हिमाचल में है 895 सत्संग घर और 6000 बीघे से अधिक जमीन
शिमला/शैल। विधानसभा सदन में एक प्रश्न के उत्तर में आयी जानकारी के अनुसार राधास्वामी सत्संग व्यास के पास प्रदेश के विभिन्न भागों में 6 हजार बीघे से अधिक भूमि है। राधास्वामी सत्संग व्यास की स्थापना डेरा बाबा जैलम सिंह व्यास जिला जालंधर में 1891 को हुई थी। अकेले हिमाचल में ही इसके 895 सत्संग घर हैं और इसके अनुयायीयों की संख्या प्रदेश में लाखों मे है। सामाजिक कार्यों के नाम पर प्रदेश के हमीरपुर जिले के भोटा में संस्था का एक चैरिटैबल अस्पताल भी चल रहा है। संस्था के मुताबिक 2010- 11 से 2015-16 के बीच ही इन्हें 208 स्थानों पर लोगों से दान के रूप में 65 एकड़ जमीन मिली है। इनके पास प्रदेश जनजातीय क्षेत्र किन्नौर तक में जमीन है जबकि वहां पर केवल जनजातीय लोगों को ही जमीन लेने का हक है।
राधास्वामी सत्संग व्यास के अनुयायीयों की संख्या लाखों में होने के कारण चुनावी राजनीति को सामने रखते हुए हर सरकार इनकी सुविधा के अनुसार लैण्ड सीलिंग एक्ट के प्रावधानों में संशोधन करती आयी है। प्रदेश में लैण्ड सीलिंग एक्ट 1972 लागू है। 1971 में लागू हुए इस एक्ट के मुताबिक अधिकतम जमीन रखने की सीमा 161 बीघे है। इस सीमा से बाहर केवल राज्य सरकार, केन्द्र सरकार या सहकारी संस्था ही जमीन रख सकती है। प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचली सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकता। गैर कृषक हिमाचली भी जमीन नही खरीद सकता। इसके लिये भू-राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है। किसी भी तरह की संस्था कृषक नही हो सकती है सिवाये कृषि सहकारी संस्थाओं के। लेकिन राधास्वामी सत्संग व्यास ने जब 1990-91 में भौटा में अस्पताल बनाने का फैसला लिया तब सरकार से इसके लिये अनुमति चाहिये थी परन्तु उस समय भी इनके पास लैण्डसीलिंग से अधिक जमीन थी। तब शान्ता सरकार ने इनको 7 अगस्त 1991 कोे कृषक का दर्जा प्रदान कर दिया। इसके लिये जनरल क्लाज़ज एक्ट हिमाचल प्रदेश की धारा 2;35द्ध और भू- राजस्व अधिनियम की धारा 2;2द्ध के तहत कृषक और व्यक्ति का दर्जा प्रदान कर दिया।
यह दर्जा प्राप्त होने के बाद संस्था कृषक बनकर प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना ही कहीं भी ज़मीन खरीदने-लेने की पात्रा बन गयी। इसके बाद धूमल सरकार ने लैण्डसीलिंग एक्ट में संशोधन करके धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाओं को सीलिंग एक्ट की सीमा से बाहर कर दिया। लेकिन इस संशोधन में यह भी साथ ही जोड़ दिया कि यह सुविधा तभी तक रहेगी जब तक वह संस्था के घोषित उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति सुनिश्चित रखेंगे। अब राधास्वामी सत्संग व्यास ने प्रदेश के विभिन्न भागों में फैली जमीनों को बेचनेे की अनुमति मांगी है। वीरभद्र सरकार यह अनुमति देना भी चाहती है। सूत्रों के मुताबिक संस्था ने इस अनुमति के लिये सरकार और प्रशासन पर पूरा दबाव बनाया हुआ है। सरकार भी चुनावी गणित को सामने रखकर यह अनुमति देने के हक में है। यहां तक कि भाजपा भी इसका विरोध नहीं कर रही है जबकि संशोधन में लैण्डयूज़ का राईडर उन्होने ही लगाया था। लेकिन इस प्रकरण की चर्चा बाहर आने के बाद जो सवाल उभरे है उनसे प्रशासन भी कठघरे में आ गया है, क्योंकि 1991 में जब इन्हे कृषक का दर्जा दिया गया था उस समय सरकार ने यह सूचना नही ली कि क्या वास्तव में ही यह संस्था दान में मिली हुई जमीन पर कृषि कार्य कर रही है बल्कि यह जानकारी आज भी सरकार के पास नही है। जबकि कृषक का दर्जा उसी संस्था को मिल सकता था जो वास्तव में ही कृषि कार्य कर रही हो। क्योंकि प्रदेश में कई मन्दिरों के पास उनके गुजारे के लिये जमीने थी और वह उन पर खेती करते थे और इस नाते वह कृषक थे। लेकिन इस संस्था का आज भी ऐसा कोई रिकार्ड नही है। इसलिये 7 अगस्त 1991 को इन्हे मिली यह सुविधा सवालों में आ जाती है। इसी के साथ संस्था ने जमीन बेचने की अनुमति के लिये जो आवदेन किया है उसमें स्पष्ट कहा है कि यह ज़मीन उन्हे दान में मिली है। दान में मिली हुई संपत्ति को बेचने के लिये दानकर्ता की अनुमति चाहिये। ऐसे में इन्हे यह अनुमति देने से पहले दान कर्ताओं से अनुमति लेना आवश्यक हो जायेगा और अब जब से सिरसा का बाबा राम रहीम का डेरा सच्चा सौदा विवादों में आया है उससे अब दानकर्ताओं द्वारा ऐसी सहमति मिलने को लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं।