शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद यह ऐलान किया था कि वीरभद्र शासन में राजनीतिक प्रतिशोध की नीयत से बनाये गये आपराधिक मामले तुरन्त वापिस लिये जायेंगे। इस संद्धर्भ में एचपीसीए के खिलाफ बनाये गये मामलों का विशेष रूप से जिक्र किया गया था। सरकार का यह ऐलान दस तारीख को धर्मशाला में हुई मन्त्रीमण्डल की बैठक के बाद सामने आया था, लेकिन इसके बाद जब एचपीसीए के खिलाफ बनाया गया पहला ही मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया तब वहां यह सवाल उठा कि क्या मामले वापिस लिये जा रहे हैं
स्मरणीय है कि एचपीसीए के खिलाफ बने पहले ही मामले में अनुराग ठाकुर एचपीसीए के पदाधिकारियों सहित पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सनान और कई अन्य अधिकारी बतौर अभियुक्त नामज़द हैं। इनके अतिरिक्त वीरभद्र के प्रधान सचिव रहे टीजी नेगी और प्रधान नीजि सचिव रहे सुभाष आहलूवालिया भी इसमें खाना 12 में अभियुक्त नामज़द है। खाना 12 में रखे गये अभियुक्तों को अदालत जब चाहे मुख्य अभियुक्तों में शामिल कर सकती है क्योंकि अदालत में आये चालान में इसका विस्तार से खुलासा किया गया है कि पूरे मामले में इनकी भूमिका क्या रही है। चालान में इन अधिकारियों के खिलाफ यह आरोप है कि इन्होने एचपीसीए द्वारा ज़मीन की मांग किये जाने से एक सप्ताह पहले ही मन्त्री परिषद् को सही स्थिति न बताकर एचपीसीए के पक्ष में जमीन का आबंटन करवा दिया। यही नहीं एचपीसीए का यह भी आवेदन नही रहा है कि ज़मीन की लीज़ की दर एक रूपया की जाये। एक रूपया लीज़ रेट करने का फैंसला सुभाष आहलूवालिया का बैतार निदेशक रहा है। यह आरोप अपने में गंभीर है। फिर एच पी सी ए को जो ज़मीन दी गयी है वह विलेज काॅमन लैण्ड है। सर्वोच्च न्यायालय ने जगपाल सिंह बनाम स्टेट आॅफ पंजाब में मामले में दिये फैंसले में विलेज़ काॅमन लैण्ड के इस तरह के आबंटन पर पूरे देश में तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगा दिया है। राज्यों के मुख्य सचिवों को इस फैसले पर अमल करने के निर्देश देते हुये उनसे अनुपालना रिपोर्ट भी तलब की गयी है। एचपीसीए के प्रकरण में तो अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व पर आरोप ही यह है कि उन्होंने इस ज़मीन के ट्रांसफर का फैसला भी अपने ही स्तर पर ले लिया जबकि वह इसके लिये अधिकृत नहीं थे। इस पर फैसले का अधिकार केवल मन्त्रिपरिषद् को था।
इस मामले का चालान जब धर्मशाला कोर्ट में दायर हुआ और उसके बाद जब इसपर संज्ञान लिये जाने की प्रक्रिया शुरू हुई तब इसे प्रदेश उच्च न्यायालय में एचपीसीए ने चुनौती दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय ने एचपीसीए की याचिका अस्वीकार करते हुए इस पर संज्ञान लिये जाने को हरी झण्डी दे दी। लेकिन उच्च न्यायालय में हारने के बाद एचपीसीए इसमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील में चली गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर ट्रायल स्टे कर दिया। उसके बाद से अब तक यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है। इस मामले के सारे तथ्यों की जानकारी रखने वालों का मानना है कि इसमें जितने भी अधिकारियों की भूमिका रही है उन्होने सरकार और मुख्यमन्त्री को इसमें निश्चित तौर पर गुमराह किया है। लेकिन अब जब प्रदेश उच्च न्यायालय इसको संज्ञान योग्य मान चुका है तो क्या सरकार इसको आसानी से वापिस ले पायेगी। क्योंकि किसी मामले को वापिस लेने के लिये उसमें यह आधार बनाना पड़ता है कि उपलब्ध तथ्यों के मुताबिक मामला नही बनता है और ऐसा तभी संभव है जब इसमें किसी कारण से पुनः जांच किये जाने की नौबत आ जाये। वैसे अभी तक आर सीएस की ओर से यह नहीं आया है कि एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी क्योंकि जब एचपीसीए ने इसे सोसायटी से कंपनी बनाये जाने का आग्रह आरसीएस से किया था तब विभाग इस आग्रह पर लगभग एक वर्ष तक खामोश बैठा रहा था। जबकि इस आग्रह को तुरन्त प्रभाव से स्वीकार या अस्वीकार किया जाना चाहिये था क्योंकि बहुत संभव है कि यदि यह आग्रह तुरन्त प्रभाव से अस्वीकार हो जाता है तो एचपीसीए इसे कंपनी बनाती ही ना। इस समय प्रदेश की राजनीति में एचपीसीए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। जो वीरभद्र इस मामले में अपने शासनकाल में कुछ नही कर पाया अब वह इस मामले को वापिस लिये जाने का विरोध कर रहा है। जयराम सरकार इसमें क्या और कैसे करती है उस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।