Friday, 19 September 2025
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960 मैगावाट की जंगी थोपन पवारी परियोजना अन्ततःअदानी को देने का रास्ता तैयार

शिमला/शैल। 960 मैगावाट की जंगी-थोपन पवारी हाईडल परियोजना का आवंटन एक बार फिर सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है। क्योंकि रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 अचानक इससे पीछे हट गया है। जबकि रियांलय ने इसे हासिल करने के लिये 2009 से लेकर 2016 तक प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। रिलांयस क्यों पीछे हटा है और सरकार ने इसे पुनः विज्ञापित करने की बजाये इसे केन्द्र सरकार के उपक्रम को देने की संभावना तलाशने का फैसला क्यों लिया? यह सवाल प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में बेहद चर्चा का मुद्दा बन गया है। क्या प्रदेश की हाईडल नीति में फिर से परिवर्तन करने की आवश्कता आ गयी है? यह सवाल भी उठने लगा है क्योंकि वीरभद्र सरकार के इस कार्यकाल में हाईडल क्षेत्र में कोई भी बड़ा निवेशक नही आया है। इसी के साथ सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह बन गया है कि इस परियोजना को लेकर अब तक जो कुछ घट गया है उससे अदानी का आर्विट्रेशन के माध्यम से अपने 280 करोड़ वसूलने का रास्ता बड़े बाबूओं ने सरल तो नहीं कर दिया? क्योंकि परियोजना के पूरे घटनाक्रम पर नजर दौड़ाने से यह स्पष्ट हो जाता है।
स्मरणीय है कि छः हजार करोड़ की इस परियोजना के लिये 2006 में निविदायें आमन्त्रित की गयी थी। जो निविदायें आयी उनमें नीदरलैण्ड की कंपनी ब्रेकल एन वी की आफर सबसे बड़ी थी। रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर दूसरे स्थान पर थी और यह परियोजना ब्रेकल को दे दी गयी। परियोजना मिलने के बाद ब्रेकल को वान्च्छित अपफ्रन्ट प्रिमियम सरकार में जमा करवाना था जिसे वह कई नोटिस दिये जाने पर भी जमा नही करवा पाया। इसी बीच रिलांयस ने ब्रेकल के दस्तावेजों में कुछ कमीयां पाकर इस आवंटन को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी । रिलायंस की याचिका के साथ ही सरकार में भी ब्रेकल के दस्तावेजों और दावों की जांच शुरू हो गयी और ब्रेकल के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज करने की नौबत तक आ गयी । सरकार ने ब्रेकल को आवंटन रद्द करने तक का नोटिस थमा दिया। लेकिन इसी बीच ब्रेकल ने अदानी से 280 करोड़ लेकर सरकार में जमा करवा दिये। अदानी ने ब्रेकल को पैसे देने के बाद उसमें हिस्सेदार होने के लिये भी आवदेन कर दिया। सरकार ने सारे मामले की पड़ताल करने के लिये सरकार के वरिष्ठ सचिवों की एक कमेटी गठित कर दी और जब कमेटी ने ब्रेकल को अपना पक्ष रखने के लिये आमन्त्रित किया तो उस बैठक में अदानी के प्रतिनिधि भी शामिल हो गये। जबकि उस समय अदानी ब्रेकल का अधिकारिक सदस्य नही था। लेकिन सचिव कमेटी ने अदानी के प्रतिनिधियों की उपस्थिति पर कोई एतराज नही उठाया। सचिव कमेटी ने अपनी पड़ताल के बाद परियोजना को ब्रेकल को ही देने का निर्णय ले लिया। सरकार ने इस फैसले को मानते हुए ब्रेकल के पक्ष में आवंटन कर दिया।
सरकार के इस फैसले को रिलायंस ने फिर चुनौती दे दी। उच्च न्यायालय ने दो टूक फैसला दिया कि या तो यह परियोजना रिलायंस को दी जाये या इसकी फिर से बोली लगाई जाये। लेकिन सरकार ने फिर इसे ब्रेकल को ही देने का निर्णय लिया। रिलायंस ने इसे सर्वोच्च न्यायालय मे चुनौती दे दी। रिलायंस के बराबर ही ब्रेकल भी सर्वोच्च न्यायालय में चला गया। ब्रेकल के साथ ही अदानी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में एक अर्जी डालकर इसमें 280 करोड़ निवेश करने का पक्ष रख दिया। ब्रेकल