में उनका योगदान नहीं रहा है लेकिन इस चुनाव प्रचार के दौरान ही अपनी बेवाकी से जिस कदर चर्चित हो गयी हैं वह अपने में ही एक उपलब्धि बन गयी है। क्योंकि चुनावी बहसों में जब उम्मीदवार का खानपान और पहरावा चर्चा का विषय बन जाये तो यह माना जाता है कि बड़ी सफलता के साथ उम्मीदवार ने अपने को चर्चाओं के केंद्र में स्थापित कर लिया है। ऐसे में हर व्यक्ति उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयास करता है। इसी प्रयास के परिणाम स्वरुप कंगना पर यह आरोप लगे कि वह तो राजनीतिक पर्यटक हैं जीत कर मुंबई लौट जायेंगी। यह आक्षेप ही एक तरह से कंगना की उपलब्धि बन गये। क्योंकि जब कंगना से आपदा के दौरान उसके सहयोग को लेकर सवाल उठाये गये तब यही सवाल उसकी उपलब्धि बन गये। क्योंकि यही सवाल तो मुख्यमंत्री प्रदेश के सांसदों से भी कर चुके हैं। कंगना पर उठते सवाल जब उसके निजी जीवन पर आ गये तो पलट कर वही सवाल कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य पर चिपक गये। विक्रमादित्य के पास स्व.वीरभद्र की जो विरासत थी उसको उन्हें केन्द्र में लाना पड़ा। सरकार की पन्द्रह माह की परफारमैन्स पर किसी समय खुद ही उठाये सवालों का जवाब स्वयं ही देने की बाध्यता आ खड़ी हुई। चुनावी पोस्टरों पर स्व.वीरभद्र का फोटो लाकर स्वयं ही अपने को राजनीतिक विरासत के सहारे का मोहताज बना दिया। जबकि विक्रमादित्य सिंह को वीरभद्र होने में तो समय लगेगा। ऐसे में अगर यह कहा जाये की विक्रमादित्य अनचाहे ही कंगना और जय राम के राजनीतिक ट्रैप का शिकार हो गये हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि कंगना और जयराम पर विक्रमादित्य सिंह और प्रतिभा सिंह की टिप्पणियों के वीडियो का जिस तरह से इन लोगों ने जवाब दिया है उससे इस ट्रैप की राजनीति स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है। क्योंकि विशलेष्कों के अनुसार राजनीतिक धरातल पर विक्रमादित्य और कंगना में कोई मुकाबला ही नहीं है। लेकिन सलाहकारों ने दोनों को एक ही राजनीतिक धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया वह आगे चलकर सारी राजनीति पर प्रश्न चिन्ह बन गया है।

 

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