शिमला/शैल। सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे वीरभद्र भाषाई शालीनता के दायरे लांघते जा रहे हैं। यह प्रतिक्रिया रही है भाजपा की वीरभद्र के उस कथन पर जिसमें उन्होने कहा था कि भाजपा के अन्दर सदन में बैठने लायक केवल एक दो व्यक्ति ही शेष बचे हैं और अन्य को तो नगर निगम के सफाई कर्मचारी के लिये आवेदन कर देना चाहिये। मुख्यमन्त्री ने अपने परिवहन मंत्री जी एस बाली को लेकर भी तंज कसे हैं क्यांेकि पिछले दिनो बाली और गडकरी की करीबी चर्चा में रही और अब बाली और केजरीवाल का एक साथ यात्रा करना भी चर्चा का विषय बन गया। इससे पूर्व यह भी सबके सामने है कि वीरभद्र अपने खिलाफ चल रही जांच का सूत्रधार धूमल, जेटली और अनुराग को लगातार करार देते आ रहे हैं। जितनी बार वीरभद्र इन लोगों को कोस चुके हैं उससे तो किसी के भी मन बुद्धि में यह आ सकता है कि फिर ऐसा कर ही दिया जाये।
यह सही है कि वीरभद्र इन दिनों अपनेे जीवन के सबसे कठिन दौर में चल रहे हैं। लेकिन यह समय क्यों आया? इसके लिये अपने और पराये कौन कितना जिम्मेदार हैं? इस सबका चिन्तन मनन तो स्वयं उन्हें और उनके परिजनो तथा शुभ चिन्तको को ही करना है। इसके लिये दूसरों को कोसने से तो कोई लाभ नही मिलेगा। आज दबी जुबान से कई यह कह रहे हैं कि आपने भी तो दूसरों के साथ इन्साफ कम ही किया है। कभी किसी की बद्दुआ भी वैसा ही असर कर जाती है जैसा की दुआ करती है। अपनेे किये का स्वयं ही आकलन करना होता है क्योंकि आत्मा का ही दूसरा नाम परमात्मा भी है जिसके सामने कोई गलत ब्यानी ठहर नही पाती है।
आज धूमल, अनुराग और एचपीसीए के खिलाफ बनाये गये सारे मामले एक-एक करके असफल होते जा रहे हैं। इन मामलों से जुड़ी फाईले और दूसरे दस्तावेज तो आपने स्वयं देखे नही हैं। इन मामलों की आपको उतनी ही जानकारी है जितनी आप के विश्वस्तों ने आपको दी है। लेकिन इन विश्वस्तो पर आश्रित रहकर आज परिणाम क्या है। जिस व्यक्ति को ऐसे पायदान पर पहुंच कर इस ऐज स्टेज पर यह सब झेलना पड़े उसे इस सब पर स्वयं ही सोचना पडे़गा। क्या आज जो मामले असफल होते जा रहे हैं वह मूलतः ही आधारहीन थे या फिर आपके विश्वस्तों की सांठ गांठ का परिणाम है उनका असफल होना? आने वाला समय इन सवालों के जवाब तो पूछेगा ही।
ऐसे में भाषा की शालीनता खोना केवल अपनी ही हताशा को प्रमाणित करता है। इससे कालान्तर में कोई लाभ नही मिलता। आज वीरभद्र की यह भाषा सचिवालय के गलियारों से निकर सड़क चैराहों में चर्चा का विषय बन गयी है क्योंकि कांग्रेस के कुछ शुभ चिन्तक उन्हें सातवीं बार प्रदेश का मुख्यमन्त्री देखना चाह रहे हैं।