शिमला/शैल। नगर निगम शिमला की कार्यप्रणाली को लेकर एक लम्बे अरसे से सवाल उठते आ रहे हैं क्योंकि नगर निगम जो सेवाएं लोगों को उपलब्ध करवाता है उनकी गुणवता को लेकर सवाल उठे हैं। पेयजल आपूर्ति को लेकर शहर में जनजीवन अस्तव्यस्त होने के साथ शहर में अवैध निर्माणों को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर एनजीटी और सर्वोच्च न्यायालय तक इसका कड़ा संज्ञान ले चुके हैं। शहर के विकास कार्याें को लेकर कई मामलों में स्थिति यह है कि वर्षों से मामले अदालतों में अटके पड़े हैं। कई मामलों में निगम के अधिकारी अपनी अदालतो के फैसलों को नही मान रहे हैं। जो अधिकारी न्यायिक जिम्मेदारी निभाता हुआ एक फैसला देता है वही अधिकारी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाता हुआ अपने ही फैसले पर अमल करने से पीछे हट जाता है। ऐसे दर्जनों मामले सामने आ चुके है जिनसे यह अराजकता की स्थिति सामने आती है। नगर निगम शिमला किसी समय एक बहुत अमीर संस्था हुआ करती थी लेकिन आज अपना काम करने के लिये इसके पास पर्याप्त साधन नही है लेकिन विडम्बना यह है कि निगम जब अपने साधन सुधारने का प्रयास करती है तभी बीच के ही लोग इन प्रयासों को तारपीडो कर देते हैं।
निगम की आय का एक स्थायी साधन उसकी संपतियों से मिलने वाला किराया है। लेकिन यह किराया कई जगह कई दशकों से पुरानी ही दरों पर चल रहा है। इन संपत्तियों का किराया बढ़ाये जाने को लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका CWPIL 17 of 2015 में दायर हुई है। इस याचिका की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने किरायों की स्थिति का कड़ा संज्ञान लेते हुए निगम प्रशासन को इसे बढ़ाने के निर्देश दिये थे। इन निर्देशों के तहत निगम को इसके लिये एक योजना तैयार करनी थी। निगम प्रशासन ने जब इस दिशा मे कदम उठाये तो शहर के व्यापारियों ने इसको लेकर एतराज उठाये। पूरे शहरे में कोहराम मच गया। इसको लेकर राजनीति शुरू हो गयी। संयोगवश शहर के विधायक भाजपा से हैं और वह सरकार में मन्त्री हैं। स्वभाविक है कि प्रभावित लोगों ने उन पर दबाव डालना शुरू किया कि सरकार किराया बढौतरी के प्रयासों को रोके। लेकिन इसी दौरान नगर निगम के अतिरिक्त आयुक्त विधि का कथित आडियो वायरल हो गया। इसमें यह अधिकारी एक प्रभावित व्यापारी से बात करते हुए उसे इस किराया बढ़ौत्तरी को रोकने के लिये कुछ सुझाव देते हुए सुनायी देते हैं। यह आडियो यदि सही है तो यह एकदम निगम के हितों के खिलाफ है। यही नही बतौर विधि आयुक्त न्यायिक शक्तियों से संपन्न होने के कारण यह और भी अवांच्छित और आपराधिक हो जाता है। लेकिन यह सब तब तक नही हो सकता जब तक कि इस आडियो की प्रमाणिकता की निष्पक्ष जांच न हो जाये।
यह कथित आडियो सरकार में सारे संवद्ध अधिकारियों के संज्ञान में आ चुका है लेकिन इस पर अभी तक कोई जांच आदेशित नही हुई है। यदि यह आडियो फर्जी है तो इसको लेकर इस अधिकारी को संवद्ध लोगों के खिलाफ कारवाई करनी चाहिये थी क्योंकि उसकी छवि पर इससे प्रश्नचिन्ह लगे है। लेकिन इस अधिकारी की ओर से भी कोई कदम नही उठाया गया है।