Friday, 19 September 2025
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घातक होगी राजनीति में बढ़ती असहनशीलता

अभी पिछले दिनों लंदन में खालिस्तान समर्थकों की एक रैली हुई और आयोजन के लिये वहां की सरकार ने वाकायदा अनुमति दी थी। लेकिन आयोजन के बाद वहां की सरकार ने इस रैली से अपना पल्ला झाड़ लिया है। खालिस्तान समर्थकों की रैली होने का भारत के संद्धर्भ में क्या अर्थ होता है शायद इसे समझने की जरूरत नही है। इस रैली के बाद भारत रत्न पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन हो गया। इस निधन पर पूरा देश शोकाकुल था। वाजपेयी जी की अन्तयेष्ठी पर कुछ नेताओं की सैल्फी तक वायरल हो गयी। इसी दौरान प्रधानमन्त्री मोदी का एम्ज़ के डाक्टरों के साथ एक फोटो फेसबुक पर वायरल हुआ। इस फोटो पर विवाद भी उठा और अन्त में यह प्रमाणित भी हो गया कि यह फोटो इस निधन के बाद का ही था। इसी बीच हिमाचल के पूर्व विधायक नीरज भारती की वाजपेयी जी को लेकर एक पोस्ट फेसबुक पर आ गयी। यह पोस्ट शायद कभी वाजपेयी जी की ही स्वीकारोक्ति रही है इस पोस्ट को लेकर उठे विवाद के परिणामस्वरूप नीरज भारती के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने तक की नौबत आ गयी है।
इसी दौरान पंजाब के मन्त्री पर्व क्रिकेटर सिद्धु पाकिस्तान के नव निर्वाचित प्रधानमन्त्री इमरान खान के शपथ समारोह में शामिल होने पाकिस्तान गये थे। वहां हुए समारोह के फोटो जब सामने आये तो उसमें सिद्धु पाकिस्तान के सेना प्रमुख से गले मिलते हुए देखे गये। सिद्धु के गले मिलने पर भाजपा प्रवक्ता डा. संबित पात्रा ने बहुत ही कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने सिद्धु की पाकिस्तान यात्रा को व्यतिगतयात्रा करार देकर पल्ला झाड़ लिया और पंजाब के मुख्यमन्त्री ने सिद्धु के गले मिलने को जायज़ नही ठहराया है। लेकिन जब प्रधानमन्त्री मोदी अचानक नवाज शरीफ के घर पंहुच गये थे और वेद प्रकाश वैदिक हाफिज सैय्द को मिले थे तब इस मिलने पर भाजपा की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी थी। आज लंदन में खालिस्तान समर्थकों की एक रैली हो जाती है जिसका कालान्तर में पूरे देश पर और खासतौर पर पंजाब पर असर पड़ेगा। लेकिन इस रैली को लेकर भाजपा केन्द्र सरकार, कांग्रेस और पंजाब सरकार सब एक दम खामोश हैं। क्या इस पर इनकी प्रतिक्रिया नही आनी चाहिये थी। जब पाकिस्तान में प्रधानमन्त्री मोदी और वेद प्रकाश वैदिक के व्यक्तिगत तौर पर जाने को लेकर कोई प्रतिक्रिया नही आयी तो फिर आज सिद्धु को लेकर बजरंग दल की ऐसी प्रतिक्रिया क्यों?
इसी तरह आज केरल में आपदा की स्थिति आ खड़ी हुई है। पूरा देश केरल की सहायता कर रहा है। विदेशों से लेकर केरल के लिये सहायता आयी है लेकिन इसी सहायता को लेकर एक सतपाल पोपली की फेसबुक पर पोस्ट आयी है। इस पोस्ट से इन्सानियत शर्मसार हो जाती है। इसकी जितनी निंदा की जाये वह कम है लेकिन इस पोस्ट को लेकर यह प्रतिक्रिया नही आयी है कि इसके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की जाये। हां कुछ लोगों ने इस प्रतिक्रिया को व्यक्त करते हुए गांधी, नेहरू परिवार को लेकर आ रही पोस्टों का जिक्र अवश्य किया है। इस समय सोशल मीडिया पर किसी भी विषय और व्यक्ति को लेकर किसी भी हद तक की नकारात्मक पोस्ट पढ़ने को मिल जाती है। सोशल मीडिया पर बढ़ती इस तरह की नाकारात्मक और फेक न्यूज को लेकर केन्द्रिय मन्त्री रविशंकर प्रसाद ने व्हाटसअप के सीईओ से मिलकर गंभीर चिन्ता व्यक्त की है। इसका परिणाम कब क्या सामने आता है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा।
लेकिन अभी जो यह कुछ सद्धर्भ हमारे सामने आये हैं उससे यही स्पष्ट होता है कि अब समाज से सहिष्णुता लगभग समाप्त हो गयी है। हमारे वैचारिक मतभेद जिस हद तक पंहुच गये हैं उससे केवल स्वार्थ की गंध आ रही है और जब यह स्वार्थ सीधे राजनीति से प्रेरित मिलता है तो इसका चेहरा और भी डरावना हो जाता है। इस समय देश बेरोज़गारी, गरीबी, मंहगाई और भ्रष्टाचार की गंभीर समस्याओं से गुजर रहा है। डालर के मुकाबले रूपये का कमजोर होना इन्ही समस्याआें का प्रतिफल है। इसी के साथ यह भी याद रखना होगा कि इन समस्याआें की जाति और धर्म केवल अमीर और गरीब ही है। इसमें हिन्दु मुस्लिम और कांग्रेस-भाजपा कहीं नही आते हैं। इन समस्याओं पर तो जो भी सत्ता पर काबिज होगा उसकी ही जवाब देही होगी। लेकिन इस जवाब देही से बचने के लिये ही सत्ता पर काबिज रहने का जुगाड़ बैठा रहे हैं। आज सिद्धु और नीरज भारती को लेकर जो विवाद, खड़ा कर दिया गया है क्या सही में उसकी कोई आवश्यकता है। मेरी नज़र में इस तरह की प्रतिक्रियाओं से तो आने वाले दिनों में और कड़वाहट बढ़ेगी। आज सभी राजनीतिक दलों ने जिस तरह से अपने -अपने आईटी प्रोकोष्ठां में हजा़रों की संख्या में अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं को काम पर लगा रखा है उससे एक दूसरे के चरित्र हनन् और फेक न्यूज़ को ही बढ़ावा मिलता नज़र आ रहा है। क्योंकि राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सोच पर तो कोई भी सार्वजनिक बहस चलाने को तैयार नही हैं। 2014 भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे पर सत्ता परिवर्तन हुआ था उस पर इन पांच वर्षों में यह कारवाई हुई है कि 1,76,000 हज़ार करोड़ के कथित 2जी स्कैम के सारे आरोपी बरी हो गये हैं। बैंक घोटालों के दोषी विदेश भाग गये हैं। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम को संशोधित करके हल्का कर दिया गया है और इसके हल्का हो जाने के बाद लोकपाल की आवश्यकता ही नही रह जाती है। 2019 का चुनाव आने वाला है और इसको लेकर कई सर्वे रिपोट आ चुकी है।हर रिपोट में भाजपा की अपने दम पर सरकार नही बन रही है। हर रिपोट प्रधानमन्त्री की लोकप्रियता में लगातार कमी आती दिखा रही है। ऐसे परिदृश्य में यह बहुत संभव है कि कुछ फर्जी मुद्दे खड़े करके जनता का ध्यान बांटने का प्रयास किया जाये और इसमें इस तरह की सोशल पोस्टों की भूमिका अग्रणी होगी। इसलिये इन पोस्टों पर प्रतिक्रिया से पहले इनकी व्यहारिकता पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।

