कांग्रेस को भाजपा और आप दोनों से एक साथ लड़ना होगा
कांग्रेसी चुनावों में ही आपसी स्कोर सेटल कर लेते हैं इस धारणा से बाहर निकलना होगी चुनौती
शिमला/शैल। प्रदेश कांग्रेस इकाई के पुनर्गठन में जिस तरह से हाईकमान ने हर नेता को उचित मान सम्मान देते हुये गठन में संतुलन का परिचय दिया है उसका पूरे प्रदेश में स्वागत हुआ है। कांग्रेस कार्य कर्ताओं के साथ ही आम आदमी में भी एक उम्मीद जगी है। इसका परिचय शिमला की सफल रैली से मिल जाता है। रैली में सामूहिक नेतृत्व का व्यवहारिक प्रदर्शन और उसके माध्यम से पूरी पार्टी को जो एकजुटता संदेश दिया गया है वह सब भी प्रशंसनीय रहा है। लेकिन क्या इतनेे मात्र से ही कांग्रेस भाजपा और आप से मुकाबला करते हुये सता पर काबिज हो पायेगी। यह सही है कि भाजपा के किसी भी आंतरिक सर्वे में पार्टी का प्रदर्शन दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंचा है। इस सर्वे के परिणामों से भाजपा इतना हिल गई है इसका पता भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप के उस ब्यान से लग जाता है जिसमें उन्होंने आप प्रभारी सतेंद्र जैन पर टिकट आवंटन के लिये पैसे मांगने का आरोप लगाया है। लेकिन यह भी सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी अभी तक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं/नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना रुका नहीं है। अभी भी लोग आप में शामिल हो रहे हैं। कांगड़ा में सुधीर शर्मा, जगजीवन पाल और गोमा को लेकर चल रही चर्चाओं का दौर अभी तक भी थमा नहीं है। भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुये सुरेश चंदेल अभी भी पार्टी की मुख्यधारा के नेता नही बन पाये हैं। भाजपा अभी भी आप के साथ ही मुद्दे ज्वाइन करने की रणनीति पर चल रही है। कांग्रेस को लेकर यह धारणा अभी तक बनी हुई है कि इसके नेता चुनावों में ही एक दूसरे के साथ स्कोर सेटल कर लेते हैं। क्योंकि पुराना अनुभव ऐसा ही रहा है और इसके नेता सार्वजनिक रूप से इस आश्य के एक दूसरे पर आरोप भी लगाते रहे हैं। आज कांग्रेस को इस पृष्ठभूमि और धारणा से व्यवहारिक रूप से बाहर निकलना होगा। लेकिन क्या कांग्रेस इस दिशा में क्रियात्मक कदम उठा पा रही है यह सवाल अब उठने लग पडा है। क्योंकि अभी तक कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा खड़ा नहीं कर पायी है। जो आरोप पत्र लाने की कवायद एक समय की गयी थी वह अब पृष्टभूमि में चली गयी है। यह तय है कि जब तक सरकार को गंभीर मुद्दों पर जनता में नहीं घेरा जायेगा तब तक कांग्रेस कुछ बड़ा नहीं कर पायेगी। कांग्रेस का यह पक्ष अब तक कमजोर चल रहा है। और इसका कोई कारण भी अब तक सामने नहीं आ पाया है। नयी टीम ने जितने भी नेताओं को जिम्मेदारियां दी गयी है वह लगभग सभी चुनावों में अपने-अपने क्षेत्रों में व्यस्त हो जायेंगे और दूसरे स्थानों पर समय नहीं दे पायेंगे। आज जनता जिस महंगाई और बेरोजगारी से त्रास्त है उसके लिये इस सरकार की कौन सी नीतियां कैसे जिम्मेदार है यह जनता को पूरे प्रमाणों के साथ समझाने की आवश्यकता है। अन्यथा इन मुद्दों को भी परिस्थितियों का ही प्रतिफल कहकर इनकी धार को भी कुन्द करने का प्रयास किया जायेगा। यह सही है कि आज प्रतिभा सिंह को प्रदेश का अध्यक्ष बनाना समय की आवश्यकता थी। क्योंकि पूरी