Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश

ShareThis for Joomla!

धूमल ने खाली किया बंगला-राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चाओं का दौर शुरू

शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल ने अन्ततः शिमला सरकारी आवास खाली कर दिया है। चुनाव हारने के बाद धूमल यह आवास खाली कर देना चाहत थे। लेकिन मुख्यमन्त्री के आग्रह पर उन्होने ऐसा नही किया। सरकार ने धूमल के पीए से यह मकान रखने की अवधि बढ़ाने का आग्रह का पत्रा मांगा और पीए ने दे दिया। इस पर सरकार ने केवल 31 मार्च तक समय बढ़ाया। 31 मार्च से पहले ही धूमल ने मकान खाली करने का फैसला ले लिया। इस फैसल की भनक लगते ही मुख्यमन्त्री ने फिर आग्रह किया। फिर समय बढ़ाने के लिये आग्रह पत्र लिया गयाऔर इस पर केवल दो माह का समय बढ़ाया गया। इस तरह किश्तों में समय बढ़ाये जाने को अन्यथा लेते हुए धूमल ने अब मई समाप्त होने से पहले ही मकान खाली कर दिया।
धूमल के यह फैसला लेने के साथ ही संयोगवश यह भी घट गया की एक दिन उनके आवास पर पानी ही समाप्त हो गया। देर रात इसका प्रबन्ध हो पाया। इसी के साथ यह भी घटा कि जयराम सरकार जो केन्द्र की मोदी सरकार के चार साल पूरे होने का पीटर आॅफ में 26 मई को जश्न मनाने जा रही थी उसके लिये 25 तारीख रात तक धूमल को इसका आमन्त्रण ही नही दिया गया था। 25 तारीख शाम को भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती और विधायक नरेन्द्र बरागटा तथा कुछ अन्य नेता धूमल से उनके आवास पर मिलने आये थे। शायद इन लोगों के माध्यम से सरकार तक यह सूचना पहुंची कि 26 तारीख के आयोजन के लिये धूमल को आमन्त्रण नही जा पाया है। इसलिये 26 मई को सबुह 10ः30 बजे ही जयराम अपने कुछ सहयोगी मन्त्रीयों को लेकर उनके आवास पर पहुंच गये और उन्हें अपने साथ ले गये। 26 तारीख का आयेाजन पार्टी का नही सरकार का था। पार्टी में जब इस पर चर्चा हुई थी तब यह तय किया गया था कि यह आयोजन प्रत्येक जिलास्तर पर किया जायेगा। लेकिन पार्टी का यह फैसला जयराम के कुछ सरकारी और गैर सरकारी सलाहकारों को रास नही आया। इसमें कुछ नौकरशाहों ने भी भूमिका निभाई और जिलों की बजाये इसे राज्य स्तर पर सीमित कर दिया। अब पार्टी अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही हैै। ऐसे में यदि यह आयेाजन जिलास्तर पर होता तो इसका संदेश कुछ ज्यादा प्रभावी होता । यही नही इस आयेाजन के जो विज्ञापन समाचार पत्रों को जारी किये गये हैं उनमें भी सरकार का रूख पक्षपात पूर्ण रहा है बल्कि बड़े सुनियोजित तरीके से प्रैस को बांटने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा ही प्रयास राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान भी हुआ। ऐसा लगता है कि कुछ लोग बड़े ही सुनियोजित तरीके से यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि मीडिया को बांटकर रखा जाये ताकि मुख्यमन्त्री के सामने हरा ही हरा परोसा जाये और जमीनी हकीकत की जानकारी न होने दी जाये।
जयराम सरकार को सत्ता में पांच माह हो गये हैं। इस दौरान जिस तरह और जिस स्तर पर प्रशासनिक फेरबदल को अंजाम दिया गया है। उससे आज सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक यह चर्चा है कि जयराम की सरकार को तीन ही अधिकारी चला रहे हैं। इन अधिकारियों के साथ ही पत्रकारों का एक स्वार्थी टोला भी कुछ भूमिका निभा रहा है। जिसने धूमल को मकान खाली करवाने की स्थितियां पैदा कर दी जाने की घोषणा बहुत पहले ही कर दी थी जो सही भी साबित हुई है। क्योंकि किश्तों में मकान रखने का समय दिया जाना निश्चित रूप से धूमल के कद से मेल नही खाता है। इसी के साथ अब यह भी चर्चा में आ रहा है कि विभिन्न निगमों /बोर्डो में कार्यकर्ताओं की ताजपोशीयां भी एक योजना के तहत ही रोकी जा रही हैं। बल्कि यह भी कहा जाने लग पड़ा है कि जैसे वीरभद्र शासन में शिमला को ही हर जगह अधिमान दिया जाता था ठीक उसी तरह अब मण्डी को दिया जा रहा है। क्योंकि अब तक जो भी ताजपोशीयां हुई उनमें मण्डी का ही वर्चस्व रहा है।
भ्रष्टाचार के जितने मामलों का भाजपा के आरोप पत्रों में जिक्र किया गया है। उन पर अब बड़े सुनियोजित तरीके से प्रशासन यूटर्न लेता जा रहा है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों पर यह सरकार भी उतनी ही गंभीर है जितनी की वीरभद्र सरकार थी। इससे यह संदेश जा रहा है कि भाजपा सत्ता पाने के लिये किसी पर भी भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप लगा सकती है जो कि वास्तव में कहीं होता ही नही है या फिर सत्ता में आने पर उनको इन आरोपों से डराकर अपने स्वार्थों के लिये प्रयुक्त करती है। आज लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं और सरकार की विश्वसनीयता तथाकार्यकुशलता पर अभी से प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गये हैं। यह सरकार अभी तक लोकायुक्त और मानवाधिकार आयोग के पद नही भर पायी है। फूड सिक्योरिटी कमीशनर को हटा तो दिया गया लेकिन उसकी जगह नयी नियुक्ति नही हो पायी है। इसी तरह प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के भी  दोनों  पद खाली चल रहे हैं। इन सारे पदों का भरा जाना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है जिस ओर कोई ध्यान ही नही जा रहा है। सरकार केवल अधूरे प्रशासनिक तबादले करने तक ही सीमित होकर रह गयी है।

