शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सिंह और उनके आश्रितों टीम लगातार दावे करती आ रही है कि कांग्रेस पुनः सत्तासीन होगी और वीरभद्र सिंह सातवीं बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री बनेगे। राजनीति में ऐसे दावे किये जाना कोई नयी बात नही है। हर सत्तासीन पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व ऐसे दावे करता ही है। जो दल और उसका नेतृत्व सही मायनों में जनता के लिये काम करता है उस पर जनता भरोसा भी करती है। उसकी सत्ता में वापसी भी सुनिश्चित करती है। देश के कई राज्य इसके गवाह पहली ही बर्फबारी में चरमरायी सारी व्यवस्थाएं सरकार और प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठे सवाल पहली ही बर्फबारी में चरमरायी सारी व्यवस्थाएं सरकार और प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठे सवाल है । लेकिन हिमाचल में डा. परमार के बाद कोई भी मुख्यमन्त्री लगातार दो बार सत्ता में नही रह पाया है जबकि हर बार दावे सत्ता में वापसी के किये जाते रहे हंै। सत्ता में वापसी सरकार का काम और उसके नेतृत्व की छवि सुनिश्चित करती है। उसका प्रशासन जन समस्याओं के प्रति कितना संवेदनशील और जवाबदेह होकर काम करता है सत्ता की वापसी का सबसे बड़ा मानक प्रमाणित होता है। लेकिन इस बार राजधानी शिमला में ही जिस तरह से पहली ही बर्फबारी में सारी आवश्यक सेवाएं और व्यवस्थाएं चरमरा गयी उससे न केवल कांग्रेस पार्टी और स्वंय वीरभद्र सिंह के दावों का खोखलापन सामने आया है बल्कि सरकार और नेतृत्व की नीयत तक पर सवाल उठ खडे़ हुए है।
शिमला प्रदेश की राजधानी है और बर्फबारी का जाना माना क्षेत्र है। यहां की बर्फबारी पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केन्द्र रहती है। शिमला सौंदर्यकरण पर एशियन विकास बैंक से 259 करोड़ का कर्ज लेकर खर्च किया जा रहा है। सौंदर्यकरण के नाम पर किये जा रहे विभिन्न कार्यो के लिये नियुक्त कन्सलटैन्टस पर ही 31.3.15 तक करीब 21 करोड़ खर्च किया जा चुका है। शहर को स्मार्टे सिटी बनाने के लिये पूरा अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन आज तक हमारे यह विशेषज्ञ सलाहकार और सरकार का पूरा तन्त्र यह नही सोच पाया है कि शहर में बिजली, पानी और टेलीफोन जैसी आवश्यक सेवाओं की लाईनों को अन्डर ग्राऊंड किया जाना चाहिये। हर बरसात और बर्फबारी में पेड़ टुटते और गिरते हंै तथा इन लाईनों पर गिरते है। लेकिन आज तक इसके स्थायी समाधान का रास्ता नही निकाला गया है।
इस बार की बर्फवारी में राजधानी समेत पूरे प्रदेश में हाहाकार मच गया। राजधानी के अस्पतालों तक में बिजली गुल रही। बिजली न होने से पानी की सप्लाई बाधित रही। पहली बार है कि शहर में बर्फवारी के कारण करीब एक दर्जन मौतें हो गयी। नगर निगम प्रशासन ने कुछ आवश्यक रास्ते तो साफ कर दिये लेकिन उसके पास नियमित लेवर कम होने से सभी जगह के रास्ते तो साफ नही हो पाये। यदि एसपी शिमला ने शहर में आने वाले पर्यटकों की गाड़ियांें को बैरियर पर ही रैगुलेट न किया होता तो भारी जानमाल का नुकसान हो सकता था। बिजली और पानी न होने से मालरोड़ तक के रेस्तरां बन्द