और अदानी के सर्वोच्च न्यायालय में आने पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यह कहा कि परियोजना में हुई देरी के लिये ब्रेकल को 2775 करोड़ के हर्जाने तथा अपफ्रन्ट मनी को जब्त करने का नोटिस दिया गया है। सरकार का यह स्टैण्ड सामने आने के बाद ब्रेकल ने अपनी याचिका वापिस ले ली। ब्रेकल के साथ ही अदानी की याचिका भी समाप्त हो गयी । लेकिन यह होने के बाद भी सरकार ने ना तो ब्रेकल से जुर्माने के 2775 करोड़ बसूलने के लिये और न ही अपफ्रन्ट मनी के 280 करोड़ जब्त करने के लिये कोई कदम उठाये।
ब्रेकल के सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आने के बाद रिलायंस और सरकार में फिर कुछ घटा और यह परियोजना रिलायंस को देने का फैसला हो गया। इस फैसले के बाद रिलायंस को इस आश्य का पत्र भी चला गया। रिलायंस ने इसे स्वीकार भी कर लिया और सरकार को पत्रा लिखकर परियोजना के लिये पर्यावरण से जुडी स्वीकृतियां भारत सरकार से हालिस करने का आग्रह भी कर दिया। इसके लिये रिलायंस को सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस लेनी थी। इसमें सरकार ने भी रिलायंस के साथ मिलकर यह सयुंक्त आग्रह करना था। पहले सरकार रिलायंस के साथ मिलकर सयुंक्त आग्रह के लिये तैयार थी परन्तु बाद में मुकर गयी। पर्यावरण से जुडी स्वीकृतियां हासिल करने में भी रिलायंस की मदद करने से इन्कार कर दिया। जब ब्रेकल सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आया तो उसके बाद अदानी ने अपने 280 करोड़ वापिस किये जाने के लिये भी सरकार को पत्र लिखे।ं इन पत्रों का असर यह हुआ कि जब रिलायंस को यह प्रौजैक्ट देने का फैसला लिया गया तो उसमें मान लिया गया कि रिलायंस से अपफ्रन्ट मनी मिलने पर अदानी का 280 करोड़ वापिस कर दिया जायेगा।
अब जब रिलायंस पीछे हट गया तो एक बार फिर अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने निदेशक एनर्जी और कुछ अन्य संबंधित विभागों को पत्र लिखकर यह राय मांगी कि क्या इस परियोजना को फिर से ब्रेकल को दिया जा सकता है या इसकी दोबारा बोली लगायी जाये या केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के किसी उपक्रम को दिया जाये। निदेशक पावर ने इसे केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम के साथ संभावनाएं तलाशने का सुझाव दिया है। अब यह परियोजना किसे मिलती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन अब पत्र लिखकर ब्रेकल को लेकर राय मांगने के पीछे क्या मंशा है? क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रौजैक्ट के लिये ब्रेकल का अर्थ है अदानी। अदानी के दावे को कई बार रिकार्ड पर लाया जा चुका है। क्योंकि ब्रेकल ने अदानी से लेकर 280 करोड़ सरकार में जमा करवाये हैं। ब्रेकल ने अपनी वित्तिय स्थिति को लेकर जो दस्तावेज सौंपे थे उनकी प्रमाणिकता पहले ही संदिग्ध हो चुकी है अर्थात् ब्रेकल के पास अपने स्तर पर कोई पैसा नहीं है। अदानी ने ब्रेकल को 280 करोड़ दिया है यह कई बार रिकार्ड पर आ चुका है। कानून के जानकारो के मुताबिक इस सब से अदानी को आरविट्रेशन में राहत मिलने के पुख्ता आधार बन चुके है। वैसे भी यदि केन्द्र का कोई उपक्रम तैयार नही होता है तो फिर राज्य सरकार के उपक्रमों की बारी आती है। सरकार और उसके उपक्रमों की स्थिति वैसे ही अच्छी नही है। ऐसे में अन्ततः ब्रेकल-अदानी के पक्ष मे फैसला लेने का रास्ता आसान हो जाता है। क्योंकि जब सरकार को अदानी के 280 करोड़ वापिस करने की स्थिति आयेगी तो उस स्थिति में यह परियोजना ही अदानी को देने का फैसला लेना ही ज्यादा बेहतर विकल्प बन जाता है। वैसे भी पिछले दिनों मुख्यमन्त्री के एक निकटस्थ नौकरशाह और अदानी के बीच हुई बातचीत की रिकार्डिंग चर्चा में रह चुकी है। अब अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने जिस तरीके से पत्र लिखकर ब्रेकल के बारे में राय पूछी है उससे भी यही संकेत उभरते हैं।