प्रदेश के 2880 होटलो में से 1524 में अवैधताएं-पर्यटन विभाग के शपथ पत्र से सामने आया यह खुलासा

                                  सरकार अभी तक भी नही कर पा रही है कोई कारवाई क्यों
                                         क्या कुछ मन्त्रीयों और अधिकारीयों का दबाब है
शिमला/शैल। प्रदेश में अवैध निर्माणों और अवैध कब्जों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है। कसौली गोली कांड के बाद तो कड़ाई की स्थिति एकदम बदल गयी है। अभी प्रदेश उच्च न्यायालय ने चिन्तपूर्णी मन्दिर को लेकर आयी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए भरवांई से चिन्तपूर्णी तक सड़क के दोनों किनारों पर हुए अवैध निर्माणों और कब्जों पर एसडीएम अम्ब और देहरा से रिपोर्ट तलब की है और इन्हें हटाने के निर्देश दिये हैं। इसी के साथ इसके लिये जिम्मेदार अधिकारियों की भी जानकारी मांगी है।
कोई भी अवैधता एक दिन मे ही खड़ी नही हो जाती है और न ही यह संवद्ध तन्त्र की मिली भगत के बिना संभव होता है यह न्यायालय साफ कह चुके हैं। तन्त्र की इसी मिली भगत का प्रमाण रहा है कसौली कांड। जहां अदालत के फैसले पर अमल करवाने के लिये गये दो कर्मियों को जान से हाथ धोना पड़ा है। इस कांड का जब सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लिया और इन अधिकारियों/कर्मियों को उपलब्ध करवाई गयी पुलिस सुरक्षा पर रिपोर्ट तलब की तब सरकार ने मण्डलायुक्त शिमला को इसकी जांच सौंपी। मण्डलायुक्त की रिपोर्ट में जब पुलिस की असफलता सामने आयी तब सरकार ने पुलिस अधिकारियों/कर्मियों के खिलाफ कारवाई करते हुए उनको निलंबित कर दिया। इस निलम्बन में तत्कालीन एसपी भी शामिल हैं जब एसपी मौके पर वहां थे ही नही। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश मिलने के बाद डीसी सोलन ने इन आदेशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये एसपी को निर्देश दिये थे। इन निर्देशों पर एसपी ने टीम गठित की थी। लेकिन इस टीम में जो प्रशासनिक अधिकारी नायब तहसीलदार और एसडीएम थे क्या वह भी एसपी के निर्देशों पर आये थे या इसके लिये डीसी ने इन्हें तैनात किया था। यदि इसमें एसपी असफल रहे हैं तो क्या उसी तरह डीसी और उनके लोग भी असफल नहीं रहे हैं। पुलिस पर हुई कारवाई के बाद अब इस पर भी सवाल उठने लगे हैं।
