शिमला/शैल। पिछले दिनों सोलन के कुमारहट्टी में एक तीन मंजिला इमारत गिर गयी और इसके मलबे के नीचे 42 लोग दब गये। इनमें से केवल 28 लोगों को ही बचाया जा सका और 14 लोगों की इसमें मौत हो गयी। मरने वाले में होटल मालिक बलवीर सिंह की पत्नी अर्चना और सेना के तेरह जवान शामिल है। हादसे का जायजा लेने के लिये मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर स्वयं मौके पर गये और इसकी जांच एसडीएम सोलन को सौंपी गयी है। इस हादसे पर थाना धर्मपुर में होटल मालिक और इस भवन को बनाने वाले ठेकेदार के खिलाफ आई पी सी की धारा 336 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालने) और 304 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। एसडीएम सोलन घटना के कारणो की जांच करेंगे। इस जांच में यह आयेगा कि क्या इस भवन का नक्शा पास था या नही? क्या यहां पर इतना बड़ा निर्माण किया जा सकता था? यह तीन मंजिला भवन 2009 में बना था और अभी इसमें चौथी मंजिल का निर्माण किया गया था। जांच में सामने आयेगा कि चौथी मंजिल का निर्माण संवद्ध प्रशासनिक तन्त्र से स्वीकृति लेकर किया गया था या नहीं? चर्चाओं के मुताबिक भवन की नींव बहुत कमजोर थी और शायद नक्शा भी पास नही था।
एसडीएम की जांच में क्या सामने आता है यह तो रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पायेगा। लेकिन थाना धर्मपुर में जो मामला दूसरों के जीवन को खतरे में डालने को लेकर दर्ज किया गया है उसमें अभी तक होटल मालिक और ठेकेदार को ही नामजद किया गया है। यहां पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या इस हादसे के लिये केवल ठेकेदार और मलिक पर ही जिम्मेदारी डालकर ही पुलिस का काम पूरा हो जायेगा। क्या इसके लिये उस तन्त्र को जिम्मेदार नही ठहराया जाना चाहिये जिसने इसका नक्शा पास करना था। यदि नक्शा नही था तब यह निर्माण सीधे अवैध हो जाता है और तब प्रशासन की भूमिका और भी गंभीर हो जाती है। इस हादसे में चौदह लोगों की जान गयी है और इसी कारण से अवैध निर्माणों पर एक बार फिर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि जब से एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगाया है और अनुमति के बाद भी केवल अढाई मंजिल तक ही निर्माण कर सकने की सुविधा दी है तथा इसी के साथ यह भी शर्त लगायी है कि किसी भी सूरत में 45 डिग्री से अधिक की कटिंग नही होनी चाहिये। लेकिन क्या इस फैसले पर ईमानदारी से अमल हो पा रहा है शायद नही। अभी शिमला के रिपन अस्पताल के पास चल रहे एक भवन निर्माण के कारण हुए लैण्ड स्लाईड से आस पास के भवनों को खतरा हो गया है। इस निर्माण में यह आरोप है कि यहां पर शायद 90 डिग्री तक पहाड़ की कटिंग कर दी गयी है। इतनी कटिंग की अनुमति नही है और अब तो अदालत का आदेश भी साथ है यही नही शिमला के कई हिस्सों में निर्माण कार्य चल रहे हैं और संवद्ध प्रशासन उस ओर से आंखे मूंदे बैठा है।
प्रशासन की स्थिति यह है कि अदालत के आदेशों तक की परवाह नहीं कर रहा है। न्यू शिमला में मुख्य सड़क पर बना मन्दिर एक दम सरकारी भूमि पर स्थित है। इसके लिये वाकायदा नगर निगम ने तहसीलदार को लेकर निशान देही करवाई। निशानदेही के दस माह बाद निगम के ही ज्वाईंट कमीशनर की अदालत में इस पर मुकद्दमा दर्ज हुआ। इस अदालत ने करीब आठ साल बाद मन्दिर को गिराने /हटाने का फैसला दे दिया। फैसले में निगम के ही तीन कर्मचारियों/अधिकारियों के फैसले पर अमल सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी लगा दी। लेकिन इस सबके बावजूद अभी दो साल तक फैसले पर अमल नही हो सका है। जो अधिकारी न्यायिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए फैसला दे रहा है क्या प्रशासनिक जिम्मेदारी के तहत उस फैसले पर अमल करना उसकी डयूटी नही हो जाती है। लेकिन ऐसा हुआ नही है। ऐसे सरकार में सैंकड़ों मामले सामने आ जायेंगे जहां प्रशासन की नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं। एनजीटी के फैसले के खिलाफ सरकार सर्वोच्च न्यायालय में अपील में गयी हुई है। वहां पर अभी तक मामला लंबित है। इस मुद्दे पर शिमला के नागरिक दो बार बैठकें करके अपनी चिन्ताएं व्यक्त कर चुके हैं। नागरिक चाहते हैं कि निर्माण पर लगा प्रतिबन्ध तुरन्त हटा लिया जाये। जबकि सरकार इस बारे में कोई भी फैसला लेने से घबरा रही है क्योंकि आज तक अवैधताओं के हर मामले में सरकार की भूमिका ही सर्वोपरि रही है। सरकार के कारण हर बार अवैधताओं को संरक्षण मिला है और इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों का आचरण एक बराबर प्रश्नित रहा है। प्रदेश में टीपीसी एक्ट 1977 में लागू हुआ था इस एक्ट के तहत पूरे प्रदेश के लिये एक विकास प्लान तैयार किया जाना था। 1979 में एक अन्तरिम प्लान जारी हुआ था जो आज स्थायी नही हो पाया है। क्योंकि इस अन्तरिम प्लान मे ही अबतक एक दर्जन से अधिक संशोधन हो चुके हैं। यही नहीं इसके अतिरिक्त नौ बार रिटैन्शन पाॅलिसियां लायी गयी है। हर बार अवैधताओं को नियमित किया गया लेकिन इसके बावजूद अवैधताएं आज तक जारी हैं।
