Friday, 19 September 2025
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क्या वीरभद्र के खिलाफ चल रही जांच सही में राजनीतिक प्रतिशोध है? या मामले को मोड़ देने के लिये सुनियोचित प्रचार है

शिमला/शैल। वीरभद्र और अन्य के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति और ईडी में मनी लॉडंरिग के तहत मामले दर्ज होकर जांच चल रही है। सीबीआई ने जांच पूरी करके ट्रायल कोर्ट में चालान दायर करने की अनुमति दिल्ली उच्च न्यायालय से मांग रखी है इस पर अदालत में बहस चल रही है वीरभद्र का तर्क है कि इस प्रकरण की जांच करने का अधिकार ही सीबीआई को नही था इसलिये इस संद्धर्भ में दर्ज एफ आई आर रद्द होनी चाहिये। ईडी ने इस प्रकरण में आधी जांच पूरी करके एक चालान ट्रायल कोर्ट में भी डाल दिया है। इसी जांच आठ करोड़ की चल अचल संपत्ति 23 मार्च को अटैच हुई थी और इसी जांच के परिणाम स्वरूप आनन्द चौहान आज जेल में है। वीरभद्र और उनके परिजन इस मामले को केवल आयकर का मामला करार देकर सीबीआई और ईडी की जांच को केन्द्र सरकार का राजनीतिक प्रतिशोध प्रचारित कर रहें है सीबीआई के अधिकार क्षेत्र पर हिमाचल उच्च न्यायालय में ही सवाल खड़ा कर दिया गया। हिमाचल उच्च न्यायालय ने यह सवाल आने पर सीबीआई पर कुछ बंदिशे लगा दी थी लेकिन साथ ही जांच जारी रखने के भी निर्देश दे दिये थे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया था। जहां इस पर सुनवाई चल रही हैं लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच को सीबीआई के अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पर अन्तिम फैसला आ जाने तक रोका तक नही गया। आज सीबीआई औ ईडी अपनी जांच के परिणामों के आधार पर इसको एक पुख्ता मामला मान रहे है। एक वर्ष से अधिकार क्षेत्र का यह सवाल उच्च न्यायालय के सामने खड़ा है मजे की बात तो यह है कि वीरभद्र सिंह ने भी अधिकार क्षेत्र के सवाल के साथ इसकी जांच को स्टे करने तक की गुहार नहीं लगायी है। इस परिदृश्य में यह पूरा प्रकरण एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। 

