शिमला/शैल। डीजीपी कुण्डू के खिलाफ आये प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वाेच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। अब यह अपने पद पर बने रहेंगे। सर्वाेच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की जांच के लिये एस.आई.टी. गठित करने के निर्देश को बहाल रखा है और शिकायतकर्ता निशान्त शर्मा और उसके परिवार को सुरक्षा उपलब्ध करवाने के निर्देश को भी बहाल रखा है। कुण्डू इसी वर्ष अप्रैल में सेवानिवृत होने जा रहे हैं। इस परिदृश्य में सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला कुण्डू के लिये एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन इस प्रकरण में आये उच्च न्यायालय और फिर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों ने कुछ ऐसे बुनियादी सवाल सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर खड़े कर दिये हैं जिनका परिणाम दूरगामी होगा। क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय ने कुण्डू को अपने पद से हटाने के उच्च न्यायालय के फैसले से असहमति जताई है। कुण्डू ने सर्वाेच्च न्यायालय में एस.पी. शिमला की रिपोर्ट की निष्पक्षता पर शिमला ब्लास्ट प्रकरण में आयी उनकी रिपोर्ट पर उठे सवालों के संद्धर्भ में प्रश्न उठाये हैं। इस प्रकरण में एस.आई.टी कब गठित होती है और उसकी जांच रिपोर्ट कब आती है यह सब आने वाला समय ही बतायेगा।
इस प्रकरण में सरकार की कार्यशैली पर जो सवाल उठते हैं वह आम आदमी के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। क्योंकि निशान्त शर्मा की शिकायत पर कोई भी जांच होने से पहले ही उसके खिलाफ कुण्डू एक एफ.आई.आर. दर्ज करवा देते हैं और उसके होटल को निगरानी पर डाल देते हैं। जिन व्यापारिक सहयोगियों के खिलाफ निशान्त शर्मा की शिकायत है उन्हीं के साथ डी.जी.पी. की लम्बी बात होना उच्च न्यायालय के रिकॉर्ड पर आ चुका है और इस तथ्यात्मक रिकॉर्ड पर सर्वाेच्च न्यायालय ने कोई टिप्पणी नहीं की है। यह टिप्पणी न किया जाना उच्च न्यायालय में आये रिकॉर्ड की प्रामाणिकता पर भी कोई सवाल खड़े नहीं करता है क्योंकि उसकी सत्यता के आगे जांच में परखी जायेगी। लेकिन इस प्रकरण में जिस तरह से सवाल सरकार की निष्क्रियता और धर्मशाला पुलिस की कार्यशाली पर उठे हैं उससे पूरे तंत्र की विश्वसनीयता प्रश्नित हो गयी है।
उच्च न्यायालय ने जब डी.जी.पी. को हटाने के पहली बार निर्देश दिये तो सरकार ने उस पर अमल करते हुये उन्हें तो प्रधान सचिव आयुष तैनात कर दिया लेकिन एस.पी. कांगड़ा को लेकर सरकार चुप रही। जब उच्च न्यायालय ने दूसरी बार फैसले में रिकाल याचिका को अस्वीकार कर दिया तब भी एस.पी. को लेकर सरकार की ओर से कोई कारवाई सामने नहीं आयी। फिर जब कुण्डू उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दूसरी बार सर्वाेच्च न्यायालय गये तो शायद वहां पर सरकार का पक्ष रखने के लिये कोई उपलब्ध ही नहीं था। सरकार के ऐसे आचरण से क्या यह सन्देश नहीं जाता है कि सरकार की पहली प्राथमिकता अधिकारी हैं न की आम आदमी।