रहे। बिजली ने होने से बैंको में ट्रांजैक्शन तक नही हो पाये। ग्राहकों को न तो बैंको से और न ही एटीएम से पैसा मिल पाया। पूरा शहर भयानक अव्यवस्था का शिकार हो गया था। भराड़ी क्षेत्र में बिजली की मेन लाईन गिरने से आस-पास आग लगने तक का खतरा हो गया था। इतनी जोर की स्पार्किंग हुई की लोग घरों से बाहर निकल आये। लोगों के जानमाल को खतरा हो गया था। जब बिजली बोर्ड के जूनियर इंजिनियर को इसकी सूचना देकर मेन लाईन आॅफ करने को कहा गया तो उसका जवाब था कि ऐसा करने के उसको आदेश नही है। जेई के जवाब से स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी। लेकिन बोर्ड प्रशासन उस वक्त पूरी तरह हरकत में आया जब इसकी शिकायत विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत अधिकारी ठाकुर ने हाॅलीलाज तक पहुंचा दी। इस शिकायत के बाद नालागढ़ से रातों रात लेवर मंगवाकर तीसरे दिन लाईन को सुचारू किया जा सका है। शहर में सड़को पर गिरे पेडो को काटने और उठाने के लिये भी पर्याप्त नियमित लेवर नही थी। सारी आवश्यक सेवाओं को नियमित करने के लिये ठेकेदारों के माध्यम से लेवर का प्रबन्ध संबधित विभागों को करना पडा है।
इस बर्फबारी से शीर्ष प्रशासन की असफलता ख्ुालकर सामने आयी है क्योंकि किसी भी संबधित विभाग के पास नियमित रूप से वांच्छित लेवर है ही नही। संबधित विभागों की भूमिका सिर्फ ठेकेदारों का प्रबन्ध करने या सारी सेवाओं को आऊट सोर्स करने तक की रह गयी है इस बर्फबारी से यह झलका है कि शायद सारी सरकार ही आऊट सोर्स और ठेकेदारी के माध्यम से चल रही है क्योंकि जब प्रदेश की राजधानी में ही सामान्य जीवन ठप्प हो गया था उस समय राज्य के सचिवालय से अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर तक के लगभग सारे अधिकारी नदारद थे और प्रशासन को पूछने के लिये कोई मन्त्री तक अपने कार्यालयों में मौजूद नहीं था। बिजली मन्त्री इस पूरी त्रासदी में कहीं नजर नही आये। बल्कि मुख्यमन्त्री ने भीे एक ही दिन अपनी चिन्ता जताई और उसके बाद वह भी सचिवालय से बाहर ही रहे। इस बर्फबारी में जो कुछ अनुभव यहां रहने वालों का रहा है उसका परिणाम सरकार को नगर निगम चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में भुगतना पड़ सकता है।
शिमला/बलदेव शर्मा
कांग्रेस पार्टी ने 2012 के चुनावों के दौरान जो घोषणा पत्र जारी किया था उसमें प्रदेश के बेरोजगार युवाओं को नियमित रूप से प्रतिमाह एक हजार रूपये का बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया गया था। यह वायदा इसलिये किया गया था क्योंकि उस दौरान धूमल के शासनकाल में कांग्रेस नेता परिवहन मन्त्री जी एसबाली ने बेरोजगार युवाओं को लेकर एक यात्रा आयोजित की थी बाली कांग्रेस का घोषणा पत्र बनाने वाली कमेटी के भी सदस्य थे। इसलिये कांग्रेस ने इसको अपने चुनाव घोषणा पत्र में शामिल कर लिया। लेकिन सत्ता में आने के बाद वीरभद्र सरकार इस वायदे से पीछे हट गयी क्योंकि सरकार की वित्तिय स्थिति इसका भार सहन करने की स्थिति मे नही है। लेकिन जब वीरभद्र सातवीं बार मुख्यमन्त्री देखने के ब्यान आने लगे और यह दावा किया जाने लगा कि सरकार ने घोषणा पत्र के सारे वायदे पूरे