Friday, 19 September 2025
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भाजपा-अनुराग की सर्वोच्च न्यायालय में एक और जीत

शिमला/बलदेव शर्मा सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मशाला पुलिस द्वारा धारा 447 के तहत अनुराग ठाकुर और विशाल मरबाहा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। हिमाचल सरकार इस मामलें में अपील में सुप्रीम कोर्ट गयी थी इस एफआईआर का रद्द होना निश्चित रूप से अनुराग ठाकुर के लिये एक बड़ी राहत और सफलता है। जबकि सरकार के लिये यह एक करारा झटका है क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय ने ही इसे एक कमजोर और ज़बरदस्ती बनाया गया मामला करार दिया था। लेकिन वीरभद्र के सलाहकारों ने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में जाने का फैसला लिया और वहां हार का मुंह देखा। इसी तरह का परिणाम ए.एन. शर्मा मामलें में रहा है। लेकिन अब जब इस एफआईआर के रद्द होने की खबरें छपी तो यह संदेश गया कि एचपीसीए के खिलाफ विजिलैन्स के जिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल स्टे कर रखा है उसे रद्द कर दिया गया है। इन खबरों से परेशान होकर सरकार ने एक प्रैस नोट जारी करके स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि विजिलैन्स वाला मामला अब तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और 29 मार्च को लगा है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया है कि विजिलैन्स के दो अन्य मामले भी एचपीसीए के खिलाफ अभी तक लंबित है।
स्मरणीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एचपीसीए के जिस मामले पर ट्रायल स्टे किया हुआ है उसका सोसायटी से कंपनी बनाये जाने वाला मूल प्रकरण अभी तक आरसीएस और प्रदेश होईकोर्ट के बीच लंबित है। धर्मशाला में एक भूमिहीन प्रेमु की जमीन खरीदने का जो मामला अनुराग और अरूण के खिलाफ दर्ज हुआ था उसमें एसडीएम की रिपोर्ट काफी अरसा पहले आ चुकी है। उसमें एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट में इसे उच्च न्यायालय में उठाये जाने की संस्तुति की है। लेकिन वीरभद्र के सलाहकार इस मामले में अब तक उच्च न्यायालय नही गये है। आज यह चुनावी वर्ष है और राजनीतिक तथा प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा बनी हुई है कि प्रदेश विधान सभा के चूनाव मई-जून में हो सकते है। यह चर्चा कितनी ठीक निकलती है इसका पता तो आने वाले समय मे ही लगेगा। लेकिन इस चर्चा का यह लाभ अवश्य होगा कि वीरभद्र का प्रशासन और विजिलैन्स एचपीसीए और धमूल के कथित संपति मामलों में आने वाले समय में कुछ ठोस नही कर पायेंगे। भाजपा और धूमल के लिये यह स्थिति लाभदायक मानी जा रही है।
स्मरणीय है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में भी भ्रष्टाचार केन्द्रिय मुद्दा बना था। इस बार भी भ्रष्टाचार के नाम पर ही चुनाव लड़ा जायेगा। क्योंकि विकास के नाम पर हर चुनाव क्षेत्रा में इस कार्यकाल में वीरभद्र सिंह ने जितनी भी घोषणाएं की है वह सब पूरी नही हुई हैं। बल्कि अधिकांश तो केवल कोरी घोषणाएं होकर ही रह गयी है। फील्ड में हर कार्यालय में कर्मचारीयों के कई-कई स्थान रिक्त चले हुए है। जितने नये स्कूल खोलने की घोषणाएं हुई है उससे अधिक तो बन्द करने के आदेश जारी हो चुके हैं। ऐसे मे विकास के नाम पर वीरभद्र को वोट मांगना आसान नहीं होगा। इस परिदृश्य में यदि भाजपा वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को केन्द्रिय चुनावी मुद्दा बनाने में सफल हो जाती है तो कांग्रेस के पास इसका कोई जबाव नही होगा। लेकिन भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर अब तक सीबीआई और ईडी ने वीरभद्र को घेरा है वह आज