Thursday, 18 September 2025
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एक वर्ष बाद भी नसीब नहीं हुए यूनिवर्सल हैल्थ प्रोटैक्शन स्कीम के स्वास्थ्य कार्ड

शिमला/शैल। शिमला जिला के विकास खण्ड मशोबरा की ग्राम पंचायत पीरन के ट्रहाई गांव के लोगों को वर्ष 2018 के दौरान चार सौ रूपये की राशि जमा करने के बावजूद भी आज तक स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड नसीब नहीं हो पाए हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष  2018 के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा आरंभ की गई हि.प्र. यूनिवर्सल हैल्थ प्रोटैक्शन स्कीम के तहत पीरन पंचायत में स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिविर लगाया गया था जिसमें लोगों से चार सौ रूपये प्रति परिवार राशि लेकर सप्ताह के भीतर स्वास्थ्य स्माट कार्ड उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया गया था। लेकिन आज तक स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड उपलब्ध नहीं करवाए गए हैं।
पीरन पंचायत के गांव ट्रहाई निवासी प्रीतम ठाकुर, रोशन लाल, देवेन्द्र कुमार सहित अनेक लोगों ने स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड न मिलने बारे पुष्टि की है। इन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा उनके साथ एक भद्दा मजाक किया गया है और उन्हें कार्ड का इंतजार करते हुए एक वर्ष से अधिक समय हो चुका है। प्रीतम ठाकुर ने कहा कि हि.प्र. यूनिवर्सल हैल्थ प्रोटैक्शन स्कीम के स्मार्ट कार्ड का एक साल से इंतजार करते करते लोग सरकार की नई हिम केयर योजना के तहत भी स्वास्थ्य कार्ड बनाने से वंचित रह गए हैं और गरीब लोगों को कर्जा उठाकर अपना इलाज करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि एक वर्ष बीत जाने के उपरांत हि.प्र.यूनिवर्सल प्रोटैक्शन स्कीम के स्वास्थ्य कार्ड की वैधता वैसे ही समाप्त हो जाती है। रोशन लाल का कहना है कि स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड न मिलने पर उन्हे अपनी माता के इलाज पर कर्ज लेकर हजारों की राशि व्यय करनी पड़ी।
प्रीतम ठाकुर ने बताया कि  हि.प्र. यूनिवर्सल हैल्थ प्रोटैक्शन स्कीम के तहत पीरन में लगाए गए शिविर के प्रभारी गोपाल शर्मा ने उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य कार्ड देने का आश्वासन दिया था। दूरभाष पर जब गोपाल शर्मा से बात की गई तो उन्होने बताया कि उनके द्वारा केवल लाभार्थी का पंजीकरण एवं अन्य औपचारिकतायें पूर्ण करवाई गई थी और स्वास्थ्य स्मार्ट कार्ड उपलब्ध करवाना संबधित प्रोजेक्ट अधिकारी का दायित्व बनता था।
प्रीतम ठाकुर ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि हि.प्र.यूनिवर्सल हैल्थ प्रोटैक्शन स्कीम के तहत जिन लोगों के साथ धोखा हुआ है ऐसे दोषी अधिकारी एवं कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही की जाए ताकि ग्रामीण क्षेत्र के भोलेभाले लोगों के साथ फिर ऐसा भददा मजाक न हो। उन्होंने कहा कि सरकार लोगों के कल्याण के लिए योजनायें बनाती है परन्तु योजनाओं के कार्यान्वयन में अधिकारियों द्वारा लापरवाही की जाती है जिस कारण गरीब लोग सरकारी योजनाओें का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
बीएमओ मशोबरा डाॅ. वीना गुप्ता से जब इस बारे पूछा गया तो उन्होंने इस बारे अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्होने गत दो माह पहले बीएमओ मशोबरा का कार्यभार संभाला है।

