Friday, 19 September 2025
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क्यों बनी है शीर्ष प्रशासन में विस्फोटक स्थिति?

निशा सिंह के पत्र और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से उठी चर्चा
जब मुख्यमंत्री से न्याय न मिले तो क्या राज्यपाल से दखल की गुहार लगाना अपराध है
जब सरकार केंद्र और अपने ही निर्देशों की अनदेखी करें तो क्या विकल्प रह जाता है?

शिमला/शैल। जब मुख्यमन्त्री को सार्वजनिक रूप से अधिकारियों को अपनी सीमा में रहने के लिये कहना पड़े और मुख्य सचिव से भी वरिष्ठ अधिकारी को प्रदेश के राज्यपाल से दखल देने की गुहार लगानी पड़ जाये तो यह प्रमाणित हो जाता है कि प्रशासन के शीर्ष पर हालात बहुत ही विस्फोटक बन चुके हैं। ऐसा विस्फोट चुनावी बेला में राजनीतिक नेतृत्व के लिये कितना घातक हो सकता है इसका अंदाजा लगा पाना भी आसान नहीं होगा। क्योंकि जब वरिष्ठ अधिकारियों को भी राजनीतिक नेतृत्व से न्याय न मिल सके तो उसका सन्देश प्रशासन के सबसे अंतिम पायदान और जनता तक सुखद नहीं होता है। ऐसा तब होता है जब राजनीतिक नेतृत्व किन्ही कारणों से एक वर्ग विशेष से ही घिर कर रह जाता है और दस्तावेजी परमाणों को भी नजरअन्दाज करके एक पक्षीय राय बना लेता है। आईएएस सेवा देश की शीर्षस्थ सेवा है और इसके शीर्ष पर पहुंचे अधिकारियों का भी अपना एक मान सम्मान होता है। यही अधिकारी होते हैं जिन्हें नियमों कानूनों की जानकारी राजनीतिक नेतृत्व से निश्चित तौर पर अधिक होती है। कई बार जो अधिकारी किन्ही कारणों से राजनीतिक नेतृत्व से ज्यादा नजदीक हो जाते हैं वह अपने स्वार्थों से प्रभावित होकर राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह करने में सफल हो जाते हैं। ऐसा करने के लिये नेतृत्व के सामने नियमों कानूनों की सही और पूरी जानकारी नही रखी जाती है और नेतृत्व में यह क्षमता नही रह जाती है कि वह अपने स्तर पर सही तथा निष्पक्ष जानकारी जुटा सके। ऐसी स्थिति में जब ऐसे प्रशासनिक अधिकारी अपने स्वार्थों के कारण अपने वरिष्ठों का भी अहित करने पर आमदा हो जाते हैं तब प्रशासन के शीर्ष पर हालात ऐसे विस्फोटक हो जाते हैं। इस समय जयराम ठाकुर का शीर्ष प्रशासन शायद इसी दौर से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री को नियमों कानूनों की सही जानकारी ही नहीं दी जा रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि नियमों कानूनों की अनुपालना ही नहीं होने दी जा रही है। क्योंकि इससे नुकसान प्रशासनिक नेतृत्व की बजाये राजनीतिक नेतृत्व का होता है। अभी लोक सेवा आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों का शपथ ग्रहण समारोह जिस तरह से रुका उसके छिंटे प्रशासन पर न पढ़कर राजनीतिक नेतृत्व पर पड़े। इसके बाद यही फजीहत पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र के मुख्य सुरक्षा अधिकारी रह चुके पदम ठाकुर की पुनर्नियुक्ति के मामले में हुई। क्योंकि इन्हीं पदम ठाकुर के खिलाफ भाजपा के आरोप पत्र में गंभीर आरोप लगे हुए हैं। इस वस्तुस्थिति की मुख्यमंत्री को जानकारी भी थी या नहीं यह सब गौण हो गया और नेतृत्व की फजीहत बड़ा मुद्दा बनकर चर्चित हो गयी।
ठीक आज यही स्थिति निशा सिंह के वायरल हुए पत्र के बाद उभरी है। क्योंकि जब मुख्यमंत्री को लिखे पत्र का भी सही से जवाब न आये तो इतने बड़े अधिकारी के पास राज्यपाल से मामले में दखल देने की गुहार लगाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इस समय प्रशासन के शीर्ष पर जिस तरह की विस्फोटक स्थिति बनी हुयी है उसका एक ही कारण है कि कुछ लोगों को अनुचित लाभ देने के लिये उन नियमों/निर्देशों की अनुपालना तक नहीं हो रही है जो सर्वाेच्च न्यायालय के प्रशासन तक पर लागू हैं। यहां तक चर्चाएं बाहर आ रही हैं कि यूपीएससी में फेल होने को भी योग्यता बना दिया गया है। निश्चित तौर पर ऐसा न तो मुख्यमंत्री की जानकारी में होगा और न ही उनके निर्देशों से हुआ होगा। लेकिन यह सब उन्हीं के कार्यकाल में नियमों को संशोधित करके अंजाम दिया गया है तो निश्चित रूप से उन्हीं के नाम लगेगा। ऐसे में यदि अभी भी जयराम प्रशासन केंद्र सरकार और अपने निर्देशों की अनुपालन नहीं कर पाता है तो पूरी स्थिति विस्फोटक हो जायेगी। उसमें कुछ भी बचना संभव नहीं रह पायेगा। 

राज्य सरकार के निर्देश जिनकी अनुपालना नही हुई














 






























  

 भारत सरकार के निर्देश जिनकी अनुपालना नही हुई

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