टीम में वही एक ऐसा नेता है जो पूरे प्रदेश में समय दे पायेंगी। वही स्व. वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत का इस समय लाभ लेने की स्थिति में है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उन्हें अपने में वीरभद्र सिंह बनने के लिए समय लगेगा। इसलिए प्रतिभा सिंह सरकार को मुद्दो पर कैसे घेर पाती है यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि इस दिशा में अभी तक कुछ भी ठोस सामने नही आया है। अभी तक जयराम के प्रशासन को भी बांधकर रखने की दिशा में कांग्रेस का कोई बड़ा कदम सामने नहीं आया है। बल्कि यह खतरा बराबर बना हुआ है कि जिस आप के पास केजरीवाल की दो सफल रैलियों के बावजूद अभी तक प्रदेश का ऐसा कोई आदमी नहीं जुड़ पाया है जो भाजपा कांग्रेस को बराबर घेर सके। लेकिन आने वाले दिनों में यदि आप में ऐसा कोई शामिल हो जाता है जो भाजपा और कांग्रेस दोनों से एक साथ तीखे सवाल पूछने शुरू कर देता है तब कांग्रेस को भी बचाव की मुद्रा आना पड़ेगा। क्योंकि कांग्रेस भी लंबे वक्त तक प्रदेश की सता पर काबिज रही है। 2014 से अब तक इसी कांग्रेस को भाजपा ने सत्ता से बाहर रखा है। इन व्यवहारिक पक्षों को सामने रखते हुये यह बड़ा सवाल बन जाता है कि प्रतिभा सिंह इस दिशा में क्या और कैसे कदम उठाती हैं। प्रदेश की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जो उम्मीद बंधी है उसे कैसे सफल बनाती हैं।
कुलदीप राठौर को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाना संतुलन साधने का परिचय
अब मुद्दों पर सरकार और भाजपा को घेरना होगी प्रतिभा की परीक्षा
शिमला/शैल। प्रतिभा सिंह को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर हाईकमान ने अध्यक्षता को लेकर उठते सवालों पर विराम लगा दिया है। यह विराम लगाने के साथ ही निवर्तमान अध्यक्ष कुलदीप राठौर को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर न केवल उनके मान-सम्मान को ही बहाल रखा बल्कि उन्हें बड़ी भूमिका देकर उनके अनुभव को भी अधिमान दिया है। दोनों नेता अपनी जिम्मेदारियों पर कितने सफल रहते हैं यह आने वाला समय ही बतायेगा। प्रतिभा सिंह के साथ ही नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री को फिर से प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के लिये उन पर पूर्ण विश्वास बहाल करके एक बड़ा संकेत भी दे दिया है। पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाकर पूरे चुनाव के संचालन की जिम्मेदारी देकर उनके अनुभव को भी पूरा अधिमान दिया गया है। इन्हीं के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भविष्य के नेतृत्व के प्रति भी हाईकमान ने सजगता और सतर्कता दोनों का परिचय दे दिया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हाईकमान ने हर नेता के मान सम्मान को पूरी तरह बहाल रखा है।
