Friday, 19 September 2025
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सीबीआई ने विजिलैन्स को सौंपी पर्यटन में दस करोड़ घपले की शिकायत

शिमला/शैल। प्रदेश पर्यटन निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल एक लम्बे अरसे से निगम में करोडों के केन्द्रिय धन के दुरूपयोग और उसमें घपला होने के आरोप लगाते आ रहे हैं। यह आरोप लगाने की उन्होने बड़ी कीमत भी चुकायी है लेकिन निगम में फैले भ्रष्टाचार को बेनकाव करने के मुद्दे से पीछे नही हटे हैं। गोयल ने जो भी आरोप लगाये हैं उनके साथ आरटीआई के माध्यम से जुटाये दस्तवेजी प्रमाण भी साथ लगाये हैं। इन आरोपों को लेकर 2002 में प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। इस याचिका पर 13.3.2003 को फैसला आया था जिसमें निगम को कुछ निर्देश भी जारी हुए थे। गोयल का आरोप है कि उच्च न्यायालय के निर्देशों की भी अनुपालना नही की गयी है। गोयल के आरोपों पर निगम के निदेशक मण्डल और मुख्यमंत्री द्वारा भी कोई कारवाई न किये जाने के बाद ही उसने 20 मई 2016 को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, राज्यपाल, शांता कुमार, आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह और राजन सुशांत के नाम शिकायत भेजी। इस शिकायत पर क्या कारवाई हुई है इसकी जानकारी भी आरटीआई के माध्यम से मांगी गयी है। 20 मई को भेजी शिकायत के बाद गोयल ने सितम्बर में कुछ और तथ्यों के साथ एक और शिकायत राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायधीश, प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्यन्यायधीश केन्द्रिय वित्त मंत्री, केन्द्र के केबिनेट सैक्रेटरी, सीएजी निदेशक सीबीआई और केन्द्रिय वित्त मंत्री केन्द्रिय पर्यटन सचिव को भेजी है। अब यह शिकायत सीबीआई ने प्रदेश विजिलैन्स को भेज दी है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्रिय पर्यटन मन्त्रालय में भी इन आरापों को लेकर एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गयी है।