कर लिये है तब विपक्ष ने इस अहम मुद्दे को पकड़ लिया। विपक्ष द्वारा मुद्दा उठाये जाने पर बेरोजगारी भत्ते की पैरवी करने वालेे भी निशाने पर आ गये। इस स्थिति को समझते हुए बाली स्वयं ही इस मुद्दे पर मुखर हो गये और इस वायदे को पूरा करने की सरकार से मांग कर दी। वरिष्ठ मन्त्री का बेरोजगारी भत्ते पर मुखर होना अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया इससे विपक्ष ज्यादा हमलावर हो गया। अब विपक्ष और बाली को एक साथ जवाब देने के लिये मुख्यमन्त्री को स्वयं पत्रकार सम्मेलन संबोधित करना पड़ा।
बेरोजगारी भत्ते का कितना बड़ा मुद्दा बनेगा यह इसी से प्रमाणित हो जाता है कि मुख्यमन्त्री को स्वयं इसका जवाब देने की नौबत आ गयी। लेकिन क्या मुख्यमन्त्री इसका कारगर जबाव दे पाये है। क्योंकि मुख्यमन्त्री द्वारा पेश किये गये आकंडा़े और तथ्यों पर नेता प्रतिपक्ष ने इस श्वेत पत्र जारी करने की मांग कर दी है। इस मुद्दे को समझने के लिये कुछ तथ्यों पर नजर डालना आवश्यक है। मुख्यमन्त्री ने पत्रकार वार्ता में कहा है कि उनकी सरकार ने बेरोजगारी भत्ते का विकल्प कौशल विकास भत्ता बनाया है और इसके तहत 1.52 लाख युवाओं को यह भत्ता दिया जा चुका है। अब सरकार ने इसके लिये कौशल विकास निगम की स्थापना की गयी है और इसके तहत जो एमओयू साईन किये गये है उनके मुताबिक 65 हजार युवाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जायेगा और यह प्रशिक्षण देने वाली कंपनीयां ही इन युवाओं की नौकरी सुनिश्चित करेंगाी। इसके अतिरिक्त मुख्यमन्त्री ने यह भी दावा किया कि सरकार कौशल विकास के अतिरिक्त भी 40 हजार लोगों को नौकरी दे चुकी है। कौशल विकास के लिये सरकार ने प्रतिवर्ष 100 करोड़ का बजट प्रावधान रखा है। यह भी दावा किया गया है।
इन दावों की पड़ताल करने के लिये यह जानना आवश्यक है कि प्रदेश में बेरोजगारों का आंकड़ा कितना है। सरकार के वर्ष 2015.16 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 1.4.2015 से 31.12.2015 तक प्रदेश में 1,46,741 लोगों का बतौर बेरोजगार पंजीकरण हुआ है और कुल बेरोजगारों का कुल आंकड़ा 8,08,767 है। इस अवधि में 2542 रिक्तियां अधिसूचित हुई है और इस अवधि में सरकार में 262 और निजी क्षेत्र में 2607 लोगों का ही नियोजन हो सका है। विभिन्न वर्षो के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार हर वर्ष एक लाख से अधिक बेरोजगार अपना पंजीकरण करवाते आ रहे है और नियोजन के आंकडे भी इसी तरह के रहे है। सरकार ने कौशल विकास योजना मई 2013 से शुरू की है और 31.12.15 तक 68.93 कौशल विकास भत्ते के रूप में 1,07,8 87 लोगों को दिये जा चुके है। सौ करोड़ के प्रतिवर्ष के प्रावधान के मुताबिक 300 करोड़ में से केवल 68.93 करोड़ बेरोजगार युवाओं तक पहुंचे है शेष सारा पैसा क्या स्थापना के खर्चे पर खर्च हुआ है। मई 2013 में मुख्यमन्त्री के अनुसार 500 करोड़ से कौशल विकास येाजना शुरू की गयी थी और अब एशियन विकास बैंक से इसके लिये 640 करोड़ की ऋण सहायता ली गयी है। लेकिन कौशल विकास भत्ते के रूप में बेरोजगार युवाओं को तो केवल करीब 69 करोड़ ही मिले है क्या शेष पैसा कौशल विकास का प्रशिक्षण