प्रदेश कांग्रेस में हुये इस बदलाव पर जिस तरह की प्रतिक्रिया है सत्तारूढ़ भाजपा से आई हैं उन्हीं से प्रमाणित हो जाता है कि सरकार और संगठन दोनों में एक डर अभी से बैठ गया है। क्योंकि इसी कांग्रेस ने पिछले चारों उपचुनाव में ने इसी भाजपा और सरकार को हराया है। उस समय इसी भाजपा ने इस हार को स्व. वीरभद्र सिंह के पक्ष में उभरी श्रद्धांजलि की लहर करार देकर अपनी हाईकमान को एक जवाब दे दिया था। लेकिन यह भूल गयी थी कि इसी जनभावना को भुनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान को इसी विरासत को भुनाने के लिये एक बार फिर इसी परिवार पर विश्वास व्यक्त करना पड़ेगा। यह इसी विरासत का परिणाम रहा है कि प्रदेश के लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में इस बदलाव का स्वागत किया गया है। ऐसा शायद किसी दूसरे नेता को यह भूमिका देने से अभी न होता। कांग्रेस में हुआ यह बदलाव इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी पांच राज्यों में हुये चुनावों में कांग्रेस को पांचो की हार का सामना करना पड़ा है। इस हार ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिये और प्रशांत किशोर की सेवायें लेने के मुकाम तक पहुंचा दिया। इन चुनावों में मिली हार ने प्रदेश के चार उप चुनावों की जीत को भी ढक लिया था। इसलिये कांग्रेस को यह भी हर समय याद रखना होगा।
इसी परिदृश्य में यह भी समरण रखना होगा कि हिमाचल का चुनाव जीतना हारना कांग्रेस और भाजपा दोनों को राष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रभावित करेगा। इसलिए भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा को भी प्रदेश की फील्ड में उतार दिया है। जिस आम आदमी पार्टी को कांग्रेस भाजपा की बी टीम कह चुकी है उसी आप ने सबसे ज्यादा नुकसान अब तक कांग्रेस को ही पहुंचाया है। क्योंकि भाजपा ने तो आप के संयोजक को ही तोड़ कर भाजपा में मिलाकर एक बराबर का जवाब दे दिया है। उसी तर्ज में क्या कांग्रेस भी अपने गये हुये लोगों को वापिस ला पाती है और नये पलायन को रोक पाती है। यह एक बड़ा सवाल होगा। क्योंकि कांग्रेस को प्रदेश में भाजपा और उसकी सरकार के साथ-साथ आप से भी लड़ना होगा। यह लड़ाई कांग्रेस किस तरह से लड़ती है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि पिछले दिनों प्रदेश में जिस तरह स्वर्ण समाज ने स्वर्ण आयोग का मुद्दा उठाकर विधानसभा के घेराव तक पहुंचा दिया और उसमें गिरफ्तारियां तक भी हुई। वही मुद्दा आज सिरमौर में स्वर्ण समाज द्वारा दलित नेताओं के हिंसक विरोध तक पहुंच गया है। दलित समाज सरकार और प्रशासन की भूमिका को लेकर पूरे रोष में है। इस मुद्दे पर कांग्रेस को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। क्योंकि पहले जो स्टैंड कांग्रेस के कुछ नेताओं ने लिया है वह संविधान के प्रावधानों और सर्वाेच्च न्यायालय की व्याख्याओं के अनुसार नहीं है। दलित समाज का यह आक्रोश कांग्रेस के बदलाव के साथ ही क्यों मुखर हुआ है? इसे समझना भी आवश्यक होगा क्योंकि दलित समाज प्रदेश में करीब 28% तक पहुंच चुका है।
इसी के साथ कांग्रेस की इस नयी टीम को वह सन्तुलन ही बनाये रखना होगा जो एक समय वीरभद्र ब्रिगेड के गठन के बाद ब्रिगेड के अध्यक्ष और सुखविंदर सिहं सुक्खु के बीच मानहानि का मामला दायर होने तक पहुंच गया था। यह दुसरी बात है कि इस ब्रिगेड को भंग कर दिया गया था और इसके कुछ नेताओं को मुख्य संगठन में जिम्मेदारियां भी दी गयी थी। लेकिन आगे चलकर यही पृष्ठभूमि सुक्खु को हटाने का मुख्य आधार बनी थी। चंबा में वरिष्ठ नेता आशा कुमारी और हर्ष महाजन के बीच राजनीतिक रिश्ते अभी भी सुखद नहीं है यह भी सब जानते हैं। मंडी के लोकसभा उपचुनाव की जीत के बाद ही प्रतिभा सिंह और आशय शर्मा के बीच चुनावी जंग छिड़ गयी