शिमला/शैल। हिमाचल से भाजपा के राज्यसभा सांसद केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे.पी नड्डा को आने वाले विधानसभा चुनावों में मुख्यमन्त्री के दावेदारों में गिना जा रहा है। बल्कि जबसे उनकी दावेदारी के संकेत उभरे हैं तभी से प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। लेकिन इस दावेदारी के बाद उनकी कार्यशैली पर भी नजरें जाना शुरू हो गयी है। क्योंकि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ फतवा लेकर सत्ता में आयी है। मोदी ने दावा किया है कि न खाऊंगा और न ही खाने दूंगा। लेकिन नड्डा मोदी के इस मानक पर खरे उतरते नजर नही आ रहे हैं। जब सांसद बने थे उस समय देश के प्रतिष्ठित संस्थान एम्ज में तैनात चीफ विजिलैन्स अफसर आई एफ एस संजीव चतुर्वेदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिये काफी सुर्खियों में थे। लेकिन नड्डा ने संजीव चतुर्वेदी को एम्ज से हटाने के लिये स्वास्थ्य मन्त्रालय को पत्र लिखे। लेकिन इसी दौरान केन्द्र में सरकार बदल गयी। डा. हर्षवर्धन स्वास्थ्य मन्त्री बने। उन्हे भी उसी तर्ज पर नड्डा ने पत्र लिखे। इसी बीच नड्डा ही स्वास्थ्य मन्त्री बन गये। बतौर स्वास्थ्य मन्त्री नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं और इस नाते संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ कारवाई करना आसान हो गया।
एम्ज के निदेशक ने 17.1.16 को संजीव चतुर्वेदी को एक डिस्प्लेजर मैमोरण्डम जारी किया। जिसमें कहा गया कि
इसके बाद 30 मार्च को इस मैमोरण्डम पर नड्डा ने भी बतौर अध्यक्ष एम्ज अपनी स्वीकृति दे दी। इस पर चतुर्वेदी ने इन पत्रों को वापिस लेने के लिये निदेशक को ज्ञापन दिया जिसे स्वीकार नही किया गया। बल्कि यह पत्रा सचिव स्वास्थ्य, एंवम् परिवार कल्याण सचिव वन एवम् पर्यावरण भारत सरकार तथा मुख्य सचिव उत्तराखंड को भी भेज दिये गये। चतुर्वेदी आई एफ एस हैं इस नाते सचिव वन एवंम् पर्यावरण को यह पत्र भेजा गया और एम्ज का कार्यकाल पूरा करने पर उतराखण्ड वापिस जाना था इसलिये वहां के मुख्य सविच को भी यह पत्र भेजा गया। एक ओर संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ संसद के 2015 के शीतकालीन सत्र के दौरान गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के लिये यह मेमो जारी हो रहे थे वहंी दूसरी ओर अनुकरणीय सेवाओं के लिये उन्हें मेगासेसे अवार्ड से नवाजा गया। चतुर्वेदी ने संसद सत्र के दौरान किस तरह की अनुशासन हीनता बरती, किस अधिकारी के आदेशों की अवेहलना की गयी इस सबका कोई जिक्र उन पत्रों में नही है जो उन्हें जारी किये गये। यहां तक की संजीव चतुर्वेदी ने कभी नड्डा के साथ काम भी नही किया है। लेकिन नड्डा ने एम्ज के निदेशक द्वारा जारी किये गये मेमो को ही अनुमति प्रदान कर कारवाई को अंजाम दे दिया। चतुर्वेदी को अपना पक्ष तक रखने का अवसर नही दिया गया।
अपने खिलाफ हुई एकतरफा कारवाई को चतुर्वेदी ने कैट में चुनौती दी। कैट ने सारा रिकार्ड देखने के बाद इन मैमोज़ को रद्द करते हुए कहा है कि कैट का चतुर्वेदी के पक्ष में आया फैसला नड्डा की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल खडे़ करता है।
क्योंकि चुतर्वेदी एम्ज में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली लडाई लड़ रहे थे। एम्ज के भ्रष्टाचार को लेकर सीबीआई में शिकायतें थी। इन शिकायतों पर एम्ज में अपने स्तर पर की गयी कारवाई से सीबीसी को सूचित करने के लिये 9.1.14, 17.12.14 और 5.10.15 को सीबीआई ने पत्रा भेजे थे। इसी संद्धर्भ में जब संजीव चतुर्वेदी सीबीआई के निेर्देशों का पालन कर रहे थे तभी वहां से खदेड़ने के लिये यह मेमो जारी करने का खेल शुरू हो गया और नड्डा भी इस खेल का एक पात्रा बन गये।