गोयल के आरोपों के मुताबिक 2001 से 2002 के बीच प्रबन्धन निदेशक ने होटल पीटरहाॅफ में अपने मेहमानों को ठहराया जिनका खर्च निगम ने उठाया। इसी दौरान पर्यटन निगम ने कर्मचारियों का सी पी एफ जमा नही करवाया और उसके लिये निगम को 72 लाख का जुर्माना भरना पडा है। केन्द्र की सहयता से खड़ा पत्थर के होटल गिरी गंगा प्रौजैक्ट को 31 .12.2001 को 39.30 लाख में पूरा होकर इस्तेमाल में भी आ चुका होना दिखा दिया गया। जबकि जब 24.10.2005 को निगम के निदेशक मण्डल की वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रौजैक्ट को पूरा करने के निर्देश दिये जाते हैं। अन्त में 25.6.2006 को इसी प्रौजैक्ट को 1,38,84,076 रूपये में पूरा हुआ दिखाया जाता है। इन आंकडों से प्रबन्धन की नीयत और नीति का खुलासा हो जाता है। जो प्रौजैक्ट 31.12.2001 को 39.30 में पूरा हुआ दिखाया जाता है वह 2006 में एक करोड़ से भी अधिक को पहुंच जाता है जिस पर क्यांे और कैसे के सवाल उठना स्वाभाविक है। गोयल ने मार्च 2003 के उच्च न्यायालय के फैसले के निर्देशों पर अमल न होने पर अवमानना याचिका दायर की थी। इस पर तत्कालीन सचिव पर्यटन अशोक ठाकुर ने अदालत में दायर जवाब में छः करोड तय कार्यो से अनयत्र खर्च होना स्वीकार किया है। सुंगरी प्रौजेक्ट को लेकर भी गंभीर आरोप लगाये गये हैं। इस प्रौजैक्ट के लिये 26396 को भारत सरकार से 46,11,600 रूपये स्वीकृति होने हैं तीन लाख प्रदेश सरकार देती है 31.12.2009 को भारत सरकार को भेजे प्रमाण पत्रों में यह प्रौजेक्ट पूरा हो जाता है। लेकिन 2006 में जब मुख्यमंत्री यहां आते हैं तो इसे अधूरा पाते हैं। इसे पूरा करने के लिये इसको लोक निमार्ण को देने की बात करते हैं। इन निेर्देशों पर लोक निमार्ण विभाग पर्यटन से मिल कर इसकी प्रक्रिया पूरी करते हैं और लोक निमार्ण विभाग इसको पूरा करने के लिये 76 लाख का अनुमान देते है।
इस तरह पर्यटन में जितने भी प्रौजेक्टों के लिये केन्द्र से पैसा आता है उसे प्राप्त करने के लिये उपयोगिता प्रमाण पत्र और कमीशनिंग तक के सर्टीफिकेट भेज दिये जाते हैं और इनके आधार पर केन्द्र से सहायता की अन्तिम किश्त भी प्राप्त कर ली जाती है। लेकिन बाद में यह सारे प्रौजेक्ट अधूरे पाये जाते हैं। और इनकी लागत कई गुणा बढ़ जाती है। इससे केन्द्र को भेजे गयेे सारे प्रमाण पत्रों की प्रमाणिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। यह प्रश्न चिन्ह लगाना केन्द्र के धन का सीधा दुरूपयोग बन जाता है। गोयल के मुताबिक पर्यटन में केन्द्र के करीब दस करोड़ के दुरूपयोग के दस्तावेजी प्रमाण उन्होने शिकायतों के साथ भेजे हैं। केन्द्र के धन के इस तरह के दुरूपयोग का कड़ा संज्ञान लेते हुए सीबीआई ने इसकी जांच विजिलैन्स को भेजी है। अब वीरभद्र की विजिलैन्स गोयल की इन शिकायतों पर कितनी और क्या कारवाई करती है। इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है क्योंकि पर्यटन मन्त्री मुख्यमन्त्री स्वयं है और मुख्यसचिव ही पर्यटन सविच भी हैं। गोयल ने दावा किया है कि इन शिकायतों को ठीक अंजाम तक पहुंचाने के लिये वह हर लड़ाई लड़ने के लिय तैयार हैं। इस संद्धर्भ में उसने सभी संवंद्ध अदारों से आरटीआई के तहत उसकी शिकायतों पर हुई कारवाई की जानकारी भी मांग रखी है। जिन अधिकारियों के खिलाफ गोयल की शिकायतें है वह सब मुख्यमंत्री के अतिविश्वस्तों में गिने जाते हैं। मामला केन्द्र के धन का है। जिसके लिये अधिकारियों पर झूठे उपयोगिता प्रमाण पत्र सौपने का आरोप है।