टेनेसी एवम भू -सुधार कृषक परिभाषा को लेकर सरकार ने वापिस लिया फैसला

शिमला/शैल। भू अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश में कोई भी गैर हिमाचल और हिमाचली गैर कृषक प्रदेश में सरकार की अनुमति के बिना भूमि नहीं खरीद सकता है। लेकिन इसी अधिनियम की धारा 2 की उपधाराओं को 2, 4, 5 और 10 में कृषक कौन है स्वयं काश्त क्या है परिवार में कौन कौन आता है और भू मालिक कौन है यह सब परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक यह है It was  clarified vide earlier clarification dated 30th  April, 2002 that " Under Section 2(2) agriculturist is a person who cultivates land personally in an estate  situated in Himachal Pradesh and in terms of section 2 (4) (iii) "to cultivate personally''  also includes by the Labour of any member of the family. In  terms of section 2(5) family 'means husband his wife and their children including step or adopted children etc.' The word " Land owner" as defined in section 2(10) means a person defined as such in HP Land Revenue Act, 1954 and shall include  the predecessor or successor in interest of the land owner from the combined reading of Sub-sections (2) ,(4), (5) and (10) of section 2 of  the Act ibid, it is clear that a husband who is  successor in interest of his wife and being member of the family also falls in the expression "to cultivate personally" is an agriculturist for the purpose of section 118 of the Act in question and no permission  a s required by saidsection is necessary.
इसके अनुसार पति, पत्नी में से यदि एक हिमाचली और कृषक हैं और दूसरा गैर हिमाचली है तो परिवार की परिभाषा के तहत गैर हिमाचली को भी हिमाचली कृषक होने का दर्जा हासिल हो जायेगा और वह भी सरकार के अनुमति के बिना प्रेदश में जमीन खरीदने का हकदार हो जायेगा। लेकिन बहुत सारे राजस्व अधिकारी इस संद्धर्भ में पूरी तरह स्पष्ट नही थे और ऐसे मामले स्पष्टीकरण के लिये सरकार को भेज दिये जाते थे। ऐसे मामलों के आने पर सरकार में इस पर विचार हुआ। सरकार में हुए विस्तृत विचार विर्मश के बाद 30 अप्रैल 2002 को इस संद्धर्भ में स्पष्टीकरण जारी किया गया और कहा गया कि ऐसे मामलों में सरकार से धारा 118 के तहत अनुमति लेने की आवश्यकता नही है। लेकिन 2002 में जारी हुए इस स्पष्टीकरण को 24.5.2010 को यह कहकर वापिस ले लिया गया कि इसका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है।
इसके बाद इस वर्ष फिर इस पर यह कहकर पुनर्विचार हुआ कि 24.5.2010 को 2002 में जारी हुए स्पष्टीकरण को वापिस लेने के बाद भी ऐसे मामले सरकार के पास आ रहे हैं। इस पर सरकार में विचार हुआ और विधि विभाग से भी राय ली गयी। क्योंकि सरकार के संज्ञान में ऐसे मामले आये थे जहां पर हिमाचली कृषक लड़कियों के साथ गैर हिमाचली ने शादी की और परिवार की परिभाषा के आधार पर अपने नाम पर जमीन खरीद ली। ऐसी जमीन खरीद से यह भी हिमाचली कृषक हो गये। लेकिन कुछ समय बाद तलाक ले लिया और तलाक लेने के बाद भी हिमाचली कृषक बने रहे। विधि विभाग की राय और सरकार में हुए विचार विमर्श के बाद 20.5.2016 को फिर 2002 में जारी हुए स्पष्टीकरण को यथास्थिति बनाए रखने का स्पष्टीकरण जारी हो गया। 20 मई को जारी हुए स्पष्टीकरण को 8 सितम्बर को फिर वापिस ले लिया गया है। लेकिन इस बार जो पत्र जारी हुआ है उसमें इसे  Kept in abeyance  रखा गया है जबकि पहले पूरी तरह withdraw किया जाता था।
