Friday, 19 September 2025
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जिला जज भी अब तक नही कर पाये सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना

शिमला/शैल। धर्मशाला के मकलोड़गंज में बीओटी के आधार पर बन रहे बस अड्डा और चार मंजिला होटल तथा शाॅपिंग कम्पलैक्स के निर्माण को एक अनुज भारद्वाज ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी में चुनौती दी थी। इसमें यह आरोप लगाया गया था कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है और इसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अुनमति नही ली गयी है। इस मामलें पर सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निर्माण पर कानूनी प्रावधानों की घोर उल्लंघना के गंभीर आरोप लगे है। इस उल्लंघना में पूरे संवद्ध प्रशासन की भी मिली भगत पायी गयी है। इस उल्लंघना के लिये प्रदेश सरकार को एक करोड़ का जुर्माना लगाया गया था और निर्माण कर रही कंपनी मै. प्रशांती सूर्य को ब्लैक लिस्ट किया गया था।
सीईसी की इस रिपोर्ट को प्रशांती सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में फैसला आया। इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने मै. प्रशांती सूर्य को 15 लाख का जुर्माना लगाया और बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथॅारिटी पर दस लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का जुर्माना लगाया। जुर्माने के साथ इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को गिराने के भी आदेश पारित किये है। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करके उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई की अनुशंसा की है।
बस अड्डा प्राधिकरण ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की फिर से अपील की। इस अपील की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले फैसले को संशोधित करते हुए इसकी जांच मुख्य सचिव से लेकर जिला जज धर्मशाला को सौंप दी और चार माह में इसकी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने के निर्देश दिये। यह निर्देश 2017 में दिये गये थे और करीब एक वर्ष हो गया है। लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक नही जा सकी है। इस संबंध में जब जिला जज के कार्यालय से संर्पक किया तो उन्होने कहा कि उन्हे इसकी जानकारी ही नही है। जिला जज से इस बारे में बात नही हो सकी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के वाबजूद जिला जज द्वारा चार माह में रिपोर्ट न सौंपा जाना प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के इन आदेशों के बाद जिला जज द्वारा सरकार से इस मामले में सहायता के लिये एक वकील मांगा गया था जो सरकार ने उपलब्ध करवा दिया था। यह वकील भी एक वर्ष पहले दे दिया गया था लेकिन इसके वाबजूद इसमें अभी तक और कोई कारवाई नही हो पायी है। यदि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना तय समय के भीतर जिला जज द्वारा भी न हो पाये तो स्वभाविक रूप से यह चर्चा का विषय तो बनेगा ही।We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers   responsible for the           construction of the    bus stand /hotel /accompanying complex and to submit a   report to this Court as to the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a       suitable presenting officer to assist him in the matter. We further direct that the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his/ her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek any clarification or direction considered        necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report  before this Court within a period of four months from the date a copy of this     order is received by him.