मोदी ने मांगा 72 हजार करोड़ का हिसाब

शिमला/शैल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रदेश की तीन जलवि़द्युत परियोजनाओं के लोकार्पण अवसर पर आयोजित रैली एक सफल रैली रही है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है। यह रैली प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का सफल संकेत मानी जा सकती है। क्योंकि इस रैली मे प्रधानमंत्री ने जो बुनियादी सवाल उछाले हैं वह आने वाले दिनों में निश्चित रूप से बहस का मुद्दा बनेगे? प्रधानमंत्री ने प्रदेश की जनता को बताया कि केन्द्र ने 15वें वित्तायोग की सिफारिशों के बाद हिमाचल को 72 हजार करोड़ रूपेय का आवंटन किया है। जबकि 14 वें वित्तायोग के तहत यह राशी केवल 21 हजार करोड़ थी। 14वां वित्त आयोग यूपीए सरकार के समय आया था और 15वां अब भाजपा सरकार के दौरान आया है। कांग्रेस के मुकाबले तीन गुणा से भी ज्यादा आंवटन प्रदेश को मिला है। मोदी ने स्पष्ट कहा है कि केन्द्र और प्रदेश की जनता राज्य सरकार से इस पैसे के खर्च का हिसाब मांगेगी। राज्य सरकार का खर्च कितना तर्क संगत होता है? उसमें कितनी फज़ूल खर्ची होती है? इन सवालों पर कभी बहस नही हुई है। क्योंकि जनता को इस तरह के तथ्यों की कभी सीधी जानकारी होती ही नहीं है। यह पहली बार है कि देश के प्रधान मंत्री ने जनता के सामने इतना बड़ा आंकड़ा रखा है। इस आंकड़े को झुठलाना या इस पर कोई और किन्तु/परन्तु उठाना राज्य सरकार के लिये संभव नही होगा।
केन्द्र ने राज्य को 61 राष्ट्रीय उच्च मार्ग दिये हैं इन उच्च मार्गों पर कार्य शुरू हो इसके लिये समय पर इनकी डीपीआर बनकर केन्द्र के पास पहुचनीं चाहिये। डीपीआर राज्य सरकार को बनानी है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पिछले दिनों यह कहा हैं कि डीपीआरज बनाने के लिये उन्हे पैसा नही दिया गया हैं अब मुख्यमंत्री का यह तर्क प्रधान मन्त्री के 72 हजार करोड़ के आंकड़े के नीचे इस कदर दब जायेगा कि
इससे उभरना राज्य सरकार के लिये संभव नहीं हि पायेगा क्योंकि प्रधानमन्त्री ने अपने संबोधन में जहां पूर्व मुख्यमन्त्रीयों शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को विकास का पर्याय बताया वहीं वर वीरभद्र को नाम लिये बगैर ही भ्रष्टाचार का पर्याय करार दिया। प्रधान मन्त्री के इस संकेत से यह भी संदेश उभरता है कि केन्द्र के खिलाफ चल रही जांच के प्रति पूरी तरह गभीर है और सही समय पर उसके परिणाम सामने आयेंगें आज राज्य सरकार का कर्जभार लगातार बढ़ता जा रहा है। इस समय बहुत सारे विकास के कार्य पैसों के अभाव में बन्द हो चुके है। मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र में ठेकेदारों की पैमेन्टस रूकने के कारण ठेकेदारों ने काम बन्द कर दिये है। प्रदेश के पेयजल योजनाओं के लिये आये हजारों करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर न जाने के कारण केन्द्र ने इन योजनाओं के लिये अगले भुगतान के लिये शर्ते कड़ी कर दी है। पर्यटन में फर्जी उपयोगिता पर जांच प्रमाण पत्र सौंपे जाने को लेकर शिकायते केन्द्र के पास पहुंच चुकी हैं और इन शिकायतों पर जांच को रोक पाना संभव नही होगा क्योंकि आर टी आई के तहत इन शिकायतों पर हुई कारवाई की जानकारी भी मांग ली गयी है।

कैग रिपोर्टो में सरकार के खर्चो को लेकर एक लम्बे समय से सवाल उठते रहे हैं लेकिन यह सवाल कभी बहस का मुद्दा नही बन पाये है। आज प्रधान मन्त्री द्वारा एक खुले मंच से 72 हजार करोड़ के आंकड़े की जानकारी आम आदमी के बीच आने से स्वाभाविक रूप से इस पर बहस उठेगी ही। क्योंकि यह आम आदमी का पैसा है और उसे यह हक हासिल है कि वह इस खर्च का हिसाब मांगे। प्रधानमंत्री ने जनता से स्पष्ट कहा है कि वह इस खर्च का सरकार से हिसाब मांगे। मोदी के इस आंकडे़ के हथौड़े से राज्य सरकार का बचना अंसभव है।

क्या वीरभद्र के मांग पत्र का परिणाम है 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा जाना