टेनेन्सी एंवम भू-सुधार अधिनियम 1972 प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित है। इसमें दर्ज सारी परिभाषाएं सदन से पारित है इनमें कोई भी संशोधन सदन की अनूमति के बिना नही हो सकता। परिवार की परिभाषा में पति-पत्नी को बराबर के अधिकार प्राप्त है। उसमें हिमाचली या गैर हिमाचली, कृषक या गैर कृषक का कोई अलग से प्रावधान नही किया गया है। प्रदेश में हजारों ऐसे लोग है जो कई पीढीयों से प्रदेश में रह रहे हैं। लेकिन उन्हें कृषक का दर्जा हासिल नही है वह सरकार की अनुमति के बिना जमीन नही खरीद सकते हैं जिन्हे अब प्रदेश उच्च न्यायालय ने राहत देते हुए सरकार से इस अधिनियम में 90 दिनों के भीतर संशोधन करने को कहा है। ऐसे में जब सरकार के सामने परिवार को लेकर शादी के माध्यम से कृषक होने और फिर तलाक होने के मामले सामने आये हैं तो उसमें भी सरकार को संशोधन लाकर ऐसे लोगों से कृषक का अधिकार वापिस लेने का प्रावधान करना चाहिये। अन्यथा ऐसे स्पष्टीकरण जारी करने और फिर उन्हें वापिस लेने से समस्या का हल नही निकाला जा सकता है।

वीरभद्र के आय से अधिक संपति मामले में 23 से निपटारे तक प्रतिदिन होगी सुनवाई

 शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ दर्ज आय से अधिक सम्पति मामले में सी बी आई ने जांच पूरी करके इसका चालान ट्रायल कोर्ट में दायर करने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी है। दूसरी ओर इस मामले में दर्ज एफ आई आर को रद्द करने का आग्रह भी वीरभद्र सिंह ने अदालत में दायर किया हुआ है। 15 तारीख को यह दोनों मामले एक साथ दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आये। लेकिन उस दिन बहस पूरी न होने के कारण अब यह मामला 23 तारीख को रखा गया है। उस दिन भी बहस पूरी न होने की सूरत में यह मामला अन्तिम निपटारे तक प्रति दिन सुना जायेगा। इस मामले पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं और यह जिज्ञासा बनी हुई है कि इसमें एफ आई आर रद्द होगी है या सी बी आई को चालान ट्रायल कोर्ट में दायर करने की अनुमति मिल जायेगी।

इस प्रश्न को समझने के लिये इस मामले में जो कुछ अब तक घट चुका है उस पर नज़र दौड़ाने की आवश्यकता है। स्मरणीय है कि इसमें 23-09-2015 को सी बी आई ने एफ आई आर दर्ज की थी और उसके तीसरे दिन वीरभद्र के आवास और अन्य संबद्ध स्थानों पर छापामारी की थी। इस छापामारी को वीरभद्र ने तुरन्त प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौति दी। वीरभद्र ने अदालत से इस मामले में दर्ज एफ आई आर को रद्द करने के साथ ही यह भी आग्रह किया किTo issue directions, after perusing the record relating to the preliminary enquiry and regular case, thereby quashing the RC AC-1 2015 A-0004 under Section 13(2) r/w 13(1)(e) of Prevention of Corruption Act, W.P. (Crl.) No.2757/2015 1988 and Section 109 IPC registered by CBI on 23-09-2015 and all the action taken in pursuance of regular case including but not limiting to the search warrants, seizure memos and all investigation done by respondent No.1. वीरभद्र के इस आग्रह पर विचार करने के बाद जस्टिस राजीव शर्मा की खण्ड़पीठ ने इसमें सी बी आई को निर्देश दिये किThe CBI is directed to go ahead with the investigation but the statements of the petitioners shall not be recorded without the leave of the court. The central bureau of investigation shall not file challan without the express leave of this Court.
