एक अरसे तक देश में लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे हैं। आज फिर से यह चुनाव एक साथ करवाने के लिये इस आश्य का संसद में एक संविधान संशोधन लाना पड़ता है। संसद में इसे पारित करवाने के बाद राज्यों की दो-तिहाई विधान सभाओं से भी इसे अनुमोदित करवाना पड़ता है। संसद में इसे किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। अभी मार्च में राज्यसभा की कुछ सीटों के लिये चुनाव होने जा रहा है। संभावना है कि इस चुनाव के बाद राज्य सभा में भी भाजपा को बहुमत मिल जायेगा। फिर इस समय 19 राज्यों में तो भाजपा की ही सरकारे हैं। बिहार, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में भाजपा सत्ता में भागीदार है। इस तरह कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि यदि मोदी वास्तव में ही ऐसा चाहेंगे तो उन्हें इस आश्य का संविधान संशोधन लाने में कोई दिक्कत पेश नही आयेगी। इस आश्य के संविधान संशोधन का सिद्धान्त रूप में विरोध कर पाना आसान नही होगा। क्योंकि जब देश में आपातकाल के दौरान संविधान संशोधन लाकर लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाकर छः वर्ष कर दिया गया था। उस समय प्रधानमन्त्री, लोकसभा अध्यक्ष आदि को कानून में संरक्षित कर दिया गया था। तब उसका विरोध किसी ने भी नही किया था। यह तो सर्वोच्च न्यायालय था जिसने उस संशोधन को निरस्त कर दिया था। इस परिदृश्य में आज यदि इकट्ठे चुनाव करवाने का संशोधन लाया जाता है तो उससे भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों को एक समान ही हानि लाभ होगा।
इस समय लोकसभा का चुनाव मई - जून 2019 में होना तय है। इसके साथ आंध्र प्रदेश, अरूणाचल, सिक्कम, उड़ीसा और तेलंगाना के चुनाव भी मई-जून 2019 में है। छत्तीसगढ़ , हरियाण , मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के चुनाव भी 2019 में ही है। 2018 में कर्नाटक और मिजोरम के चुनाव होंगे। इस तरह ग्याहर राज्यों के चुनाव 2018 और 2019 में होना तय है। शेष 20 राज्यों में 2020, 21, 22 और 2023 में चुनाव होने हैं और इनमें अधिकांश में भाजपा की सरकारे हैं इसलिये एक साथ चुनाव का राजनीतिक हानि/लाभ सबको बराबर होगा। लेकिन इससे देश को कालान्तर में समग्र रूप से लाभ होगा। इस समय देश के कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारे हैं और इन सरकारों का विजिन अपने राज्य से बाहर का नही रह पाता है। फिर अधिकांश क्षेत्रीय दल तो एक प्रकार से पारिवारिक दल होकर रह गये हैं। इस कारण से चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों के स्थान पर हल्के केन्द्रिय मुद्दे भारी पड़ जाते हैं इसलिये यह बहुत आवश्यक है कि गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लडे जायें। यदि मोदी सरकार किसी ऐसे संशोधन को लाने का प्रयास करती है तो उसका समर्थन किया जाना चाहिये।
इस संसद से लेकर राज्यों की विधान सभाओं तक आपराधिक छवि के लोग चुनाव जीतकर माननीय बने बैठे हैं ऐसे लोगों के मामले दशकों तक अदालतों में लटके रहते हैं। ऐसे लोगों को चुनाव से बाहर रखने के चुनाव आयोग से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक के सारे प्रयास प्रभावहीन होकर रह गये हैं क्योंकि यह आपराधिक छवि के माननीय सारे राजनीतिक दलों में एक बराबर मौजूद हैं। इसलिये जब एक साथ चुनाव करवाने का कोई संशोधन लाया जाये तो उसके साथ ही चुनावों को धन और बाहुबल से भी बाहर करने के संशोधन साथ ही आ जाने चाहिये।