कसौली के अवैध निर्माणों पर एनजीटी का 2017 मई में फैसला आ गया था। एनजीटी ने अपने फैसले में इन निर्माणों के लिये जिम्मेदार रहे कुछ अधिकारियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये थे जिन पर आज तक अमल नही हुआ है। एनजीटी ने अपना फैसला देने से पहले प्रदेश सरकार से एक रिपोर्ट तलब की थी इसके लिये एक कमेटी बनी थी। अतिरिक्त मुख्य सचिव तरूण कपूर की अध्यक्षता में बनी इस कमेटी की रिपोर्ट एनजीटी के फैसले में दर्ज है और यह रिपोर्ट भी फैसले का बड़ा आधार रही है। अब सर्वोच्च न्यायालय का भी फैसला आ जाने के बाद इसी रिपोर्ट के आधार पर फैसले का रिव्यू दायर किया गया है। क्योंकि जब तक रिव्यू का फैसला नही आ जाता है तब तक चिन्हित अधिकारियों के खिलाफ कारवाई से बचा जा सकता है।
इसी तरह जब कसौली को लेकर याचिकाएं चल रही थी तब प्रदेश उच्च न्यायालय में भी एक याचिका आयी जिसमें धर्मशाला और उसके आसपास हुए अवैध निर्माणों का प्रश्न उठाया गया था। इसका संज्ञान लेते हुए अदालत ने अप्रैल 2017 में रिपोर्ट तलब की। इसी रिपोर्ट पर पर्यटन और प्रदूषण बोर्ड की सूचियों में अन्तर सामने आया। फिर से पूरे प्रदेश को लेकर रिपोर्ट तलब की गयी और अवैध रूप से चल रहे होटल अब तक सामने आ चुके थे उसके बिजली पानी के कनैक्शन काटने के आदेश किये गये। इस पर करीब 200 होटलों के बिजली पानी काटे गये लेकिन इसके बाद पूरे प्रदेश को लेकर पर्यटन विभाग की ओर से दिसम्बर 2017 में जो शपथ पत्र उच्च न्यायालय में दायर किया गया है उसके मुताबिक प्रदेश में 2880 होटल ईकाईयां पंजीकृत है और इनमें से 1524 में निर्माण से लेकर अन्य अवैधताएं पायी गयी हैं। पर्यटन विभाग के इस शपथ पत्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश में आधे से ज्यादा होटल अवैध रूप से चल रहे हैं। इतने बड़े स्तर पर जब यह अवैध होटल प्रदेश में चल रहे हैं तो यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या प्रदेश में प्रशासन नाम की कोई चीज शेष बची है? क्या पूरी तरह अराजकता फैल चुकी है। इसमें सबसे दिलचस्प तो यह है कि विभाग अपने ही शपथपत्र में यह आंकडा उच्च न्यायालय के सामने रख रहा है लेकिन इसके बावजूद अभी तक प्रशासन की ओर से इन अवैधताओं के खिलाफ कोई कारवाई नही की जा रही है। इसमें भी उच्च न्यायालय के ही आदेशों की प्रतिक्षा की जा रही है। सूत्रों की माने तो होटल व्यवसाय में सरकार के कई मन्त्री भी प्रत्यक्षतः/अप्रत्यक्षतः शामिल हैं। मन्त्रीयों के अतिरिक्त कई अधिकारी भी इसमें शामिल हैं और उनका सीधा प्रभाव मुख्यमन्त्री के कार्यालय तक है। इसी प्रभाव के कारण इन अवैधताओं के खिलाफ कारवाई करने का साहस नही हो पा रहा है।

