शिमला/शैल। जयराम सरकार की चुनावी हार क्यों हुई इस पर भाजपा की ओर से अभी तक कोई औपचारिक आकलन सामने नहीं आया है और शायद आये भी नही। क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा स्वयं हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं। इसी कारण से जब भी प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं उठी या कुछ मंत्रियों को हटाने या उनके विभाग बदलने की चर्चाएं उठी तो यह नड्डा ही थे जिन्होंने इस पर अमल नहीं होने दिया। हिमाचल भाजपा धूमल और नड्डा जयराम खेमों में बंटी रही है। नड्डा जयराम खेमे ने धूमल और उनके समर्थकों को ठिकाने लगाने का एक सूत्री कार्यक्रम चला रखा था यह सब जानते हैं। इस खेमेंबाजी के कारण ही भाजपा की हार हुई। इसके लिये केवल यही लोग जिम्मेदार रहे हैं। यह बिलासपुर और मण्डी के चुनाव परिणामों से भी स्पष्ट हो जाता है। शायद इसीलिये हार का औपचारिक आकलन टाला जा रहा है।
लेकिन इसी बीच कार्यकर्ताओं के अपने स्तर पर भी इस हार पर सवाल आने शुरू हो गये। हमीरपुर के नादौन चुनाव क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का एक पत्र इस चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि वहां पर इस हार के लिये राज्यसभा सांसद डॉ. सिकन्दर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को चिन्हित किया गया है। उसी तर्ज पर अब शिमला में कार्यकर्ताओं का एक वर्ग संघ प्रतिनिधि संगठन सचिव को जिम्मेदार ठहरा रहा है। क्योंकि संयोगवश यह संगठन सचिव हिमाचल के कांगड़ा से ताल्लुक रखता है। शायद पिछले दस-बारह वर्षों से हिमाचल में ही तैनात है। कांगड़ा के कुछ राजनेताओं से इनके मतभेद एक समय भाजपा विधायक दल की बैठक में भी चर्चा का मुद्दा बन चुके हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि संघ अपने प्रतिनिधि हर प्रदेश संगठन में भेजता है तथा यह लोग प्रायः प्रदेश से बाहर के होते हैं और इनका कार्यकाल भी तीन-चार वर्ष का ही रहता है। लेकिन वर्तमान संगठन सचिव के लिए इन नियमों को ताक पर रख दिया गया। इसलिए संगठन सचिव पार्टी में एकजुटता नहीं बना पाये और यही आगे चलकर पार्टी की हार का कारण बनी है। वैसे कुछ लोग इस तरह के प्रयास को इसी खेमेंबाजी का परिणाम मान रहे हैं।