Thursday, 18 September 2025
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डोनाल्ड ट्रंप के दखल के मायने क्या हैं?

पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देते हुये भारत ने पाक स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल दागे और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। इसके लिये भारतीय सेना और देश का राजनीतिक नेतृत्व दोनों साधुवाद के पात्र हैं। भारत ने पाक के अन्दर घुसकर यह कारवाई की है। क्योंकि यह आतंकवाद पाक से संचालित और पोषित था। भारत-पाक के रिश्ते देश के विभाजन के समय से ही असहज हो गये थे। जब 1947 में ही यहां के कबाईलियों ने जम्मू-कश्मीर को अपने साथ मिलाने के लिये उस पर आक्रमण कर दिया था। तब वहां के राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। क्योंकि विभाजन के बाद यहां के राजाओं को अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान किसी एक में विलय होने की छूट दी गयी थी। तब 1949 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ और परिणामस्वरुप जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई भाग भारत का हिस्सा बन गया और पाक अधिकृत आजाद कश्मीर बन गया और उसे जनमत संग्रह से यह फैसला करने का अधिकार मिल गया कि वह किसके साथ जाना चाहता है। यह जनमत संग्रह कभी नहीं हुआ फिर भी भारत ने उसे विभाजन रेखा मान लिया। लेकिन अब आजाद कश्मीर तब से अब तक दोनों देशों के बीच एक समस्या बनकर खड़ा है। पाक इस क्षेत्र को अपने साथ मिलाने के लिये हर समय युद्ध और आतंकी वारदातों को प्रोत्साहित और संचालित करता रहता है। 1960 के दशक में दोनों देशों के बीच बड़े तनाव का परिणाम 1965 की लड़ाई है जिसमें पाकिस्तान हारा। इस हार के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़काने के ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया। इसका परिणाम 1971 के पाक विभाजन के रूप में सामने आया और शिमला समझौता हुआ।
लेकिन 1987 के चुनावों के बाद फिर हिंसा का दौर शुरू हो गया। कई उग्रवादी संगठन खड़े हो गये जिनमें जे.के.एल.एफ., लश्कर-ए तैयबा और एल.ई.टी प्रमुख है परिणामस्वरूप 1999 में दस सप्ताह तक संघर्ष चला। 2001 में संसद पर हमला हुआ जिसमें पांच आतंकी और 14 अन्य मारे गये। फिर 2008 में मुंबई में 166 लोग मारे गये। 2019 में सीआरपीएफ के 40 पुलिसकर्मी मारे गये। 2019 के अन्त में टी.आर.एफ. सामने आ गया और अब पहलगाम में 26 लोग मारे गये। यह कुछ मुख्य घटनाओं का विवरण है जो यह प्रमाणित करता है कि आतंकवाद लगातार दहशत का कारण बना रहा है। यह सही है कि हमारी सेनाओं ने हर बार सफलतापूर्वक इस आतंक को कुचला है। लेकिन यह अभी तक किसी न किसी शक्ल में सर उठाता ही रहा है। यह माना जा रहा है कि जब तक आजाद कश्मीर का स्थायी हल नहीं हो जाता है तब तक आतंकी घटनाएं किसी न किसी शक्ल में घटती ही रहेंगी। इस बार जिस तरह से पूरे विपक्ष में सरकार को समर्थन दिया और सरकार की ओर से यह संकेत और संदेश रहे कि अब आजाद कश्मीर भारत का हिस्सा बना दिया जायेगा उससे पूरा देश सेना के साथ खड़ा रहा। सेना लगातार सफल होती जा रही थी। लेकिन इस सफलता के बीच जिस तरह से युद्ध विराम घोषित हो गया और उस पर भी सबसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसकी सूचना दी यह अपने में एक नये संकट का संकेत है। क्योंकि इससे यह लगता है कि अमेरिका इसे एक अर्न्तराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहा है। अमेरिका का यह दखल कई अनकहे सवालों को जन्म दे जाता है। वह सारे सवाल जो पृष्ठभूमि में चले गये थे वह अब फिर से सामने आ जायेंगे। प्रधानमंत्री मोदी इस पर अभी तक चुप हैं। राहुल गांधी ने पत्र लिखकर सर्वदलीय बैठक और संसद का सत्र बुलाने की मांग की है। प्रधानमंत्री को संसद के सामने अमेरिका के दखल का खुलासा रखना चाहिये। क्योंकि देश ने इस ऑपरेशन में जान और माल की हानि झेली है। क्योंकि देश से यह वायदा किया गया था कि आतंक का स्थायी हल करके रहेंगे। इस हल के बिना युद्ध विराम क्यों आवश्यक हो गया यह देश के सामने रखना ही पड़ेगा।

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