क्या फेर बदल से प्रशासन पर पकड़ बन जायेगी

शिमला/शैल। जयराम सरकार को सत्ता में आये पांच महीने हो गये हैं। इस सरकार में मुख्यमन्त्री सहित कुल बारह मन्त्री हैं जिनमें से छः लोग पहली बार मन्त्री बने हैं और छः लोग पहले भी मन्त्री रह चुके हैं। मुख्यमन्त्री जयराम स्वयं पहले भी मन्त्री रह चुके हैं तथा बीस वर्षों से लगातार विधानसभा में रहे हैं। यह उनकी पांचवी टर्म है। इससे यह कहा जा सकता है कि इस सरकार और मुख्यमन्त्री को अनुभवहीन कहना ज्यादा सही नही होगा। फिर मन्त्रीयों के अतिरिक्त सरकार के पास मीडिया सलाहकार, राजनीतिक सलाहकार और मुख्यमंत्री के साथ दो ओएसडी हैं। यह सब लोग राजनीति से जुड़े लोग हैं। बल्कि राजनीतिक सलाहकार तो पेशे से वकील भी रह चुके हैं लेकिन जिस तरह का प्रशासनिक फेरबदल सामने आया है उसमें एफ सी अपील का काम चार अधिकारियों को दिया गया है। ऐसा प्रयोग सरकार में पहली बार हुआ है। कभी प्रशासन में एग्रीकल्चर प्रौडक्शन कमीशनर और वित्तायुक्त अपील मुख्य सचिव के बाद दूसरे सबसे बड़े अधिकारी होते थे। वित्तायुक्त अपील तो उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष होता है क्योंकि उसका फैसला अन्तिम होता है। उसकी अपील उच्च न्यायालय में संविधान की धारा 226 के तहत ही आती है अन्यथा नहीं। बल्कि अंग्रेज शासन के दौरान तो यह  दोनों पद मुख्य सचिव से भी बड़े होते थे
आज प्रदेश में सबसे ज्यादा लिटिगेशन राजस्व के मामलों की है। हजारों की संख्या में मामले वर्षों से लंबित चल रहे हैं। लोगों को इन्साफ नही मिल रहा है। इन मामलों की सुनवाई की राजस्व में दो ही अदालतें हैं। पहली है डिविजनल कमीश्नर और उसकी अपील आती है एफसी अपील के पास। प्रदेश में मण्डलायुक्त केवल तीन ही हैं जो पूर्णकालिक यही काम करते हैं। अब अपील का काम चार लोगों में बांटकर सरकार ने जो अपनी ओर से राहत देने का प्रयास किया है उससे व्यवहारिक तौर पर लोगों को राहत की बजाये पेरशानी खड़ी हो गयी है क्योंकि चार लोगों में बारह जिले बांट दिये हैं लेकिन उसमें यह किया गया है कि जिसको मण्डी का काम दिया गया है उसी को कुल्लू का नही दिया गया है। ऐसा नही हुआ है कि जिसको हमीरपुर दिया है उसी को ऊना दिया गया हो। कांगड़ा, चम्बा एक को दिया गया हो क्योंकि पेशीयां तो सबको एक बार दी गयी हैं उसके मुताबिक जब आदमी पेशी भुगतने आता है तो वहां मौके पर पता चलता है कि उसका जिला तो किसी और के पास है। सरकार ने यह प्रयोग करने से पहले केसों की जिलावर लिस्टें ही नही बनाई है और न ही लोगों को यह सूचित किया गया है कि उनके जिले में कब कौन केस सुनने आयेगा। फिर जिन लोगों को अपील का काम दिया गया है उनको साथ ही और महकमें भी दिये गये हैं। जबकि यदि सरकार सही मायनों में लोगों को शीघ्र न्याय देना चाहती है तो उसे अपील का काम पूर्णकालिक देना चाहिये था भले ही चार की जगह तीन लोगों को मण्डल वार यह काम दिया जाता। आम आदमी में इससे जनता में सरकार की अनुभवहीनता का सन्देश गया है। इस प्रयोग से तो कोई भी अधिकारी एक वर्ष में दस केस नही निपटा पायेगा।