फालुन दाफा-जीवन में स्वास्थ्य और सामंजस्य का मार्ग

शिमला/शैल।आज के तेज रफ्तार जीवन में हम सभी एक रोगमुक्त शरीर और चिंता और तनाव से मुक्त मन की इच्छा रखते हैं। किन्तु जितना हम इस लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करते हैं, उतना ही यह दूर जान पड़ता है। ऐसा लगता है कि परिवार की समस्याओं, नौकरी के दबाव, अंतर-व्यक्तिगत संघर्ष और हमारे करीबी और प्रिय लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कोई अंत नही है। आज के जीवन की समस्याओं के लिए क्या हमारे पास कोई हल है?
दुनिया भर के लाखों लोगों ने फालुन दाफा (जो फालुन गोंग के नाम से भी जाना जाता है) के प्राचीन ध्यान अभ्यास में अपने जवाब पाये हैं। फालुन दाफा में 5 सौम्य और प्रभावी व्यायाम सिखाये जाते हैं. ये व्यायाम व्यक्ति की शक्ति नाड़ियों को खोलने, शरीर को शुद्ध करने, तनाव से राहत और आंतरिक शांति प्रदान करने में सहायता करते हैं। व्यायाम सरल, प्रभावी और सभी आयु के लोगों के लिए उपयुक्त हैं। फालुन दाफा मन और शरीर दोनों का अभ्यास है। व्यायाम जो व्यक्ति के शरीर की शक्ति का रूपांतरण करते हैं उनके आलावा, यह अभ्यास रोज़मर्रा के जीवन में सच्चाई, करुणा और सहनशीलता के मूलभूत नियमों का पालन करके व्यक्ति के नैतिक चरित्र को ऊपर उठाना भी सिखाता है। हमारे मन की स्थिति सीधे हमारे शरीर को प्रभावित करती है। इसलिए मन की एक सकारात्मक और शुद्ध अवस्था अंततः एक स्वस्थ शरीर की ओर ले जाएगी। यह एक कारण है कि फालुन दाफा अभ्यास इतना प्रभावशाली सिद्ध हुआ है।
दुनिया भर के लाखों लोगों ने फालुन दाफा अभ्यास को अपने रोज़मर्रा के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। सीधे शब्दों में कहें तो, वे स्वास्थ्य और सामंजस्यपूर्ण जीवन की दिशा में इसे अपने समय का एक योग्य और सुखद निवेश पाते हैं। इसे सीखने के लिए केवल एक खुले मन और उदार हृदय की आवश्यकता है। आप भी स्वयं इस अद्भुत अभ्यास के बारे में और अधिक सीख और जान सकते हैं। फालुन दाफा की पुस्तकें, व्यायाम निर्देश और अभ्यास स्थलों कि जानकारी इसकी वेबसाइट www.falund afa.org और www.falundafaidia.org पर उपलब्ध है। फालुन दाफा सदैव निःशुल्क सिखाया जाता है।
हमारे देश में भी हजारों लोग दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, नागपुर, पुणे आदि शहरों में फालुन दाफा का अभ्यास कर रहे हैं। अनेक स्कूलों में इसका नियमित अभ्यास किया जाता है, जिसका सकारात्मक प्रभाव विद्यार्थियों के परीक्षा परणामों, नैतिक गुण और शारीरिक स्वास्थ्य में दिखाई पड़ता है। फालुन दाफा का प्रदर्शन विभिन्न शहरों में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनियों और सार्वजनिक स्थलों में किया जाता है। फालुन दाफा की निशुल्क वर्कशाॅप अपने स्कूल, काॅलेज या आफिस में आयोजित कराने के लिए इसके स्वयंसेवकों से संपर्क किया जा सकता है।

सस्ते राशन में घटिया चावल सप्लाई होने पर अधूरी कारवाई क्यों?

