शिमला/बलदेव शर्मा सरकार वित्तिय अनुशासन में रहे इसके लिये वित्तिय उत्तरदायित्व और बजट प्रबन्धन अधिनियम 2005 के तहत सरकार को जबाव देह बनाया गया है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद सरकार जीडीपी के 3% से अधिक ऋण नही ले सकती हैं। केन्द्र सरकार के वित्त विभाग ने मार्च 2016 में अगला वित्तिय वर्ष शुरू होने से पहले एक पत्र भी राज्य सरकार का लिखा था। इस पत्र में स्पष्ट कहा गया था वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार 3540 करोड़ से अधिक का ऋण नही ले सकती है। अब दस मार्च को सदन में रखे गये बजट दस्तावेजों में एफआर वीएम नियम 4 और 5 के तहत आयी जानकारी के मुताबिक 2016-17 के संशोधित अनुमानों में चालू वित्तिय वर्ष का कुल कर्ज भार जीडीपी का 33.96% कहा गया है। चालू वित्त वर्ष का जीडीपी 1,24,570 करोड़ रहने का अनुमान है। इसका अर्थ है कि यह कर्जभार 42303 करोड़ हो गया है। अभी 31 मार्च को वित्तिय वर्ष बन्द होने से पहले इसी महीने में 2400 करोड़ का कर्ज और लिया गया है। लेकिन बजट की व्याख्यात्मक विवरणिका में 31 मार्च 2016 को यह कर्जभार 38567.82 करोड़ दिखाया गया है। निश्चित है कि जब 31 मार्च 2017 के बाद इस वित्तिय वर्ष का वास्तविक अकालन सामने आयेगा तो कर्ज का यह आंकड़ा 45 हजार करोड़ से ऊपर होगा। इस बढ़ते कर्जभार पर नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि भविष्य में आने वाली सरकार के लिये कर्ज लेना कठिन हो जायेगा। इस बढ़ते कर्जभार के साथ यदि यह आकलन और विश्लेषण किया जाये की इस इतने बडे़ कर्ज का निवेश कहां किया गया है तो ऐसा कुछ भी नजर नही आता है। जिससे की सरकार की आय में नियमित बढ़ौत्तरी होगी। आज तक प्रदेश सरकार हिमाचल को विद्युत राज्य प्रचारित और प्रसारित करती आ रही है। यह दावा किया जाता रहा है कि अकेले विद्युत से ही प्रदेश आत्मनिर्भर हो जायेगा। इसके लिये कई बार विद्युत नीति में संशोधन भी किये गये हैं। निवेशकों के लिये कई सुविधायें प्रदान की गयी हैं। लेकिन इन सारे प्रयासों के बावजूद वीरभद्र के इस कार्यकाल में विद्युत में कोई निवेश नही हो पाया है। बल्कि विद्युत क्षेत्र से सरकार की आय लगातर घटती जा रही है। वर्ष 2015-16 में विद्युत से कर और गैर कर राजस्व के रूप में सरकार को 1474.74 करोड़ वार्षिक योजना के तहत कृषि और परिवहन के बाद यह निवेश का तीसरा बड़ा क्षेत्र है। वर्ष 2017- 18 में भी योजना के तहत इसके लिये 680 करोड़ रखे गये है। विद्युत से सरकार की लगातर घटती आये के साथ ही विद्युत परिषद का अपना ट्टण भार भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका सीधा संकेत है कि आने वाले समय में यह क्षेत्र सरकार के वित्तिय संकट का सबसे बड़ा कारण बन जायेगा। सरकार का राजस्व घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। राजस्व आय के अनुपात में वर्ष 2016-17 जंहा यह घाटा 3.51% रहने की उम्मीद है वंही वर्ष 2021-22 तक यह चार गुणा से भी बढकर 14.07% तक पहुंच जाने का अनुमान बजट दस्तावेजों में रखा गया है। सरकार की राजस्व आय जहां 26676.70 करोड़ से बढ़कर 2021- 22 में 37038.27 करोड़ होने का अनुमान है। वहीं पर राजस्व व्यय 27613.27 करोड़ से बढ़कर 42252.58 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है इस सारे परिदृष्य में कैपिटल आऊटले जो सीधे विकास कार्यो से संबधित है वह भी लगातार घटता जा रहा है। वर्ष 2016- 17 में यह केवल 3823.68 करोड़ है वर्ष 2017-18 की वार्षिक योजना 5700 करोड़ की है। लेकिन इस वर्ष के लिये कैपिटल आऊटले केवल 3475.36 करोड़ ही रखा गया है। इसका सीधा प्रभाव विकास कार्यों पर पड़ेगा। सरकार के कुल खर्च का आधा भाग केवल कर्मचारियों की पैन्शन और वेतन पर खर्च होगा। वर्ष 2021-22 के कुल 42252.58 करोड़ के खर्च में 21251.17 करोड़ अकेले इसी मद पर खर्च होगा। सरकार अपना राजस्व बढ़ाने के स्त्रोतों पर विचार करने की बजाये हर क्षेत्र में आऊट सोर्सिंग के विकल्प पर जाती जा रही है जो कालान्तर में घातक सिद्ध होगा क्योंकि आज ही आऊट सोर्स कर्मीयों के लिये नीति लाने का दबाव सरकार पर आ गया है और इस आश्य की घोषणा भी कर दी गयी है। इसी के साथ बेरोजगारी भत्ता और धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने के फैसलों को अमली जामा पहनाने की बात आती है तो बहुत जल्द सरकार की वित्तिय स्थिति खराब हो जायेगी।