शिमला/शैल। जयराम सरकार ने प्रदेश में निवेश जुटाने के लिये 27 विद्युत परियोजनाओं के लिये निजि क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के साथ अनुबन्ध साईन किये हैं। निजि क्षेत्र में जिन परियोजनाओं को हस्ताक्षरित करके उन्हें जमीन भी लीज पर दे दी गयी है उनमें चम्बा में पांच, शिमला में दो, कुल्लु एक, मण्डी एक, किन्नौर एक और कांगड़ा में छः परियोजनायें हैं। इन सभी परियोजनाओं को जमीन की लीज 40 वर्षों के लिये दी गई है। जबकि सरकारी उपक्रमों एनटीपीसी, एस जे वी एन एल और एन एच पी सी को जमीन कुछ को 70 वर्षों के लिये तो कुछ को आजीवन दे दी गयी है।
विद्युत परियोजनाओं से प्रदेश सरकार को अपफ्रन्ट प्रिमियम प्रति मैगावाट के हिसाब से मिलता था। इसकी दर दस लाख प्रति मैगावाट से लेकर 40 लाख तक रही है। इसी के साथ 12% फ्री पाॅवर भी बतौर रायल्टी मिलती थी जो कुछ समय बाद 18% और फिर 30% हो जाती थी। प्रदेश मे लगने वाली योजनाओं के लिये यह शर्त है कि योजना की प्रकिया का पहला कदम उत्पादित बिजली को खरीदेगा कौन यह सुनिश्चित करना होता है। प्रदेश में खरीद की यह जिम्मेदारी राज्य विद्युत बोर्ड के पास है। बिजली बोर्ड यह बिजली खरीद कर आगे बेचता है। लेकिन परियोजनाओं से तो खरीद का मूल्य उसकी स्थापना से पहले ही तय हो जाता है और अन्त तक वही चलता है। लेकिन बिजली बोर्ड को पिछले काफी अरसे से अपनी बिजली बेचने में कठिनाई आ रही है। क्योंकि अब लगभग हर राज्य बिजली उत्पादन में लग गया है। इससे स्टेज यहां तक आ पहुंची है कि प्रदेश में उत्पादन लागत 4.50 रूपये यूनिट आ रही है वहीं पर उसकी बेचने की कीमत 2.40 रूपये मिल रही है। सी ए जी ने अपनी रिपोर्ट में इसका गंभीर संज्ञान लिया है। इससे स्थिति यह पैदा हो गयी थी कि पिछले पांच वर्षों में हिमाचल में हाइड्रो सैक्टर में कोई निवेश नही आया।
निवेशक न आने का परिणाम ही रहा है कि जंगी थोपन पवारी परियोजना आज तक सिरे नही चढ़ पायी। ब्रेकल की असफलता के बाद कोई भी दूसरा निवेशक इसमें आगे नही आ पाया। बल्कि अदानी और अंबानी जैसे बड़े घराने भी इसमें साहस नही दिखा पाये। इसमें ब्रेकल के नाम पर एक समय अदानी ने जो 280 करोड़ निवेशित किये थे उसे वह अभी तक उच्च न्यायालय के दखल के बाद भी वापिस नही मिल पाये हैं। हाईड्रो क्षेत्र में आयी इस स्थिति से निपटने के लिये अब जयराम सरकार ने इस नीति मे ही कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं। सरकारी क्षेत्र की कंपनीयों के साथ इसी बदली नीति के तहत एमओयू साईन हुये हैं। लेकिन सरकारी कंपनीयों को जो राहतं दी गई है क्या वही सब कुछ नीजि क्षेत्र में भी उपलब्ध हो पायेगा या नही। इसको लेकर स्थिति सपष्ट नही है और इसका प्राईवेट सैक्टर पर क्या प्रभाव पड़ता है और वह निवेश में कितना आगे आ पाता है यह अब चर्चा का विषय बन गया है।