Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

उपयोग को तरसता दस करोड़ के कर्ज से रिपेयर हुआ टाऊन हाॅल

टाऊन हाॅल की दीवारों पर उग आया घास

चर्चो की रिपेयर के 24 करोड़ कहां गये

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार ने 2014 में एशियन विकास बैंक से 256.99 करोड़ का कर्ज लेकर प्रदेश में हैरिटेज पर्यटन के लिये आधारभूत ढांचा खड़ा करने का फैसला लिया था। इस पैसे से बिलासपुर के मार्कण्डेय और श्री नयनादेवी, ऊना में चिन्तपुरनी तथा हरोली कांगड़ा में पौंग डैम, रनसेर कारू टापू, नगरोटा सूरियां, घमेटा ब्रजेश्वरी, चामुण्डा, ज्वाला जी, धर्मशाला- मकलोड़गंज, मसरूर और नगरोटा बंगवां, कुल्लु में मनाली के आर्ट एण्ड क्राफ्ट केन्द्र बड़ाग्रां, चम्बा में हैरिटेज सर्किट मण्डी के ऐतिहासिक भवन और शिमला में नालदेहरा का ईको पार्क, रामपुर बुशैहर तथा आसपास के मन्दिर तथा शिमला शहर में विभिन्न कार्य होने थे। यह कार्य अप्रैल 2014 में शुरू हुए थे और 2017 में पूरे होने थे। यह काम हैरिटेज के नाम पर होने थे इसलिये इनकी जिम्मेदारी पर्यटन विभाग को सौंपी गयी थी और इसके लिये वाकायदा अलग से प्रौजेक्ट डायरैक्टर लगाया गया था। इसके लिये आठ कन्सलटैन्ट भी लगाये गये थे जिन्हें एक वर्ष में ही 4,29,21,353 रूपये फीस दी गयी है।
शिमला में जो काम इसके तहत होने थे उनमें से एक काम शहर के दोनों चर्चों की रिपेयर का था और इसके लिये 17.50 करोड़ खर्च किये जाने थे। रिज स्थित चर्च की रिपेयर के लिये 10-9-2014 को अनुबन्ध भी साईन हो गया था और इसके मुताबिक यह काम दो वर्षों में पूरा होना था। इसके लिये चर्च कमेटी के साथ भी वाकायदा अनुबन्ध हुआ था। यह काम सितम्बर 2016 में पूरा होना था। लेकिन आजतक दोनों चर्चों की रिपेयर के नाम पर एक पैसे का भी काम नहीं हुआ है। ऐसे में यह सवाल उठने स्वभाविक हैं कि इस रिपेयर के लिये रखा गया 17.50 करोड़ रूपया कहां गया? क्या इस पैसे को किसी और काम पर लगा दिया गया है? क्या इस पैसे को किसी दूसरे काम पर खर्च करने के लिये एशियन विकास बैंक से अनुमति ली गयी है? विभाग में इन सवालों पर कोई भी जवाब देने के लिये तैयार नहीं है।
इसी के साथ दूसरा काम था टाऊन हाल की रिपेयर का। और इसके लिये 8.02 करोड़ रखे गये थे। इसके लिये एक अभी राम इन्फ्रा प्रा.लि के साथ अनुबन्ध किया गया था। इस कंपनी ने टाऊनहाल की रिपेयर के लिये वर्मा ट्रेडिंग से 13,74,929 रूपये की लकड़ी खरीदी थी। टाऊन हाल में ज्यादा काम लकडी का ही था। इसलिये यह सवाल उठा था कि जब लकड़ी ही चैदह लाख से कम की लगी है तो रिपेयर पर आठ करोड़ कैसे। वैसे सूत्रों के मुताबिक शायद यह रकम दस करोड़ हो गयी है। शिमला में हुए कार्यों का मूल प्रारूप नगर निगम ने तैयार किया था और इसे निगम के हाऊस से ही अनुमोदित करवाया गया था। इसलिये जब कार्य नगर निगम की बजाये पर्यटन विभाग को सौंपे गये थे तब इनकी गुणवत्ता को लेकर निगम के तत्कालीन मेयर संजय चैहान ने एशियन विकास बैंक के मिशन डायरैक्टर से भी शिकायत की थी।
आज करीब दस करोड़ के कर्ज से रिपेयर हुआ टाऊन हाॅल किसकी संपत्ति है इसमें सरकार का कौन सा कार्यालय काम करेगा यह फैसला अभी तक नहीं हो पाया है। क्योंकि मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है और अभी तक सरकार और उच्च न्यायालय इस पर कोई फैसला नही ले पाये हैं। पिछले दो वर्षों से यह भवन बन्द चला आ रहा है। बन्द रहने के कारण इसकी दीवारों पर घास तक उग आया है रिपेयर की गुणवत्ता पर उठे सवालों की जांच प्रधान सचिव सतर्कता कर रहे हैं। लेकिन आम आदमी यह सोचने को विवश है कि जब एक भवन के उपयोग का फैसला भी उच्च न्यायालय करेगा तो सरकार स्वयं क्या काम करेगी। जबकि प्रदेश उच्च न्यायालय धरोहर गांव गरली- प्रागपुर को लेकर आये एक ऐसे ही मामले में स्पष्ट कह चुुका है कि किसी भवन का क्या उपयोग किया जाना चाहिये यह फैसला लेना अदालत का नहीं सरकार का काम है।  

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search