शिमला। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच के लिये पूर्व मुख्य मन्त्री प्रेम कुमार धूमल, उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर तथा मोदी के वित्त मंत्री अरूण जेटली को लगातार कोसते आ रहे हैं। ऐसे में जब मोदी तीन जल विद्युत परियोजनाओं के लोकार्पण के लिये प्रदेश में आये तो यह स्वाभाविक था कि वह वीरभद्र के प्रति अक्रामकता अपनाते और उनके भ्रष्टाचार को एक बार फिर जनता के बीच उछालते। क्योंकि भाजपा के लिये चुनावी माहौल बनाने के लिये यह आवश्यक भी था और मोदी ने ऐसा किया भी। मोदी ने बिना नाम लिये वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर निशाना साधा और साथ ही राज्य सरकार से 72 हजार करोड़ का हिसाब भी मांग लिया लेकिन वीरभद्र-मोदी और प्रदेश भाजपा नेतृत्व की इस चाल को पहले ही भांप चुके थे। इसी लिये लोकार्पण के अवसर पर वह मोदी के साथ रहे और उन्हें एक लम्बा चैड़ा मांग पत्र भी थमा दिया। अब वीरभद्र का मांग पत्र और मोदी द्वारा 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा जाना दोनो बराबर के मुद्दे हैं। अब आने वाले दिनों में पता चलेगा कि इन मुद्दों को कौन कितना समझता और उछालता है। 

