शिमला/शैल। क्या प्रदेश कांग्रेस के संगठन में भी कुछ बदलाव होने जा रहे हैं? यह सवाल इन दिनों चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। यह चर्चा इसलिये चली है क्योंकि प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले दो नेता आनन्द शर्मा और आशा कुमारी जो केन्द्रिय संगठन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रहे थे उनके दायित्वों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला है। यह माना जा रहा है कि इस बदलाव से आन्नद शर्मा का राजनीतिक कद काफी हद तक कम हुआ है। इसी तरह आशा कुमारी को भी यदि कोई और जिम्मेदारी साथ में नही दी जाती है तो वर्तमान को उसके कद में भी कटौती ही माना जायेगा। लेकिन कुछ हल्कों में यह क्यास लगाये जा रहे हैं कि उन्हे प्रदेश कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनाया जा रहा है। इसके लिये तर्क यह दिया जा रहा है कि आशा कुमारी के पास पंजाब का प्रभार काफी समय से चला आ रहा था इसलिये वहां से उनका बदला जाना तय था। पंजाब में उन्होंने अपना कार्यभार पूरी सफलता के साथ निभाया है। अपने इसी अनुभव के नाते वह सीडब्ल्यूसी तक पंहुची है और उनके अनुभव का पूरा लाभ उठाने के लिये हाईकमान उन्हे प्रदेश में यह नयी जिम्मेदारी दे सकता है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर को यह जिम्मेदारी दिलाने में आनन्द शर्मा, वीरभद्र सिंह, आशा कुमारी और मुकेश अग्निहोत्री सबकी बराबर की भागीदारी रही है। लेकिन अब जब कांग्रेस के 23वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठन में प्रभावी फेरबदल करने का सुझाव दिया था तो उनमें आनन्द शर्मा भी शामिल थे। आनन्द शर्मा के इसमें शामिल होने पर प्रदेश में प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं उभरी और संगठन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष केहर सिंह खाची ने वाकायदा एक प्रैस ब्यान जारी करके शिमला के कुछ नेताओं ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की मांग कर दी। लेकिन इस मांग को अन्य लोगों का समर्थन नही मिल पाया और यह मांग इसी पर दम तोड़ गयी। लेकिन सूत्रों की माने तो खाची ने जो मोर्चा आनन्द के खिलाफ खोला है उसमें कई बड़े नेता भी शामिल हो गये हैं। चर्चा है कि इन लोगों ने हाईकमान को एक पत्र भेजकर जहां आनन्द शर्मा के प्रदेश में जनाधार को लेकर गंभीर सवाल उठाये हैं वहीं पर कुछ पुराने प्रसंग भी ताजा किये हैं जब प्रदेश में कांग्रेस के एक बडे़ वर्ग द्वारा इकट्ठे शरद पवार की एनसीपी में जाने की तैयारी कर ली थी। शरद पवार के साथ जाने की चर्चाएं प्रदेश में पूर्व में दो बार उठ चुकी है। एक बार तो यहां तक चर्चा आ गयी थी कि शरद पवार ने इस नये बनने वाले ग्रुप को विधानसभा चुनावों में भारी आर्थिक सहायता का आश्वासन देने के साथ ही पहली किश्त भी दे दी है। शरद पवार के साथ जिन लोगों के जाने की चर्चाएं चली थी वह सभी लोग संयोगवश वीरभद्र सिंह के ही समर्थक थे। बल्कि इसे वीरभद्र ही रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा था। इस सबमें उस समय आनन्द शर्मा और हर्ष महाजन की सक्रिय भूमिकाएं बड़ी चर्चित रही है। माना जा रहा है कि इस आश्य के खुलासे का जो पत्र हाईकमान को भेजा गया है वह प्रदेश अध्यक्ष राठौर की पूरी जानकारी में रहा है। इस पत्र के जाने से आनन्द सहित कई नेता राठौर से नाराज़ भी हो गये हैं।
इस परिदृश्य में प्रदेश संगठन के नेतृत्व में बदलाव किया जाता है या नही यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन यह तय है कि प्रदेश में कांग्रेस भाजपा से तब तक सत्ता नही छीन पायेगी जब तक वह भाजपा को उसी की भाषा में जवाब देने की रणनीति पर नही चलती है। पुराना अनुभव यह स्पष्ट करता है कि हर चुनाव से पहले भाजपा कांग्रेस को भ्रष्टाचार का पर्याय प्रचारित करने में पूरी ताकत लगा देती है सत्ता में आने पर उन आरोपों के साक्ष्य जुटाती है और उनके दम कुछ लोगों को अपने साथ मिलाने में भी सफल हो जाती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी से लड़ाई लड़ना और उसे अन्तिम अंजाम तक पहुंचाना भाजपा का सरकार में आकर कभी भी ऐजैण्डा नही रहा है। जयराम सरकार भी इसी ऐजैण्डे पर काम कर रही है। यदि कांग्रेस भाजपा की इस रणनीति को अभी से समझकर इस पर अपनी कारगर नीति नही बनाती है तो उसे चुनावों मे लगातार चौथी हार भी मिल जाये तो इसमें कोई हैरानी नही होगी। क्योंकि आज कांग्रेस नेतृत्व के एक बड़े वर्ग पर यह आरोप लगना शुरू हो गया है कि वह भाजपा के खिलाफ केवल रस्मअदायगी के लिये मुद्दे उठा रही है। जनता में कांगेस नेतृत्व अभी भी अपना विश्वास बना पाने में सफल नही हो रहा है।