Friday, 19 September 2025
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अब आसान नही होगा आऊटसोर्स कर्मचारियों को निकालना

शिमला/शैल। प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यूलन नगर पंचायती राज विभाग में 2014 में आऊटसोर्स के माध्यम से रखे गये कर्मचारी ओबेस खान की याचिका पर फैसला देते हुए यह व्यवस्था थी कि ऐसे कर्मचारी को नौकरी से तब तक नही निकाला जा सकता जब तक कि जिस स्कीम के तहत उसे रखा गया हो वह स्कीम जारी रहे और उसके लिये धन उपलब्ध होता रहे। ओबेस खान को पंचायती राज विभाग में केन्द्र प्रायोजित स्कीम आरपीजीएसए के तहत 2014 में सलाहकार रखा गया था। लेकिन 2015 में उसे निकाल दिया गया। जबकि इसी योजना के तहत एक अधीक्षक ग्रेड-II श्रीमती विपाशा भोटा की सेवाओं को जारी रखा गया। ओबेस खान ने अपने निष्कासन को ट्रिब्यूनल में चुनौती दी और आरटीआई के माध्यम से श्रीमति विपाशा भोटा को दिये गये वेतन आदि की जानकारी हासिल की। आरटीआई में मिली सूचना में यह सामने आया कि उसे इसी योजना से 2014-15 और 2015-16 का वेतन दिया गया है और यह योजना अब तक जारी है तथा केन्द्र से इसके लिये धन मिलना जारी है।
इस जानकारी से जब यह स्पष्ट हो गया कि योजना भी जारी है धन भी मिल रहा है तथा अन्य कर्मचारी भी इसके तहत काम कर रहे हैं तब बिना किसी ठोस कारण के एक कर्मचारी को निकाल देना सीधे-अन्याय है। ट्रिब्यूनल ने इस जानकारी का कड़ा संज्ञान लेते हुए ओबेस खान को न केवल नौकरी में बहाल किया बल्कि जिस दिन से उसे निकाला गया तब से अब तक का वेतन देने के भी आदेश दिये हैं। ओबेस खान की याचिका में मुख्य सचिव, प्रधान सचिव पंचायती राज एवम् ग्रामीण विकास निदेशक पंचायती राज तथा भारत सरकार के पंचायती राज मन्त्रालय को प्रतिवादी बनाया गया था। यह याचिका 2015 में दायर हुई थी और इस पर 27.02.2018 को फैसला आया है। इस दौरान प्रदेश में आऊटसोर्स पर रखे गये करीब 30,000 कर्मचारी अपने नियमितकरण और उनके लिये एक पाॅलिसी लाये जाने के लिये संघर्ष करते रहे हैं। विधानसभा सदन तक भी यह मामला पहुंचा है। सरकार ने इसमें कुछ नये दिशा निर्देश भी 2017 में जारी किये हंै। आऊटसोर्स कर्मचारियों को नियमित करना वर्तमान नियमों/कानूनो के तहत संभव नही लेकिन अब इस फैसले के बाद उन्हें आसानी से नौकरी से निकालना संभव नही होगा।
इस समय राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक ने हजा़रों कर्मचारी आऊटसोर्स के माध्यम से रखे हुए हैं। आऊटसोर्स के तहत रखे गये कर्मचारी मूलतः सीधे सरकार द्वारा नही रखे जाते हैं। बल्कि किसी कंपनी या ठेकेदार को कोई सेवा या योजना निष्पादन के लिये ठेके पर दे दी जाती है जिसके लिये वह अपनी ईच्छा से कर्मचारियों की भर्ती करता है। सरकार की तरह इसके लिये वह किसी चयन प्रक्रिया की औपचारिकता नही निभाता है। इस कारण से ऐसे कर्मचारियों को कभी भी नौकरी से निकाल दिये जाने का भय बना रहता था जो इस फैसले से समाप्त हो जाता है। आने वाले समय में इस फैसले के कई दूरगामी परिणाम और प्रभाव सामने आयेंगे।

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