इसलिये पूरे प्रकरण को इस पृष्ठभूमि में समझने की आवश्यकता है वीभरद्र सिंह ने वर्ष 2006- 2007 और 2007-2008 के लिये जो आयकर रिटर्न दायर किये है उनका फैसला 1-7-2008 और 17-6-2009 को आया है। इन दोनों रिटर्नज में एक साल 12,05,000 और 16,00,000 का सेब एक नरवीर जनारथा को बेचा दिखाया गया है। दोनों वर्ष आय का मुख्य स्त्रोत कृषि आय और बैंक की जमा पूंजी पर ब्याज दिखाया गया हैं। कृषि आय से हटकर 2006- 2007 में 4,38,890 और 2007- 2008 में 6,56,809 रूपये की आय दिखाई गयी है। आनन्द चौहान के साथ बागीचे के प्रबन्धन का एग्रीमेन्ट 15-6-2008 को साईन हुआ है। वर्ष 2009 - 2010 में पहले आय 7,35,000 दिखायी गयी है। और संशोधित रिटर्न में यही आय 2,21,35,000 हो जाती है ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब चौहान के साथ एग्रीमेन्ट तो 15-6-2008 को साईन हो गया। 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला भी 17-6-2009 को आ गया तो फिर इस बीच आनन्द चौहान ने यह क्यां नही बताया कि वर्ष 2009- 2010 मे सात लाख के नहीं बल्कि दो करोड़ से भी अधिक के सेब हुए हैं। संशोधित रिटर्न मार्च 2012 मे दायर हुए । अर्थात मार्च 2012 तक संशोधित रिटर्न के हिसाब से पूरी पैमेन्ट आ गयी थी। 17-6-2009 को जब 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला डीआर कालिया ने किया तब तक इस बढ़ी हुई आय का कोई संकेत नही है। संयोगवश जून 2009 में ही वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री बने और 2012 तक रहे । आयकर विभाग ने 2011 में चौहान से पूछताछ शुरू कर दी थी। वीरभद्र और उनके परिवार के नाम आनन्द चौहान 31-12-2010 तक सारी पालिसीयां बना लेता है जिसका अर्थ है कि उस समय आनन्द के पास सारा कैश आ चुका फिर यह कैसे हुआ कि इस बढ़ी आय पर संशोधित रिटर्न 2010 या 2011 में क्यों दायर नही हुए? नवम्बर- दिसम्बर 2011 में आनन्द चौहान आयकर विभाग में ब्यान देता है और उसके बाद ही यह संशोधित रिटर्न दायर होते है। इस परिदृश्य में क्या इसे महज आयकर का ही मामला माना जा सकता है? इस सवाल पर आयकर से लेकर सीबीआई और ईडी तक इसे कृषि आय मानने को तैयार नही है और वीरभद्र ने कृषि आय से हटकर आय का और कोई बड़ा स्त्रोत कभी बता नही रखा है।
दूसरी ओर 30-11-2010 और 1-12-2010 को मित्तल इस्पात उद्योग पर हुए छोपमारी में जो डायरी आयकर विभाग को मिली थी उसमें 28-10-2009, 23-12-2009, 21-04-2010 और 24-8-2010 'Min of Steel  APs' के नाम भी 15 लाख की पैमेन्ट दर्ज है। यह डायरी आने के बाद जनवरी 2011 में ही वीरभद्र को स्टील मन्त्रालय से बदल दिया गया था। इस मन्त्रालय के बदलाव पर कई अखबारों ने इसे 2012 में इस डायरी प्रकरण का परिणाम कहा था। जनवरी 2013 से इसमें प्रशान्त भूषण और उनका एन जी कामन काज़ सामने आ गया उसने सीबीआई, सी बी सी और केन्द्र सरकार सभी से इस प्रकरण में जांच की मांग उठायी। लेकिन जब किसी ने कोई कारवाई नही की तो उसने दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दे दी । इस पर वीरभद्र सरकार और स्वयं वीरभद्र ने इस पर एतराज उठाया कि प्रशान्त भूषण यह मामला जनहित में नहीं वरन् व्यक्तिगत द्वेष से उठा रहे है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कपिल सिब्बल के एतराज को मानते हुए प्रशान्त भूषण और कामन काज दोनो को इससे हटाकर इसमें कोर्ट मित्र की नियुक्ति करके इसको अदालत का स्वतः संज्ञान मान लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस स्टैण्ड से सीबीआई हरकत में आयी। इसमें पहले स्टेटस रिपोर्ट दायर हुई। इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपना रूख और कड़ा कर लिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय के इसी कड़े रूख का परिणाम है कि इसमें यह एक एफ आई आर दर्ज हुई। ऐसे में इतनी लम्बी कानूनी यात्रा के बाद का क्या इसका परिणाम एफआई आर रद्द होने या चालान ट्रायल कोर्ट में दाखिल होने के रूप में सामने आता है। इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। क्योंकि इस मामले में यह भी महत्वपूर्ण हैं कि जब विक्रमादित्य और अपराजिता के नाम एल आई सी की पालिसीयां ली गयी तब उनके पास आय का स्वतन्त्र स्त्रोत क्या था? सारी पालिसीयां और एफ डी आर 23 मार्च के अटैचमैन्ट आर्डर में दर्ज है वह सब 31-12-2010 तक ली गयी थी। इसी अटैचमैन्ट आर्डर में यह भी दर्ज है कि विक्रमादित्य ने पहली बार आयकर रिटर्न 2011 में भरी है। इसका अर्थ है कि तब तक उसके पास कोई स्वतन्त्रा आय का स्त्रोत नही था और सब कुछ वीरभद्र सिंह का ही दिया हुआ था। इस नाते इस सारी आय का स्पष्टीकरण केवल वीरभद्र सिंह से ही आना है और यह उनकी घोषित आय से मेल नही खाता है। सूत्रों की माने तो सीबीआई ने आय का मूल आधार 1948, 1953 और फिर 1974 में आये राजस्व नियमों के तहत शेष बची संपत्ति को माना है और इस संपत्ति के अतिरिक्त और कोई आय स्त्रोत घोषित नही है यह दायर ही रिटर्न से साबित हो जाता है।


