शिमला/शैल। पिछले कुछ दिनों में सरकार को लेकर जो कुछ घटा है यदि उसे एक साथ रखकर पढ़ने का प्रयास किया जाये तो पहली नजर में ही यह समझ आता है की सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। सरकार और संगठन में दूरियां बढ़ती जा रही है। कांग्रेस ने चुनाव के दौरान जनता को कुछ गारंटीयां दी थी। वह कितनी पूरी हुई है और उन पर किस गति से काम चल रहा है यह विधायक राजेन्द्र राणा के मुख्यमंत्री के नाम आये खुले पत्र से स्पष्ट हो जाता है। सरकार में अब तक जितने भी गैर विधायकों की ताजपोशीयां हुई है वह सभी लोग संगठन की बजाये मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत मित्र करार दिए जा रहे है। इन्हीं ताजपोशीयों के कारण इस सरकार को मित्रों की सरकार कहा जाने लग पड़ा है। इस परिदृश्य में यदि पावर कॉरपोरेशन को लेकर आये पत्र बम्बों और मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य को लेकर सोशल मीडिया में उठी चर्चाओं पर जिस तरह से पुलिस जंाच चली है उस से यह लगने लगा है की सरकार का संकट बढ़ता जा रहा है।
सरकार में कार्यकर्ताओं की अनदेखी का जिक्र कांग्रेस अध्यक्षा राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक कर चुकी है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधायक कुलदीप राठौर भी इस अनदेखी पर मुखर हो चुके हैं। मंत्री परिषद में खाली चले आ रहे पद अब तक भरे नहीं जा सके है। राजेन्द्र राणा और सुधीर शर्मा ने महाभारत का जो संकेत एक समय दिया था वह विधानसभा सत्र से पहले खुले पत्र तक पहुंच गया है। विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ हर रोज मुद्दे पहुंच रहे है। सरकार वितिय स्थिति पर श्वेत पत्र लाने की जो कवायद कर रही थी वह अंजाम तक पहुंचने को पहले ही लोप हो गयी है क्योंकि यह सरकार स्वयं भी कर्ज की संस्कृति पर चल रही है। कर्ज और आपदा में भी जो सरकार सलाहकारों के पद सृजित करने से परहेज न करे उसको लेकर आम आदमी क्या धारणा बनायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे विधानसभा सत्र से पहले खुले पत्र का आना पूर्व में आये महाभारत के संकेतों की ओर पहला कदम माना जा रहा है।