शिमला। आज की राजनीति में केजरीवाल एक ऐसा नाम बन गया है जिसका किये बिना कोई भी राजनीतिक चिन्तन /बहस पूरी नहीं हो सकती। ऐसा इसलिये हैे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में देश की जनता भाजपा के पक्ष में एकतरफा फैसला देकर जो संकेत दिया था उसे दिल्ली और बिहार विधान सभा चुनावों में एकदम पलट दिया। दिल्ली में केजरीवाल की आप ऐसा राजनितिक इतिहास रचा है शायद उसे ’’आप’’ भी दूसरी बार दोहरा सके। बिहार में भी आप ने स्वयं चुनाव न लडकर नीतिश, लालू और कांग्रेस के गठबधन को सक्रिय समर्थन देकर अपने को राजनीतिक गणना और विश्लेषण में बनाये रखा है। आज आप पंजाब विधानसभा चुनावों के लिये कांग्रेस तथा अकाली भाजपा गठनबन्धन के विकल्प के रूप में चर्चित होता जा रहा है। पंजाब की अंतिम राजनीतिक तस्वीर क्या उभरती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन यह तय है कि वहां पर आप को अनदेखा करना संभव नही है। 2014 के लोक सभा चुनावों में आप पहली बार राजनीतिक पटल पर उभरी और आज भाजपा -कांग्रेस के संभावित विकल्प की गणना तक पहुंच चुकी है। यह अपने में एक बडी उपलब्धि है । आप को इस मुकाम तक पहुंचाने मे केजरीवाल की भूमिका प्रमुख रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि कांग्रेस के अन्दर जो स्थान नेहरू गांधी परिवार का है आप में वही स्थान केजरीवाल का बनता जा रहा है। केजरीवाल एक तरह से आप का प्लस और माईनस दोनों बन चुका है। ऐसा होने के बहुत सारे कारण है जिन पर चर्चा की जा सकती है। केजरीवाल का बतौर मुख्य मन्त्री अपने पास एक भी विभाग को न रखना । एक ऐसा हथिहार बन गया है जिसके कारण वह निःसंकोच भ्रष्टाचार की हर शिकायत पर कारवाई करने का दम दियाा रहे है।
लेकिन आज आप को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने के लिये उन्हें हर राज्य में अपनी टीम का चनय करते समय यह ध्यान रखना होगा कि वहां भी उन्हेे दूसरे केजरीवल ही मिले। आज केजरीवाल और मोदी की केन्द्र सरकार में हर समय टकराव चल रहा है। केजरीवाल के 67 विधायकों की टीम में बहुत सारे चेहरे ऐसे भी रहे होगें जिनके बारे में सारी जानकारियां उनके विधायक बनने के बाद मिली हो क्योंकि चुनाव के समय एक लहर थी जिसमें गुण दोष की परख कर पाना संभव नहीं था। लेकिन आज अन्य राज्यों में संगठन खडा़ करते समय गुण दोष को नजर अन्दाज करना हितकर नही रहेगा। केजरीवाल ने जिस तरह से भाजपा के नितिन गडकरी के खिलाफ पूर्ति उ़द्योग समूह को लेकर हमला बोला था उसके कारण गडकरी को अध्यक्षता का दूसरा कार्यकाल नहीं मिल पाया था। लेकिन गडकरी ने जब अपने उपर लगे आरोपों को लेकर अदालत में मानहानि दायर किया तब केजरीवाल को वह आरोप प्रमाणित करने भारी पड गये थे। परन्तु अब जब उसी तर्ज पर केजरीवाल ने क्रिकेट के मुद्दे पर अरूण जेटली को घेरा है तब स्थितियां अलग है। क्योंकि आज दिल्ली सरकार की अपनी जांच रिपोर्ट और भाजपा सासंद कीर्ति आजाद के जेटली पर आरोप केजरीवाल के स्टाक में मौजूद है।
लेकिन जिस ढंग से केजरीवाल ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को चुनौति दे रखी उसका राजनीतिक बदला लेने के लिये भाजपा राज्यों में अपने लोगों को आप मे भेजने की रणनीति बनाकर आप को तोड़ने का प्रयास अवश्य करेगी । क्योंकि भाजपा औकर आप का सत्ता में आना अन्ना आन्दोलन का ही प्रतिफल है । लेकिन यह भी एक कडवा सच है कि अन्ना का सारा आदोंलन संघ प्रायोजित था और आज उसी आन्दोलन का नाम लेकर भाजपा और उसके समर्थित संगठनों के लेाग आप में घुसने का प्रयास करेगें ।क्योंकि आज भाजपा को जो राजनितिक चुनौती आप से है वह कांग्रेस से नहीं है। भले ही कांग्रेस आज भी सबसे बडा राजनितिक संगठन है और भाजपा जन समर्थन खोती जा रही है लेकिन कांग्रेस के ऊपर भ्रष्टाचार के जो आरोप लग चुके है उनके साये से वह अभी तक उक्त नहीं हो पायी है। कांग्रेस ने अपने किसी भी नेता को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते हटाया नही बल्कि यदि ध्यान से देखा जाये तो मोदी सरकार ने भी कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर से ध्यान हटाना शुरू कर दिया है। जबकि देश में सत्ता परिवर्तन भ्रष्टाचार के कारण हुआ है। लेकिन आज भ्रष्टाचार की जगह कुछ दूसरे मुद्दे उछाल दिये गये है और भ्रष्टाचार पृष्ठभूमि में चला गया है। केजरीवाल और आप को भाजपा और कांग्रेस का विकल्प बनने के लिये इस स्थिति पर विचार करना होगा।
1974 में बेचे प्लाट पर उठाये सवाल
