शिमला/शैल। हमीरपुर की भोरंज विधानसभा का उपचुनाव 9 अप्रैल के लिये घोषित हो गया है। प्रदेश विधानसभा के चुनाव भी इसी वर्ष के अन्त तक होने हैं। राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं ने वीरभद्र को सातंवी बार मुख्यमन्त्री बनाने की घोषणा और दावा कर रखा है।
दूसरी ओर भाजपा ने देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। इस समय भाजपा ने जिस तरह उत्तराखण्ड और यूपी में सत्ता हासिल की है उससे वह इस लक्ष्य की ओर बढ़ती भी नजर आ रही है। भले ही इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों का एक बड़ा सन्देश यह भी है कि सभी जगह सत्तारूढ़ सरकारें हारी हैं और उत्तराखण्ड तथा गोवा में तो मुख्यमन्त्री भी हारे हैं लेकिन सत्तारूढ सरकारों की हार से यूपी और उतराखण्ड में मिला प्रचण्ड बहुमत एक बड़ा सन्देश बन गया है। हालांकि पंजाब में कांग्रेस को भी वैसा ही प्रचण्ड बहुमत मिला है। इस परिदृश्य में होने जा रहे भोरंज विधानसभा के उपचुनाव की राजनीतिक महता प्रदेश के सद्धर्भ में बडी हो जाती है।
पूर्व शिक्षा मन्त्री स्व0 ईश्वर दास धीमान के निधन से खाली हुई सीट पर एक लम्बे अरसे से भाजपा का कब्जा चला आ रहा है। इसमें हमीरपुर से ही प्रेम कुमार धूमल के दो बार मुख्यमन्त्री होने का योगदान भी रहा है। इसमें कोई दो राय नही हो सकती। लेकिन इस बार वीरभद्र और धूमल दोनों के लिये ही राजनीतिक हालात में बहुत बदलाव आ चुका है। वीरभद्र राजनीतिक सफर के आखिरी पडाव पर हैं लेकिन परिवार में उनकी इस विरासत को संभालने वाला अभी कोई स्थापित नही हो पाया है। पत्नी प्रतिभा सिंह दो बार सांसद रहने के बावजूद भी इस गणित में सफल नहीे हो पायी है। अब बेटे विक्रमादित्य सिंह को विधानसभा में देखना उनकी ईच्छा और आवश्यकता दोनों बन चुकी है। इसे पूरा करने के लिये सातंवी बार मुख्यमन्त्री बनने की घोषणा और दावा करना भी उनकी राजनीतिक आवश्यकता है। इस दिशा में जिस तरह से उन्होनें संगठन और सरकार में मन्त्रीयों से इस आश्य के समय-समय पर ब्यान दिलवाये है वह उनकी रणनीतिक सफलता मानी जा सकती है। लेकिन आने वाले चुनाव के मुद्दे क्या होंगे? यह एक बडा सवाल है विकास के नाम पर जितनी घोषनाएं की गयी है उनकी जमीनी हकीकत क्या है? प्रदेश के संसाधन क्या रहे है? चुनावी वायदों को पूरा करने के लिये कितना कर्ज लिया गया है? आज प्रदेश पर जितना कुल कर्जभार हो चुका है उसकी भरपायी के लिये कितना कर्ज भविष्य में साधन कहां से आयेंगे? यदि यह कड़ेऔर कडवे सवाल चुनावी मुद्दे बन गये तो स्थिति सभी के लिये कठिन हो जायेगी। ऐसे में विकास के नाम पर चुनाव लड़ना काफी जोखिम भरा हो सकता है।
इन गंभीर मुद्दों के साथ ही भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा हो जाता है जो कि सब पर भारी पड़ जाता है। वीरभद्र के इस कार्यकाल में भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा तीन आरोप पत्र सौंप चुकी है।अन्तिम आरोप पत्र में सरकार के मन्त्रीयों से हटकर विभिन्न निगमों-बोर्डो राज्य के सहकारी बैंकों और प्रदेश के विश्वविद्यायलों के साथ -साथ कुछ विधायकों तक का जिक्र इस आरोप पत्र में है। राज्यपाल के अभिभाषण पर हुई चर्चा में भी आरोप पत्र का जिक्र आ चुका है। भ्रष्टाचार इसलिये सबसे बड़ा मुद्दा बन जाता है। क्योंकि जनता यह सहन नही करती कि लिये किये जाने वाले विकास के नाम पर विकास केवल भ्रष्टाचार किया जाये।इस परिपेक्ष में भाजपा के आरोपपत्र कांग्रेस और वीरभद्र पर भारी पड सकते हैं। यदि उन्हें चर्चा में ला दिया गया तो। फिर वीरभद्र स्वंय सीबीआई और ईडी जांच का सामना कर रहे है। इस भ्रष्टाचार के संद्धर्भ में वीरभद्र ने धूमल को घेरने के जितने भी प्रयास किये हैं उनमें सफलता की बजाये केवल फजीहत का ही सामना करना पड़ा है।
वीरभद्र ने इन सारे संभावित सवालों से ध्यान बांटने के लिये ही धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाये जाने की घोषणा की है। मन्त्रीमण्डल से भी इस पर मोहर लगवा ली है। इसी के साथ बेरोजगारी भत्ता देने की भी घोषणा कर दी गयी है। अपने गिर्द बने मामलों के लिये वीरभद्र इसे धूमल-अनुराग और जेटली का षडयंत्र करार देते आ रहे हैं। जनता में वह हर संभव मंच से यह कहना नही भूलते है कि एक ही मामले की जांच के लिये केन्द्र सरकार ने उनके खिलाफ तीन-तीन एजैन्सीयां लगा रखी है और यह सच भी है अभी तक वीरभद्र के अपने खिलाफ केन्द्र की कोई भी एजैन्सी बड़ा कुछ नही कर पायी है। अदालत में भी फैसला काफी अरसे से लंबित चला आ रहा है। ऐसे में धूमल और वीरभद्र भोरंज के उपचुनाव में किस तरह के मुद्दों को उछालते है या फिर इसे मोदी लहर के नाम पर छोड़ देते है इस संद्धर्भ में यह उपचुनाव दोनों नेताओं की प्रतिष्ठा और परीक्षा का सवाल बन जायेगा यह तय है।