शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार विधानसभा द्वारा पारित कार्य निष्पादन नियमों की भी अनदेखी करने लग गयी है। यह सवाल पर्यटन विकास निगम के चौदह होटलों को ओ.एन.एम आधार पर निजी क्षेत्र को सौंपने के प्रस्तावित फैसले पर निगम के ही अध्यक्ष द्वारा एक पत्रकार वार्ता में एतराज उठाये जाने के बाद चर्चा में आया है। पर्यटन निगम अध्यक्ष विधायक आर.एस.बाली ने पत्रकार वार्ता में स्पष्ट कहा है कि निगम की ओर से इस आश्य का कोई प्रस्ताव सरकार को न ही भेजा गया और न ही निदेशक मण्डल द्वारा कभी पारित किया गया। बाली ने यह भी स्पष्ट कहा कि शायद सरकार और मंत्रिमंडल के सामने सारे तथ्य रखे ही नहीं गये हैं। इस समय पर्यटन निगम लाभ कमा रही है और टर्नओवर अढ़ाई वर्ष में 70 करोड़ से बढ़कर 100 करोड़ से ऊपर हो गया है। फिर बीते अढ़ाई वर्षों में पर्यटन निगम को सरकार की ओर से कोई ग्रांट नहीं मिली है। जबकि इसकी मांग कई बार की गयी। ऐसे में स्पष्ट है कि पर्यटन निगम की कार्यशैली में काफी सुधार हुआ है और उसके कर्मचारी निगम को लाभ की ईकाई में बदलने में सफल हो गये हैं। इसलिये जो ईकाई लाभ कमाने में आ गई हो उसकी संपत्तियों को प्राइवेट सैक्टर को सौंपने का कोई औचित्य नहीं बनता। फिर जो चौदह ईकाईयां प्राईवेट सैक्टर को सौंपने का फैसला लिया गया उनके रैनोवेशन के लिये निगम को ही धन उपलब्ध करवाया जाना चाहिये क्योंकि वह बनी हुई इकाइयां है और शीघ्र ऑपरेटिव हो जायेंगी। इनके रखरखाव के लिए एशियन विकास बैंक द्वारा दिये जा रहे कर्ज में से पैसा उपलब्ध करवाया जा सकता है। इस परिदृश्य में सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिये।
आर.एस.बाली मुख्यमंत्री के विश्वास पात्रों में गिने जाते हैं। ऐसे में बाली द्वारा यह सार्वजनिक करना कि निगम के प्रस्ताव के बिना ही इस तरह का फैसला ले लिया जाना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। क्योंकि रूल्स ऑफ बिजनेस के अनुसार किसी भी कार्य का कोई भी प्रस्ताव निगम बोर्ड विभाग द्वारा सरकार में सचिव को भेजा जाता है। उस प्रस्ताव पर सचिव और विभाग के मंत्री में मंत्रणा होती है। यदि सचिव और मंत्री की राय में मतभेद हो तब उस विषय को मंत्रिपरिषद में ले जाया जाता है। यदि मंत्री और सचिव दोनों सहमत हो तो विषय को आगे ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि मंत्री अपने में सक्षम होता है। पर्यटन निगम के चौदह होटल को प्राइवेट क्षेत्र को सौंपने के प्रस्तावित फैसले को विपक्ष ने हिमाचल ऑन सेल की संज्ञा दी है। ऐसे में जब निगम सार्वजनिक रूप से यह कह दे कि उसके यहां से इस आश्य का कोई प्रस्ताव ही नहीं गया तब स्थिति काफी बदल जाती है। क्योंकि आने वाले दिनों में यह फैसले कई विवादों का कारण बनेंगे और तब मंत्रिमंडल की स्वीकृति का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता है। सागर कथा मामले में इस तरह की स्थितियां एक समय प्रदेश में घट चुकी हैं। इसलिये पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष का यह खुलासा की उसकी ओर से कोई प्रस्ताव ही नहीं गया और इसके बाद मंत्रिमंडल का फैसला ले लेना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है।