सरकार में कौन सुप्रीम है वित्त विभाग या मन्त्री परिषद-बजट चर्चा के बाद उठा सवाल

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालते ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के अन्तिम छः माह में लिये फैसलों की समीक्षा करेंगे। कई फैसलों की समीक्षा के बाद उन्हें बदल भी दिया गया है। कुछ पर तो जांच तक के आदेश हो चुके हैं। शराब कारोबार को लेकर बनाई गयी बिवरेज कारपोरेशन की जांच में तो एफआईआर तक हो चुकी है। यह जानकारी स्वयं मुख्यमन्त्री ने बजट भाषण में हुई चर्चा का जवाब देतेे हुए सदन को दी है। इसी चर्चा के उत्तर में मुख्यमन्त्री ने यह भी घोषणा की कई संस्थान समीक्षा के बाद बन्द कर दिये गये हैं।  इन संस्थानों को बन्द करनेे के कारण गिनाते हुए एक बड़ा कारण यह बताया गया कि इन्हे खोलने के लिये वित्त विभाग से स्वीकृति तक नही ली गयी और संस्थान खोल दिये गये। जब मुख्यमन्त्री ने सदन में यह खुलासा रखा है तोे निश्चित रूप से यह सही ही होगा।
सरकार का कामकाज़ कैस चलता है इसके संचालन की प्रक्रिया क्या रहती है इसके लिये सदन द्वारा वाकायदा रूल्ज़ आॅफ विजनैस पारित है। इन नियमों में संवद्ध विभाग के कल्र्क से लेकर मन्त्री तक सबकी शक्तियों और कार्यो का बंटवारा किया हुआ है। कोई भी यदि कार्य निष्पादन में इन नियमों से बाहर जाता है या उनकी उल्लंघना करता है तो उसके खिलाफ वाकायदा कारवाई हो जाती है इन नियमों के मुताबिक सरकार में मुख्यमन्त्री से भी अधिक शक्ति पूरी मन्त्री परिषद की सामूहिक रूप से रहती है। इसलिये हर विभाग को हर छोटे बड़े फैसले को मन्त्री परिषद की बैठक में जाकर उसकी स्वीकृति की मोहर उस पर लगवाई जाती है। मन्त्री परिषद की बैठक में वित्त सचिव या उसका प्रतिनिधि भी मौजूद रहता है। यदि वित्त विभाग की किसी फैसले पर सहमति न भी रहे तो उसे अपनी भिन्न राय दर्ज करने का भी अधिकार रहता है। यदि वित्त विभाग की असहमति के बावजूद मन्त्री परिषद किसी फैसले का अनुमोदन कर देती है तो उसका फैसला ही सर्वोपरि रहता है। ऐसे में फैसला लेने वालों के खिलाफ कोई कारवाई नही की जा सकती है। बल्कि मन्त्री परिषद तो वित्त विभाग से बाकायदा स्वीकृति प्राप्त फैसलों को भी पलटने का अधिकार रखती है।
इस परिदृश्य में आज जयराम सरकार पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के शासनकाल के  फैसलों  को समीक्षा बाद के बदलने के लिये अधिकृत तो है लेकिन इनके लिये किसी के खिलाफ कोई कारवाई नही की जा सकती। लेकिन जयराम सरकार ने पूर्ववर्ती वीरभद्र सरकार के शासनकाल में लिये गये कर्जाें और अन्य फैसलों के लिये वित्तिय कुप्रबन्धन का आरोप लगाया है। यह आरोप एक तरह से वित्त विभाग पर सीधा आरोप हो जाता है। आने वाले समय में प्रशासनिक विभाग कोई भी फैसला लेते हुए पहले वित्त विभाग की अनुमति मांगेगा। वित्त विभाग भी अनुमति देने से पूर्व सारे संवद्ध नियमों की अनुपालना और बिना कर्ज के धन की उपलब्धता देखेगा। आज कर्ज की जो स्थिति है और जो आगे बढ़ने वाली है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सरकार के सारे घोषित लक्ष्यों में से शायद दस प्रतिशत भी पूरे नही हो पायेंगें। क्योंकि आज मुख्यमंत्री ने जो बजट भाषण सदन में रखा और सदन ने चर्चा के बाद उसे अनुमोदित भी कर दिया है उसमें एफआरबीएम के तहत बहुत सारे बिन्दु चर्चा से छूट गये हैं। यह बिन्दु छूट गये हैं या जानबूझकर छोड़ दिये गये हैं इसका सही पता तो आने वाले समय में ही लगेगा।
