Thursday, 18 September 2025
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एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी चार सालो में नही हो सका फैसला

शिमला/शैल। एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी यह मामला 2013 से रजिस्ट्रार सोसायटीज़ और प्रदेश उच्च न्यायालय के बीच लंबित चल रहा है। अब तक इसमें पचास पेशीयां लग चुकी है। अभी चार मार्च को भी केस लगा था लेकिन उस दिन भी कोई कारवाई नही हो सकी और अब 29 मई के लिये अगली पेशी लगी है। स्मरणीय है कि इस प्रकरण में एचपीसीए ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। परन्तु दो न्यायधीशों द्वारा मामले की सुनवाई से इन्कार कर देने के बाद एचपीसीए सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी। सुप्रीम कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के साथ ही ट्रांसफर याचिका भी दायर कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 24-2-14 को इन याचिकाओं का निपटारा करते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश से आग्रह किया था कि वह इस मामले की स्वयं सुनवाई करके इसका निपटारा करें। उसके बाद फिर नये सिरे सेे यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में आया जो अब तक लंबित चल रहा है। इस प्रकरण में जब 7 सितम्बर 2013 को आरसीएस ने एचपीसीए को शो काॅज नोटिस जारी किया था। तब इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। उच्च न्यायालय ने आरसी एस को निर्देश दिये कि वह इसकी सुनवाई करके अपना फैसला दे लेकिन फैसले पर अमल दस दिन तक रोक दिया जाये ताकि एचपीसीए इसमें अगली कारवाई के लिये उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सके यदि वह चाहे तो। इसी बीच सचिव राजस्व ने एचपीसीए की लीज़ रद्द करने का फरमान 20 अक्तूबर को जारी कर दिया और जिलाधीश कांगड़ा ने आधी रात को ही कब्जा ले लिया जिसे उच्च न्यायालय ने न्यायसंगत नही माना और एचपीसीए को संपतियां वापिस मिल गयी। आरसीएस ने भी 28 अक्तूबर 2013 को इस पर अपना फैसला सुना दिया जिस पर उच्च न्यायालय के निर्देशों के कारण अमल नही हो सका और तब से यह मामला लंबित चल रहा है।
एचपीसीए वीरभद्र के इस शासनकाल में विजिलैन्स के लिये सबसे बडा मुद्दा रहा है और चार मामले इसकेे खिलाफ चल रहे हैं। एक मामले में तो सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट की कारवाई पर स्टे लगा रखा है। एक मामले में प्रदेश उच्च न्यायालय ने एचपीसीए के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। लेकिन एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामलों में जब यह फैसला आ जायेगा कि यह सोसायटी है या कंपनी तो सारे मामलों के परिदृश्य पर असर पड़ेगा। यदि सोसायटी से कंपनी बनना सही मान लिया जाता है तो बहुत कुछ राज्य सरकार के हाथ से बाहर हो जाता है। इस समय मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई और ईडी के जो मामले चल रहे हैं उनके लिये मुख्यमन्त्री, प्रेम कुमार धूमल, अनुराग ठाकुर और अरूण जेटली को कोसते आ रहे हैं। वीरभद्र सिंह का मानना है कि उनके खिलाफ यह लोग षडयंत्र रच रहे हैं। दूसरी ओर प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ आय से अधिक संपति की जो कथित जांच विजिलैन्स में चल रही है उसको धूमल राजनीतिक प्रतिशोध की कारवाई करार दे रहे हैं हालांकि इस जांच का अभी तक कुछ भी ठोस परिणाम सामने नही आया है। वीरभद्र प्रकरण में जब से ईडी ने दूसरा अटैचमैन्ट आदेश जारी किया है और उनको ऐजैन्सी के सामने पेश होने के सम्मन जारी किये है तब से पूरी भाजपा ने वीरभद्र के त्यागपत्र की मांग बढ़ा दी है बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बना दिया है।
वीरभद्र और धूमल के बीच चल रहा वाक्युद्ध कब क्या शक्ल ले लेगा यह कहना कठिन है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुत कुछ एचपीसीए प्रकरण के शुरू होने से हुआ है। इस मामले में विजिलैन्स ने वीरभद्र के कुछ अति विश्वस्त अधिकारियों को खाना बारह में बतौर मुलजिम नामजद कर रखा है। बल्कि अभी एचपीसीए ने जिस एफआईआर कोे रद्द किये जाने की उच्च न्यायालय में गुहार लगायी थी उसमें भी एक आधार यह लिया था कि सरकार ने इस प्रकरण में अपने चहेते अफसरों को पार्टी नही बनाया है। माना जा रहा है कि एचपीसीए का संकेत इन्हीं अधिकारियों की ओर रहा है। ऐसे में यह स्वभाविक है कि यह अधिकारी नही चाहेंगे कि एचपीसीए के मामले किसी भी कारण से आगे बढ़ें।

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