शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा की 44 सीटें जीतने के बाद भी भाजपा को मुख्यमन्त्री का चयन करने में एक सप्ताह का समय लग गया। ऐसा इसलिये हुआ कि भाजपा का मुख्यमन्त्री के तौर पर घोषित चेहरा पूर्व मुख्यमन्त्री एवम नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से अपना ही चुनाव हार गये। धूमल की हार के साथ ही प्रसारित हो गया कि जयराम ठाकुर को भाजपा हाईकमान ने दिल्ली बुला लिया है और वह प्रदेश के अगले मुख्यमन्त्री होने जा रहें है। इस प्रसारण को इसलिये भी बल मिला क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान जय राम के विधानसभा क्षेत्र में हुई एक
हाईकमान को सारी वस्तुस्थिति से अवगत करवाकर नये निर्देशों के साथ जब पुनः शिमला लौटे तो पूरे प्रदेश में यह संदेश फैल गया कि अब नड्डा मुख्यमन्त्री बनने जा रहे हैं। इस पर नड्डा के समर्थकों ने भी लडडू बांटकर जश्न की तैयारी कर ली। प्रदेश की जनता इस संदेश पर भी सतुंष्ट हो गयी। क्योंकि चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने से बहुत अरसा पहले ही नड्डा संभावित मुख्यमन्त्री के रूप में देखे जाने लग पड़े थे। उनकी कार्यशैली से भी यही संकेत और संदेश जा रहे थे। इसलिये अब जब नड्डा का नाम नये सिरे से चर्चा में आया तो किसी को भी यह केवल मीडिया ही की खबर नही लगी। परन्तु जब अन्तिम परिणाम सामने आया तब फिर फैसला जयराम के पक्ष में सुनाया गया। इस फैसले की घोषणा के साथ यह भी चर्चा में आ गया कि देर शाम तक पंडित सुखराम और किश्न कपूर तथा धवाला की धूमल के साथ बैठक हुई जिसमें हाईकमान को अवगत करवा दिया गया कि विधायकों का बहुमत तो धूमल के साथ ही खड़ा है। सूत्रों के मुताबिक इस शक्ति प्रदर्शन से बचने के लिये ही धूमल ने एक वक्तव्य जारी करके स्पष्ट किया कि सीएम की वह रेस में नही है। धूमल के इस वक्तव्य के बाद ही जयराम का मार्ग प्रशस्त हुआ और उनके नाम की औपचारिक घोषणा हुई।
इस तरह सीएम के चयन में यह जो कुछ घटा उससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस सहमति पर पहुंचने के लिये बड़ी कसरत करनी पड़ी है। इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल सामने आ खड़ा हुआ है कि क्या धूमल और उनके निकटस्थों की एक साथ हार क्या एक महज संयोग है या इसके पीछे कोई सुनियोजित शडयंत्र था? क्योंकि यदि यह एक संयोग है तब इन हारने वाले और दूसरे नेताओं को भी यह आत्मचितन्तन का अवसर है। लेकिन यदि यह एक षडयंत्र रहा है तो फिर यह संघ और भाजपा के लिये एक बड़े संकट का संकेत है क्योंकि आगे एक वर्ष के बाद लोकसभा के चुानव आने हैं। फिर इस बार भाजपा के लगभग सभी चुनावों क्षेत्रों से भीतरीघात की शिकायतें मिली हैं। इतने बडे पैमाने पर ऐसी शिकायतें पहली बार ही मिली हैं। इन शिकयतों पर पार्टी का आंकलन क्या रहता है इसका खुलासा तो आने वालेे दिनों में ही सामने आयेगा। लेकिन अब तक जो कुछ घट चुका है उसका प्रभाव सरकार पर अवश्य पडेगा। मन्त्रीमण्डल का गठन कैसा रहता है इसमें पुरानेे अनुभवी लोगों को जो पहले भी मन्त्री या मन्त्री स्तर तक की जिम्मेदारी निभा चुके हैं उन्हें कितनी जगह मिलती है और इनके साथ नये लोगों को कितना स्थान दिया जाता है इस पर सबकी निगाहें रेहगी। क्योंकि प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि चुनावों के दौरा कांग्रेस से निकलकर एक मन्त्री भाजपा में शामिल होता है और पार्टी उसे टिकट देती है तथा वह जीत भी जाता है। अनिल शर्मा का मामला ऐसा ही है। अब क्या अनिल शर्मा को मन्त्रीमण्डल में स्थान मिलता है या नही। यह पार्टी के लिये भी एक कसौटी रहेगा। क्योंकि मण्डी में ही सबसे सशक्त और वरिष्ठ ठाकुर महेन्द्र सिंह हैं। ऐसे में क्या महेन्द्र सिंह और अनिल शर्मा दोनों को एक साथ जगह मिल पायेगी। इसी तहर शिमला में सुरेश भारद्वाज और नरेन्द्र बरागटा का मामला है क्या इन दोनों को भी एक साथ ले लिया जायेगा? कांगड़ा में किशन कपूर, सरवीण चौधरी, राकेश पठानिया, विपिन परमार और रमेश धवाला सब एक बराबर के दावेदार हैं। इनके बाद राजीव बिन्दल, वीरेन्द्र कंवर, गोबिन्द ठाकुर और डा॰ रामलाल मारकण्डेय पुराने लोगों में से हैं। इन सारे पुराने लोगों का ही एक साथ मन्त्रीमण्डल में आ पाना संभव नही है। फिर ऐसे में नये लोगों को कैसे समायोजित किया जायेगा यह बड़ा सवाल मुख्यमन्त्री के सामने रहेगा। स्वभाविक है कि भाजपा को भी संसदीय सचिव बनाकर ही यह तालमेल बिठाना पड़ेगा।
इस समय प्रदेश का कर्जभार 50,000 करोड़ से ऊपर जा पहुंचा है। भारत सरकार का वित्त विभाग मार्च 2016 में कर्ज की सीमा को लेकर सरकार को कड़ा पत्र लिख चुका है। ऐसे में वित्तिय स्थिति भी नई सरकार के लिये गंभीर चुनौति होगी। इसके लिये पिछली सरकार के अन्तिम तीन माह में लिये गये फैसलों पर नये सिरे से विचार करने या इन्हे बदलने से ही समस्या हल नहीं होगी। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरैन्स का दावा हर बार किया जाता रहा है लेकिन आज तक अपने ही आरोप पत्रों पर भाजपा सत्ता में आकर कोई कारवाई नहीं कर पायी है। इस बार अनिल शर्मा तो एक ऐसा मुद्दा बन जायेगा कि एक ओर उस पर भाजपा के ही आरोप पत्र मे आरोप दर्ज हैं तो दूसरी ओर उसका मन्त्री बनना भी तय माना जा रहा है। ऐसे दर्जनों मामले हैं जहां सरकार को कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा। वनभूमि पर हुए अतिक्रमणों से लेकर प्रदेश भर में हुए अवैध निर्माणों पर उच्च न्यायालय से लेकर एन जी टी तक के आये फैसलों पर अमल करना जयराम सरकार के लिये सबसे चुनौति और कसौटी सिद्व होगी।