सी बी आई ने हिमाचल उच्च न्यायालय के इन निर्देशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौति दी और मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करने का आग्रह किया। इस पर 5-11-2015 को यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो गया और CWP (Crl.) No. 2757/2015 के रूप में दर्ज हो गया। दिल्ली उच्च न्यायालय में 6 अप्रैल को सुनवाई के लिये आये इस मामले में अदालत के सामने यह आ चुका है कि Now the situation has changed as statements of some of the witnesses have been recorded under Section 164 Cr.P.C. and some stamp papers have also been recovered which create suspicion on the genuineness of MOU dated 15-06-2008.यह सामने आने के बाद ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने वीरभद्र और प्रतिभा सिंह को जांच में शामिल होने के निर्देश दिये थे। इसके बाद ही वीरभद्र और प्रतिभा सिंह जांच में शामिल हुये थे। इस मामले में दर्ज एफ आई आर में वीरभद्र प्रतिभा के साथ ही आनन्द चौहान और चुन्नीलाल भी इसमें सह अभियुक्त हैं। सी बी आई मे मामला दर्ज होने के बाद ही इन लोगों के खिलाफ ई डी में मनीलांडरिंग का मामला दर्ज हुआ था। आनन्द चौहान को ई डी गिरफ्तार करके उनके खिलाफ चालान भी दायर कर चुकी है। अदालत ने चालान का संज्ञान लेकर आरोप तय करने के लिये तारीख भी तय कर दी है। सी बी आई चुन्नीलाल के अकांउटैंन्ट सरोज सिंह के 164 Cr. P.C. के तहत अदालत में ब्यान दर्ज करवा चुकी है। सूत्रों के मुताबिक चुन्नीलाल भी 164 Cr. P.C.मेे अपने ब्यान दर्ज करवा चुका है।
अब सी बी आई ने मामले की जांच पूरी करके इसका चालान ट्रायल कोर्ट में दायर करने की अनुमति दिल्ली उच्च न्यायालय से मांग रखी है जिस पर 23 तारीख को अगली सुनवाई होगी। इस समय जांच पूरी करके सी बी आई चालान तैयार कर चुकी है। अदालत के सामने 6 अप्रैल को ही यह आ गया था कि इसमें कुछ गवाह 164 Cr. P.C.के तहत ब्यान दर्ज करवा चुके हैं। आनन्द चौहान और वीरभद्र के बीच 15-06-2008 को हुये एग्रीमैंन्ट की प्रमाणिकता पर लगे प्रश्न चिन्ह भी अदालत के सामने आ चुके हैं। अब जब इस मामले में इतना कुछ घट चुका है और करीब एक साल से यह मामला अदालत के पास लंबित है। इसमें 6 अप्रैल के बाद लगी सारी तारीखों पर किसी-न-किसी कारण से सुनवाई हो नहीं पायी है संभवत इसी कारण 23 तारीख को निपटारे तक नियमित रूप से इसकी सुनवाई रखी गई है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस स्टेज पर एफ आई आर का रद्द किया जाना किसी भी तरह संभव नहीं है। वीरभद्र ने इस मामले में सी बी आई के अधिकार क्षेत्रा पर ही यह सवाल उठाया है कि मामले से संबधित सारा कुछ हिमाचल में घटा है जबकि आनन्द चैहान ने दिसम्बर 2011 में आयकर विभाग को यह जवाब दिया था कि उसके खातों में जमा हुुआ सारा कैश वीरभद्र के सेब बगीचों की आय है और वह बगीचों का प्रबन्धक था। इसके बाद ही मार्च में वीरभद्र ने अपनी पुरानी आयकर रिटर्नज़ संशोधित की थीं और इस दौरान वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री थे। इसके अतिरिक्त वीरभद्र उनके उपर लगे आरोंपों को भी अभी तक नकार नहीं पाये हैं बल्कि इस सब को आयकर से जुड़ा मामला करार देते आये हैं। बहरहाल यह मामला इस समय प्रदेश की राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।

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