देने वाली कंपनीयों के खाते में गया है? यह सवाल इसलिये उठा रहा है कि जब शुरू में श्रम रोजगार निदेशालय ने प्रशिक्षण के लिये कंपनीयों को चिहिन्त किया गया था उस समय निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कुछ कंपनीयों के करोडो के बिलों की प्रमाणिकता पर गंभीर सवाल उठाये थे जिनका आज तक कोई जवाब नही आया है। लेकिन दूसरी ओर बेरोजगार युवाओं के साथ तो नियमित रूप से बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया था। परन्तु कौशल विकास मे तो सीमित समस तक ही यह भत्ता दिया जायेगा। फिर कौशल विकास प्रशिक्षण के बाद कितने युवाओं को वास्तव में ही व्यवहारिक तौर पर इसका लाभ मिला है इसका कोई फीड बैक लेने का प्रावधान नही किया गया है। क्योंकि प्रदेश के कई स्कूलों में व्यवसायिक कोर्स शुरू किये गये है। क्योंकि ऐसी एक योजना है। जिस पर अमल किया जा रहा है परन्तु आज तक इन कोर्सो का कोई फीड बैक नही लिया गया है और आज कौशल विकस येाजना का विस्तार करके इसे आईटीआई और पालिटेक्निक के सभी ट्रेडों और नर्सिंग तथा होटल प्रबन्धन तक फैलाकर इसके लिये विश्वविद्यालय की स्थापना करने तक ले जाया जा रहा है। कौशल विकास येाजना केन्द्र सरकार ने भी शुरू कर रखी है राज्य सरकारें उसी योजना को आगे बढ़ा रही है। लेकिन जहां प्रदेश में हर वर्ष एक लाख से अधिक बेरोजगार युवा रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण करवा रहे है उससे रोजगार उपलब्ध करवाने के सरकार के सारे दावों तथा नीयत और नीति पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते है।
शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होन पर जहां सरकार ने इस अवसर पर धर्मशाला में अपनीे उपलब्धियों का ब्योरा प्रदेश की जनता के सामने रखा है वहीं शिमला में भाजपा ने इन चार वर्षों में हुए भ्रष्टाचार को एक आरोप पत्र के माध्यम से राज्यपाल के संज्ञान में लाकर इस पर जांच की मांग की है। सरकार का मुख्य दायित्व होता है जनता के विकास के लिये काम करना, उनके जानमाल की रक्षा करना और कानून एवम व्यवस्था बनाये रखना। लोकतन्त्रिक व्यवस्था में सरकार का यह सवैंधानिक दायित्व होता है। अपना दायित्व निभाकर सरकार लोगों पर कोई मेहरबानी नही करती इसलिये सरकार द्वारा किये गये कार्यों को सरकार की उपलब्धि कहना सही नही है। इसी तरह विपक्ष का दायित्व रहता है कि सरकार के हर काम पर बारीक नजर रखे और किसी भी काम में कोई भ्रष्टाचार न होने दे। जहां भी भ्रष्टाचार सामने आये उस पर कड़ी कारवाई सुनिश्चित करवाये किसी भी सरकार ओर उसके विपक्ष का आकलन इन्ही मानकों पर होता है।
सरकार की उपलब्धियां कितनी सही मायनों में जमीन पर है और कितनी केवल कागजों पर ही हैं इसकी प्रत्यक्ष जानकारी जनता को अपने आस - पास हुए विकास से मिल जायेगी। जनता को सरकार की येाजनाओं का प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष लाभ कितना मिला है इसकी भी उसे सीधी जानकारी मिल जाती है क्योंकि वही इनकी मुक्त भोगी होती है। लेकिन इस सबको अमलीशक्ल देते हुए किस स्तर पर कितना घपला-घोटाला हुआ है इसकी उसे कोई सीधी जानकारी नहीं रहती है। इसके लिये वह मीडिया और विपक्ष पर निर्भर करता है क्योंकि इन्ही दो से यह अपेक्षा रहती है कि वह सरकार के कामकाज पर नज़र रखते हुए उसे भ्रष्टाचार करने सेे रोके और उसकी जानकारी जनता के सामने रखे।
