Friday, 19 September 2025
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प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में क्यों उभर रहे हैं विरोध के स्वर

पहले आनन्द फिर रामलाल ठाकुर और अब प्रतिभा सिंह के ब्यानों से उठी चर्चा

शिमला/शैल। पिछले कुछ अरसे से प्रदेश कांग्रेस के कुछ बड़े नेता भाजपा और जयराम सरकार पर हमलावर होने के बजाये अपने संगठन पर ही ज्यादा हमलावर होते नजर आ रहे हैं। यह सिलसिला बड़े नेता आनन्द शर्मा से शुरू होकर रामलाल ठाकुर से होते हुए प्रदेश अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह तक पहुंच गया है। आनन्द शर्मा ने चुनाव कमेटी की अध्यक्षता से यह कहकर त्यागपत्र दे दिया कि उन्हें उचित मान सम्मान नहीं दिया जा रहा है। इस आश्य का पत्र सीधे सोनिया गांधी को भेजा दिया। लेकिन आनन्द के त्यागपत्र पर संगठन में कोई बड़ी हलचल नहीं हुई क्योंकि वह बहुत पहले ही जी-23 समूह के बड़े नेता के रूप में चिन्हित हो चुके थे। आनन्द के बाद रामलाल ठाकुर ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। यह त्यागपत्र देते हुए जो सवाल उन्होंने अब सार्वजनिक रूप से संगठन पर उठाये हैं उन पर वह अब तक चुप क्यों थे। जब अपराधिक छवि के लोग संगठन में महत्वपूर्ण होते जा रहे थे तब वह खामोश क्यों थे। क्योंकि अब जब उन्हीं के उठाये हुये प्रश्न उन्हीं से पूछे जाएंगे तब क्या उत्तर देंगे? यह सवाल उठने के बाद भी वह किस नैतिकता से संगठन में बने हुए हैं इसका जवाब शायद वह न दे पायें। क्योंकि गलत समय पर यह सवाल उठाये गये हैं। जबकि इसी दौरान जब कार्यकारी अध्यक्ष पवन काजल और विधायक लखविंदर राणा पार्टी छोड़ कर गये थे तब यह सवाल पार्टी के भीतर उठाने का एक अच्छा अवसर था। इस समय सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाना संगठन को मजबूत करने की बजाये कमजोर करने का ज्यादा प्रयास माना जायेगा।
लेकिन अब जो साक्षातकार दी प्रिंट में प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का सामने आया है उससे प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में एक तरह से भूचाल की स्थिति खड़ी कर दी है। क्योंकि इस साक्षातकार के सामने आने के बाद प्रतिभा सिंह ने जो खण्डन जारी किया है उसके प्रत्युत्तर में दी प्रिंट ने पूरी स्क्रिप्ट का यूटयूब पर वीडियो जारी कर दिया हैै जिसे लाखों लोगों ने देख लिया है। इस साक्षातकार के सामने आने से यह सन्देह बन जाता है कि या तो प्रतिभा सिंह आज के राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य का सही में आकलन ही नहीं कर पायी है या फिर वह किसी राजनीतिक डर के साये में चल रही है। क्योंकि पिछले दिनों जब विक्रमादित्य सिंह ने सीबीआई को लेकर ट्वीट किया था उस समय यह सन्देश उभरा था कि आने वाले दिनों में हिमाचल में केंद्रीय जांच एजैन्सियों का दखल देखने को मिल सकता हैै। अब जब ऊना में रेत खनन माफिया के खिलाफ ईडी ने छापेमारी को अंजाम दिया है उससे यह आशंका का एकदम सही ठहरती है। क्योंकि ऊना में अवैध खनन का मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा हुआ है। इस पर अदालती जांच तक हो चुकी है। लेकिन उस समय ईडी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। संभव है कि अब चुनावी वक्त में इस छापेमारी की आंच कुछ राजनेताओं तक भी पहुंचे। ऐसे में राजनेताओं को इस तरह की स्थिति के लिये हर समय तैयार रहना होगा। लेकिन जिस तरह के ब्यान वरिष्ठ नेताओं के आने शुरू हो गये हैं उससे बहुत सारे सवाल उठने शुरू हो गये हैं।
इस सरकार के खिलाफ पूरे कार्यकाल में सदन के बाहर कोई बड़ी आक्रमकता देखने को नहीं मिली है। सरकार पर सवाल उठाने के बजाय कांग्रेस के नेता अपने अध्यक्ष बदलने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते रहे हैं। सदन में तो चर्चा रही कि यह सरकार सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाली सरकार के रूप में जानी जायेगी। लेकिन इस चर्चा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिये कोई काम नहीं किया गया। आज चुनाव के वक्त तक जो संगठन सरकार के खिलाफ कोई आरोप पत्र न ला पाये उसकी नीयत के बारे में आम आदमी में सवाल उठने स्वाभाविक हैं। क्योंकि जब कांग्रेस ने आरोप पत्र बनाने के लिए कमेटी गठित की और आरोप पत्र जारी करने की तारीख तक घोषित कर दी थी तब मुख्यमंत्री ने भाजपा द्वारा कांग्रेस सरकार के खिलाफ सौंपे आरोप पत्र की जांच सीबीआई को सौंपने की बात की थी। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद आज तक कांग्रेस का आरोप तक चर्चा से बाहर है। जबकि इस सरकार के खिलाफ तो पहले वर्ष से ही पत्र बम आने शुरू हो गये थे जयराम सरकार के आधे मंत्री परोक्ष अपरोक्ष में इन बमों के साये में हैं। सरकार का शीर्ष प्रशासन गंभीर सवालों के घेरे में चल रहा है। जिस सरकार में यह सारा कुछ रिकॉर्ड पर चल रहा हो उसका मुख्य विपक्षी दल इस तरह के अन्तः विरोधों का शिकार हो जाये तो निश्चित रूप से आम आदमी पर इस पर भ्रमित होगा ही।

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