इसी तरह का संदेश फेरबदल से गया है क्योंकि यह इस अल्प समय में ही सरकार का दूसरा बड़ा प्रशासनिक फेरबदल सामने आया है। जो प्रशासनिक फेरबदल सामने आये हैं उनसे यह स्पष्ट है कि इसमें लगभग सभी अधिकारी प्रभावित हुए हैं। निचले स्तर पर अभी फेरबदल होना बाकि है। इस फेरबदल में कई अधिकारियों को इतना काम दे दिया गया है जिसका निपटाया जाना उनसे संभव ही नही होगा। इतने अधिक काम में कहीं न कहीं ऐसी चूक हो जाना संभव है जो पूरी सरकार पर भारी पड़ सकती है। दूसरी ओर से कई अधिकारियों को लगभग खाली बिठा दिया गया है जिनके पास दिन में दस फाईलें नही आयेंगी। इस तरह के फेरबदल से फिर सरकार को लेकर कोई सकारात्मक संदेश नही गया है। सरकार के कई नीतिगत ऐसे फैसले हैं जिनमें व्यवहारिक विसंगतियां हैं जिनका प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के वीरभद्र शासन पर जो रिटायरड और टायरड का आरोप लगाया जाता था आज अभी चार माह में ही इस सरकार पर भी वही आरोप लगना शुरू हो गया है। अवैध निर्माणों और अवैध कब्जों के आरोप पर सर्वोच्च न्यायालय से लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय तक सभी जगह सरकार से उन अधिकारियों की सूची मांगी गयी है जो इस सबके लिये जिम्मेदार रहे हैं। जिनको न्यायालय चिन्हित करके उन पर कारवाई के निर्देश दे चुका है उनके खिलाफ अभी तक कोई कारवाई नही हो पायी है। इससे भी यही संदेश जा रहा है कि मुख्यमन्त्री और सरकार ही उनको संरक्षण दे रहे हैं।
इसमें मुख्य सचिव पर भी यह सवाल उठ रहा है कि इन्होनें तो स्वयं वीरभद्र के शासनकाल में अनदेखी और असन्तुलन का दंश झेला है। इन्साफ के लिये कैट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। संजीव चतुर्वेदी के मामले में मीडिया में बहुत कुछ सामने आ चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे मामले का जिस जरह से संज्ञान लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय को एक तरह से निर्देशित किया है उससे पूरे प्रकरण की गंभीरता और बढ़ गयी है। इस तरह की स्थितियों का जिस मुख्य सचिव ने सामना किया हो उसके समय में भी यदि प्रशासनिक असन्तुलन और विसंगति सामने आयेगी तो इसका संदेश फिर सरकार को लेकर नकारात्मक ही जायेगा। इन बहुत सारे मामलों पर मुख्यमन्त्री और सरकार को समय रहते विचार करना होगा। आज चार माह में ही यह चर्चा चल निकलना ही सरकार का सन्देश जनता में सकारात्मक नही जा रहा है यह सलाहकारों और शुभचिन्तकों के लिये बड़ा सवाल बनने जा रहा है। क्योंकि इतने अल्प समय में इस तरह के फेरबदलों से प्रशासनिक पकड़ बनने की धारणा ही आधारहीन है। क्योंकि हर अधिकारी को जनता के पैसे से भारी पगार मिलती है और उसके अनुरूप व उनसे बराबर का काम लेना सरकार और मुख्यमन्त्री की वैधानिक जिम्मेदारी है।