हिमाचल जैसे प्रदेश को 72 करोड़ केन्द्र द्वारा दिया जाना एक बहुत बड़ी बात हैं इस रकम के खर्चे का हिसाब मांगा जाना भी स्वाभाविक और आवश्यक है। लेकिन इस हिसाब -किताब के बीच वीरभद्र ने मांग पत्र का जो तीर छोड़ा है उससे बचना प्रदेश भाजपा के लिये आसान नही होगा। इस मांग पत्र का समर्थन करना भाजपा के लिये एक कड़ी परीक्षा सिद्ध होगा। मांगपत्र के अनुसार यह मुद्दे उठायेे गये हैं।
1. 1000 करोड़ की विशेष श्रृतिपूर्ति अनुदानः अन्र्तराष्ट्रीय पर्यावरणीय आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की अनुपालना के तहत सारे पर्वतीय क्षेत्रों में हरित कटान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा हुआ हैं इस प्रतिबन्ध के कारण इन क्षेत्रों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस नुकसान की प्रतिपूर्ति के आंकलन के लिये एक समय योजना आयोग ने वी के चुतवेर्दी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि सकल बजटीय सहयोग का दो प्रतिशत इन प्रभावित पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष अनुदान दिया जाये। लेकिन इस कमेटी की सिफारिशों पर अब तक अमल नही हो सका है और अब वीरभद्र ने इस संद्धर्भ में मोदी से एक हजार करोड़ के विशेष अनुदान की मांग कर डाली है।
2. जल विद्युत परियोजनाओं को त्वरित प्रभाव से पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की जाये। वीरभद्र के मांगपत्र के अनुसार हिमाचल प्रदेश कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत में वन क्षेत्र होने की शर्त को पूरा करता है। इस लिये प्रदेश की सभी लंबित जल विद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृतियां तुरन्त प्रभाव से प्रदान की जायें ।
3. शिमला हवाई अड्डे से व्यवसायिक उड़ाने शुरू की जाये। शिमला ही एक मात्रा ऐसा राजधानी शहर है जहां कोई भी हवाई सुविधा नही हैं अब यहां पर अधोसंरचनात्मक सुविधाओं का भी स्तरोन्यन किया गया है। इसलिये यहां से व्यवसायिक उड़ाने शीघ्र शुरू की जानी चाहिये।
4. सतलुज जल विद्युत निगम के पास फालतू बड़ी भूमि को राज्य सरकार को वापिस किया जाये। 1980 के दशक में इस निगम को कार्यालय एंव्म आवास काॅलोनी के निमार्ण के लिये जमीन दी गयी थी जो कि अब तक अनुपयोगी पड़ी हुई हैं और सरप्लस है। इसे राज्य सकरार को वापिस किया जाये ताकि इसे इंजीनियरिंग काॅलिज की स्थापना के लिये इस्तेमाल किया जा सके।
5. भाखंड़ा व्यास प्रबन्धन बोर्ड में पूर्ण कालिक सदस्य का दर्जा दिया जाये। क्यांेकि भाखंड़ा परियोजना के कारण 103425 एकड़ और व्यास परियोजना के कारण डैहर तथा पौंग बांध में 65563 एकड़ प्रदेश की कृषि भूमि जलमग्न हुई है। इसके अतिरिक्त 16 अगस्त 1983 को पत्र व्यवहार के दिशा निर्देशानुसार 19/20 जनवरी 1987 को हुई बोर्ड की 124वीं बैठक में हिमाचल को सहयोगी राज्य का दर्जा दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 27.9.11 के अपने फैसले में हिमाचल की 7.19प्रतिशत की भागीदारी को स्वीकार किया है। लेकिन इन फैसलों पर अब तक अमल नही हो सका है। इस पर शीघ्र अमल करवाया जाये।
6. भाखंड़ा नंगल समझौता 1959 तथा 31 दिसम्बर 1998 के अन्र्तराष्ट्रीय समझौतों के अनुसार हिमाचल को सतलुज, रावी तथा व्यास से पानी का कोई आंवटन नही हुआ है । इन नदियों से हिमाचल के जल उपयोग अधिकारों को देखते हुए इन परियोजनाओं से लगते ग्रामीण क्षेत्रो की जलापूर्ति के लिये अनापति प्रमापत्र की आवश्यकता समाप्त की जाये।
7. हिमाचल प्रदेश राज्य ने पंजाब तथा हरियाणा राज्यों के विरूद्ध बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन में 3957 करोड़ रुपये के विद्युत एरियर दावों को 5 जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप प्रस्तुत किया था। भारत सरकार ने यद्यपि अलग से एनएफएल दरों की संस्तुति की थी, जो हिमाचल प्रदेश को मान्य नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के दावों को केवल राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटिड की दरों तक सीमित रखना न केवल घोर अन्याय है, बल्कि सहभागी राज्यों की भावनाओं के विरूद्व भी है क्योंकि एनएफएल की दरों को रियायती दरें माना जाता है तथा रियायती दरें कभी भी समझौते की दरें नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया।
8. एफसीएए 1980 के अंतर्गत प्रदेश को सड़कों के निर्माण के लिये वन भूमि के उपयोग के एवज में सीए तथा एनपीवी जमा करना होता है, जो अनिवार्य है। गत तीन वर्षों में प्रदेश ने विभिन्न प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की सड़कों के लिये सीए तथा एनपीवी के रूप में लगभग 60 करोड़ रुपये जमा किए हैं। निकट भविष्य में स्थिति और गंभीर होने वाली है, क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत आने वाली लगभग सभी सड़कें वन क्षेत्र से गुजरती हैं। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया कि प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की एनपीवी केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाए।
9. प्रधानमंत्री से भारत सरकार द्वारा एआईबीपी तथा एफएमपी के अंतर्गत पूर्व स्वीकृत योजनाओं के लिये धनराशि जारी करने का आग्रह किया गया। अधिकांश ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा निजी संसाधनों से ही भारी धनराशि व्यय की जा चुकी है तथा इसका भुगतान करना केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा अभी भी शेष है।
10. मनरेगा के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के लिये उपयोगी और अधिक गतिविधियों को शामिल किया जाए। भांग के पौधे हिमाचल प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर पर उगते हैं। यह एक गंभीर सामाजिक खतरा बन जाता है। प्रदेश सरकार ने आग्रह किया है भांग के पौधों को उखाड़ना भी मनरेगा की पात्र गतिविधि शामिल किया जाए। ग्रामीण विकास विभाग ने पहले ही 22 अगस्त, 2016 से 5 सितम्बर, 2016 तक भांग/अफीम उन्मूलन अभियान शुरू किया था तथा इस अभियान के अंतर्गत 2145.79 हेक्टेयर क्षेत्रा से भांग उखाड़ी गई।
11. प्रदेश में छोटे तथा मझौले किसानों द्वारा चाय की खेती की जाती है, न कि असम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों की तरह जहां बड़े किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं। मुख्यमंत्री ने आग्रह किया कि चाय बागानों के पुनर्जीवन को भी मनरेगा गतिविधि में शामिल किया जाए।
12. प्रदेश सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत हिमालयन सर्किट के तहत 100 करोड़ रुपये की परियोजनाऐं केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय को वित्त पोषण हेतु सौंपी हैं। मुख्यमंत्री ने हिमालयन सर्किट योजना के अंतर्गत धनराशि जारी करने के लिये भी केन्द्र सरकार से आग्रह किया।

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