शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकल पीठ ने एचपीसीए के अध्यक्ष हमीरपुर से भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर एंवम् अन्य के खिलाफ उस मामले की एफ आई आर को रद्द कर दिया है जो इन लोगों के खिलाफ अक्तूबर 2013 में विजिलैन्स कार्यालय धर्मशाला में सरकारी काम काज में बाधा डालने के संद्धर्भ में दर्ज की गयी थी। इस एफ आई आर की जांच पूरी करके इसका चालान सी जे एम कोर्ट में दायर कर दिया था। सी जे एम कोर्ट में भी यह चालान आने के बाद अगली प्रक्रिया शुरू कर दी गयी थी और इसी सब कुछ को अनुराग ठाकुर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने अनुराग ठाकुर की याचिका को स्वीकार करते हुए इस संद्धर्भ में दर्ज हुई एफ आई आर और उस पर सीजेएम कोर्ट में चली कारवाई को निरस्त कर दिया है। अनुराग एवम् अन्य के खिलाफ यह मामला बनाया गया था कि इन लोगों ने धर्मशाला स्थित विजिलैन्स के थाना में आकर नारेबाजी करके वहां उपस्थित सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को सरकारी काम काज करने में बाधा पहुंचाई है। सरकारी कामकाज में बाधा विजिलैन्स के थाना/कार्यालय में पहुंचाई गयी थी लेकिन इस मामले की शिकायत अदालत में विजिलैन्स की बजाये एस एच ओ धर्मशाला द्वारा डाली गयी। एस एच ओ धर्मशाला के काम काज में तो कोई बाधा नही डाली गयी थी इसलिये उसे यह मामला दायर करने का कोई अधिकार ही नही था। उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि सी आर पी सी की धारा (195)(1)(a) के तहत एस एच ओ धर्मशाला इसमे शिकायत कर्ता नही हो सकते थे। The complaint filed under the signatures of SHO, PS Dharamshala cannot be termed as complaint under Section 195 (i) (a) Cr.P.C. The complaint could only be filed by the officer concerned.अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि आई पी सी की धारा 186 के मुताबिक शिकायत में यह तफसील होनी चाहिए थी कि जिन अधिकारियों के काम मे बाधा डाली गयी उनमें कौन अधिकारी क्या काम कर रहा था और किसने कैसे उसे व्यक्तिगत तौर पर काम करने से रोका। उच्च न्यायालय ने 38 पन्नो के अपने विस्तृत आदेश में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर देश के कई उच्च नयायालयों के ऐसे मामलों मे आए फैसलों का जिक्र किया है। उच्च न्यायालय ने जिस तरह से इस मामले में सी आर पी सी की धारा 195 (1)(a)ओैर आई पी सी की धारा 186 के प्रावधानों की अनदेखी कियेे जाने का जिक्र किया है उससे सरकार की मंशा पर ही बुनियादी सवाल खडे़ हो जाते है और यह संदेश जाता है कि जानबूझकर यह मामले बनाये जा रहें है। इस मामले के रद्द हो जाने के बाद यह सवाल उठा है कि इसमें ऐसी बुनियादी कमिया क्यों रखी गई जिनकी जानकारी हर बड़े पुलिस अधिकारी और पूरे अभियोजन विभाग को होना आवश्यक है। क्योंकि यह पुलिस में सामान्य प्रक्रिया है कि किसी भी मामले की जांच के बाद जब जांच अधिकारी उसका चालान तैयार करता है तो वह पूरे मामले को एक बार फिर अपने बड़े अधिकारियों के संज्ञान में लाता है और उसके बाद कानूनी पहलुओं को देखने के लिए अभियोजक के पास भेजता है। यह मामला उस व्यक्ति के खिलाफ खड़ा किया जा रहा था जो तीसरी बार भााजपा का सांसद बना है। पूर्व मुख्यमंत्राी का बेटा है और भाजपा के युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष है। पूर्व मुख्यमन्त्राी प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह के बीच किस तरह के राजनीतिक रिश्ते है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रही ईडी और सीबीआई जांच के लिये हर संभव मंच पर धूमल, अनुराग और अरूण जेटली को कोसना नहीं भूलते। इन्ही रिश्तों के कारण वीरभद्र के इस कार्यकाल में एचपीसीए की जांच ही सरकार की विजिलैन्स का प्रमुख मुद्दा रहा है। धूमल के खिलाफ चलायी जा रही संपति जांच भी इन्ही रिश्तों का परिणाम है। वीरभद्र के लिए धूमल, अनुराग जितने बडे़ मुद्दे बन चुके हैं उसमें विजिलैंस उसी अनुपात में सरकार को झटके देती जा रही है। एच पी सी ए के पहले चालान का ट्रायल सर्वौच्च न्यायालय से स्टे हो चुका है। टेलिफोन टेपिंग के मामले में भी कोर्ट से झटका मिल चुका है। ए एन शर्मा के मामले में भी मार पड़ चुकी है। इस तरह अगर इन सारे मामलों को इकट्ठा करके देखा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि वीरभद्र के सलाहकार इस समय वीरभद्र से ज्यादा धूमल के हितों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं।