Friday, 19 September 2025
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सीबीआई के पत्र के बाद भी सरकार निलिट के फर्जीवाडे़ पर कारवाई क्यों नही कर रही

निलिट के माध्यम से आऊटसोर्स पर अब तक जारी है भर्तीयां

शिमला/शैल।  हिमाचल सरकार ने अक्तूबर 2015 से प्रदेश के 1131 वरिष्ठ माध्यामिक स्कूलों में सूचना प्रौद्योगिकी के शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम शुरू कर रखा है। इसके लिये सरकार के अपने पास शिक्षक नही थे। यह शिक्षक उपलब्ध करवाने के लिये सरकार ने भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक्स एवम् सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय से संवद्ध संस्थान निलिट से एक एमओयू साईन किया। यह संस्थान शिमला में ही स्थित था और 1995 में तत्कालीन मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ने ही इसका उद्घाटन किया था। इस संस्थान ने मार्च 2016 तक एमओयू के तहत सूचना प्रौद्योगिकी के लिये 1300 अध्यापक उपलब्ध करवाने थे। लेकिन यह अध्यापक उपलब्ध करवाने से पहले ही सरकार ने पूरे प्रदेश में इसके संचालन की जिम्मेदारी इसी संस्थान निलिट को सौंप दी। इसके साथ जून 2020 तक का अनुबन्ध कर लिया गया क्योंकि यह संस्थान भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक मन्त्रालय से संवद्ध था। बल्कि स्कूलों के अतिरिक्त विभिन्न विभागों में आउटसोर्स पर कम्पयूटर आप्रेटर आदि भी निलिट के माध्यम से भरने के आदेश कर रखे हैं जो आज तक चल रहे हैं। माना जा रहा है कि इस समय 50ः से भी अधिक आउटसोर्स पर भर्ती हुये कर्मचारी निलिट के इन्ही संस्थानों से हैं।
जब सरकार के स्कूलों में यह कार्यक्रम शुरू हो गया और सरकार ने यह शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने करने वाले छात्र-छात्राओं को स्कालरशिप आदि के रूप में प्रोत्साहित करना शुरू किया तब निलिट ने भी सरकार के कार्यक्रम का संचालन संभालने के साथ ही अपने यहां भी यह शिक्षण-प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। भारत सरकार के इलाक्ट्रानिक्स मंत्रालय से संवद्ध होने के कारण इनके यहां पढ़ने वाले छात्र भी उन सारी सुविधाओं के पात्र बन गये जो इनके समकक्ष सरकारी स्कूलों में ले रहे थे। इसका यह भी असर हुआ कि प्रदेश के ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन में भी निलिट के नाम से संस्थान खुल गये। यहां भी शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम शुरू हो गया। इनके यहां पढ़ने वाले छात्रों को भी वही सुविधाएं सरकार से मिल गयी जो दूसरे स्थानों पर मिल रही थी।
जब छात्रवृति के आबंटन में घोटला होने के आरोप लगे और तब यह मामला जांच के लिये सीबीआई के पास पहुंच गया। सीबीआई अपनी जांच में जब इन संस्थानों तक पहुंची तब यह सामने आया कि ऊना, कांगडा़, चम्बा और नाहन में निलिट के नाम से चल रहे संस्थानों के पास भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक  मन्त्रालय से कोई संवद्धता ही नही थी। संवद्धता न होने का अर्थ है कि यह संस्थान गैर कानूनी तरीके से आप्रेट कर रहे थे और सरकार से मिलने वाली सुविधाओं के भी पात्र नहीं थे। सीबीआई ने  28-8-2019 को इस संबंध में उच्च शिक्षा निदेशक को पत्र लिख कर सूचित भी कर दिया है। सीबीआई ने स्पष्ट कहा है कि ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के इन संस्थानों के पास भारत सरकार के मन्त्रालय से कोई संवद्धता नही है। सीबीआई ने जब इन संस्थानों के यहां दबिश दी तब यह सामने आया कि इनका प्रोपराईटर कोई कृष्णा पुनिया है और उसमंे इनसे जुड़ा सारा 2013-14 से 2016-17 का सारा रिकार्ड नष्ट कर दिया है। रिकार्ड नष्ट किये जाने से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह संस्थान गैर कानूनी तरीके से कार्य कर रहे थे।
निलिट के साथ प्रदेश सरकार ने अक्तूबर 2015 में एमओयू साईन किया था। यह एमओयू शिमला स्थित संस्थान से साईन किया गया और 2016 में इसे 30 जून 2020 तक बढ़ा दिया गया। ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के संस्थानों की 2017 तक की जांच चल रही है। छात्रवृति घोटाला 2018 में चर्चा में आया था और तब इसकी जांच राज्य परियोजना अधिकारी शक्ति भूषण से करवाई गयी थी। शक्ति भूषण की पांच पन्नो की रिपोर्ट के आधार पर 16-11-18 को थाना छोटा शिमला में मामला दर्ज किया गया था जिसे बाद में सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया। प्रदेश के 266 प्राईवेट स्कूलों में यह छात्रवृतियां मिल रही हैं लेकिन जांच केवल तीन दर्जन संस्थानों तक ही  रखी गयी थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि 2018 में ही सरकार के संज्ञान में छात्रवृति घोटाला आ गया था। लेकिन किसी को भी यह सन्देह नही हुआ कि  निलिट के ऊना, कांगड़ा, चम्बा और नाहन के संस्थान फ्राड हैं। भारत सरकार में भी किसी को यह जानकारी नही हो सकी कि उसके नाम से कोई फर्जी संस्थान चल रहे हैं। यहां तक की शिमला में जो संस्थान वाकायदा संवद्धता लेकर चल रहा था उसे भी यह पता नही चला कि प्रदेश में चार संस्थान उसी नाम से बिना  संवद्धता चल रहे हैं। अब जब सीबीआई ने 28-8-2019 को इस संबंध में निदेशक को लिखित में सूचित कर दिया है उसके बाद भी सरकार की ओर से इस बारे में कोई कारवाई न किया जाना कई सवाल खड़े करता है।
 सीबीआई की सूचना से पहले इन संस्थानों पर सन्देह शायद इसलिये नही हो सकता था कि ऐसे संस्थान खोलने के लिये राज्य सरकार से अनुमतियां लेने का कोई प्रावधान ही नही किया गया है। कोई भी किसी से भी संवद्धता का दावा करके संस्थान खोल सकता है। इसमें यह तो माना जा सकता है कि जब शिमला में निलिट ने एक संस्थान को संवद्धता दे रखी थी और उसने कुसुम्पटी में भी एक शाखा खोल रखी है तो स्वभाविक रूप से यह जानकारी रहना संभव है कि उसकी तरह  चार और स्थानों पर भी निलिट खोलने के लिये किसी ने संवद्धता ली है। ऐसे में यह स्वाल उठाना स्वभाविक है कि निलिट के इस फर्जी वाड़े पर सरकार कारवाई क्यों नही कर रही है। सरकार ने शायद अभी तक भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक्स मन्त्रालय को भी इस फर्जी वाडे की सूचना नही दी है। क्योंकि भारत सरकार द्वारा भी ऐसा कोई मामला दर्ज नही करवाया गया है कि कैसे कोई उसके नाम का फर्जी तरीके से प्रयोग कर रहा था। वैसे भी कंम्प्यूटर प्रशिक्षण के सैंकड़ो संस्थान प्रदेश में चल रहे हैं लेकिन उनके बारे में कोई विशेष नियम या प्रक्रिया अभी तक तय नही है। निलिट भारत सरकार का उपक्रम है उसके नाम पर शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करके इन चारों संस्थानों के कई छात्र सरकार के विभिन्न विभागों में भी कार्यरत हो सकते है जबकि उनके प्रमाणपत्रों की कोई मान्यता ही अब नही रह गयी है। हो सकता है कि सरकार के स्कूलों में इन संस्थानों से निकले लोग सेवायें दे रहे हों।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सीबीआई का पत्र

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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