शिमला/शैल। राज्य सरकार ने वर्ष 2002 में सरकारी भूमि पर किये गये अवैध कब्जों/अतिक्रमणों को नियमित करने के लिये एक पाॅलिसी अधिसूचित की थी। इसके तहत लोगों से कब्जों/अतिक्रमणों की जानकारी मांगी गयी थी। उस समय इस योजना के तहत करीब डेढ़ लाख लोगों ने बाकायदा शपथ पत्र देकर ऐसे कब्जों की जानकारी सरकार को दी थी। इतनी संख्या में हुए अतिक्रमणों की जानकारी सामने आने के बाद इस योजना को कुछ लोगों ने प्रदेश उच्च न्यायालय में CWP 1028 of 2002 के माध्यम से चुनौति दे दी। इस याचिका पर प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिये कि योजना के तहत प्रक्रिया तो जारी रखी जाये लेकिन इस आशय के पट्टे अदालत के अगले आदेशों के बिना जारी न किये जायें। यह याचिका अब तक अदालत मे लंम्बित है।
इसके बाद 2015 में अवैध कब्जों/अतिक्रमणों का मामला फिर एक और याचिका CWP 3141 of 2015 के माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष आया। इस पर पहले जो अदालत ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए ऐसे अवैध कब्जों/अतिक्रमणों को खाली करने के लिये इन पर उगाये गये पेड़ो को काटने के निर्देश दे दिये । इन निर्देर्शों पर पूरे प्रदेश में खलबली मच गयी। कई स्थानों पर सैंकड़ो पेड़ काट भी दिये गये। इसी बीच सेब बागावानों ने सरकार पर दबाव बनाया और अदालत से निर्देशों में संशोधन की गुहार लगायी। सरकार के आग्रह को स्वीकारते हुए अदालत ने पेड़ों को काटने की बजाये उनकी प्रूनिंग करने के आदेश दिये। इन आदेशों के साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि अवैध कब्जों/अतिक्रमणों के तहत आयी एक-एक ईंच भूमि को खाली करवाया जायेगा। इसी के साथ यह भी निर्देश दिये की अवैध रूप से कब्जा/अतिक्रमण करके उगाये गये बागीचों की उपज को सरकारी तन्त्र अपने कब्जे में लेेकर उसकी निलामी करवायेगा और पैसा सरकारी खजाने में जमा करवायेगा। मुख्य न्यायधीश जस्टिस मंसूर अहमद मीर और जस्टिस त्रिलोक चौहान की खण्डपीठ ने ऐसी की गयी निलामी और उसके तहत मिले पैसों पर सरकार से चार सप्ताह के भीतर जानकारी मांगी है और 17 अक्तूबर को मामला सुनवाई के लिये रखा है वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में ऐसी निलामी हुई है और इससे कितना पैसा मिला है इसकी जानकारी अभी तक विभाग के पास नही है।
दूसरी ओर उच्च न्यायालय में जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की खण्डपीठ के पास आये एक अवैध कटान के मामले में अदालत ने विशेष अदालत वन के फैसले को पलटते हुए अवैध कटान का दोषी पाये गये फारेस्ट गार्ड की सजा को बरकार रखा है। इसी फैसले में अदालत ने अवैध निमार्णो के नियमितिकरण को भी असंवैधानिक करार देते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगायी है। अदालत ने दस बीघे से अधिक के वन भूमि पर हुए अतिक्रमणों का कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार को ऐसे अतिक्रमणों को चिहिन्त करके ऐसे लोगों के खिलाख अपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिये हैं। खण्डपीठ ने इसी फैसले में भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय के तहत कार्यरत ईडी को भी निर्देश दिये हैं कि जिन लोगों ने वन भूमि पर कब्जे कर रखें हैं ऐसे लोगों के खिलाफ मनीलाॅंडरिंग अधिनियम के तहत मामले दर्ज करके ऐसे अर्जित की गयी संपत्तियों को भी जब्त किया जाये।
इस समय प्रदेश में वन भूमि पर हुए अवैध कब्जों/अतिक्रमणों की स्थिति जो सरकार उच्च न्यायालय के समक्ष रख चुकी है उसके मुताबिक दस बीघे से अधिक का अतिक्रमण के मामलों की संख्या 2524 है। इसमें सबसे अधिक संख्या जिला शिमला की है यहां पर 1079 मामलों में दस बीघे से अधिक का अतिक्रमण है इसमें भी सबसे अधिक मामले 342 रोहडू के हैं। शिमला के बाद अतिक्रमणों में कुल्लु दूसरे स्थान पर है यहां इनकी संख्या 1004 है। इसी तरह दस बीघे से कम के अतिक्रमणों की संख्या 10182 है। इसमें भी 2970 के साथ शिमला पहले स्थान पर है। इसके बाद कुल्लु में 2386 और मण्डी में 1270 मामले रिकार्ड पर आये हैं। कांगडा में 1754, चम्बा में 626, सिरमौर में 532 बिलासपुर में 410 सोलन में 121 हमीरपुर में 44 किन्नौर में 55, लाहौल स्पिति में 10 और ऊना में केवल 4 मामले रिकार्ड पर आये हैं।