ऐसे मोड़ पर आकर रूक गये है कि उनसे भाजपा को लाभ मिलने की बजाये नुकसान होने का खतरा बन गया है। क्योंकि सीबीआई के मामले में भले ही दिल्ली उच्च न्यायालय में फैसला रिर्जव चल रहा है लेकिन ईडी की शेष बची जांच का अब तक पूरा न होना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। ईडी ने आधी जांच करके आनन्द चैहान के संद्धर्भ में तो उसे गिरफ्रतार करके चालान भी ट्रायल कोर्ट में पहुंचा दिया है लेकिन सब जानते हैं कि इसमें आनन्द ही अन्तिम लाभार्थी नही है। आनन्द को जमानत न मिल पाने पर जन सहानुभूति उसके पक्ष में होती जा रही है। ईडी को अपनी शेष बची जांच को पूरा करने के लिये किसी अदालत से कोई रोक नही है। फिर ईडी में मनीलाॅंडरिंग के मामलों में जांच को जल्द से जल्द पूरा करवाने की जिम्मदारी तो जेटली के वित्त विभाग की है।
सीबीआई ने हिमाचल उच्च न्यायालय से मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करवाने में जो कदम उठाये थे उससे यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका को फजीहत से बचाने की टिप्पणी के साथ ट्रंासफर कर दिया था। फिर सीबीआई ने जब चालान की अनुमति के लिये आग्रह रखा तब दैनिक आधार पर इसकी सुनवाई हुई। लेकिन आज दो माह से अधिक समय से इसमें फैसला रिजर्व चल रहा है। इस रिजर्व फैसले को शीघ्र घोषित करवाने के लिये अब तक सीबीआई द्वारा कोई कदम ना उठाये जाने के कारण पूरा परिदृश्य बदलता नज़र आ रहा है। रिजर्व फैसला कितनी देर में घोषित हो जाना चाहिये इसको लंकर कानून में कुछ स्पष्ट नहीं है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इस संद्धर्भ में 1976 से लेकर अब तक कई बार दिशा निर्देश जारी कर चुका है। आर सी शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया, अनिल राय बनाम बिहार सरकार और बी. के. शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया मामलों में इस संद्धर्भ में निर्देश आ चुके हैं। जस्टिस गांगूली ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 60 दिनों के भीतर रिजर्व फैसला घोषित हो जाना चाहिये। यदि इस मामले में शीघ्र फैसला नहीं आता है और इसकी पुनः सुनवाई स्थिति आ जाती है तो भ्रष्टाचार को केन्द्रिय मुद्दा बनाने के भाजपा के सारे प्रयासों पर पानी फिर जायेगा और यह भाजपा के लिये सबसे ज्यादा नुकसानदेह होगा।

वीरभद्र के बाद आनन्द चौहान पर भी हुआ फैसला रिजर्व

शिमला/बलदेव शर्मा
सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति और ईडी में मनीलाॅंडरिंग का मामला झेल रहे वीरभद्र सिंह ने इस मामले में उनके खिलाफ दर्ज हुए एफआईआर को रद्द किये जाने के लिये जो याचिका उच्च न्यायालय में दायर की थी उस पर सुनवाई पूरी होने के बाद बीते दिसम्बर से दिल्ली उच्च न्यायालय में इस पर फैसला रिजर्व चल रहा है। स्मरणीय है कि जब सीबीआई ने अपनी जांच पूरी करके इस मामले में ट्रायल कोर्ट में चालान दायर करने के लिये उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी तब उच्च न्यायालय ने वीरभद्र की याचिका पर डे टू डे सुनवाई करके दिसम्बर में इस पर फैसला रिजर्व कर दिया था। दिसम्बर से लेकर अब तक यह फैसला रिजर्व चल रहा है। जिस सीबीआई ने इस मामले को हिमाचल उच्च न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करवाया और जांच पूरी करके चालान दायर करने की अनुमति मांगी वह इस संद्धर्भ में रिजर्व हुए फैसले की शीघ्र घोषणा के लिये क्या और कब कदम उठाती है और उच्च न्यायालय कब इस पर फैसला सुनाता है इसको लेकर अभी कोई तस्वीर साफ नहीं है। जबकि यही मामला जब ईडी में मनीलांॅडरिंग के संद्धर्भ में पहुंचा था तो ईडी ने इसमें मार्च 2016 में वीरभद्र परिवार की करीब आठ करोड़ की संपत्ति की भी अटैचमैन्ट कर रखी है।
इसी आय से अधिक संपत्ति मामले में वीरभद्र के साथ उनके एलआईसी ऐजैन्ट रहे आनन्द चौहान भी सीबीआई और ईडी में सहअभियुक्त हैं। ईडी ने मनीलाॅंडरिंग के तहत अपनी जांच को आगे बढ़ाते हुए इसमें आनन्द चौहान को पिछले करीब आठ माह से गिरफ्तार कर रखा है। आनन्द चौहान अपनी जमानत के लिये कई बार ईडी के ट्रायलकोर्ट का दरवाजा खटखटा चूका है। ट्रायल कोर्ट से जमानत न मिलने के बाद आन्नद चौहान ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दी है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका पर 15 फरवरी को फैसला रिजर्व कर दिया है। दूसरी ओर आन्नद चौहान की गिरफ्तारी के बाद ईडी ने उसके संद्धर्भ में चालान भी कोर्ट में पेश कर दिया है। 27 फरवरी को ट्रायल कोर्ट में इसमें आरोप तय हो जाने की संभावना है। स्मरणीय है कि जब 23 मार्च 2016 को ईडी ने वीरभद्र परिवार की आठ करोड़ की संपत्ति अटैच करने का आदेश पारित किया था। उसमें स्पष्ट लिखा था कि इस मामले में आये वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के संद्धर्भ में अभी जांच चल रही है और उसे शीघ्र ही पूरा कर दिया जायेगा। इस मामले में जब आन्नद चौहान को लेकर चालान दायर किया था तो उसमें भी स्पष्ट कहा है कि इसमें शीघ्र ही अनुपूरक चालान दायर किया जायेगा।
अब इस मामले में ईडी अभी तक शेष बची जांच पूरी नही कर पायी है। आनन्द चौहान जेल में हैं और उसकी जमानत टलती जा रही है। उच्च न्यायालय में भी जमानत पर फैसला रिजर्व हो गया है। यदि 27 फरवरी को आनन्द के खिलाफ आरोप तय हो जाते हैं और तब तक उच्च न्यायालय का फैसला घोषित नही होता है तो पूरी स्थिति क्या र्टन लेगी इसको लेकर कानूनी हल्कोें में अलग-अलग राय है। क्योंकि वीरभद्र शुरू से ही इस मामले को सीबीआई और ईडी का मामला न मानकर आयकर का मामला करार दे रहे हैं। वीरभद्र के साथ इसमें सह अभियुक्त बने आनन्द चैहान का भी यही कहना है। इस संद्धर्भ में वीरभद्र सिह ने आयकर अपील ट्रिब्यूनल चण्डीगढ़ में वर्ष 2010-11 की आयकर रिर्टन पर विभाग के सीआईटी फैसले के खिलाफ जो अपील दायर की थी उसमें 08-12-2016 को फैसला आ चुका है। इसी में आन्नद चौहान ने भी वर्ष 2010-2011 और 2011-2012 की उनकी आयकर रिर्टनज पर विभाग के सीआईटी के फैसले को ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी। वीरभद्र और आनन्द चौहान की अपीलों पर एक साथ सुनवाई हुई और एक साथ फैसला आया है। दोनों की अपीलें खारिज हो गयी हैं। अपील ट्रिब्यूनल के 132 पन्ने के फैसले में पूरे मामले पर बरीकी से विचार करने के बाद कहा गया है। कि An overview of the above features indicates that the agricultural produce was not proved; transportation of the same to UAA was also not proved; bills issued by UAA were not genuine; cash received from UAA shown at Rs.1.00 crore did not appear in their books of account the expenses claimed were not backed by any vouchers/bills; and all the expenses were claimed to have been incurred on one single day and that too in cash. We fail to comprehend as to how the assessment order accepting the genuineness of carrying out the agricultural operations and earning a huge income in such circumstances can be considered as an order made after proper inquiry as has been canvassed by the assessee. It is a case of a patent non-application of mind by the AO to the facts, which were loudly calling for in-depth investigation. In our considered opinion, the Id. CTI was fully justified in settings aside the assessment order and directing the AO to frame a fresh assessment. 