क्या वीरभद्र के खिलाफ चल रही जांच सही में राजनीतिक प्रतिशोध है? या मामले को मोड़ देने के लिये सुनियोचित प्रचार है

शिमला/शैल। वीरभद्र और अन्य के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपत्ति और ईडी में मनी लॉडंरिग के तहत मामले दर्ज होकर जांच चल रही है। सीबीआई ने जांच पूरी करके ट्रायल कोर्ट में चालान दायर करने की अनुमति दिल्ली उच्च न्यायालय से मांग रखी है इस पर अदालत में बहस चल रही है वीरभद्र का तर्क है कि इस प्रकरण की जांच करने का अधिकार ही सीबीआई को नही था इसलिये इस संद्धर्भ में दर्ज एफ आई आर रद्द होनी चाहिये। ईडी ने इस प्रकरण में आधी जांच पूरी करके एक चालान ट्रायल कोर्ट में भी डाल दिया है। इसी जांच आठ करोड़ की चल अचल संपत्ति 23 मार्च को अटैच हुई थी और इसी जांच के परिणाम स्वरूप आनन्द चौहान आज जेल में है। वीरभद्र और उनके परिजन इस मामले को केवल आयकर का मामला करार देकर सीबीआई और ईडी की जांच को केन्द्र सरकार का राजनीतिक प्रतिशोध प्रचारित कर रहें है सीबीआई के अधिकार क्षेत्र पर हिमाचल उच्च न्यायालय में ही सवाल खड़ा कर दिया गया। हिमाचल उच्च न्यायालय ने यह सवाल आने पर सीबीआई पर कुछ बंदिशे लगा दी थी लेकिन साथ ही जांच जारी रखने के भी निर्देश दे दिये थे। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को ट्रांसफर कर दिया था। जहां इस पर सुनवाई चल रही हैं लेकिन सीबीआई और ईडी की जांच को सीबीआई के अधिकार क्षेत्र के प्रश्न पर अन्तिम फैसला आ जाने तक रोका तक नही गया। आज सीबीआई औ ईडी अपनी जांच के परिणामों के आधार पर इसको एक पुख्ता मामला मान रहे है। एक वर्ष से अधिकार क्षेत्र का यह सवाल उच्च न्यायालय के सामने खड़ा है मजे की बात तो यह है कि वीरभद्र सिंह ने भी अधिकार क्षेत्र के सवाल के साथ इसकी जांच को स्टे करने तक की गुहार नहीं लगायी है। इस परिदृश्य में यह पूरा प्रकरण एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिस पर सबकी निगाहें लगी हुई है।
इसलिये पूरे प्रकरण को इस पृष्ठभूमि में समझने की आवश्यकता है वीभरद्र सिंह ने वर्ष 2006- 2007 और 2007-2008 के लिये जो आयकर रिटर्न दायर किये है उनका फैसला 1-7-2008 और 17-6-2009 को आया है। इन दोनों रिटर्नज में एक साल 12,05,000 और 16,00,000 का सेब एक नरवीर जनारथा को बेचा दिखाया गया है। दोनों वर्ष आय का मुख्य स्त्रोत कृषि आय और बैंक की जमा पूंजी पर ब्याज दिखाया गया हैं। कृषि आय से हटकर 2006- 2007 में 4,38,890 और 2007- 2008 में 6,56,809 रूपये की आय दिखाई गयी है। आनन्द चौहान के साथ बागीचे के प्रबन्धन का एग्रीमेन्ट 15-6-2008 को साईन हुआ है। वर्ष 2009 - 2010 में पहले आय 7,35,000 दिखायी गयी है। और संशोधित रिटर्न में यही आय 2,21,35,000 हो जाती है ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब चौहान के साथ एग्रीमेन्ट तो 15-6-2008 को साईन हो गया। 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला भी 17-6-2009 को आ गया तो फिर इस बीच आनन्द चौहान ने यह क्यां नही बताया कि वर्ष 2009- 2010 मे सात लाख के नहीं बल्कि दो करोड़ से भी अधिक के सेब हुए हैं। संशोधित रिटर्न मार्च 2012 मे दायर हुए । अर्थात मार्च 2012 तक संशोधित रिटर्न के हिसाब से पूरी पैमेन्ट आ गयी थी। 