More Articles...

  1. अवैध निर्माणों के दोषीयों के खिलाफ कारवाई क्यों नही गुलाब सिंह की मौत के बाद उठा सवाल
  2. 2019 में भाजपा की विदाई तयः आनन्द शर्मा
  3. एच पी सी ए प्रकरण पर सरकार की गंभीरता सवालों में
  4. अवैध निर्माणों पर अदालत द्वारा चिन्हित जिम्मेदार कर्मीयों के खिलाफ अब तक कारवाई क्यों नही
  5. मकलोड़गंज पर अभी तक जिला जज ही नही दे पाये हैं जांच रिपोर्ट
  6. गुड़िया प्रकरण में सीबीआई अब तक क्यो नही कर पायी कोई और गिरफ्तारी
  7. अवैध निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सरकार के लिये बना कसौटी
  8. क्या सीबीआई की गिरफ्तारी भी अन्धेरे का ही तीर है
  9. कायाकल्प को 90 कनाल जमीन देने पर शान्ता का विवेकानन्द ट्रस्ट फिर विवादों में
  10. जिला जज भी अब तक नही कर पाये सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना
  11. सरकार में कौन सुप्रीम है वित्त विभाग या मन्त्री परिषद-बजट चर्चा के बाद उठा सवाल
  12. कर्जों पर आश्रित रहेगी यह सरकार -अग्निहोत्री
  13. माननीयों के लिये नही हो पाया अब तक विशेष अदालत का गठन
  14. आखिर क्यों कर रहे हैं वीरभद्र सुक्खु का विरोध
  15. वीरभद्र प्रकरण में अब वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर सह अभियुक्त की हुई गिरफ्तारी
  16. वीरभद्र मामले में ईडी नही कर पायी कोई और गिरफ्तारी-दायर हुआ अनुपूरक चालान
  17. नड्डा ने आयोजित की दिल्ली स्थित प्रदेश के अधिकारियों से मुख्यमन्त्री की मुलाकात
  18. क्या एचपीसीए के मामले वापिस हो पायेंगे
  19. नौ वर्षों में 35,000 करोड़ डकार चुके उद्योगों के लिये फिर मांगी गयी राहतें
  20. राज्यपाल के अभिभाषण पर अनचाहे ही घिर गयी सरकार

Subcategories

  • लीगल
  • सोशल मूवमेंट
  • आपदा
  • पोलिटिकल

    The Joomla! content management system lets you create webpages of various types using extensions. There are 5 basic types of extensions: components, modules, templates, languages, and plugins. Your website includes the extensions you need to create a basic website in English, but thousands of additional extensions of all types are available. The Joomla! Extensions Directory is the largest directory of Joomla! extensions.

  • शिक्षा

    We search the whole countryside for the best fruit growers.

    You can let each supplier have a page that he or she can edit. To see this in action you will need to create a users who is in the suppliers group.  
    Create one page in the growers category for that user and make that supplier the author of the page.  That user will be able to edit his or her page.

    This illustrates the use of the Edit Own permission.

  • पर्यावरण

Facebook



  Search