दस बीघे से अधिक के मामलों में शिमला कुल्लु के बाद किन्नौर में 135, मण्डी में 108, चम्बा में 74, सिरमौर में 68, कांगड़ा में 24, बिलासपुर में 14 लाहौल में 5 और सोलन में 1 मामला सामने आया है। ऊना और हमीरपुर में ऐसे अतिक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। प्रदेश में वन भूमि पर अतिक्रमण के सबसे अधिक मामले रोहडू में सामने आये है और इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व स्वयं वीरभद्र करते रहे हैं। यह स्थिति यह सवाल खड़ा करती है कि जब प्रदेश में हजारों बीघे वन भूमि पर अतिक्रमण हो रहा था तो सरकारी तन्त्र क्या कर रहा था। वीरभद्र ने तो कथित वन माफिया के खिलाफ खुली लड़ाई लड़कर प्रदेश की सत्ता संभाली थी। तो क्या इन अतिक्रमणकारियों को कोई राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था जिसके चलते पूरा सरकारी तन्त्र पंगु बन गया था या फिर इनके साथ मिल गया था।
सरकारी तन्त्र के इसी पक्ष पर चोट करते हुए जस्टिस राजीव शर्मा और सुरेश्वर ठाकुर की खण्डपीठ ने दस बीघा से अधिक के अतिक्रमणकारियों के खिलाफ मनीलाॅडरिंग के तहत मामले दर्ज करने के निर्देश देते हुए संबधित वन अधिकारियों की चल अचल संपत्ति पर भी लगातार नजर रखने के विजिलैन्स को निर्देश दिये हैं। अदालत ने कहा है The State Government has not made sincere efforts to prevent and evict the persons who have encroached upon the forest land. There are large tracts of forests, which have not been demarcated till date (i.e. UDF-). The State Government has only taken steps after the intervention of this Court to evict the persons who have unauthorizedly occupied the forest land and raised orchards. The action has been initiated primarily against those persons who had given affidavits admitting their encroachment upon the forest land. Thus, in larger public interest, the State Government is directed to initiate process to identify the encroachments over the forest land and the persons who have planted fruit bearing trees and to take necessary steps for their eviction under the H.P. Public Premises and Land (Eviction and Rent Recovery) Act, 1971 as well as under the H.P. Land Revenue Act, 1954 and also to register FIRs against those persons under the Indian Forest Act and Indian Penal Code. The Director, Enforcement Directorate, Ministry of Finance, Government of India, New Delhi is also directed to register cases against those persons who have encroached upon the huge tracts of forest land and have planted fruit bearing trees and amassed illgottenmoney and also engaged in money laundering within 3 months. The State Government is also directed to provide necessary details of the persons, who have encroached upon more than 10 bighas of forest land and have also indulged in money laundering within 4 weeks to the Director, Enforcement Directorate, Ministry of Finance, Government of India, New Delhi to enable it to register cases against them. It shall be open for the Director, Enforcement Directorate, Ministry of Finance, Government of India, New Delhi to confiscate /forfeit the property of the persons, who have encroached upon more than 10 bighas of forest land under the Prevention of Money-Laundering Act, 2002. The Vigilance Department of the State of H.P. is also directed to carry out periodical verification of movable and immovable properties of the revenue officials/forest officers posted, more particularly, in Districts Mandi, Shimla, Chamba and Sirmaur, where the encroachment on forest land is rampant, every 6 months. The State Government is directed to carry out the demarcation of un-demarcated forest (UDF) in the State of Himachal Pradesh within 1 year by maps prepared by electronic methods i.e. geomatics (remote sensing and GIS), GPS and satellite imagery, in H.P. larger interest. The Chief Secretary to the Government of Himachal Pradesh shall be personally liable to ensure implementation of the above mentioned mandatory directions. A copy of this judgment be sent to the Director, Enforcement Directorate, Ministry of Finance, Government of India, New Delhi for its due compliance.