17-6-2009 को जब 2007 - 2008 की रिटर्न का फैसला डीआर कालिया ने किया तब तक इस बढ़ी हुई आय का कोई संकेत नही है। संयोगवश जून 2009 में ही वीरभद्र केन्द्र में मन्त्री बने और 2012 तक रहे । आयकर विभाग ने 2011 में चौहान से पूछताछ शुरू कर दी थी। वीरभद्र और उनके परिवार के नाम आनन्द चौहान 31-12-2010 तक सारी पालिसीयां बना लेता है जिसका अर्थ है कि उस समय आनन्द के पास सारा कैश आ चुका फिर यह कैसे हुआ कि इस बढ़ी आय पर संशोधित रिटर्न 2010 या 2011 में क्यों दायर नही हुए? नवम्बर- दिसम्बर 2011 में आनन्द चौहान आयकर विभाग में ब्यान देता है और उसके बाद ही यह संशोधित रिटर्न दायर होते है। इस परिदृश्य में क्या इसे महज आयकर का ही मामला माना जा सकता है? इस सवाल पर आयकर से लेकर सीबीआई और ईडी तक इसे कृषि आय मानने को तैयार नही है और वीरभद्र ने कृषि आय से हटकर आय का और कोई बड़ा स्त्रोत कभी बता नही रखा है।
दूसरी ओर 30-11-2010 और 1-12-2010 को मित्तल इस्पात उद्योग पर हुए छोपमारी में जो डायरी आयकर विभाग को मिली थी उसमें 28-10-2009, 23-12-2009, 21-04-2010 और 24-8-2010 श्डपद वि ैजममस ।च्ेश् के नाम भी 15 लाख की पैमेन्ट दर्ज है। यह डायरी आने के बाद जनवरी 2011 में ही वीरभद्र को स्टील मन्त्रालय से बदल दिया गया था। इस मन्त्रालय के बदलाव पर कई अखबारों ने इसे 2012 में इस डायरी प्रकरण का परिणाम कहा था। जनवरी 2013 से इसमें प्रशान्त भूषण और उनका एन जी कामन काज़ सामने आ गया उसने सीबीआई, सी बी सी और केन्द्र सरकार सभी से इस प्रकरण में जांच की मांग उठायी। लेकिन जब किसी ने कोई कारवाई नही की तो उसने दिल्ली उच्च न्यायालय में दस्तक दे दी । इस पर वीरभद्र सरकार और स्वयं वीरभद्र ने इस पर एतराज उठाया कि प्रशान्त भूषण यह मामला जनहित में नहीं वरन् व्यक्तिगत द्वेष से उठा रहे है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कपिल सिब्बल के एतराज को मानते हुए प्रशान्त भूषण और कामन काज दोनो को इससे हटाकर इसमें कोर्ट मित्र की नियुक्ति करके इसको अदालत का स्वतः संज्ञान मान लिया। दिल्ली उच्च न्यायालय के इस स्टैण्ड से सीबीआई हरकत में आयी। इसमें पहले स्टेटस रिपोर्ट दायर हुई। इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपना रूख और कड़ा कर लिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय के इसी कड़े रूख का परिणाम है कि इसमें यह एक एफ आई आर दर्ज हुई। ऐसे में इतनी लम्बी कानूनी यात्रा के बाद का क्या इसका परिणाम एफआई आर रद्द होने या चालान ट्रायल कोर्ट में दाखिल होने के रूप में सामने आता है। इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है। क्योंकि इस मामले में यह भी महत्वपूर्ण हैं कि जब विक्रमादित्य और अपराजिता के नाम एल आई सी की पालिसीयां ली गयी तब उनके पास आय का स्वतन्त्र स्त्रोत क्या था? सारी पालिसीयां और एफ डी आर 23 मार्च के अटैचमैन्ट आर्डर में दर्ज है वह सब 31-12-2010 तक ली गयी थी। इसी अटैचमैन्ट आर्डर में यह भी दर्ज है कि विक्रमादित्य ने पहली बार आयकर रिटर्न 2011 में भरी है। इसका अर्थ है कि तब तक उसके पास कोई स्वतन्त्रा आय का स्त्रोत नही था और सब कुछ वीरभद्र सिंह का ही दिया हुआ था। इस नाते इस सारी आय का स्पष्टीकरण केवल वीरभद्र सिंह से ही आना है और यह उनकी घोषित आय से मेल नही खाता है। सूत्रों की माने तो सीबीआई ने आय का मूल आधार 1948, 1953 और फिर 1974 में आये राजस्व नियमों के तहत शेष बची संपत्ति को माना है और इस संपत्ति के अतिरिक्त और कोई आय स्त्रोत घोषित नही है यह दायर ही रिटर्न से साबित हो जाता है।


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वीरभद्र प्रकरण में ई डी में प्रोविजनल अटैचमैन्ट हुई रेगुलर, एक और अटैचमैन्ट की संभावना-वीरभद्र को झटका

 वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर, पिचेश्वर गडढे, चुन्नी लाल, राम प्रकाश भाटिया

और कमल कुमार कोठारी भी पंहुचे हैं उच्च न्यायालय में

विक्रमादित्य भी बरसे जेटली, धूमल और अनुराग पर

शिमला/शैल। वीरभद्र और अन्य के खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रहे मामलों की जांच के शीघ्र पूरा होने की संभावना बढ़ गई है। क्योंकि सीबीआई ने तो जांच पूरी करके दिल्ली उच्च न्यायालय से ट्रायल कोर्ट में चालान दायर करने की अनुमति की भी गुहार लगा दी है। इस मामले में वीरभद्र ने सीबीआई के अधिकार क्षेत्रा को चुनौती देते हुए इसमें दर्ज एफ आईआर को रद्द करने की गुहार अदालत से लगा रखी है। इस मामले में अदालत में बहस चल रही हैं वीरभद्र अपना पक्ष रख चुके है और सीबीआई को अब अपना पक्ष रखना है। यदि इसमें दर्ज एफआईआर रद्द न हुई तो इसी सप्ताह सीबीआई का चलान ट्रायल कोर्ट में पंहुच जायेगा। सीबीआई में 28 सितम्बर 2015 को मामला दर्ज हुआ था और एक वर्ष में जांच पूरी करके ऐजैन्सी ने इसे ट्रायल के मुकाम तक पंहुचा दिया है। 

