Friday, 19 September 2025
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क्या सरकार का कर्जा और घाटा राजस्व आय से बढ़ना अच्छा आर्थिक प्रबन्धन है

शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की वित्त मन्त्री सीतारमण ने वर्ष 2019-20 के अपने दो घन्टे के बजट भाषण में जहां सरकार की विभिन्न आर्थिक योजनाओं का जिक्र देश के सामने रखा वहीं पर उन्होने आंकड़ो का कोई खुलासा नही किया। ऐसा शायद पहली बार हुआ है अन्यथा बजट में सरकार की आय-व्यय की पूरी विस्तृत जानकारी भाषण में रहती है। जब भी सरकार को बजट सामने आता है उसका तत्काल प्रभाव शेयर बाज़ार पर पड़ता है। शेयर बाजा़र पर इस बार भी असर पड़ा और करीब 6 लाख करोड़ निवेशकों का डूब गया। यह एक ऐसी स्थिति थी जिससे बजट दस्तावेजों को देखने -समझने की जिज्ञासा होना स्वभाविक था।
 इन दस्तावेजों के मुताबिक सरकार वर्ष 2019-20 में कुल 27,86,349 करोड खर्च करेगी। यह खर्च मोटे तौर पर कहां-कहां खर्च होगा उसका विवरण इस प्रकार है।


 लेकिन इस खर्च के लिये जो आय के साधन रहेंगे उनमें सबसे बड़ा साधन है सरकार की राजस्व आय जिसमें कर राजस्व और गैर कर राजस्व दोनों शामिल रहते हैं। सरकार की यह राजस्व आय वर्ष 2019-20 के लिये 19,62,761 करोड़ रहेगी और 27,86,349 करोड़ का कुल खर्च पूरा करने के लिये विभिन्न ऋणों के माध्यम से इस बार 8,23,588 करोड़ की पूंजीगत प्राप्तियां जुटाई जायेंगी। इन पूंजीगत प्राप्तियांं के साथ इस वर्ष का खर्चा तो पूरा हो जाता है लेकिन अब तक जो राजकोषीय और राजस्व का घाटा खड़ा है वह चिन्ता और चिन्तन का विषय बन जाता है। बजट दस्तावेजों के मुताबिक यह घाटा और कर्जा मिलकर सरकार की राजस्व आय से करीब तीन लाख करोड़ से भी अधिक हो जाता है। राजस्व प्राप्तियांं, पूंजीगत प्राप्तियों और घाटे का विवरण इस प्रकार है।
 कर्जे और घाटे की आर्थिक व्यवस्था उस समय चिन्ता का विषय बन जाती है जब सरकार को अपने विभिन्न अदारों में विनिवेश करके राजस्व जुटाने की स्थिति आ जाये। बजट से पहले यह चर्चा थी कि सरकार 90,000 करोड़ विनिवेश से जुटायेगी। लेकिन बजट दस्तावेजों के मुताबिक सरकार अब 1.5 लाख करोड़ विनिवेश से हासिल करेगी। इस विनिवेश से एक समय तो सरकार को आय हो जाती है लेकिन भविष्य के लिये वह संसाधन सरकार के हाथ से निकल जाता है। परन्तु इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो जाता है कि क्या सारा घाटा विनिवेश और आम आदमी पर करों का बोझ लाद कर पूरा किया जा सकता है? फिर पूंजीगत प्राप्तियों की तो परिभाषा ही यह है कि इसका निवेश तो विकासात्मक कार्यों और राजस्व के नये साधन जुटाने के लिये हो। लेकिन बजट दस्तावेजों के अवलोकन से इस धारणा पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।



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