स्मरणीय है कि Fiscal Responsibilty and Budget& Management  Act ( FRBM) संसद द्वारा 2003 में लाया गया था और इसके वित्तिय घाटे को 2008 तक 3% तक लाना था। यह घाटे की स्थिति सरकारों के लिये तब आती है जब उसके खर्चे राजस्व से बढ़ जाते हैं। इन बढे़ हुए खर्चों को नियन्त्रित और कम करने के कदम उठाने के लिये यह एक्ट लाया गया था। इस एक्ट पर वित्तमन्त्री अरूण जेटली ने 2016 के शुरू में एक रिव्यू कमेटीे का गठन किया था। इसकी दूसरी रिपोर्ट 23 जनवरी 2017 को वित्तमन्त्री को सौंप दी गयी थी। इस रिपोर्ट के बाद वित्तमन्त्री अरूण जेटली केन्द्र के राजस्व घाटे को 2% की जगह 2017-2018 के लिये 1.9% पर ले आये हैं। इसी रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट के बाद केन्द्र के वित्त विभाग की ओर से मार्च 2017 में प्रदेश सरकार को भी एक सश्क्त पत्र आया था लेकिन इस पत्र के बाद भी राज्य सरकार ने अपने खर्चे कम करने के लिये कोई कड़े कदम नही उठाये हैं बल्कि यह माना जा रहा है कि इस पत्र के बाद केन्द्र के द्वारा हिमाचल को जो 71000 करोड़ दिये जाने की बात प्रधानमन्त्री मोदी ने अपनी मण्डी की जनसभा में उठायी थी उसमें केन्द्र से प्रदेश को 71000 करोड़ की बजाये केवल 46793 करोड़ ही मिल पाये हैं।
ऐसे में प्रदेश सरकार ने अपने खर्चों के लिये कर्जो के साथ जो केन्द्र से सहायता मिलने की उम्मीद बांध रखी है वह सही में ही पूरी हो पायेगी इसको लेकर सन्देह हो रहा है। क्योंकि अपने राजस्व खर्चों को कम करने के लिये क्या उपाय किये जायें इसको लेकर सदन में कोई चर्चा नही उठायी गयी है। बल्कि मार्च 2017 में जो केन्द्र के वित्त विभाग से पत्र प्राप्त हुआ था उस पर वीरभद्र सरकार ने आय के स्त्रोत बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिये जो कमेटी हर्षवर्धन  चौहान  की अध्यक्षता में बनाई थी उसमें  चौहान  के साथ कोई और सदस्य नामित नही किया गया था। चैहान ने भी अपनी रिपोर्ट आचार संहिता लगने से कुछ समय पूर्व ही सरकार को सौंपी थी और यह रिपोर्ट मुख्यमन्त्री जयराम के मुताबिक एक बार भी मन्त्री परिषद के सामने नही रखी गयी है। इस खुलासे से स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश की व्यवहारिक वित्तिय स्थिति के बारे में पूर्व सरकार कितनी गंभीर और ईमानदार रही है। लेकिन इस सबमें प्रदेश का वित्त विभाग भी अपनी भूमिका और जिम्मेदारी से भाग नही सकता है। क्योंकि वित्त विभाग ने कभी भी अपनी निर्भिक राय रिकार्ड पर सरकार के सामने नही रखी है। लेकिन इस बार अनचाहे ही मुख्यमन्त्री के माध्यम से वित्तविभाग पर कुप्रबन्धन का आरोप लग गया है। इस आरोप की वित्त विभाग की क्या प्रतिक्रिया रहती है और उसका प्रभाव सरकार पर क्या पड़ता है इसका खुलासा तो आने वाले समय में ही सामने आयेगा। लेकिन माना जा रहा है कि इससे सरकार का रास्ता आसान नही रहेगा।


कर्जों पर आश्रित रहेगी यह सरकार -अग्निहोत्री

शिमला/शैल। कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने कहा है कि मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले ही बजट भाषण में साफ कर दिया है कि उनकी सरकार पूरी तरह कर्जों और केन्द्र की सहायता पर आश्रित है और बेरोजगारी को दूर करने के लिये उनके पास कोई योजना नही है। उन्होने बजट को बेरोजगारों और युवा वर्ग से बड़ा धोखा करार दिया। अभी कुछ महीने पहले ही चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी लगातार प्रदेश में बेरोजगारी की दुहाई दे रही थीं वायदा था सत्ता परिवर्तन पर वे बड़े पैमाने पर नौकरियों का प्रबन्धन करेगी लेकिन मौजूदा बजट में न तो नौकरियों का प्रावधान किया गया और न ही बेरोजगारी दूर करने की दिशा में ही कोई पुख्ता पहल की गई है। उल्टे बेरोजगारी भत्ता जैसी महत्वकांक्षी योजना को भी समाप्त कर दिया गया है। उन्होने दलील दी कि मंहगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे पर भी मुख्यमंत्री खामोश रहे।