दूसरी और ईडी ने इस मामले में अक्तूबर 2015 में मनीलॉंरिंग के तहत एफआईआर दर्ज की थी और मार्च 23 को इसमें करीब आठ करोड़ की चल अचल संपत्ति की प्रोविजनल अटैचमैन्ट के आदेश किये थे। अब 180 दिन के बाद प्रोविजल अटैचमैन्ट को रिव्यू करने के बाद इसे रेगुलर कर दिया है। इस आदेश के बाद अटैच हुई संपत्ति के सारे लाभों से वीरभद्र परिवार वचिंत हो गया है। राजनीतिक सद्धर्भों में इसे वीरभद्र के लिये एक बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि वीरभद्र के बच्चों ने इस प्रोविजनल आदेश को रद्द करने और इसमें कोई भी अगली कारवाई न किये जाने की अदालत से गुहार लगा रखी थी जिसे नजर अन्दाज करते हुए यह आदेश हुए है। ईडी की जांच में प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष रूप से जितने लोगों का प्रमुख संद्धर्भ आया है उनमें आनन्द चौहान, चुन्नी लाल, वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर, पिचेश्वर गडढे, राम प्रकाश भाटिया और कमल कुमार कोठारी के नाम प्रमुख है। ईडी ने इन सब लोगों से जनवरी 2016 में पूछताछ करके इनके ब्यान दर्ज किये है। पिचेश्वर गड्ढे दंपत्ति से मैहरोली का फार्म हाऊस खरीदा गया है। पिचेश्वर गडढे के 6 जनवरी को ब्यान दर्ज किये गये थे और उसके बाद गड्ढे दिल्ली उच्च न्यायालय में पंहुच गये थे। गड्ढे के बाद अन्य लोग भी उच्च न्यायालय में पंहुच चुके है।
ईडी में अभी तक वीरभद्र पूछताछ के लिये पेश नहीं हुए है जबकि अटैचमैन्ट आदेश से पहले एक दर्जन बार उन्हें नोटिस जारी हुए थे। प्रतिभा सिंह ने जांच में शामिल होने से पहले अदालत से प्रौटैक्शन का आग्रह किया था। यह आग्रह स्वीकार होने के बाद ही वह पूछताछ के लिये गई थी। इसी तर्ज पर विक्रमादित्य सिंह भी अदालत में प्रौटैक्शन का आश्वासन मिलने के बाद ही पूछताछ के लिये पंहुचे। लेकिन इस पुछताछ से बाहर आने के बाद विक्रमादित्य ने जिस अन्दाज में जांच ऐजैन्सी, मोदी सरकार अमित शाह, अरूण जेटली, प्रेम कुमार धूमल और अनुराग ठाकुर को कोसा है। उससे बाहर यह संदेश गया है कि संभवतः यह पूछताछ काफी तलख रही है।
यदि पूरे प्रकरण पर नजर डाली जाये तो इसके दो भाग सामने आते हैं पहले भाग में आनन्द चौहान के खातों में पांच करोड़ से अधिक का कैश जमा होना और उससे वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम बीमा पॉलीसीयां लेना तथा आनन्द चौहान द्वारा इस पैसे को वीरभद्र के बगीचे की आय बताना और खुद को बगीचे का मैनेजर कहना शामिल रहा है। इतने भाग की जांच पूरी होकर अटैचमैन्ट आर्डर जारी हुआ। आनन्द चौहान की गिरफ्रतारी हुई और उसका चालान भी ट्रायल कोर्ट में पंहुच चुका है। लेकिन अटैचमैन्ट आर्डर में यह कहा गया है कि वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर को लेकर जांच जारी है। चालान में भी अनुपूरक चालान शीघ्र लाने की बात कही गयी है।
अब दूसरे भाग की जांच जारी है। जिसमें वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से वीरभद्र और प्रतिभा सिंह के नाम चार करोड़ का मुक्त ऋण, वक्कामुल्ला की ही एक कंपनी से एक करोड़ के शेयर खरीदना शामिल है इसी में पिचेश्वर गडढे दंपत्ति से विक्रमादित्य और अपराजिता की कंपनी मैपल डस्टीनेशन के नाम मैहरोली के फार्म हाऊस की खरीद भी शामिल है। इस फार्म हाऊस की रजिस्ट्री 1.20 करोड़ दिखायी गयी है जबकि जून 2014 में इसी गडढे ने आयकर विभाग की पूछताछ में यह फार्महाऊस 6.81 करोड़ में बेचा जाना और इसमें 5.41 करोड़ कैश में लिया जाना स्वीकारा है। जब 1.20 करोड़ में फार्महाऊस खरीदा गया। उसी दौरान वक्कामुल्ला चन्द्र की कंपनी तारिणी इन्ट्ररनेशनल ने विक्रमादात्यि की कंपनी मैपल डस्टीनेशन को 1.20 करोड़ ठेका दिया ऑफिस की रैनोवेशन के लिये। लेकिन इसी दौरान वक्कामुल्ला ने मार्किट से 16 करोड इकट्ठा करने के लिये आईपीओ फ्रलोर किये और इसका उद्देश्य भी ऑफिस रेनोवेशन दिखाया। इसी संद्धर्भ में भाटिया और कोठारी के नाम आये है और आयकर ने भी पूछताछ की है। इसी में रोहतांग सुरंग का निर्माण कर रही  Starqbag AFCONS JV कंपनी से लाखों का किराया लिया जाना भी शामिल है। आयकर सीबीआई और ईडी जांच में वक्कामुल्ला की वित्तिय स्थिति को लेकर सन्देह व्यक्त किया गया है। क्योंकि विशाखापट्नम की जिस संपत्ति का उसने दावा किया था वह किसी त्रिपूर्णा अहल्या की है। ऐसे में वक्कामुल्ला से जुडे सारे लेनदेन सन्देह के घेरे में है और इन्ही को लेकर विक्रमादित्य से पूछताछ हुई है। सूत्रों के मुताबिक इन संपत्तियों को लेकर भी ईडी अटैचमैन्ट आदेश जारी कर रही है।

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