The ID AR for this year has also assailed the impugned order by adopting the arguments on the legal propositions made in the case of Virbhadra Singh( HUF) namely, inadequate inquiry by the AO cannot empower the CIT to revise order; debatable issue; and CIT should have himself shown infirmity in the assessment order rather than sending the matter back to the AO. We have elaborately dealt with such issues in our order of Virbhadra Singh ( HUF) which mutatis mutandis apply to the assessee also.
In the result all the appeals are dismissed.  इस फैसले के बाद वीरभद्र द्वारा लिया जा रहा सारा आधार निरस्त हो जाता है। आयकर अपील ट्रिब्यूनल ने विभाग के ए.ओ. के खिलाफ भी काफी गंभीर टिप्पणीयां की हैं। ऐसे में ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद सीबीआई और ईडी इस प्रकरण में कैसे आगे बढ़ते हैं? इस फैसले के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला वीरभद्र की एफआईआर रद्द किये जानेे की याचिका और आनन्द चौहान की जामनत याचिका पर क्या फैसला आता है। इस पर सबकी निगाहें लगी हैं।

 

रामदेव प्रकरण में वीरभद्र का यू टर्न क्यों?

शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सिंह ने शासनकाल के अन्तिम वर्ष में योग गुरू रामदेव के भूमि प्रकरण में यू-ट्रन लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कांे में एक चर्चा को जन्म दिया है जिसका प्रभाव दूरगामी होगा। क्योंकि 2012 के चुनावों से पूर्व जब वीरभद्र ने प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला था उस समय धमूल शासन के खिलाफ एक ही बड़ा आरोप ‘हिमाचल आॅन सेल’ का लगाया गया था। आरोप था कि हिमाचल गैर हिमाचलीयों को बेचा जा रहा है क्योंकि प्रदेश के भू- सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत गैर हिमाचली और गैर कृषक प्रदेश में सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जमीन नहीं खरीद सकते। इस अधिनियम के तहत बने नियम 38 -। के मुताबिक गैर कृषक और गैर हिमाचली सरकार की अुनमति के साथ भी आवास के लिये 500 वर्ग मीटर और दूकान/उद्योग आदि के लिये 300 वर्ग मीटर से अधिक की, खरीद नही कर सकते। इस अधिनियम में 1988 और 1994 में हुए संशोधन में भी नियम 38-। में कोई बदलाव नही लाया गया था। इससे अधिक जमीन केवल जनहित में ही खरीदी जा सकती है अन्यथा नही। धूमल शासन में बाबा रामदेव के ट्रस्ट पतंाजलि योगपीठ के नाम पर सोलन के कल्होग में 96.2 बीघा जमीन खरीद की अनुमति दी गयी थी। लेकिन इस अनुमति के तहत 17,81,214 रूपये मंे जो 96.2 बीघा जमीन खरीदी गयी वह राजस्व दस्तावेजों के अनुसार आचार्य बाल कृष्ण के नाम है न कि पतंाजलि योगपीठ के।क्योंकि इसमें बालकृष्ण खरीददार हैं और उनका पता पतंाजलि योगपीठ है यदि खरीददार पतांजलि योगपीठ होता तो उसमें बालकृष्ण का नाम पतांजलि योगपीठ द्वारा बालकृष्ण आना चाहिये था जो कि ऐसा है नही। शैल ने 6 जून 2011 के अंक में दस्तावेजों सहित यह प्रकरण पाठकों के सामने रखा था।