अब सरकार प्रदेश में निवेश लाने के लिये देश से लेकर विदेश तक प्रयास कर रही है। कई निवेशक प्रदेश में निवेश करने की ईच्छा भी जता चुके हैं लेकिन यह सारा निवेश तो ज़मीन पर ही होना है। इसके लिये हर निवेशक को जमीन तो चाहिये ही है फिर उस जमीन पर कोई न कोई निर्माण किया जाना है और इस निर्माण के लिये एनजीटी की अढ़ाई मंजिल की सीमा आड़े आयेगी। सरकार टीसीपी के नियमों में संशोधन कर सकती है और एक बार फिर करने जा रही है। प्रदेश के भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के नियमों में फिर संशोधन कर सकती है। लेकिन क्या इन संशोधनों से यह सच्चाई बदल जायेगी कि प्रदेश भूकम्प जोन पांच और चार के दायरे में आता है। सरकार के अपने आपदा प्रबन्धन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक यदि शिमला में हल्के स्तर का भी भूकंप आता है तो उसमें कम से कम बीस हजार लोग मारे जायेंगे। प्रदेश उच्च न्यायलय भी इस पर चिन्ता व्यक्त कर चुका है। नेपाल में आये भूकंप के बाद उच्च न्यायालय ने अवैध निर्माण का स्वतः संज्ञान लेते हुए बड़े सख्त लहजे में यह कहा है Further the respondents do not seem to have learnt any lesson from the recent earthquakes which have devastated the Himalayan region, particularly, Nepal. As per the latest studies, majority of Himachal Pradesh falls in seismic Zone-V and the remaining in region-IV and yet this fact has failed to shake the authorities in Shimla out of their slumber. The quake-prone erstwhile summer capital of Raj cannot avert a Himalayan tragedy of the kind that has killed thousands and caused massive destruction in Nepal.
It has been reported that Shimla ‘s North slope of Ridge and open space just above the Mall that extends to the Grand Hotel in the West and Lower Bazar in the East is slowly sinking. We can only fasten the blame on the haphazard and illegal construction being carried out and all out efforts being made for converting the once scenic seven Himalayas of this Town into a concrete Jungle. उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि 1983 से लेकर 2015 तक उसके पास शिमला में हुए अवैध निर्माणों को लेकर तीन जनहित याचिकायें आ चुकी हैं जिन पर अदालत की ओर से नियमों की अनुपालना को लेकर कड़े निर्देश जारी किये गये हैं। लेकिन इसे वाबजूद शिमला में 186 छः से लेकर दस मंजिलो तक के भवनों का निर्माण हो चुका है जिनके नक्शे पास हैं या नही इसकी जानकारी ही नगर निगम को नही है।
लेकिन इस तरह आयी उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बावजूद सरकार ने 2016 के मानसून सत्र में फिर टीसीपी एक्ट में संशोधन करके इन अवैधताओं को और बढ़ावा देने की बात कर दी। उस समय भी अदालत ने इन अवैधताओं पर कड़ा संज्ञान लेते हुए यह कहा था कि Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
The regularization of unauthorized constructions/encroachments on public land will render a number of enactments, like Indian Forest Act 1927, Himachal Pradesh Land Revenue Act, 1953 and Town and Country Planning Act, 1977 nugatory and otiose. The letter and spirit of these enactments cannot be obliterated all together by showing undue indulgence and favouritism to dishonest persons. The over- indulgence by the State to dishonest persons may ultimately lead to anarchy and would also destroy the democratic polity. उच्च न्यायालय द्वारा संज्ञान ली गयी यह हकीकत आज भी अपनी जगह यथास्थिति बनी हुई है। सोलन हादसे के साथ ही प्रदेश के कई भागों में मकान गिरने के समाचार सामने आ चुके हैं। भू सख्लन से प्रदेश के अधिकांश मार्गो पर लम्बे समय तक यातायात बाधित रहा है। आज नैना देवी मन्दिर तक को खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश भूकम्प जोन में है इस सच्चाई को नही बदला जा सकता है इस खतरे के नुकसान के दायरे को इस तरह के निर्माण और बढ़ा देते हैं। ऐसे में प्रदेश के विकास की रूप रेखा कैसी होनी चाहिये इसके लिये प्रदेश की जनता के साथ एक खुली बहस की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे खतरों से नुकसान भी उसी का होता है। ऐसे मामलों में सरकारी आकलनों की विश्वसनीयता आसानी से स्वीकार्य नही हो सकती है। नगर निगम शिमला के रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 2018-19 में उसके पास भवन निर्माणों संबंधित 31-1-2019 केवल 381 मामलें आये थे जिनमें से केवल 106 को ही स्वीकृति प्रदान की गयी है। जबकि इसी दौरान प्रदेश उच्च न्यायालय में पहुंचे एक मामले में निगम ने अपने शपथ पत्र में स्वीकारा है कि इसी अवधि में अवैध निर्माणों के हजारों मामले उसके सामने आये जिन पर कारवाई की जा रही है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि जब तक सरकार वोट और दलगत की राजनीति से ऊपर उठकर अवैधताओं के खिलाफ ईमानदारी से कदम उठाने का फैसला नही लेती है तब तक विकास के नाम पर इन्हें रोकना संभव नही होगा।