Friday, 19 September 2025
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हिमाचल में कांग्रेस को लोस की एक सीट नहीं पार्टी के सर्वे में खुलासा

  • हाईकमान हुआ चिन्तित-सुक्खू सरकार हर मोर्चे पर असफल
  • कौल सिंह को बुलाया दिल्ली
  • सुक्खू भी अपना पक्ष रखने को तलब
  • व्यवस्था परिवर्तन का सूत्र पड़ा भारी

शिमला/शैल। आज यदि लोकसभा के चुनाव हो जायें तो कांग्रेस को इस समय एक सौ दस सीटों पर जीत हासिल हो रही है यह आकलन सामने आया है पार्टी के अपने सर्वे में। लेकिन इन 110 सीटां में हिमाचल का योगदान शून्य है। अभी हिमाचल में सुक्खू सरकार को सत्ता में आये छः माह का ही समय हुआ है। जो सरकार इतने अल्पकाल में ही इतनी अलोकप्रिय हो जाये कि उसे सर्वे में एक भी सीट न मिल रही हो तो यह किसी भी हाईकमान के लिये गंभीर चिन्ता का विषय होना स्वभाविक है। सर्वे के इस खुलासे का कड़ा संज्ञान लेते हुये हाईकमान ने वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री ठाकुर कौल सिंह को दिल्ली बुलाया है। कौल सिंह की सोनिया गांधी से भी प्रदेश के हालात पर मंत्रणा होगी यह भी माना जा रहा है। अब तक मुख्यमंत्री राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के जिस कवच के सहारे प्रदेश में व्यवस्था परिवर्तन करने जा रहे थे पहली बार इस सर्वे ने उस सब कुछ पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। क्योंकि जो सरकार अभी इस स्थिति पर पहुंच गयी है वह लोकसभा चुनाव तक अपने को बचाये भी रखे या नहीं यह सवाल भी खड़ा हो गया।
कांग्रेस प्रदेश की जनता को दस गारंटीया देकर सत्ता में आयी थी और यह भरोसा दिया था कि मंत्री परिषद की पहली बैठक में इन्हें लागू कर दिया जायेगा। सुक्खू राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। आज जो गारंटीयां दी गयी थी उनके इस कार्यकाल में लागू हो पाने की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि सरकार ऐसे वित्तीय संकट से घिर गयी है कि सारे कर्मचारियों को समय पर वेतन तक का भुगतान नहीं कर पा रही है। वित्तीय वर्ष के तीसरे ही माह ओवरड्राफ्ट लेना पड़ गया है। आने वाले दिनों में यह संकट और बढ़ेगा यह तय है। सुक्खू सरकार का वित्तीय संकट दिल्ली तक प्रचारित हो चुका है और उसी का संज्ञान हाईकमान ने लिया है। सरकार ने इस संकट का खुलासा तो मंत्रिमण्डल की बैठक के बाद सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी प्रैस नोट में ही दर्ज है। ऐसे में मुख्यमंत्री का यह कहना कि संकट को लेकर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है अपने में आंखें बन्द करके सच्चाई न देखने का प्रयास बन जाता है।
यह सरकार छः माह में ही है इस मुकाम पर क्यों पहुंच गयी यदि इसका आकलन किया जाये तो सरकार का पहला फैसला था पिछली सरकार द्वारा अन्तिम छः माह में लिये गये फैसलों को बदलना। इसमें करीब नौ सौ संस्थानों को पहले दिन ही बन्द कर दिया गया और आरोप लगा कि बिना उचित विचार विमर्श के यह कारवाई राजनीतिक बदले के लिए हुई। पूरे प्रदेश में विधानसभा सदन तक यह मुद्दा बनने के साथ ही उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया। पिछली सरकार के कर्ज और देनदारियों के आंकड़े जारी करने के साथ ही उस काल के वित्त सचिव को मुख्य सचिव बना दिया और वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र आज तक नहीं आ पाया। अब तो उसकी प्रसंगिकता ही खत्म हो चुकी है। प्रशासन में कोई प्रभावी फेरबदल न करके कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक को यह नही लग पाया कि सरकार बदल चुकी है। करीब एक दर्जन आईपीएस और आईएएस अधिकारी बिना पोसि्ंटग के चल रहे हैं। मंत्रिमण्डल में सभी जिलों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। जिला शिमला से मंत्रिमण्डल में तीन मन्त्री और आधा दर्जन गैर विधायकों की सरकार में ताजपोशीयां सबके लिये हैरत बना हुआ है। एचआरटीसी के कर्मचारियों और पैन्शनरों को समय पर वेतन और पैन्शन नहीं मिल रही है। लेकिन उसी एचआरटीसी के लिये एक करोड़ बीस लाख प्रति बस के हिसाब से इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जा रही हैं। अन्य विभागों में भी यही चलन है। इससे सरकार की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं। लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारों का करोड़ों का भुगतान रुका है। इस समय केवल पी एम जी एस वाई में चल रहे कामों का ही भुगतान हो रहा है अन्य भुगतान बन्द हैं।
सरकार में ऐसी दर्जनों विसगतियां भरी पड़ी है जिनसे यह संकेत उभरते हैं कि सरकार एक राजनीतिक प्रशासक की बजाये एक ठेकेदारी वाली मानसिकता पर काम कर रही है। इसी कारण से भ्रष्टाचार के एक भी मामले पर कारवाई नहीं हो रही है। शांग-टांग परियोजना मामला इसका बड़ा उदाहरण बन चुका है। वितीय संकट के साथ ही राजनीतिक संकट और गहराता जा रहा है। क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में लोकसभा चुनावों से पूर्व फैसला आना ही है। यह फैसला इनके खिलाफ जायेगा यह असम के सुंर्द्धभ में जुलाई 2017 में आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से इंगित हो जाता है। उस समय सारे राजनीतिक समीकरण एकदम गड़बड़ा जायेंगे और सरकार का अस्तित्व भी संकट में आ जायेगा। इसलिये लोकसभा को लेकर आये पार्टी के अपने सर्वे ने ही कांग्रेस हाई कमान को हिमाचल के हालात पर सोचने के लिये विवश कर दिया है।

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