थी। आशय के पिता अनिल शर्मा के आप में शामिल होने की चर्चायें बाहर तक आ गयी थी। शिमला में ही कुछ विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों को लेकर टकराव की संभावनाएं बराबर बनी हुयी है। इस परिपेक्ष में पार्टी को क्रियात्मक रूप से एकजुट करना प्रतिभा सिंह के लिये बड़ी चुनौती होगा। इस चुनौती के लिये जब तक सरकार के खिलाफ केंद्र से शिमला तक गंभीर मुद्दे उठाकर नहीं घेरा जाता तब तक कांग्रेस के लिये स्थितियां बहुत आसान नहीं होंगी। क्योंकि जिन-जिन नेताओं को प्रदेश स्तर पर हाईकमान ने जिम्मेदारियां सौंपी हैं वह लोग अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों, अपने चुनावों में व्यस्त हो जायेंगे। प्रदेश में हर बार सत्ता परिवर्तन का आधार भ्रष्टाचार के ही आरोप रहे हैं। लेकिन इस बार कांग्रेस विपक्ष में रहकर सरकार के खिलाफ कोई भी बड़ा मुद्दा अब तक खड़ा नहीं कर पायी है यह भी एक व्यवहारिक सच है। ऐसे में यह देखना जहां दिलचस्प होगा कि कांग्रेस कौन से मुद्दे उठाती है और यह जिम्मेदारी निभाने के लिये कैसी टीम फील्ड में उतारती है।
शान्ता और मनकोटिया के सवाल भी नहीं रोक पाये जनता को
जेपी नड्डा की जनसभा भी केजरीवाल के प्रभाव को कम नहीं कर पायी
प्रदेश में आप की विधिवत ईकाई न होने के बाद भी इतने लोगों का केजरीवाल को सुनने आने का अर्थ
क्या जनता का जनसभा में आना बदलाव की मांग नहीं है?
शिमला/शैल। पंजाब में अप्रत्याशित जीत के बाद जैसे ही केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने हिमाचल में भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है तभी से प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के समीकरण बदलने और बिगड़ने शुरू हो गये हैं। क्योंकि दोनों ही पार्टियों के नेता कार्यकर्ता आप में जाने शुरू हो गये हैं। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के मण्डी रोड शो से पहले भिंडरावाला के फोटो और खालिस्तान के झण्डे पंजाब से गये कुछ पर्यटकों के वाहनों पर लगे होने का मुद्दा उठा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की व्यक्तिगत प्रतिक्रिया इस पर आयी। पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता शान्ता कुमार ने शानन विद्युत परियोजना का मुद्दा उठाने के लिये जयराम ठाकुर को पत्र लिखा। इन मुद्दों के सामने आने पर लगा कि केजरीवाल का मण्डी का प्रस्तावित रोड शो इससे प्रभावित होगा। लेकिन मण्डी के सफल रोड शो ने यह प्रमाणित कर दिया कि यह सारे प्रयास ‘‘खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे’’ से अधिक कुछ नहीं थे।
मण्डी की रैली के बाद केजरीवाल का मुकाबला करने के लिये हिमाचल के सपूत राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने मोर्चा संभाला। शिमला में रोड शो और पीटरहॉफ में रैली का आयोजन किया गया। इस आयोजन की पूर्व संध्या पर हमीरपुर के सांसद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को भी फील्ड में उतारा गया और आधी रात को आप के तीन बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल करवा दिया गया। नड्डा के आवास पर यह सब कुछ घटा। लेकिन अगले ही दिन नड्डा की जनसभा में कुर्सियां खाली मिली। इसी बीच केजरीवाल की शाहपुर रैली घोषित हो गयी। इस रैली को असफल बनाने के लिये फिर केजरीवाल