केंद्र से 72,000 मिलने के बावजूद लिया गया 70,000 करोड़ का ऋण
नड्डा ने अपने संबोधन में उज्जवला योजना जैसी कई योजनाओं की याद प्रदेश के लोगों को दिलाई है। लेकिन वह यह बताना भूल गये कि इस योजना के तहत 67ः लाभार्थी आज रिफिल नहीं करवा पाये हैं। प्रदेश में घोषित हर योजना का व्यवहारिक पक्ष ऐसा ही है। अनुसूचित जाति के एक सम्मेलन में यह आरोप लगाया गया है कि उनके लिए आबंटित बजट का केवल 7 : ही यह सरकार खर्च रही है। इस आशय का ज्ञापन भी राज्यपाल को सौंपा गया है। परंतु अभी तक इस आरोप का जवाब तक नहीं आया है। इस परिप्रेक्ष में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि यदि केंद्र ने प्रदेश को 72 हजार करोड़ दिये हैं तो राज्य सरकार ने उसका उपयोग कैसे किया है। यह जानना प्रदेश की जनता का हक हो जाता है।
स्मरणीय है कि मोदी सरकार ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली थी। उसके बाद इस सरकार में 2017 में अगले वित्त आयोग का गठन हुआ था। तब तक 2012 में आयी वित्त आयोग की सिफारिशें ही अमल में चल रही और इन सिफारिशों में प्रदेश के लिए 20 हजार करोड़ का ही आबंटन हो पाया था। ऐसे में मोदी सरकार द्वारा प्रदेश को 72 हजार करोड़ देने का मौका 2017 के आयोग की सिफारिशों में ही आता है। 72 हजार करोड़ का आंकड़ा दूसरी बार सामने आया है। वह भी पहले प्रधानमंत्री द्वारा और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा दोहराया गया है। जब इस स्तर के लोग यह कहें तो इस पर यकीन किया जाना चाहिये। लेकिन 2017 से लेकर अब तक प्रदेश सरकार 70000 करोड़ का तो ट्टण ही ले चुकी है। हर वर्ष बजट के बाद टैक्स और अन्य शुल्क सरकार बढ़ाती आ रही है। जबकि जनता को यह परोसा जाता है कि सरकार कर मुक्त बजट लायी है। रिकॉर्ड बताता है कि हर वर्ष कर राजस्व और गैर कर राजस्व में बढ़ौतरी हो रही है। ऐसे में इस दौरान प्रदेश सरकार द्वारा करीब डेढ़ लाख करोड़ खर्च कर दिये जाने के बाद भी यदि पुलिस जैसे विभाग को भी अपनी जायज मांगे मनवाने के लिए हड़ताल का अपरोक्ष सहारा लेना पड़े तो यह सबके लिये चिंता और चिंतन का विषय हो जाता है। क्योंकि केंद्र द्वारा इतनी खुली सहायता के बाद भी राज्य सरकार को कर्ज लेना पड़े तो इस पर जनता को सवाल पूछने का हक हो जाता है। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि यह आवंटन भी 69 राष्ट्रीय राजमार्गों जैसा ही है या सही में इतना पैसा प्रदेश को मिला है। क्योंकि 2022 में तो अगले वित्त आयोग की सिफारिशें आ जायेंगी।