प्रदेश भाजपा ने वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्र राज्यपाल को सौंप कर अपनी जिम्मेदारी का पक्ष निभाया है। सरकार में फैले भ्रष्टाचार को जनता की अदालत में लाकर रख दिया है। लेकिन क्या भाजपा की बतौर विपक्ष जिम्मेदारी इसी से पूरी हो जाती है। सरकार के चार वर्ष के कार्यकाल में भाजपा का यह तीसरा आरोप पत्र है। इस कार्यकाल से पहले भी जब भी भाजपा विपक्ष में रही है वह सरकार के खिलाफ आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपती रही है। ठीक इसी तरह कांग्रेस ने भी हर बार विपक्ष में आने पर सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपने की रस्म पूरी ईमानदारी से अदा की है। लेकिन दोनों ही पार्टियों ने सत्ता में आने पर अपने ही सौंपे हुए आरोप पत्रों पर कभी कोई कारवाई नही की है। इन राजनीतिक दलों के इस आचरण से जनता का विश्वास टूटा है। जनता की नजर में भ्रष्टाचार के इस हमाम में यह सब बराबर के नंगे है। यह आरोप पत्र भ्रष्टाचार को मुद्दा बनानेे की भूमिका तो अदा करते है और सरकार बदलने का कारण बनते हैं। लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी अपनेे स्थान पर यथास्थिति बने रहते हैं। बल्कि भ्रष्टाचार पर जन चर्चा को रोकने के लिये आरोप लगाने वालों के खिलाफ मानहानि के दसवे दायर करने तक आ जाते हैं।
इस परिदृश्य में क्या भाजपा के इस आरोप पत्र का परिणाम भी यही रहेगा यह सवाल अहम है। हर आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपा जाता है। बल्कि कांग्रेस ने तो 2012 में महामहिम राष्ट्रपति को आरोप पत्र सौंपा था। लेकिन ऐसे आरोप पत्र सौंपने का कोई परिणाम नही आता है। क्योंकि राजभवन के से यह आरोप पत्र सरकार के सचिवालय को भेज दिये जाते हैं और आरोप पत्र सौंपने वाले खामोश होकर अपनी राजनीति में व्यस्त हो जाते हैं। राजभवन के पास ऐसे मामलों की जांच के लिये अपना कोई स्वतन्त्र तन्त्र नहीं होता और सरकार तथा उसकी विजिलैन्स इन पर कोई कारवाई करती नहीं है। जबकि विजिलैन्स इन आरोप पत्रों को सोर्स रिपोर्ट बनाकर इन पर कारवाई करने के लिये अधिकृत है। जो आरोप पत्र भाजपा ने सौंपा है उसमें बहुत
संगीन आरोप है। संभवतः इसी संगीनता को सुंघते हुए मुख्यमन्त्री ने इन आरोपों पर मानहानि का दावा दायर करने की धमकी भी दी है। मुख्यमन्त्री की धमकी के परिदृश्य में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि भाजपा की आरोप पत्र कमेटी इस आरोप पत्र के साथ अपना एक शपथ पत्र लगाकर इसे प्रदेश के लोकायुक्त को सौंपे। लोकायुक्त के अतिरिक्त दूसरा विकल्प इन आरोपों पर धारा 156(3) के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाकर इन पर सीधे एफआईआर दर्ज करवाने का रास्ता अपनाये। यदि ऐसा नही होता है तो स्पष्ट हो जायेगा कि भाजपा भ्रष्टाचार के खिलाफ कतई गंभीर नही है बल्कि इसके माध्यम से केवल राजनीति करना चाहती है।
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