Friday, 19 September 2025
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प्रदेश के सियासी समीकरण समय पूर्व चुनावों का स्पष्ट संकेत

शिमला/शैल। जब से केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जेे.पी. नड्डा ने प्रदेश की राजनीति में वापसी के संकेत दिये हैं तब से न केवल भाजपा के भीतरी समीकरणों में ही बदलाव आया है बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित पूरे प्रदेश के सियासी समीकरण बदले हैं। भाजपा में नड्डा को प्रदेश के अगले मुख्यमन्त्री के एक प्रबल दावेदार के रूप में एक वर्ग से देखना शुरू कर दिया है। इस वर्ग का तर्क है कि अगले चुनाव तक धूमल 75 वर्ष की आयु सीमा के दायरे में आ जायेंगे और भाजपा ने जब केन्द्र में 75 के पार के नेताओं को केन्द्रिय मन्त्रीमण्डल से बाहर रखा है तो फिर प्रदेशों में भी यह नियम लागू करना ही पडे़गा। कांगड़ा के सांसद पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार इसी गणित के चलते केन्द्रिय टीम से बाहर है। केन्द्र की इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश के नेताओं का इससे प्रभावित होना भी स्वाभाविक है। इसी प्रभाव का परिणाम था कि जब पिछले दिनो नड्डा पीटरहाॅफ में आये थे तो धूमल के सर्मथकों का एक बड़ा वर्ग उनके गिर्द घेरा डाले देखा गया था। चर्चा तो यहां तब है कि कुछ लोगों ने धूमल और अनुराग के खिलाफ चल रहे एचपीसीए और अन्य मामलों की विस्तृत जानकारी भी पार्टी अध्यक्ष अमितशाह तक पहुंचा दी है। सूत्रोें की माने तो करीब एक दर्जन विधायकों ने भी ऐसे पत्र पर हस्ताक्षर किये है। आय से अधिक संपति की शिकायत का भी पूरा जिक्र इसमें किया गया है। तर्क रखा गया है कि चुनावोेें के दौरान यह मामले चर्चा में आयेगें और इनका पार्टी की सियासी सेहत पर प्रतिकूल असर पडे़गा। धूमल खेमा भी इस पूरे खेल पर नजर रखे हुए है। माना जा रहा है कि इस रणनीति के सूत्र धारों में शान्ता और उनके समर्थक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भाजपा के इन समीकरणों का प्रभाव हिलोपा और प्रदेश की आम आदमी पार्टी ईकाईयों पर भी पडा है। हिलोपा के भाजपा में संभावित विलय की जो चर्चाएं 2013 में ही शुरू हो गयी थी वह अब फलीभूत होती नजर आ रही हैं। हिलोपा का सारा कुनवा नाराज भाजपाईयों का ही था। सब जानते है कि नाराज लोग धूमल की कार्यशैली के विरोधी थे और समय-समय पर अपनी नाराजगी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं तक पहंचाते रहे हैं बल्कि भाजपा से अलग होने से पहले धूमल के खिलाफ एक विस्तृत प्रतिवेदन तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी को सौंपा था। जिसकी जांच उस समय नड्डा को ही सौंपी गयी थी। हिलोपा के कई लोग विलय का एक समय तक विरोध करते रहे है। लेकिन अब बदले समीकरणों में सबने एकमत से यह फैसला महेश्वर पर छोड़ दिया हैै। हिलोपा का विधिवत विलय कभी भी सुनने को मिल सकता है। क्योंकि इस समय यह विलय हिलोपा और भाजपा दोनों की राजनीतिक आवश्यकता बन चुका है। भाजपा का राष्ट्रीय ग्राफ अब आशानुरूप आगे नहीं बढ़ रहा जिसके हर आये दिन नए नए कारण बनते जा रहें हंै। हिलोपा विलय की चर्चा के बाद विकल्प बनने की सोच भी नही सकती है।
स्ंायोगवश इसी सबके बीच प्रदेश की आम आदमी पार्टी ईकाई भी भंग हो गयी। लोकसभा चुनावोें में चारो सीटों पर चुनाव लड़कर प्रदेश में कदम रखने वाली पार्टी तब से लेकर अब तक अपनी उपस्थिति तक ढंग से दर्ज नही करवा पायी। परिणाम स्वरूप केन्द्रिय नेतृत्व को कड़ा कदम उठाते हुए इसे भंग करना पडा। नयी ईकाई के गठन की प्रक्रिया तो चल रही है लेकिन कब तक यह पूरी होकर प्रभावी ढंग से काम करना शुरू कर पायेगी यह कहना कठिन है फिलाहल आप के न होने का भी लाभ भाजपा और कांग्रेस को ही मिलेगा यह स्वाभाविेक है।
कांग्रेस इस समय वीरभद्र मामले में ऐसी उलझ गयी है कि उसे कोई भी स्पष्ट फैसला लेने का साहस नही हो रहा है। सरकार इस समय हर रोज अपनी कथित उपलब्धियों के वखान नये-नये विज्ञापन जारी कर रही है। विज्ञापनों की रफ्रतार जितनी तेज है उतनी ही तेजी वीरभद्र के दौरे में रही है। वीरभद्र ने भी अपने दौरों में जनता को दिल खोल कर घोषणाओं का तोहफा दिया है। घोषणाओं और विज्ञापनों को एक साथ मिलाकर देखाजाये तो पूरी स्थिति चुनाव प्रचार अभियान का संकेत देती है। क्योंकि घोषणाओं और विज्ञापनों से जनता में जो जन अपेक्षाएं उभार दी गयी हैं उन्हे दिसम्बर 2017 तक यथा स्थिति बनायेे रखना किसी के लिये भी संभव नहीं है। फिर वीरभद्र सीबीआई और ईडी के जाल में ऐसे उलझे हुए हैं कि हर समय किसी भी अशुभ की आंशका के साये में जी रहे हैं। यह आंशका कभी भी सही सिद्ध हो सकती है कि स्थिति बनी हुई है। ऐसे में कांग्रेस के लिये नेतृत्व परिवर्तन या विधानसभा भंग करवा कर नये चुनावों में जाने का फेैसला लेने की बाध्यता बढ़ती जा रही है। यदि विधानसभा भंग करवा कर नये चुनाव करवाने का फैसला लिया जाता है तो भाजपा भी उसका अनुमोदन करने को तैयार बैठी है कांग्रेस और भाजपा दोनों ही यह चाहेगें कि अगले वर्ष पंजाब के चुनाव होने से पहले ही हिमाचल के चुनाव करवा लिये जायंे। क्योंकि इस समय प्रदेश में तीसरा राजनीतिक विकल्प है ही नही। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि इस समस कांग्रेस और भाजपा इस संभावित विकल्प को रोकने के लिये अपरोक्ष में आपस में तालमेल भी कर सकते हैं।

गरफ्तारी की आशंका के साये में वीरभद्र

शिमला/शैल। मनीलाॅडरिंग मामले में ईडी द्वारा वीरभद्र सिंह के एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की गिरफ्तारी के बाद इस मामले का पूरा परिदृश्य बदल गया है। वीरभद्र अपनी गिरफ्तारी की आशंका को भांपते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण में जा पहुंचे हैं। अदालत से उन्हें राहत मिल पाती है या नही इसको लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नही है। जानकारों का मानना है ईडी के जाल में फंसे छंगन भुजबल को आज तक जमानत नही मिल पायी है। तो वीरभद्र को उसी अधिनियम में राहत कैसे मिल पायेगी। इस मामलें में वीरभद्र और परिवार की मुश्किलें बढ़ना तय माना जा रहा है। वीरभद्र अपने खिलाफ सीबीआई और ईडी में चल रही जांच के लिये प्रेम कुमार धूमल, अरूण जेटली और अनुराग ठाकुर को जिम्मेदार ठहराते रहें है। जबकि यदि वीरभद्र के पूरे प्रकरण पर मनीलाॅडरिंग अधिनियम के परिदृश्य में नजर डाली जाये तो इसके लिये सबसे ज्यादा जिम्मेदार वीरभद्र के अपने ही विश्वस्त रहे हैं।
मनीलाॅडरिंग के वर्तमान अधिनियम के प्रावधान के अनुसार बैंको के लिये यह अनिवार्य है कि वह उनके पास किसी के बैंक खाते में अचानक ज्यादा पैसा जमा होने या सामान्य से ज्यादा निकासी की सूचना निमित रूप से आयकर विभाग को देंगे। इसी अनिवार्यता के चलते आनन्द चौहान के खातों की जानकारी आयकर विभाग में पहंुची। यह जानकारी जब पहुंची तब 2011 में आकर ने आनन्द चौहान से पूछताछ शुरू कर दी। आनन्द चैहान के खातों में 2011 तक कैश जमा होने और उस कैश से वीरभद्र और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर एलआईसी पालिसीयां लिये जाने का रिकार्ड था। आनन्द चैहान ने यह पैसा वीरभद्र के सेब बागीचे की आय बताया सेब बागीचे की आय के नाम पर वीरभद्र को तीन वर्षों की आयकर रिटर्नज संशोधित करने पड गयी। 2013 में मनीलाॅडरिंग अधिनियम कुछ संशोधन करके सरकार ने इसे और कड़ा कर दिया। वीरभद्र द्वारा संशोधित आयकर रिटर्नज दायर करने से उन पर भी आयकर की जांच शुरू हो गयी। प्रशांत भूषण ने मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंचा दिया। जिसके चलते सीबीआई और ईडी ने 2015 में वीरभद्र के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जो आज दो लोगों की गिरफ्रतारी और स्वयं उनके द्वारा गिरफ्रतारी की संभावित आशंका के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय से सुरक्षा की गुहार लगाने के मुकाम पर पहुंच गया है। ईडी ने 23.3.2016 वीरभद्र, प्रतिभा सिंह , विक्रमादात्यि और अपराजिता की करीब आठ करोड़ की चल अचल संपति अटैच कर ली है।
अब यदि इस पूरे मामले पर नजर डाली जाये तो यह सामने आता है कि 2011 में आनन्द चैहान की आयकर जांच से यह मामला शुरू होता है। मार्च 2012 में वीरभद्र संशोधित रिटर्नज दायर करते हंै। 2015 में सीबीआई और ईडी मामले दर्ज करते हैं। मार्च 2016 में अटैचमैन्ट आर्डर जारी होता है। 2015 में मामला दर्ज होने तक आनन्द चौहान और वीरभद्र इस पैसे को बागीचे की आय करार देते आये हैं। लेकिन किसी ने भी इस पक्ष को नही देखा कि 6 करोड़ का सेब उत्पादन, फिर उसका विक्रय और मार्किट तक उसके ढुलान का कोई ठोस आधार तो तैयार कर लिया जाता। सेब के ढुलाने में लगे वाहनों की मार्किटींग के लिये एन्ट्री होती है। एक प्रतिशत की फीस सरकार की मार्किट कमेटी को जाती है। लेकिन तीन वर्षाे में छः करोड़ का सेब बेचा जाता विक्री से जुडे कोई भी ठोस दस्तावेज जांच ऐजैन्सीयों को नही दिखाये जाते हैं। यहां तक की मार्किट कमेटी की फीस तक जमा नही होती है। न तो मार्किट कमेटी यह फीस मांगती है और न ही सेब बेचने खरीदने वाले इस ओर ध्यान देते हंै। जनवरी और फरवरी 2016 में जांच एजैन्सीयां अधिकारिक रूप से निदेशक बागवानी, निदेशक ट्रांसपोर्ट और सचिव मार्किट कमेटी से रिपोर्ट हासिल करते हंै। वीरभद्र सरकार के यह तीनो विभाग जो रिपोर्ट जांच ऐजैन्सी को सौंपते है। यह रिपोर्ट वीरभद्र और आनन्द चैहान के दावों का समर्थन नही करती है। इनके मुताबिक सेब के उत्पादन और उसकी बिक्री से जुडे सारे दावे आधारहीन हैं। इन रिपोर्टों पर आनन्द चौहान और वीरभद्र को अपना पक्ष रखने के लिये ऐजैन्सी बुलाती है। लेकिन यह लोेग नही जाते हैं और अन्ततः 23.3.2016 को ईडी आठ करोड़ की संपति अटैच कर लेती है।
यहां यह सवाल उठता है कि क्या वीरभद्र के विश्वस्तों ने इनती लंबी चली जांच प्रक्रिया के दौरान इस मामले की गंभीरता का आकलन ही नही किया या फिर उनकी नीयत में कोई खोट था। जानकारों का मामना है कि ईडी के अटैचमैन्ट आर्डर से पहले तक वीरभद्र और आनन्द चौहान को इस संकट से बाहर निकलने के कई रास्ते थे। ईडी की जांच में ठीक से शामिल न होना भी नुकसान देह रहा है। दूसरी ओर धूमल के खिलाफ आयी आय से अधिक संपति की शिकायत पर आज तक मामला दर्ज न हो पाना तो विश्वस्तों की नीयत और नीति पर सीधे सवाल खडे़ करता है। यहां तक कि आज जब वीरभद्र अपने विश्वस्तों को धूमल परिवार के मामले में गंभीरता और तेजी लाने के निर्देश देते हैं तो इन पर अमल होने से पहले ही इसकी सूचना अरूण धूमल को पहुंच जाती है और वह इस पर डीजीपी को सोशल मीडिया में धमकी तक दे डालते हैं। यह दूसरी बात हैं कि स्वंय वीरभद्र ने भी 31.3.99 को मुख्यसचिव और एडीजीपी विजिलैन्स को पत्रा लिखकर ऐसी ही धमकी दी थी। वीरभद्र की यह धमकी तो आज भी उन पर भारी पड़ सकती है और इसकी जानकारी उनके विश्वस्तों को भी है जो इस पर मौन बैठे हुए हंै। वीरभद्र की जांच के मामलों में यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि उनके विश्वस्तों ने इस बारे में उनकी ईमानदारी से सहायता करने या राय देने में उचित भूमिका नहीं निभायी है।

आनन्द और चुन्नी लाल के बाद कुछ और गिरफ्तारीयों की संभावना बढ़ी

शिमला/शैल। वीरभद्र और परिवार के खिलाफ सीबीआई में आय से अधिक संपति और ईडी में चल रहे मनीलाॅॅंडरिंग मामलों में चुन्नी लाल और आनन्द चैहान के बाद कुछ आर गिरफ्रतारीयां होने की संभावना बढ़ गयी है। क्योंकि जून में आयकर प्राधिकरण के चण्डीगढ़ बैंच में चल रही वीरभद्र सिंह की अपील पर सुनवाई रूक गयी और बैच में कुछ स्थानान्तर हो गयेे। स्मरणीय हैं कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रहे मामलों में तीनों विभाग-आयकर सीबीआई तथा ईडी आपसी तालमेल बनाये हुए है। आयकर ने अपनी जांच में जो कुछ तथ्य जुटाये हैं उनकी जानकारी यथा स्थिति सीबीआई को दे दी गयी थी। सीबीआई ने अपनी जांच के सारे तथ्य ईडी को उपलब्ध करा दिये। क्योंकि ईडी का आयकर और सीबीआई पर समानान्तर अधिकार क्षेत्रा है। इन विभागों में आये मामलों की पूरी जानकारी ईडी को दे दी जाती है।
आनन्द चौहान के बैंक खातों में एकदम करोड़ों रूपया कैश जमा होने और फिर उसे निकाले जाने की जानकारी जब सामान्य रूप से आयकर विभाग में पहुंची थी तब आनन्द चौहान ने आयकर में 22.11.11 को पेश होकर यह बताया था कि उसी का पैसा है और उसका पूरा ब्योरा 15 दिन बाद विभाग को सौंप देगा। लेकिन जब 15 दिन बाद फिर पेश हुआ तो इस पैसे को वीरभद्र के बागीचे की आय बताया और अपने को बागीचे का प्रबन्धक तथा इस आश्य का एक 15.6.08 का हस्ताक्षरित ऐग्रीमेंन्ट भी पेश कर दिया। आनन्द के खाते में करोड़ो जमा हुआ था और उससे वीरभद्र परिवार के सदस्यों के नाम पर करोड़ो की एल आई सी पालिसियां ली गयी थी। जबकि वीरभद्र सिंह ने अपनी आयकर रिटर्नज में तीन साल की कुल आय 47.35 लाख दिखा रखी थी। आनन्द चैहान के ब्यान के बाद वीरभद्र ने मार्च 2012 में इन्ही वर्षो की संशोधित रिटर्न फाईल करके 47.35 की आय को बढकार 6.1 करोड़ दिखा दिया। इस विरोधाभास के कारण पूरे मामले की जांच हुई। जांच में आनन्द चैहान के साथ हुआ एग्रीमैन्ट सही नही पाया गया बल्कि 17.6.08 का इसी बागीचे का एक और एग्रीमैन्ट विश्म्बर दास के साथ मिल गया। इसकी सत्यता भी संदिग्ध हो गयी। बागीचेे में करोड़ो के सेब के उत्पादन की संभावनाओं पर बागवानी निदेशालय से रिपोर्ट ली गयी और इस रिपोर्ट ने भी आनन्द चौहान और वीरभद्र के दावों का समर्थन नही किया। यह सेब परवाणु के सेब व्यापारी चुन्नी लाल को बचा दिखाया गया। इतने सेब की ढुलाई के लिये जो वाहन प्रयुक्त हुए दिखाये गये उन पर ट्रांसपोर्ट