Thursday, 18 September 2025
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भाजपा सार्वजनिक नहीं कर पायी कथित भर्ती घोटाले की ऑडियो

शिमला/शैल। प्रदेश में एक बार फिर बड़े पैमाने पर भर्ती घोटाला हो रहा है। इस घोटाले के पुख्ता सबूत सिफारसी पत्र और आडियो भाजपा के पास मौजूद है तथा इस सबको आरोप पत्र तैयार कर रही कमेटी को सौंपा जायेगा। यह भाजपा प्रवक्ताओं विक्रम ठाकुर, महेन्द्र धर्माणी और हिमांशु मिश्रा ने एक सांझे ब्यान में लगाया है प्रवक्ताओं ने दावा किया है कि प्रदेश में सरकारी और अर्द्ध सरकारी नौकरियों की भर्ती में बड़े स्तर पर घोटाला हो रहा है और यह रौंगटे खडे़ कर देने वाला है।
भाजपा ने आरोप लगाया है कि शिक्षा, परिवहन निगम, वन विभाग, बैंक व अन्य विभागों में हो रही भर्तीयों में अनियमितताओं की सूचनाएं तो मिल ही रही थी। परन्तु अब पर्यटन विभाग में भी युटिलिटी वर्कर्ज के नाम पर लोग रखे जा रहे है और इसके लिये तय प्रक्रिया को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। सिफारिशी पत्रों में नौकरियों के साथ-साथ टूरिज्म के होटलों के नाम भी अकिंत है।
भाजपा के इस आरोप पर पलटवार करते हुए कांग्रेस मन्त्रीयों सुधीर शर्मा और कर्ण सिंह ने एक वक्तव्य में भाजपा को चुनौती दी है कि वह उनके पास मौजूद आडियो तथा सिफारिशी पत्रां को तुरन्त प्रभाव से सार्वजनिक करें। मन्त्रीयों ने भाजपा के आरोप को सिरे से खारिज करते हुए धूमल के पहले कार्यकाल 1998 से 2003 के बीच हमीरपुर अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड में हुए भर्ती स्कैम का स्मरण दिलाया जिस पर अब सर्वोच्च न्यायालय भी अब अपनी मोहर लगा चुका है। कांग्रेस मन्त्रीयों ने दावा किया है कि वीरभद्र सरकार के इस कार्यकाल में 60,000 नौकरियां प्रदान की जा चुकी है और इनमें पूरी पारर्शिता बरती गयी है।
भाजपा और कांग्रेस के इन दावों में कितना सच है और भाजपा अपने आरोपों को प्रमाणित करने के लिये क्या कदम उठायेगी इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में ही होगा। लेकिन 1993 से 1998 के बीच चिटों पर हुई हजारों भर्तीयों को लेकर धूमल शासन में जो जांच करवाई गयी थी। उस पर निणार्यक और प्रभावी कारवाई भाजपा शासन में क्यों नही हो पायी थी इसका कोई जबाव प्रदेश की जनता के सामने अब तक नही आ पाया है। इस ‘‘चिटों पर भर्ती ’’ स्कैम को जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस ने दबाया है उससे ऐसे मामलों में दोनों दलों की विश्वसनीयता प्रशनित है। आज भी यह आरोप ब्यानां से आगे नही बढे़गे यह माना जा रहा है। क्योंकि इस हमाम में दोनों दल बराबर के नंगे हैं।
सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2013 में सरकार की कान्टै्रक्ट पर लगे कर्मचारियों के नियमितीकरण की पालिसी को असंवैधानिक और गैर कानूनी करार देते हुए रद्द कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद भी सरकार कान्ट्रैक्ट पर भर्तीयां भी कर रही हैं और उनका नियमितिकरण भी हो रहा है। यह सब प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले की सीधी अवमानना है। प्रदेश के यह दोनों बड़े राजनीतिक दल इस पर मौन साधे हुए है और इसी से इनकी नीयत और नीति का खुलासा हो जाता है।

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