वीरभद्र सरकार ने इसी आधार पर 2013 में इस खरीद को रद्द किया और फिर संबधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज किया गया जो कि अभी तक लंबित है। पतांजलि योगपीठ ने सरकार द्वारा इस खरीद को रद्द किये जाने को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। यह मामला भी उच्च न्यायालय में लंबित है यह पूरा मामला इसी स्थिति में बना हुआ है। ऐसे में अचानक वीरभद्र द्वारा इस मामले में यू टर्न लेना स्वाभाविक रूप से सवाल खडे़ करेगा ही। इस मामले में सरकार के दो मन्त्रिायों ने भी यू टर्न लिये जाने का विरोध किया है। क्योंकि इस यू टर्न से यह स्थापित होता है कि वीरभद्र सरकार ने धूमल शासन में घटे जिन भी मामलों में कारवाई की है वह सब राजनीति से प्रेरित रही हैं। वीरभद्र सरकार बदले की भावना से कार्य करती रही है। वीरभद्र सरकार हिमाचल आॅन सेल के एक भी आरोप को अब तक प्रमाणित नही कर पायी है ऐसे में शासन काल के इस अन्तिम वर्ष में इस तरह का यू टर्न लेना आने वाले चुनावों में कांग्रेस की सेहत के लिये किसी भी गणित से लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता है। यह तय है। क्योंकि वीरभद्र सरकार जब यह जमीन रामदेव को वापिस देने के लिये तैयार हो गई है उसने मन्त्रिमण्डल की बैठक में इस आश्य का फैसला ले लिया है तो इसका अर्थ होता है कि धूमल शासन ने इसमें कुछ भी गलत नही किया था। क्यांेकि हर्बल गार्डन की स्थापना को जनहित करार दिया जा सकता है। फिर जिन अधिकारियों के खिलाफ इस संद्धर्भ में मामला दर्ज किया गया है अब वह सरकार के खिलाफ प्रताड़ना और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर सकते हैं। जिन अधिकारियों ने इस खरीद को रद्द करने की संस्तुति की है उनके खिलाफ भी ट्रस्ट के उत्पीड़न का मामला बनता है। वीरभद्र के इस यू-टर्न से यह सारे पक्ष जुड़े हुए हैं।
अब यह सवाल उठता है कि जब इस फैसले से जुड़े अधिकारियों के खिलाफ मामला बन सकता है और कांग्रेस को भी चुनावों में इससे कोई लाभ नही मिलेगा तो फिर वीरभद्र ने इन सारे तथ्यों को नजर अन्दाज करके ऐसा फैसला क्यों लिया जिसमें कुछ मन्त्री भी सहमत नही रहे हांे। क्या इसमें सबसे हटकर वीरभद्र का कोई और बड़ा हित छिपा है। सचिवालय के गलियारों में फैली चर्चा के अनुसार इस यू ट्रन के लिये वीरभद्र के खिलाफ चल रहे सीबीआई, ईडी और आयकर के मामलों को आधार बनाया गया है। चर्चा है कि पिछले दिनों प्रदेश के पुलिस प्रमुख को बदलने और उनके स्थान पर नये व्यक्ति को लाने का जो ताना बाना बुना गया था उसमें यह परोसा गया था कि नया व्यक्ति बाबा रामदेव के निकट है और उसकी निकटता का लाभ उठाकर उसके माध्यम से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचा जा सकता है। चर्चा है कि इसमें ऐसे पत्राकारों ने भी भूमिका अदा की है जो कि राजभवन के भी निकट हैं। संयोगवश जब पुलिस प्रमुख को बदलने की चर्चा उठी उसी दौरान बाबा रामदेव के प्रसंग मंे भी कारवाई शुरू हुई जो कि मन्त्रिमण्डल के फैसले तक पहुंच गयी। अब रामदेव के मामले में तो सरकार अन्तिम बिन्दु तक पहुंच गयी है। यदि अब सरकार इससे पीछे हटना चाहे तो भी नहीं हट पायेगी। क्योंकि सरकार के फैसले का रामदेव को अदालत में लाभ मिल जायेगा। लेकिन क्या इस सारी यू टर्न से वीरभद्र का नरेन्द्र मोदी से मिलना संभव हो पायेगा? जिस स्टेज पर वीरभद्र के मामले पहुंच चुके हंै वहां क्या इन मामलों को अब खत्म किया जा सकेगा।

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