शिमला/शैल। जयराम सरकार ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख सोमेश गोयल को हटाकर सीताराम मरड़ी को पुलिस प्रमुख के तौर पर तैनाती दी है। मरड़ी 1886 बैच और गोयल 1984 बैच के आई पी एस अधिकारी हैं। गोयल जून 2017 में डी जी पी स्टेट बने थे। उनसे पहले 1985 बैच के संजय कुमार डी जी पी थे। क्योंकि जब संजय कुमार को डी जी पी बनाया गया था उस समय गोयल के खिलाफ विजिलैन्स में एक मामला चल रहा था। इस कारण से उनकी वरिष्ठता को नज़रअन्दाज किया गया। लेकिन अब जब 2017 में गोयल का मामला समाप्त हुआ तो संयोगवश उसी दौरान संजय कुमार केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गये और गोयल आसानी से डी जी पी स्टेट बन गये। परन्तु अब गोयल केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर नही गये हैं और उन्हें छः माह के बाद ही पद से हटाकर उनसे कनिष्ठ को डी जी पी नियुक्त कर दिया गया है। पुलिस के शीर्ष पर हुए फेरबदल को लेकर पुलिस मुख्यालय से लेकर सचिवालय तक में सवाल उठने शुरू हो गये हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार पुलिस प्रमुख को दो सालों के कार्यकाल से पहले ही हटा सकती है या नही? यह सवाल इसलियेे उठ रहा है कि पुलिस तन्त्र में सुधार किये जाने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रयास एक लम्बे अरसे से चले आ रहे थे उनके तहत 1979 में राष्ट्रीय पुलिस कमिशन का गठन किया गया था। इस कमिशन की रिपोर्टों पर जब कोई कारवाई नही हुई तब 1996 में दो सेवानिवृत पुलिस प्रमुखों ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। डी जी पी प्रकाश सिंह और एन के सिंह ने याचिका दायर करके अदालत से आग्रह किया कि सरकार को एनपीसी की सिफारिशें लागू करने के निर्देश दिये जायें। इस याचिका पर 22 सितम्बर 2006 को सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया और इसमें सरकार को सात निर्देश दिये गये और इस पर राज्य सरकारों से भी अनुपालना रिपोर्ट तलब की गयी थी। इसके लिये 16 मई 2008 को एक माॅनिटरिंग कमेटीे का भी गठन किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में जो सात निर्देश जारी किये थे उनके तहत पहला था कि स्टट सिक्योरिटी कमीशन का गठन किया जाये। दूसरा था कि डी जी पी की नियुक्ति पारदर्शी हो और उसका कार्याकाल कम से कम दो वर्ष का रहे। तीसरा था कि आॅप्रेशन डयूटी पर तैनात जिला पुलिस चीफ से लेकर एस एच ओ तक को दो वर्ष का कार्यकाल दिया जाये।
स्मरणीय है कि जब सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला आया था और उस पर अमल की रिपोर्ट तलब की गयी थी तब हिमाचल सरकार ने एक अध्यादेश लाकर तुरन्त प्रभाव से इस पर अमल किया था और बाद में विधानसभा सत्रा के दौरान इस आश्य का नियमित विधेयक पारित किया गया था। इस विधेयक और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद पुलिस में इन पदों पर तैनात अधिकारियों को दो वर्ष के कार्यकाल से पहले किसी ठोस कारण के बिना हटाना संभव नही है। केरल और गोवा में राज्य सरकारों द्वारा डी जी पी को उनके पदों से हटाया गया था। इस हटाने को जब अदालत में चुनौती दी गयी थी तब सरकार को अपने फैसले वापिस लेने पडे़ थे। अब 2017 में भी सर्वोच्च न्यायालय ने दो वर्ष के कम से कम कार्यकाल को लेकर सरकार को कड़े़ निर्देश दिये हैं। यह सब संभवतः इसलिये किया गया है ताकि पुलिस और जांच ऐजैन्सीयों पर ‘‘पिंजरे का तोता’’ होने के आरोप कम से कम लगें। आज प्रदेश में सरकार बदली है। नये मुख्मन्त्री ने कार्यभार संभाला है। गृह विभाग भी उन्ही के पास है। संभव है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले और सरकार के अपने ही विधेयक की जानकारी शायद मुख्मन्त्री को न रही हो। लेकिन गृह सचिव को इसकी जानकारी रहना स्वभाविक और आवश्यक है तथा यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह मुख्मन्त्री को भी इससे अवगत करवायें। क्योंकि आज यदि कोई अधिकारी या अन्य व्यक्ति इस फैसले को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा देता है तो सरकार के लिये कठिनाई पैदा हो सकती है। क्योंकि अभी सरकार ने यह ऐलान किया है कि वह पिछली सरकार द्वारा बनाये गये मामलों को वापिस लेगी। जबकि यह मामले वापिस लेने के लिये संबंधित जांच अधिकारियों के खिलाफ भी झूठे या कमजा़ेर मामले बनाने के लिये कारवाई करने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय एक मामले में संबधित अधिकारियों को जारी कर चुका है। कानून के इस परिदृश्य में पुलिस में हुए कुछ फेर बदल सरकार के लिये परेशानी खड़ी कर सकते हैं क्योकि कई अधिकारियों का दो साल का कार्यकाल पूरा नही हुआ है।