एमएसपी की प्रक्रिया को समझना होगा
जब दूसरे उद्योगपति अपने उत्पादों की कीमतें स्वयं तय करते हैं तो किसान के लिए एमएसपी का विरोध क्यों
एमएसपी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट का परिणाम है और लंबे समय से इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग चली आ रही है। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने भी यह वायदा किया था की चुनाव जीतने के बाद कुर्सी पर बैठते ही पहला काम वह इस रिपोर्ट को लागू करने का करेंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने 1964 में एक एग्रीकल्चर प्राइसिंग कमीशन बनाया था और इसकी डयूटी लगाई थी की किसान की हर फसल का विक्रय मूल्य तय किया जाये। इस कमीशन नें यह मूल्य तय करते समय किसान की लागत का ध्यान नहीं रखा। इसके लिए 1985 में एक नया एग्रीकल्चर लागत और कीमत कमीशन बनाया गया। इस कमीशन को कीमतें तय करने के लिए 12 बिंदु दिए गये जिनमें एक पैदावार की लागत दो पैदावार के लिए प्रयोग की गई वस्तुओं के मूल्य में बदलाव तीन लागत और पैदावार की कीमतों में संतुलन चार बाजार के झुकाव 5 डिमांड और सप्लाई 6 फसलों का आपसी संतुलन सात तय की जाने वाली कीमत का उद्योग पर असर 8 कीमत का लोगों पर बोझ 9 आम कीमतों पर असर 10 अंतरराष्ट्रीय कीमतों की स्थिति 11 किसान द्वारा दी गई और वसूल की गई कीमत का संतुलन 12 बाजारी कीमतों पर सब्सिडीज का असर। लेकिन इन बिंदुओं को देखने से पता चलता है कि इनमें 4, 5, 7, 9, 10 और 12 का किसान के साथ कोई ताल्लुक नहीं है। इस तरह कीमतें तय करने का नतीजा यह निकला कि किसान का लागत मूल्य एमएसपी से ज्यादा आया। पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय में लंबित किसानों की एक याचिका में इस आश्य के सारे दस्तावेज आ चुके हैं। जिनके मुताबिक लागत और एमएसपी में 300 से लेकर 400 रूपये तक का फर्क है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का अर्थ है कि कम से कम यह कीमत तो मिलनी ही चाहिए। सरकार इसको तीन तरह से तय करती है। A 2 पहले नंबर पर वह लागत जो किसान ने खेत जोतने, बीजने, बीज, तेल और मशीनों के किराये के लिए अपने पास से खर्च की।
A2+FL यानी A2 में फैमिली लेबर इसमें नकद खर्च के अतिरिक्त परिवार द्वारा की गई मेहनत जोड़ी जाती है। C2 यानी कॉम्प्रिहैंसिव कास्ट (व्यापक लागत) नकद किया खर्च जमा पारिवारिक मेहनत जमा जमीन का ठेका किराया या जमीन की कीमत पर बनता ब्याज आदि।
लेकिन सरकार A2 को गिन कर ही एमएसपी का ऐलान करती है। कभी इसमें फैमिली लेबर जोड़ लेती है लेकिन C2 देने को बिल्कुल तैयार नहीं होती। जबकि स्वामीनाथन कमीशन ने C2+ 50% देने की सिफारिश की है। इस परिप्रेक्ष में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब सरकार ने तीनों कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया है तो अब एमएसपी पर भी किसान प्रतिनिधियों से चर्चा करके इसे तय करने के मानक पर सहमति बनाकर इसके लिए वैधानिक प्रावधान कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि आज केवल किसान ही ऐसा उत्पादक है जिस की उपज की कीमत दूसरे निर्धारित करते हैं जबकि अन्य सभी उत्पादक अपने उत्पाद की कीमत स्वंय तय करते हैं।