शिमला/शैल। पिछले दिनो राजधानी शिमला के उपनगर टूटी कंडी के एक सरकार के सस्ते राशन की दुकान से एक उपभोक्ता को ऐसे गलेसड़े चावल दे दिये गये जिन्हें आदमी तो क्या पशु भी न खाते। उपभोक्ता ने जब चावल देखे तो इसकी शिकायत खाद्य एवम् आपूर्ति मन्त्री किशन कपूर तक कर दी। मन्त्री के पास जब यह शिकायत आयी तो उन्होंने तुरन्त अपने विभाग को खींचा और कारवाई करने के आदेश दिये। मन्त्री के आदेशों के बाद विभाग हरकत में आया और रात को ही डिपो मालिक के खिलाफ कारवाई अमल में लायी गयी। इस कारवाई पर डिपो मालिक ने अपनी गलती मानते हुए सुबह दस बजे ही उस उपभोक्ता को संपर्क किया और उससे यह चावल वापिस ले लिये। विभाग के अधिकारियों ने भी उपभोक्ता के साथ संपर्क किया और उसे इस कारवाई से अवगत करवाया। मन्त्री के के संज्ञान लेने पर विभाग भी हरकत में आया और डिपो मालिक ने भी उपभोक्ता के घर से चावल वापिस ले लिये लेकिन इसके बाद आगे और क्या कारवाई हुई इसके बारे मे अभी तक कुछ भी सामने नही आया।
विभाग सस्ता राशन खाद्य एवम् आपूर्ति निगम के माध्यम से खरीदता है और इस खरीद के लिये एक प्रक्रिया तय है। सरकार विभाग के माध्यम से निगम को सस्ते राशन के तहत दी जाने वाली चीजों पर प्रतिवर्ष करीब छः हजार करोड़ का उपदान देता हैं। स्पष्ट है कि बड़ी मात्रा में यह सामान खरीदा जाता है। इस सामान की गुणवता और उसकी मात्रा सुनिश्चित करना उन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है जो इस खरीद की प्रक्रिया से जुड़े रहते हैं। यह जिम्मेदारी सरकार के खाद्य एवम् नागरिक आपूर्ति सचिव से शुरू होकर निगम के एमडी और विभाग के निदेशक तक सबकी एक बराबर रहती है। ऐसे में जब एक जगह से ऐसे घटिया चावल सप्लाई होने का मामला सामने आ गया तब इसकी शिकायत आने के बाद पूरे प्रदेश में हर जगह इसकी जांच हो जानी चाहिये थी। इस तरह के गले सड़े चावल डिपो तक कैसे पंहुच गये? कहां से यह सप्लाई ली गयी थी और कैसे ऐसे चावल उपभोक्ता तक पहुंच गये? इसको लेकर किसी की जिम्मेदारी तय होकर उसके खिलाफ एक प्रभावी कारवाई हो जानी चाहिये थी जिससे की जनता में एक कड़ा संदेश जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ है केवल उपभोक्ता से यह चावल वापिस लिये गये।
ऐसे में जो कारवाई की गयी है उससे यही झलकता है कि पूरे मामले को दबा दिया गया है। सस्ते राशन की दुकानों पर मिलने वाले राशन की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल उठते हैं लेकिन इस पर कोई कारवाई नही हो पाती है। अब जब एक ठोस शिकायत मन्त्री तक भी पहुंच गयी तब भी आधी ही कारवाई होने से यह सवाल स्वतः ही उठ जाता है कि शायद जहां हजारों करोड़ो की सब्सिडी का मामला है तो वहां खेल भी कोई बड़े स्तर का ही हो रहा होगा? क्योंकि यह नही माना जा सकता कि केवल डिपो मालिक की गलती से ही गले सड़े चावल सप्लाई हो गये। क्योंकि यदि ऐसा होता तो डिपो मालिक के खिलाफ कड़ी कारवाई करके विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा होता लेकिन ऐसा नही हुआ है और इसी से यह मामला और सन्देह के घेरे में आ जाता है।

