Friday, 19 September 2025
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प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार के बावजूद भी हार गयी भाजपा नड्डा और जयराम पर उठे सवाल

चुनाव परिणामों ने मण्डी बनाम हिमाचल के आरोपों को किया प्रमाणित
क्या यह 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये बिछाई गयी  विसात  है

शिमला/शैल। हिमाचल की जयराम सरकार डबल इंजन से ड्राइव होने के बावजूद सत्ता में वापसी नहीं कर पायी है। बल्कि 12 में से 9 मंत्री चुनाव हार गये सोलन और हमीरपुर जिलों में भाजपा का खाता भी नहीं खुल पाया है। कांगड़ा ऊना और शिमला में भी बहुत निराशाजनक प्रदर्शन रहा है। दोनों जनजातियों जिले भी हाथ से निकल गये हैं। यदि मंडी और बिलासपुर का प्रदर्शन भी कहीं कांगड़ा जैसा ही रहता तो कांग्रेस का आंकड़ा निश्चित रूप से 50 हो जाता। शैल लगातार इस ओर यह संकेत करती रही है। भाजपा के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक भाजपा का सारा शीर्ष नेतृत्व चुनाव प्रचार में लगा था। जब सुरेश भारद्वाज को शिमला से कुसुम्पटी बदला गया तब यह कहा गया था कि यह बदलाव हाईकमान के कहने से किया गया है और उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी हाईकमान की है। यह कहा गया था कि भारद्वाज का चुनाव क्षेत्र जे.पी. नड्डा के निर्देश पर बदला गया है। जे.पी. नड्डा हिमाचल में मंत्री रह चुके हैं। इसलिए वह प्रदेश के हर कोने से परिचित हैं। प्रदेश में जब भी नेतृत्व परिवर्तन या कुछ अन्य मंत्रियों की छंटनी करने या विभाग बदलने की चर्चाएं उठती थी और अन्त में उनका परिणाम कुछ भी नहीं निकलता था। तो यह सब नड्डा प्रदेश से ताल्लुक रखने के कारण होता था। राष्ट्रीय अध्यक्ष होने और हिमाचल से ताल्लुक रखने के कारण यह नड्डा का अपना विशेषाधिकार था कि हिमाचल सरकार में कोई बदलाव किया जाना चाहिए या नहीं। इसी के साथ अगर सरकार की परफॉरमैन्स पर बात करें तो इस सरकार पर इसके अपने ही लोगों ने पत्र बम्बों से पहले ही वर्ष से हमले करने शुरू कर दिए थे और अन्त तक पहुंचते-पहुंचते लगभग हर मंत्री इन हमलों का शिकार हुआ। इन्हीं हमलों का परिणाम रहा है निदेशक स्वास्थ्य की गिरफ्तारी। लेकिन सरकार इन हमलों का गंभीरता से संज्ञान लेने की बजाये पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों को दबाने के प्रयास में लगी रही। इस प्रयास के कारण सरकार भ्रष्टाचार का पर्याय बन कर रह गयी। जनता को घोषणाओं और आश्वासनों के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। क्योंकि केंद्र से कोई अलग से आर्थिक सहायता मिल नहीं पायी। केंद्र की हर घोषणा सैद्धांतिक स्वीकृति से आगे नहीं बढ़ पायी। डबल इंजन के कारण प्रदेश नेतृत्व इस पर मुंह नहीं खोल पाया। ऊपर से प्रशासन ने कर्ज का ऐसा सूत्र पकड़वा दिया जिसके कारण पद को जिम्मेदारी से ज्यादा भोग का केंद्र बना दिया। राजनीतिक मुहाने पर वस्तु स्थिति यह थी कि जगत प्रकाश नड्डा धूमल काल में जिस तरह से केंद्र में धकेले गये थे वह उससे खुश नहीं थे इसलिए भीतर से धूमल को विरोधी मानते थे। 2017 का चुनाव धूमल के नेतृत्व में लड़ा गया सरकार तो बन गयी लेकिन धूमल और उनके कुछ विश्वसत साथी चुनाव हार गये। इस हार के कारण नये नेता के रूप में जयराम और नड्डा के गठजोड़ ने पहले दिन से ही धूमल को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। मानव भारती विश्वविद्यालय प्रकरण में यह खेल खुलकर सामने आ गया। जब पार्टी के भीतर इस तरह की खेमेबाजी उभर गयी तो सारे खेमे एक दूसरे को निपटाने में ही व्यस्त हो गये। इसमें प्रशासन बिल्कुल अराजक हो गया। क्योंकि सरकार पर ऐसे सत्ता केंद्रों का कब्जा हो गया जिसके लिये सुशासन एक शब्द से अधिक कुछ नहीं था। सत्ता में वापसी के लिये मोदी के नाम की माला फेरने को गारंटी मान लिया था। इस खेल में धूमल परिवार को हाशिये पर धकेलना ही प्राथमिकता बन गया। जिस तरह के ब्यान नड्डा और भारद्वाज के आये उनसे यह संकेत गया कि 2017 में धूमल की हार प्रायोजित थी। सरकार की परफॉरमैन्स को लेकर यह आरोप सदन के अन्दर और बाहर लगने शुरु हो गये कि विकास में मण्डी बनाम पुरा प्रदेश होता जा रहा है। कई विभागों के कार्यालय दूसरे जिलो से उठाकर मण्डी लाये गये। मण्डी में भी ज्यादा प्राथमिकता सिराज और धर्मपुर को दिये जाने के आरोप लगे। भेदभाव के यह आरोप उस समय और भी ज्यादा गंभीर हो गये जब मंत्री महेन्द्र सिंह की बेटी को धरने पर बैठने की नौबत आ गयी। पार्टी और सरकार में ऐसे लोगों का दबदबा बढ़ता गया जो सीधे सरकार में शामिल ही नहीं थे। लेकिन मुख्यमन्त्री किन्ही कारणों से इस पर आंखें मुंदे रहे। अब चुनाव परिणामों ने भी मण्डी बनाम शेष हिमाचल के आरोपों को प्रमाणित कर दिया है। बिलासपुर सदर में जिस तरह से 477 पोस्टल मतों की गिनती राजनीतिक दबाव में न किये जाने के आरोप लगे हैं उससे जे.पी. नड्डा भी निशाने पर आ गये हैं। मण्डी और बिलासपुर की जीत को एक सुनियोजित डिजाइन के रूप में देख जा रहा है। शिमला और हमीरपुर संसदीय क्षेत्रों की हार को भी इसी आयने में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि यह सब 2024 के चुनावों को सामने रखकर बिछाई गयी विसात है।

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