राज्य सरकार द्वारा पदोन्नति में सील्ड कवर प्रक्रिया न अपनाना बना बड़ा कारण
शिमला और दिल्ली में दोनों जगह सरकारी आवास होना भी है प्रभाव का परिणाम
शिमला/शैल। जयराम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदम्बरम के साथ आई एम एक्स मीडिया मामले में सह अभियुक्त हैं। यह मामला सीबीआई ने मई 2017 में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम तथा अन्य अपराधिक धाराओं में दर्ज किया था। यह मामला दर्ज होने के बाद फरवरी 2020 में सक्सेना को इस में जमानत लेनी पड़ी है। इस मामले के चलते सक्सेना का नाम संदिग्ध आचरण श्रेणी के अधिकारियों की सूची में आ जाता है। इसी के साथ मामले के निपटारे तक सक्सेना को महत्वपूर्ण विभागों का प्रभार नहीं दिया जा सकता। पदोन्नति में भी उनका नाम सील्ड कवर में रखा जायेगा। ऐसा सरकार के नियमों में कहा गया है तथा सर्वाेच्च न्यायालय ने भी यह व्यवस्था अपने फैसलों में दी हुई है।
लेकिन जयराम सरकार ने सरकारी नियमों और सर्वाेच्च न्यायालय की व्यवस्था को अंगूठा दिखाते हुए सक्सेना को न केवल महत्वपूर्ण विभागों से नवाजा है बल्कि इस मामले के चलते उन्हें अतिरिक्त मुख्य सचिव भी पदोन्नत कर दिया है। यही नहीं सक्सेना को शिमला के साथ दिल्ली में भी समानान्तर तैनाती देकर वहां भी सरकारी आवास की सुविधा उपलब्ध करवा दी है। इससे सक्सेना के राज्य सरकार के साथ ही केंद्र में भी प्रभाव का पता चलता है। क्योंकि दिल्ली में आवास की सुविधा केन्द्र के ऐस्टेट निदेशालय द्वारा दी गयी है। राज्य सरकार ने जहां सक्सेना के मामले में सारे नियमों कानूनों को अंगूठा दिखाया है वहीं पर गैर कर्मचारियों के मामलों में इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। सचिवालय में घटे सैनिटाइजर घोटाले में आरोपित एक कर्मचारी का मामला पदोन्नति के लिये विचार में ही नहीं लिया गया। जबकि कर्मचारी उसका मामला नियमों के अनुसार सील्ड कवर में रखने का आग्रह करता रहा। शायद इस डी पी सी के सक्सेना स्वयं एक सदस्य थे। अब जब सक्सेना का मामला सार्वजनिक रूप से चर्चा में आ गया है तबसे पूरे कर्मचारी वर्ग में यह चर्चा का विषय बन गया है। सरकार पर आरोप लग रहा है कि बड़े और प्रभावशाली अधिकारियों के लिए सरकार के नियम कानून और हैं तथा छोटे कर्मचारियों के लिये अलग हैं। जय राम सक्सेना पर जिस कदर मेहरबान हैं इससे उनके प्रभावशाली होने का सीधा प्रमाण मिल जाता है। स्वभाविक है कि जो अधिकारी शिमला में सरकारी आवास लेने के साथ ही दिल्ली में केन्द्र से भी आवास की सुविधा हासिल कर सकता है तो वह निश्चित रूप से अपने मामले के प्रबंधन का भी हर संभव प्रयास करेगा ही। क्योंकि प्रदेश सरकार पूरा सहयोग दे रही है। आईएएस अधिकारियों की पदोन्नति के मामले में सिविल सर्विसेज बोर्ड विचार करता है। सक्सेना की पदोन्नति से स्पष्ट हो जाता है कि बोर्ड ने सीबीआई में मामला दर्ज होने का संज्ञान नहीं लिया है। बोर्ड ने यह नजरअंदाजगी किसके दबाव या प्रभाव में की है यह एक अलग चर्चा का विषय बन गया है। अब जब से यह मामला समाचारों का विषय बना है तब से यह फिर सीबीआई में चर्चा का विषय बन गया है। यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि जिस अधिकारी के लिये राज्य सरकार सारे स्थापित नियमों कानूनों को अंगूठा दिखा सकती है वह अपने मामले से जुड़े साक्ष्यों को प्रभावित करने का प्रयास क्यों नहीं करेगा। सीबीआई का सारा प्रयास इसी बात पर रहता है कि कोई भी कथित अभियुक्त मामले को प्रभावित न कर पाये। इस मामले में अधिकारी के प्रभाव के सारे प्रमाण सामने हैं। ऐसे में सीबीआई प्रबोध सक्सेना की जमानत रद्द करवाने पर विचार करने को बाध्य हो गयी है। क्योंकि सबकी नजरें अब इस मामले पर लग गयी हैं।