पतजंलि, डाबर जैसी कंपनियों को हिमाचल सरकार भेजेगी नोटिस

शिमला/शैल। योगगुरु बाबा रामदेव की पतजंलि योगपीठ के अलावा डाबर समेत सैंकड़ों कंपनियों को प्रदेश सरकार जैवविविधता अधिनियम के तहत वसूली व पंजीकरण को लेकर नोटिस देंगी। ये खुलासा अतिरिक्त मुख्य सचिव वन व पर्यावरण, विज्ञान व प्रोद्योगिकी तरुण कपूर ने जैवविविधता अधिनियम पर आयोजित कार्यशाला के दौरान मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए किया। तरुण कपूर प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं। ये नोटिस इन कंपनियों की ओर से प्रदेश से जैव संसाधनों का बतौर कच्चा माल इस्तेमाल करने की एवज में फीस वसूलने व पंजीकरण के लिए भेजे जाएंगे।
कपूर ने कहा कि पतजंलि का 40 फीसद के करीब कच्चा माल प्रदेश से जाता है व सरकार को इसकी एवज में एक भी पाई नहीं मिल रही है। जबकि इन कंपनियों को एक तय फीस अदा करनी होती हैं। यही स्थिति डाबर जैसी कंपनियों की भी हैं। ये कंपनियां अनुचित लाभ हासिल कर रही हैं। लेकिन अब जैव विविधता के तहत कार्यवाही करने पर इन कंपनियों को प्रदेश को मोटी रकम देनी होगी।
कपूर ने कहा कि कच्चे माल के रूप में प्रदेश से जैव संसाधनों को इस्तेमाल करने वाले सभी उद्योगों व कंपनियों से पूछा जाएगा कि उन्होंने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से कितना कच्चा माल लिया है। इसकी एवज में सरकार इन कंपनियों से उनके टर्नओवर से अधिनियम के प्रावधानों के हिसाब रकम वसूलेंगी।
इसके अलावा प्रदेश से कच्चा माल ले जाने वाली तमाम कंपनियों को अब जैवविविधता बोर्ड में पंजीकरण भी कराना होगा। अब वह तभी कच्चे माल को प्रदेश से खरीद सकेंगी।
उन्होंने खुलासा किया कि प्रदेश जैवविविधता की आर्थिकी 10 हजार के करोड़ के करीब हैं व यहां जैव संसाधनों का दस्तावेजीकरण किया जाए तो ये आर्थिकी बढ़ सकती हैं।अभी तक ये किसी को भी पता नहीं हें कि प्रदेश में कितना जैव संसाधन हैं।
इस मौके पर राज्य जैव विविधता बोर्ड के संयुक्त सदस्य सचिव कुणाल सत्यार्थी ने जैव विविधता अधिनियम के प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कोई अधिनियम का उल्लंघन कर प्रदेश से कच्घ्चे माल का कारोबार करेगा तो उसके खिलाफ पांच साल की जेल व दस लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
उन्होंने कहा सभी जिलों के जनरल मैनेजर डीआइसी को कहा गया है कि वो जैव विविधता संसाधनों का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों की भी कार्यशाला आयोजित की जाएगी। उन्हें इस कानून के बारे में बताया जाएगा।अगर वो पंजीकरण कराते हैं तो ठीक हैं अन्यथा नोटिस भेजे जाएंगे। उन्होंने कहा कि अभी किसी को नोटिस नहीं भेजा गया हैं।
हरेक पंचायत में बायोलाॅजिकल मैनेजमेंट कमेटियों का गठन का किया जाएगा जो अपने पंचायत की जैव विविधता का लेखा जोखा एक रजिस्टर में दर्ज करेगी।अभी 425 कमेटियों का गठन किया जा चुका हैं।हरेक कमेटी को कामकाज चलाने के लिए एक लाख रुपया दिया जाएगा। अभी तक 47 पंचायतों को 47 लाख रुपए अदा किए जा चुके है जबकि 50 और पंचायतों को 50 लाख दिया जा रहा हैं।
सत्यार्थी ने कहा कि जिन कंपनियों को जैव संसाधन चाहिए होंगे अपने टर्नओवर का तय फीसद बोर्ड को अदा करना होगा । डाबर से करीब तीस लाख रुपए सालाना वसूला जाएगा। इसका 95 फीसद उन कमेटियों को अदा किया जाएगा जहां से इन संसाधनों का दोहन किया गया हैं। इससे पंचायत स्तर पर आय होगी।
कुणाल सत्यार्थी ने खुलासा किया कि प्रदेश के चावल की जितनी प्रजातियां उगाई जाती थी। उनमें से आधी से ज्यादा लुप्त हो चुकी हैं। 150 के करीब प्रजातियां प्रतिदिन लुप्त हो रही हैं। ऐसे में इन जैव विविधता का संरक्षण लाजिमी हैं। बोर्ड जैव संसाधनों का दस्तावेजीकरण तो करेगा ही साथ पारंपरिक ज्ञान को भी संरक्षित किया जाएगा। पंचायत स्तर पर जैव विविधता रजिस्टर तैयार करने के लिए विभिन्न विवि से सहयोग लिया जा रहा हैं।
उन्होेंने कहा कि बोर्ड जैव संसाधनों के कारोबार से होने वाली आय का हितधारकों में उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करेगा। सत्यार्थी ने कहा कि प्रदेश में 3333बायोलाॅजिकल डाॅयवर्सिटी मैनेजमेंट कमेटियां बनाई जाएगी जिसमें सभी पंचायती,सभी ब्लॅाक और जिला परिषद शामिल है।
इस मौके पर बोर्ड की सदस्य व पर्यावरण,विज्ञान व प्रौद्योगिकी की निदेशक अर्चना शर्मा,बोर्ड के प्रधान साइंटिफिक अफसर काम राज कायस्थ ने भी अपने विचार रखे।