मुख्यमंत्री ने सारा ध्यान प्राईवेट सैक्टर की तरफ केन्द्रित किया है और हिमाचल के भोले भाले लोगों से चुनाव में किये गए वायदों को नज़रअन्दाज कर दिया है। उन्होने कहा कि मुख्यमंत्री का पहला बजट भाषण क्रान्तिकारी और प्रदेश को आगे ले जाने की दिशा में कोई पहल करने वाला होना चाहिये था लेकिन ऐसी कोई भी सोच मुख्यमन्त्री के बजट भाषण के माध्यम से नही दिख पाई हैं और बजट में न तो कोई नयापन है और न ही कोई नई सोच इस बजट में सामने आई है। मुख्यमंत्री ने लम्बे बजट भाषण में छोटी- छोटी प्रोत्साहन राशि देकर अपनी पीठ थप-थपाने की कोशिश की है। अन्यथा यह न तो भाजपा के दृष्टिपत्र और न ही घोषणा पत्र को पूरा करने का कोई प्रयास है। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री ने बजट के शुरूआत में ही यह दलील दी कि पूर्व सरकारों ने कर्जे लेकर सरकारें चलाई है लेकिन बजट के अंत में यह साफ कर दिया कि वे भी कर्जे लेने के र्फामूले पर ही चलेंगे और बजट के घाटे को कर्जो से और केन्द्रिय रियायतों से ही करेंगें जिसकी शुरूआत हो भी चुकी है। सरकार ने शुरूआती दौर में दो हज़ार करोड़ के कर्जे ले भी लिये है। उन्होने कहा कि बजट उन्ही अधिकारियों ने बनाया हैं जो पहले भी बनाते आये है। इसलिये इसमें वही शेरो -शायरी और साहित्यिक अंदाज डालकर मुख्यमंत्री को खुश करने का प्रयास किया है। इसके अलावा पूर्व सरकार के समय में जो योजना चलाई गई उन्हे अपने खाते में डालने का अनावश्यक प्रयास किया है। उन्होने कहा कि कौशल विकास भत्ता योजना पूर्व सरकार के शासन से चली आ रही है और डेढ लाख से अधिक बेरोज़गारों को इसका फायदा भी मिल चुका है हर साल इसके लिए जिस तरह 100 करोड़ रखा जाता था उसी नीति पर वर्तमान सरकार भी चल रही है। जबकि बेरोजगारी भत्ते को समाप्त कर बेरोजगारों पर कुठाराघात करने का प्रयास किया है। उन्होने कहा कि 3 मैडिकल काॅलेजों की योजना भी कांग्रेस शासन के समय से चली आ रही है उसे भी भाजपा अपने खाते में डालने की अनावश्यक प्रास कर रही है जब कि यह पूर्व केन्द्रिय मंत्री गुलाम नवी आज़ाद के समय में हालिस हुई थी। डिजिटल राशन कार्ड योजना भी कांग्रेस के समय में ही शुरू हो चुकी है और उन्होने खेत संरक्षण योजना या पोली हाऊस योजनायें, सस्ता राशन अन्न योजना यह भी पहले से चली आ रही याजनायें है। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि इस बजट में भाजपा के वायदो के अनुरूप Entry टैक्स हटाने का कोई प्रावधान सरकार ने नहीं किया है। रूसा को समाप्त कर विद्यार्थीयों को लुभाने के लिए जो एलान किये जाते रहे हैं उसका एलान भी नही हुआ है। गरीबों के लिए आवास योजना राशि बढाने की तरफ भी कोई कदम नही उठाया गया है। उन्होने कहा कि सरकार सत्ता के पहले दौर में कर्मचारियों के तबादलों व जश्न मे उलझी रही इसलिये बजट के लिए कोई पुख्ता समय उपलब्ध नही करवा सकी। इस बजट में जयराम सरकार कोई भी दूरदर्शी कदम नही उठा पाई है।

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