निदेशालय से रिपोर्ट ली गयी। इस रिपोर्ट में दिखाये गये नम्बरों के वाहन पाये ही नही गये। सेब की ढुलाई में प्रयुक्त वाहनों की मार्किटिंग बोर्ड केे रिकार्ड में एन्ट्री होती है। परन्तु मार्किटिंग बोर्ड की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि ऐसी एन्ट्रीयां उनके रिकार्ड में नही हैं। चुन्नी लाल ने जिन फर्माे से आनन्द चैहान को एक करोड़ की कैश पेमैन्ट एडवासं में उसके सामने उसके कार्यालय में दिया जाना दिखाया सीबीआई की जांच में वह फर्मे पायी ही नही गयी। इस तरह उत्पादन से लेकर विक्रय तक के सारे दावे सही नही पाये गये हैं। जबकि एलआई सी की रिपोर्ट में 18 पालिसीयां होने की डिटेले दी गयी है। इनमें से कुछ को भुनाकर ग्रेटर कैलाश दिल्ली में खरीदे गये मकान में निवेश किया गया है। इस तरह आनन्द चौहान और चुन्नी लाल के माध्यम से बैंक में आये करोड़ो के प्रत्यक्ष लाभार्थी वीरभद्र और परिवार है यह सीबीआई और ईडी की जांच में आ चुका है।
इसी दौरान वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर के माध्यम से भी छः करोड से अधिक का फ्री लोन वीरभद्र परिवार को मिला है। एक कंपनी में वीरभद्र परिवार के सदस्यों के 90 लाख के शेयर और उनके ओएडी अमित पाल के दस लाख के शेयर सामने आये हैं। वक्कामुल्ला का आय का स्तो़त्रा भी अभी तक प्रामाणित नही हो पाया है। जबकि इसी दौरान महरौली में फार्म हाऊस की खरीद सामने आ चुकी है। वक्कामुल्ला को लेकर ईडी में अभी तक जांच चल रही है। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया में वीरभद्र के ओएसडी को लेकर एक पोस्ट चर्चा में चल रही है। इस पोस्ट मुताबिक अमित पाल ने देश के कई भागों में सात प्लैट और 79 करोड़ के निवेश कर रखे हैं। अमित पाल ने इस पोस्ट के होने की पुष्टि करते हुऐ दावा किया हैं कि सब गल्त है और इसको लेकर उन्होने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवा रखी है। जिसे वह शीघ्र ही सार्वजनिक कर देगें। लेकिन पुलिस विभाग ने ऐसी कोई शिकायत आने की पुष्टि नही की है। इस समय अमित पाल को लेकर ऐसी पोस्ट का सामने आना यह इंगित करता है कि यह पोस्ट भी जांच ऐजैन्सीयों की जांच का केन्द्र बनेगी। दूसरी ओर वीरभद्र के प्रधान निजि सुभाष आहलूवालिया के खिलाफ पहले से ही ऊना के दो वकीलों के नाम से एक शिकायत ईडी में लंबित चल रही है। ऐजैन्सी सूत्रों के मुताबिक अमित पाल की पोस्ट और सुभाष की शिकायत पर भी प्रारम्भिक जांच शुरू हो गयी है।
यह भी चर्चा हैं कि सीबीआई ने एक और पुराने मामले को भी नये सिरे से खंगालने का प्रयास शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक चुन्नी लाल और आनन्द चैहान से कांगडा के बड़ा भंगाल को लेकर भी कुछ प्रश्न पूछे गये हैं। ऐजन्सी सूत्रों के मुताबिक इस मामले में कुछ और  गिरफ्तारीयों होने की भी संभावना है। स्मरणीय है कि आनन्द चैहान और चुन्नी लाल ने हिमाचल उच्च न्यायालय से वीरभद्र की तर्ज पर राहत मांगी थी जो उन्हे नही मिली है। इस तरह ईडी पर अदालत की ओर से वंदिश नही है। इस मामले में वरिष्ठ वकील आरके आनन्द और सलमान खुर्शीद को शिमला लाकर उनसे राय लिये जाने की भी चर्चा है। कुछ राजनीतिक हल्कों में यह भी चर्चा है कि पूरे प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए वीरभद्र पद त्यागने का भी फैसला ले सकते हैं।

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