शिमला/शैल। पूर्व मुख्यमन्त्री और नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे अरूण धूमल ने एक बार फिर वीरभद्र सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दावा किया है कि अभी तो ई.डी. ने केवल आठ करोड़ की संपति ही अटैच की है लेकिन इसमें निकट भविष्य में जो खुलासे वह करेगें उससे संपति का दायरा हजारों करोड़ हो जायेगा। वीरभद्र पर अपने नये हमले को मिशन 2016 का नाम देते हुए इसे शीघ्र ही अंजाम तक पहुंचाने का दावा किया है। हमले की पहली कड़ी में अरूण धूमल ने वीरभद्र सिंह द्वारा 1974 में अपने जाखू स्थित आवास हाॅलीलाज में 1341.57वर्ग मीटर भूमि पांच हजार में कुमार सेन निवासी दीवान चन्द भलैक को बेचने का खुलासा किया। इस खुलासे में धूमल ने जानकारी दी की जमीन तो बेच दी मगर इसके खरीददारों को यंहा पर कोर एरिया के नाम पर मकान बनाने की अनुमति नहीं लेने दी अैार अन्ततः 2007 के अपने शासन काल में महज तीन माह में ही इस जमीन का 25,74,179.00 रूपये में प्रदेश सरकार द्वारा अधिग्रह करवा दिया। इस अधिग्रहण का मकसद नगर शिमला के वन क्षेत्र का विस्तार करना कहा गया है।
1974 में पांच हजार में बेची ज़मीन का 2007 में 25 लाख में प्रदेश सरकार
द्वारा वानिकी के नाम पर अधिग्रहण करना और आज तक उसमें एक भी पेड़ का न लगाया जाना वीरभद्र और उनकी सरकार की नीयत और नीति पर कई गंभीर सवाल खडे़ करता है। इसमें एक रोचक तथ्य यह है कि इस जमीन के मालिकों ने अधिग्रहण का विरोध किया था और इसे लेकर अदालत तक पहुंच चुके हैं। लेकिन अधिग्रहण नियमों में यह प्रावधान है कि यदि अधिगृहित की गयी जमीन का उद्देश्य तीन वर्षाें में पूरा नहीं होता है तो ज़मीन मालिक को वापिस दिये जाने का भी नियमों में प्रावधान है इस जमीन को लेकर यह भी सवाल उठा है कि जब इसी हाॅलीलाज क्षेत्र में वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य को गैस्ट हाऊस निर्माण की दो-दो अनुमतियां मिल सकती हैं तो फिर इन लोगों को मकान बनाने की अनुमति क्यों नहीं मिली। वैसेे 1974 के बाद प्रदेश में दो बार शान्ता कुमार और दो ही बार धूमल की सरकारें भी सत्ता में रह चुकी हैं। नगर निगम के मुताबिक विक्रमादित्य को गैस्ट हाऊस की पहली अनुमति 2011 में धूमल के शासन में मिली थी।
अरूण धूमल ने विक्रमादित्य के निमार्णधीन गैस्ट हाऊस को लेकर यह भी सवाल पूछा कि यह गैस्ट हाऊस तोअभी बन ही रहा है फिर पाॅवर कंपनी को किराये पर कौन सा गैस्ट हाऊस दिया गया था? अरूण धूमल के यह नये हमले कब तक चलते हैं और इनका परिणाम क्या निकलता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इतना स्पष्ट है कि अब यह बात दूर तक जायेगी। क्योंकि इस बीच धूमल और वीरभद्र में पत्रकार शशी कान्त की मध्यस्थता के परिणामस्वरूप सीजफायर हो चुका था। लेकिन अब यह सीजफायर उस वक्त टूटा है जब ई.डी. आठ करोड़ की संपतियां जब्त कर चुका है और वीरभद्र की विजिलैन्स धूमल को नोटिस भेजने की रस्म अदायगी कर चुकी है। अरूण धूमल ने इस नोटिस पर विजिलैन्स अधिकारियों को इसके परिणाम भुगतने के लिये भी तैयार रहने की चेतावानी दी है। अरूण धूमल निकट भविष्य में वीरभद्र प्रकरण में क्या नये खुलासे करते हैं यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन इतना तय है कि अब इसमें शीघ्र ही कुछ नया देखने को मिलेगा।
नई दिल्ली।। केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत की जांच कर रहे एसडीएम की रिपोर्ट के अनुसार उनकी मौत जहर से हुई थी।
सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) ने पुलिस से जहर के कारणों का पता लगाने को कहा है और उन्होंने खासतौर पर हत्या और आत्महत्या के कोणों से मामले की जांच करने के लिए कहा है।
सूत्रों ने बताया कि एसडीएम आलोक शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि सुनंदा के परिवार के किसी भी सदस्य ने उसकी मौत के पीछे किसी षड्यंत्र की आशंका नहीं जताई है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सुनंदा के शव का पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों ने कहा था कि उसकी मौत 'अचानक और अप्राकृतिक' थी और उसकी मौत 'दवा की अधिक खुराक' लेने से हुई, जिसे दूसरे शब्दों में दवा विषाक्ता कहा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि गत शुक्रवार को दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के कमरे में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गईं सुनंदा पुष्कर के मामले में जांच के बाद सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने शशि थरूर को क्लीन चिट दे दी थी। सूत्रों के मुताबिक ऐसा गवाहों के बयान के आधार पर किया गया।
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