एम्ज में बडे स्तर पर भ्रष्टाचार है यह सीबीआई के 4.2.16 को भेजे पत्र से पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है। इस भ्रष्टाचार की जांच क्यों नही होने दी जा रही है? भ्रष्टाचारीयों को बचाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है? स्वास्थ्य एंवम परिवार कल्याण मन्त्री के नाते नड्डा एम्ज के अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में बतौर केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री और एम्ज के अध्यक्ष होने के नाते भ्रष्टाचार की गहन जांच करवाने और भ्रष्टों को सजा दिलाने की जिम्मेदारी उन पर आती है। लेकिन यहां पर भ्रष्टाचार की जांच करवाने की बजाये उस अधिकारी को प्रताड़ित किया गया जो इसके खिलाफ लड़ाई लड़ रहा था।
शिमला/शैल। जिस वक्कामुल्ला से मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह की पत्नी ने वाकायदा अपने चुनाव शपथ पत्र में अपने और वीरभद्र सिंह के नाम तीन करोड़ नब्बे लाख का मुक्त ऋण लेना दिखाया है। वह वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर 17 मैगावाट के साई कोठी हाईडल परियोजना को हासिल करने के लिये अदालती लड़ाई लड़ रहा है। एक समय प्रदेश सरकार ने चम्बा की साई कोठी हाईडल परियोजना वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को आंवटित की थी लेकिन आंवटन के बाद वक्कामुल्ला इस परियोजना की अपफ्रन्ट प्रिमियम राशी जमा नहीं करवा पाया और न ही काम शुरू कर पाया। इस कारण सरकार ने यह आवंटन रद्द कर दिया।
जब यह आंवटन रद्द हुआ उसी दौरान वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर ने प्रतिभा सिंह और वीरभद्र को करीब चार करोड़ का मुक्त ट्टण देकर सबको चैंका दिया। यही नही इसी वक्कामुल्ला ने वीरभद्र के बेटे विक्रमादित्य की कंपनी को भी करीब डेढ करोड़़ का ऋण दिया है। वक्कामुल्ला की एक अन्य कंपनी से प्रतिभा सिंह, अपराजिता कुमारी और अमित पाल सिंह ने एक करोड़ के शेयर खरीद रखे हैं। धूमल पुत्रों ने इस ऋण को लेकर एक बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया था। आरोप लगा था कि यह सारा लेन देन इस प्रोजेक्ट की एवज में हुआ है। इसी परिदृश्य में वक्कामुल्ला ने साई कोठी प्रोजेक्ट के रद्द हुए आंवटन को पुनः बहाल करने की गुहार लगायी।यह गुहार मान ली गयी और आवंटन बहाल कर दिया गया। लेकिन इसमें अपफ्रन्ट प्रिमियम बढ़ाकर एक करोड़ से भी थोड़ा ज्यादा कर दिया गया। लेकिन समय विस्तार हासिल करने के वाबजूद भी वक्कामुल्ला यह राशी जमा नही करवा पाये। सरकार ने नवम्बर 2013 में फिर यह आवंटन रद्द कर दिया।
आंवटन रद्द किये जाने को वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। उसका एतराज है कि समय विस्तार देने के साथ अपफ्रन्ट प्रिमियम की राशी नही बढ़ायी जा सकती। सरकार अदालत में अपने स्टैण्ड पर कायम है। अब 22 अगस्त को यह मामला मुख्य न्यायधीश मंसूर अहमद मीर और जस्टिस त्रिलोक चैहान की खण्डपीठ में लगा था। वक्कामुल्ला ने इस पर बहस के लिये समय मांगा और अब 29.11.2016 को इसकी सुनवाई होगी। वक्कामुल्ला वीरभद्र परिवार को ऋण देने के मामले में ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं। ईडी की आंशका है कि यह मुक्त ऋण देने की बात केवल पेपर एंट्री है। अब वक्कामुल्ला को अपनी वित्तिय हैसियत प्रमाणित करने की चुनौती है और उस चुनौती में यह साई कोठी प्रोजेक्ट भी एक बड़ा सवाल बन कर रास्ते में खडा हो गया है।
शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और उनके प्रधान निजि सचिव सुभाष आहलूवालिया के मामलों में ईडी के अलग-अलग आचरण को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। स्मरणीय है कि मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई में दर्ज आय से अधिक संपत्ति का मामला ईडी में उनके एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चैहान की गिरफ्तारी तक जा पहुंचा है। वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय से लगातार सुरक्षा की गुहार लगा रहे हंै । लेकिन अभी तक सफलता नही मिली है। जबकि सुभाष आहलूवालिया के मामले में ईडी एकदम खामोश बैठ गया है। ईडी की इस खामोशी को लेकर जांच ऐजैन्सी की निष्पक्षता और उसमें संभावित जुगाड़तन्त्र को लेकर हर तरह के सवाल उठने लग पड़े हैं।
स्मरणीय है कि ईडी में 2015 के शुरू में ही दो वकीलों अजय पराशर और अनिल कालिया द्वारा कालेधन पर गठित एसआईटी के सदस्य सचिव एम एल मीणा को सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ भेजी शिकायत मिली थी। शिकायत में आहलूवालिया के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और मनीलाॅंडरिंग के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। कालेधन पर गठित एसआईटी को भेजी यह शिकायत जब सामान्य विभागीय प्रक्रिया के तहत ईडी के पास पहुंची तो इसे अगली कारवाई के लिये शिमला कार्यालय को भेजा गया था। ईडी के शिमला कार्यालय में पहंुची इस शिकायत पर सुभाष आहलूवालिया को अपना पक्ष रखने के लिये नोटिस भेजा गया था। नोटिस में यह कहा गया था कि अमेरीका में उनके कथित कज़िन नरेश आहलूवालिया के साथ उनके रिश्तों तथा नरेश आहलूवालिया के विषय में विस्तृत जानकारी जानने के लिये उन्हें तलब किया गया है। लेकिन जैसे ही इस नोटिस के भेजे जाने के समाचार छपे उसी के साथ ईडी के शिमला स्थित सहायक निदेशक भूपेन्द्र नेगी की प्रतिनियुक्ति रद्द किये जाने को लेकर प्रदेश सरकार को पत्र भेज दिया। इस पत्रा के साथ बढ़े विवाद पर भाजपा ने प्रदेश विधान सभा में हंगामा खड़ा कर दिया था। सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी। उस समय मुख्यमन्त्री ने सदन को बताया था कि सुभाष आहलूवालिया का मामला चण्डीगढ़ स्थानान्तरित हो चुका है। चण्डीगढ़ कार्यालय के मुताबिक यह मामला दिल्ली स्थानान्तरित हो चुका है। यह एक गंभीर शिकायत थी जिस पर सदन की कारवाई बाधित कर दी गयी थी।
लेकिन इस विवाद के बाद आज तक इस शिकायत को लेकर और कोई कारवाई सामने नहीं आयी है। शिकायत में 103 करोड़ के कालेधन तथा सोलह बैंक खातों और उन्नीस संपतियों का विवरण है। सबसे रोचक पक्ष यह है कि जब यह शिकायत चर्चा में आयी थी उस समय वीरभद्र परिवार के खिलाफ सीबीआई या ईडी में कहीं कोई मामला नहीं था। लेकिन उसके बाद वीरभद्र के परिवार के खिलाफ दर्ज मामले कहीं के कहीं पहुंच गये है। जबकि सुभाष के मामलों को भाजपा और ईडी तक सभी भूल गये हैं। ईडी के इस तरह के आचरण को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। स्मरणीय है कि धूमल शासन में विजिलैन्स द्वारा शुरू की गई इस जांच का चालान विशेष न्यायाधीश वन की अदालत में पहुंचा था लेकिन इस पर कोई फैंसला आने से पहले ही सरकार बदल गयी और वीरभद्र सत्ता में आ गये तथा इस मामले को वापिस ले लिया गया । इसी कारण यह शिकायत नये सिरे से उठी और ई डी तक पहुंची है। यह शिकायत पाठकों के सामने यथास्थिति रखी जा रही है।
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