की सभा से एक दिन पहले 22 अप्रैल को नगरोटा-बगवां में जगत प्रकाश नड्डा का रोड शो और जनसभा रख दी गयी। यही केजरीवाल पर सवालों के तीर छोड़ने के लिये पूर्व मंत्री विजय सिंह मनकोटिया भी फील्ड में आ गये। वाकायदा एक पत्रकार वार्ता में तीखे सवालों के मिजाईल छोड़े गये। एक कांगड़ा गिद्धा प्रायोजित किया गया। इसमें भी केजरीवाल पर सवालों के नश्तर चुभाये गये। सोशल मीडिया मंचों पर यह गिद्धा खूब वायरल हुआ। लेकिन इतने सारे परोक्ष/अपरोक्ष प्रयासों के बावजूद केजरीवाल की सभा बहुत सफल रही। यह सफलता उस समय मिली है जब आप का कोई संगठन विधिवत घोषित नहीं है। केजरीवाल की दिल्ली की परफारमैन्स और पंजाब की उसी तरह की सफलता से ही आप आज हिमाचल में चर्चा का केंद्र बन गयी है।
प्रदेश सरकार और भाजपा द्वारा परोक्ष/अपरोक्ष में आप को रोकने के जितने भी प्रयास किये गये हैं उनसे प्रमाणित हो जाता है कि आप का मनोवैज्ञानिक दबाव सरकार पर लगातार बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री द्वारा की गयी मुफ्ती की घोषणाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसी मनोवैज्ञानिक दबाव को बढ़ाते हुये केजरीवाल ने भरी जनसभा में मुख्यमंत्री पर उनकी नकल करने का तंज कसा है। यह तंज कितना निशाने पर बैठा है इसका अनुमान मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया से लगाया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने जब यह जवाब दिया कि प्रदेश की जनता लुटेरी नहीं है बल्कि मेहनती है। तब मुख्यमंत्री यह भूल गये कि केजरीवाल ने प्रदेश में रही सरकारों पर प्रदेश को लूटने का आरोप लगाया है। केजरीवाल का यह आरोप प्रदेश पर बढ़ते कर्ज के आंकड़ों और कैग रिपोर्टों में सरकार पर आयी टिप्पणियों से भी लगाया जा सकता है। लेकिन आप की ओर से अभी प्रदेश से जुड़े सवाल उठाये ही नहीं गये हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि आप की प्रदेश इकाई में ऐसा कोई व्यक्ति अभी तक सामने ही नहीं आया है जो प्रदेश से जुड़े तीखे सवाल भाजपा और कांग्रेस से पूछने शुरू करेगा। क्योंकि सवाल तो भाजपा और कांग्रेस से ही पूछे जायेंगे जो प्रदेश की सत्ता पर बारी-बारी से काबिज रहे हैं। अभी जिन सवालों को शान्ता कुमार और मनकोटिया ने उछाला है उन पर इनसे भी जवाब पूछा जाना बनता है क्योंकि यह लोग भी सत्ता में भागीदार रहे हैं। आज प्रदेश को लेकर पूछे जाने वाला हर सवाल हर उस नेता से भी पूछा जायेगा जो कभी प्रदेश की सत्ता से जुड़ा रहा है।
ऐसे में यह एक महत्वपूर्ण संकेत हो जाता है कि केजरीवाल की सभाओं में उस समय लोग आ रहे हैं जब प्रदेश में विधिवत रूप से आप की इकाई तक गठित नहीं है। इस स्थिति में भी लोगों का केजरीवाल को इतनी संख्या में सुनने आना यह दर्शाता है कि लोग सही में अब भाजपा और कांग्रेस का विकल्प चाहते हैं। यह आने वाला समय बतायेगा कि आप लोगों की इस अपेक्षा को पूरा कर पाता पाता है या नहीं।
The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.
We search the whole countryside for the best fruit growers.
You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.
Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page. That user will be able to edit his or her page.
This illustrates the use of the Edit Own permission.