Friday, 19 September 2025
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अवैधताओं और अतिक्रमणों का परिणाम है यह प्रकोप

इस बार भारी वर्षा के कारण जितना नुकसान हुआ है इतना शायद पहले कभी नहीं हुआ है। दो सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। चार सौ से अधिक पशु मर गये हैं। सैंकड़ो कच्चे-पक्के मकानों का नुकसान हुआ है। कई पुल, सड़कें और पेयजल योजनाएं तबाह हो गई हैं। लोक निर्माण और जल शक्ति विभागों का ही अब तक 63289 लाख से अधिक का नुकसान हो चुका है। आम आदमी का कितना नुकसान हुआ है उसका अभी पूरा आकलन नहीं किया जा सका है। जिन परिवारों के लोगों का नुकसान हुआ है उसकी भरपाई शायद कोई भी मुआवजा़ नहीं कर पायेगा। इस नुकसान को देखकर यह सवाल खड़ा होना स्वभाविक है कि क्या इस नुकसान को कम किया जा सकता था। यह सही है कि वर्षा को रोका नहीं जा सकता। लेकिन क्या उसके पानी को चैनेलाईज़ भी नही किया जा सकता? इस सवाल पर विचार करते हुए जब यह सच्चाई सामने आती है कि विकास के नाम पर तो हमने स्वयं कई नदियों के प्राकृतिक बहाव के मार्गो को रोक दिया है। धर्मशाला के पास जब अचानक हुई भारी बारिश से पानी का बाहव बदला और उससे भयानक तबाही हुई तब यह सामने आया के उस पानी के प्राकृतिक मार्ग पर तो कई स्थानों पर अतिक्रमण किया जा चुका था। यदि यह अतिक्रमण न हुआ होता तो शायद इस नुकसान से काफी हद तक बचा जा सकता था। सिरमौर में राष्ट्रीय राज मार्ग 707 के टूटने का कारण भी भू-गर्भ विशेषज्ञों ने इसके निर्माण में आवश्यकता से अधिक भारी मशीनों के इस्तेमाल को बताया है। जहां-जहां भी नुकसान हुआ है यदि वंहा पर उसके कारणों की समीक्षा की जायेगी तो अधिकांश स्थानों पर प्रकृति से ज्यादा मानव निर्मित कारण सामने आयेंगे।
प्रदेश उच्च न्यायालय ने इन दिनों भी प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर हो रहे अतिक्रमणों का कड़ा संज्ञान लिया है। चम्बा के एक व्यक्ति की याचिका पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश भर में हुए अतिक्रमणों का ब्यौरा प्रशासन ने तलब किया है। उच्च न्यायालय इससे पूर्व भी ऐसे मामलों पर अपनी नाराज़गी जता चुका है। अवैध निर्माणों के बिजली, पानी के कनैक्शन काटने के आदेश दिये गये थे। उस समय प्रदेश भर में 35000 से भी अधिक ऐसे निर्माण सामने आये थे जिनमें नक्शे पास करवाना तो दूर बल्कि नक्शे संवद्ध प्रशासन को सौंपे ही नहीं गये थे। प्रदेश में अवैध निर्माणों और वनभूमि पर अवैध कब्जों के मामले अदालत से लेकर एनजीटी तक के संज्ञान में लगातार रहे हैं और इन पर कड़ी कारवाई करने के प्रशासन को निर्देश भी जारी हुए हैं लेकिन परिणाम यह रहा है कि सरकारें इन अवैधताओं को नियमित करने के लिये रिटैन्शन पॉलिसीयां लाती रहीं। जब अदालत ने इसका संज्ञान लिया तो प्लानिंग एक्ट में ही संशोधन कर दिया गया। जब यह संशोधन राज्यपाल के पास पहुंचा और उन्होंने इसे रोक लिया तब भाजपा का एक प्रतिनिधि मण्डल राज्यपाल से मिला तथा संशोधन को स्वीकार करने का आग्रह किया। इस आग्रह के बाद यह संशोधन पारित होकर अधिसिचत हो गया। फिर उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ याचिकाएं आयी और अदालत ने संशोधन को निःरस्त कर दिया। उच्च न्यायालय ने अपने इस फैसले में सरकार के दायित्वों को लेकर जो टिप्पणीयां की हैं उनसे हमारे माननीयों और प्रशासनिक तन्त्रा की कार्य प्रणाली पर जो स्वाल खड़े हुये हैं वह काफी चौकाने वाले हैं। लेकिन अन्त में यह सब एक रिकार्ड बनकर ही रह गया है। इस पर कोई अमल नहीं हुआ है। बल्कि जयराम सरकार ने इसी तरह का संशोधन सदन से पारित करवा लिया है।
अब तक की सारी सरकारें इस हमाम में बराबर की नंगी रही हैं। हद तो यह है कि प्रदेश सरकार के प्रशासन द्वारा ही तैयार की गयी रिपोर्ट पर एनजीटी का चर्चित फैसला आधारित है लेकिन वही प्रशासन अपनी ही रिपोर्ट पर अमल नहीं कर पाया है। जब कोई सरकार अवैधताओं और अतिक्रमणों को बोझ से इतनी दब जाये कि वह किसी भी अदालत तथा अपनी ही रिपोर्ट पर अमल करने से बचने के उपाय खोजने लग जाये तो ऐसी आपदाओं में जान और माल की हानि होने से कोई नहीं बचा सकता।

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