चोकलेट से बच्चों पर दुष्प्रभाव

शिमला। यह तो हम सभी जानते हैं कि चोकलेट बच्चों के लिए एक बहुत ही पसंदीदा खाद्य है। बच्चों को चोकलेट इसलिए दिलवाई जाती है कि वे खुश रहें, उनका कहना माने और शैतानी ना करें। क्या आप जानते हैं कि चोकलेट बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। चोकलेट बनाने के लिये जो भी अवयव उपयोग किये जाते हैं वो लगभग सभी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
ं चीनीः चोकलेट में बहुत अधिक मात्रा में चीनी पायी जाती है, जिसका कोई पोष्टिक महत्व नहीं होता। इससे बच्चों के दांतों में क्षय की बीमारी और छेद तक हो सकते हैं। साथ ही भूख ना लगाना, वजन बढ़ना आदि समस्याएं हो सकती हैं।
ं मक्खन और क्रीमः चोकलेट को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए आवश्यकता से अधिक मात्रा में मक्खन और क्रीम मिलाई जाती है, जिनमे बहुत अधिक मात्रा में संतृप्त वसा (Saturated Fats) होता है। 44 ग्राम की एक मिल्क-चोकलेट में 8 ग्राम संतृप्त वसा होता है और 28 ग्राम की एक डार्क-चोकलेट में 5 ग्राम संतृप्त वसा होता है जिससे रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है।
ं कार्बोहाइड्रेटः एक मिल्क - चोकलेट में 17 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है और एक डार्क-चोकलेट में 26 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है जो कि ब्लड-शुगर को बढाता है, इससे डाईबीटीज की संभावना बढ़ जाती है।
ं कोफीन (Caffeine): डार्क-चोकलेट में पर्याप्त मात्रा में कोफीन(Caffeine)  होता है, जो बच्चों के केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्रा को उत्तेजित करता है, जिससे बच्चे कुछ समय के लिए स्फूर्ति अनुभव करते हैं। मगर अधिक मात्रा में डार्क-चोकलेट खाने से कोफीन अपना विपरीत प्रभाव दिखाती है और विभिन्न समस्याओं को जन्म देती है जैसे हृदय की धड़कन का बढ़ना, मानसिक तनाव, अवसाद, अनिद्रा, बैचैनी, अरूचि, कंपकंपी आदि।
ं वनस्पति घीः चोकलेट बनाने के लिए कोकाआ के बीन्स (Cocoa Beans)से निकला कोकाआ मक्खन (Cocoa Butter) और लेसिथिन (Lecithin)  आदि का प्रयोग किया जाता है, मगर भारत की गर्म जलवायु को मध्यनजर रखते हुए बहुत सी कम्पनियाँ कोका मक्खन ना मिलाकर वनस्पति घी (सामान्य भाषा में डालडा) प्रयोग का करती हैं। वनस्पति घी मंे निकल की पर्याप्त हानिकारक मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार से चोकलेट में भी ‘निकल’ की मात्रा पाई जाती है। वनस्पति घी के सेवन से कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है और उच्च रक्तचाप और हृदयाघात का खतरा हो सकता है। यह ‘निकल’ नामक तत्व बच्चों के शरीर में दांतों की खराबी, केंसर, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, असमय सफेद बाल आदि का कारक है। एटाॅमिक एब्सोर्प्सन स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (Atomic Absorpsion  Spectrophotometer) की जाँच से मालूम पड़ा है कि जहाँ 40 ग्राम औसत भार की एक चोकलेट में 4 माइक्रोग्राम निकल होना चाहिए, वहीं इसकी मात्रा 600 से 1300 माइक्रोग्राम होती है। खाद्य अपमिश्रण अधिनियम की पुस्तिका के मानक IS 1163 तथा 1971 में निकल को विष की श्रेणी में नहीं रखा गया है जो कि सर्वथा अनुचित है।
बड़ों को चाहिए कि वे बच्चों को चोकलेट का सेवन कम से कम करने दें, ना कि नियमित रूप से देकर उन्हें खुश रखें। अच्छा रहेगा की चोकलेट बच्चों के लिए केवल विशेष अवसरों पर उपहार में देने की वस्तु ही रखें।
- डा. महेश के. वर्मा, शिमला

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