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के मनीलाॅंडरिंग प्रकरण में गिरफ्तार उनके एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की न्यायिक हिरासत चार दिन के लिये और बढ़ा दी गयी है। अब उन्हें सात तारीख को फिर अदालत में पेश किया जायेगा। इस बार फिर ईडी ने इस मामले की जांच अभी तक पूरी न होने का तर्क अदालत में रखा है। ईडी ने इस मामले की जांच में 23 मार्च को करीब आठ करोड़ की चल-अचल संपत्ति अटैच की थी। इस संपत्ति में वीरभद्र, प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य और अपराजिता कुमारी के कुछ एफडीआर, एलआईसी पालिसियां और कुछ बैंक खातों के अतिरिक्त ग्रेटर कैलाश में प्रतिभा सिंह के नाम मकान शामिल है। 23 मार्च के आदेश में सारा कुछ एलआईसी पालिसीयों और संशोधित आयकर रिर्टनज तथा सेब बागीचे की आये के गिर्द ही है। इस आदेश में वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से जुडे प्रकरण की जांच अभी तक पूरी न होने का स्पष्ट उल्लेख है।
वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से करीब चार करोड़ का मुक्त ऋण लेने का खुलासा प्रतिभा सिंह के चुनाव शपथ पत्र से सामने आया है। इसी खुलासे के बाद वक्कामुल्ला की एक कंपनी से विक्रमादित्य की कंपनी के नाम भी ऋण लिया जाना सामने आया है। महरौली में फार्म हाऊस की खरीद भी इसी के बाद सामने आयी है और इस प्रकरण की जांच अब सूत्रों के मुताबिक लगभग पूरी हो चुकी है। पिछले दिनों जब आनन्द चौहान की जमानत याचिका खारिज हुई थी उस आदेश में भी जांच को लेकर खुलासे सामने आये हैं। करीब 28 पन्नो के इस आदेश के मुताबिक वक्कामुल्ला से जो ऋण लिया दिखाया गया है। उसकी प्रमाणिकता पर भी सन्देह है। ईडी के उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक यह सारा ऋण भी केवल कागजी कारवाई है और ऋण के माध्यम से इस धन का भी शोधन किया गया है। कुछ और स्थानों पर भी संपत्तियां होने की संभावना जताई गयी है। इस सबमें प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह की सक्रिय भूमिका से ही यह लाॅंडरिंग हुई है। इस लाॅंडरिंग में आनन्द चौहान तथा चन्द्र शेखर की भी भूमिका मानी जा रही है और इसी के स्पष्टीकरण के लिये इन सबको ईडी में तलब भी किया गया था। माना जा रहा है कि इस संद्धर्भ में भी एक और अटैचमैन्ट आर्डर जारी किया जा सकता है।
ईडी के प्रकरण के साथ ही सीबीआई की चार्जशीट का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है और उसमें अन्ततः चालान दायर करने की अनुमति मिलेगी ही। इस चालान का ठोस आधार आनन्द चौहान और वीरभद्र सिंह के बीच 15.6.2008 को हस्ताक्षिरत हुआ एग्रीमैन्ट हैं। क्योंकि एक एग्रीमैन्ट विश्म्बर दास के साथ 17.6.2008 को होता है। दोनो अनुबन्धों की प्रमाणिकता संदिग्ध है तथा इनमें प्रयुक्त स्टांप पेपर तो नासिक प्रैस से आये ही बहुत बाद में हैं। अनुबन्धों को लेकर उठे यह सवाल ही पूरे प्रकरण की आपराधिक धुरी बन गये हैं। इन तथ्यों के आधार पर सीबीआई को चालान पेश करने की अनुमति मिलना तय माना जा रहा है। इस तरह वीरभद्र का यह सारा प्रकरण अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है। जंहा से कांग्रेस की राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय है क्योंकि इस प्रकरण में आरोप तय होने के साथ राजनीति में गर्माहट आ जायेगी।
शिमला/शैल। प्रदेश का मुख्य सूचना आयुक्त कौन होगा यह सवाल एक बार फिर चर्चा में आ गया है इस बार चर्चा के कारण है कि एक तो सरकार ने इसके लिये चयन कमेटी का गठन कर दिया है। इसमें मुख्मन्त्री और नेता प्रतिपक्ष को पदेन सदस्य है। इनके साथ वरिष्ठ मन्त्राी विद्या स्टोक्स को तीसरा सदस्य नामित किया गया है। इस पद के लिये करीब डेढ़ सौ आवेदन आये हुए हैं। इन्हे कैसे शार्ट लिस्ट किया जायेगा और उसके लिये क्या मानदण्ड रहेगा यह अभी तक स्पष्ट नही किया गया है।
इस चर्चा का दूसरा कारण है कि इसके एक प्रबल दावेदार प्रदेश लोकसेवा आयेगा के वर्तमान अध्यक्ष के एस तोमर है तोमर ने इस पद के लिये आवेदन कर रखा है लेकिन संविधान के मुताबिक लोकसेवा आयोग के सदस्य या अध्यक्ष इस पद के बाद सरकार में कोई और पद स्वीकार नही कर सकते। तोमर के आवेदन पर इसी पद के एक अन्य प्रतिद्वंद्धी देवाशीष भट्टाचार्य ने महामहिम राज्यपाल को एक शिकायत भेज कर तोमर की दावेदारी पर एतराज जताते हुए उनके खिलाफ कारवाई की मांग कर रखी है। राजभवन से यह शिकायत सरकार के विधि विभाग के पास राय के लिये पहुंच चुकी है। विधि विभाग क्या राय देता है। इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
इस परिदृश्य में इस पद के अन्य दावेदार सक्रिय हो गये हैं। चनय कमेटी में बहुमत से फैसला होना है इसलिये मुख्यमन्त्री का आर्शीवाद जिसको प्राप्त होगा वही सीआईसी बन जायेगा । अब मुख्यमन्त्री के आर्शीवाद के लिये चहतों में ही प्रतिस्पर्धा रहेगी यह स्वभाविक है। इसमें कौन बाजीमार लेता है यह देखना दिलचस्प बन गया है क्योंकि इसमें वन विभाग के एक नेगी को सबसे ऊपर माना जा रहा है।
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