वाजपेयी की विरासत पर भाजपा

भारत रत्न पूर्व प्रधान मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर पूरा देश शोकाकुल रहा है। हर आंख उनके निधन पर नम हुई है और हर शीष ने उन्हे अपने-अपने अंदाज में नमन किया है। वाजपेयी बहुअयामी व्यक्तित्व के मालिक थे। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को शब्दों में समेट पाना संभव नही है। लेकिन वह वक्त के ऐसे मोड़ पर स्वर्ग सिधारे हैं जहां से आने वाले समय में वह राजनीति से जुड़े हर सवाल में सद्धर्भित रहेंगे। वह तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेकिन हर बार सत्ता छोड़ते समय वह कुछ ऐसे नैतिक मानदण्ड छोड़ गये जिन पर उनके हर वारिस का आकलन किया ही जायेगा। खासतौर पर भाजपा नेतृत्व के लिये तो वह एक कड़ी रहेंगे ही। वाजपेयी का स्वास्थ्य लगभग एक दशक से अस्वस्थ्य चल रहा था। पिछले दो माह से तो वह एम्ज़ में भर्ती ही थे। इस दौरान किन लोगां ने उनके स्वास्थ्य की कितनी चिन्ता की कितने और कौन नेता उनका कुशलक्षेम जानने उनसे मिलने गये हैं यह सब आने वाले दिनों में चर्चा का विषय बनेगा यह तय है। उनके परिजनों में से कितने लोग आज भी भाजपा में सम्मानित रूप से सक्रिय हैं यह सब मरणोपरान्त चर्चा में आता ही है क्योंकि ऐसे महान लोगों का मरणोपरान्त भी लाभ लिया जाता है और इस लाभ की शुरूआत इसी से हो जाती है जब केन्द्र से लेकर राज्यां तक हर सरकार अपनी-अपनी सुविधानुसार निधन पर छुट्टी की घोषणा करती है। क्योंकि सभी भाजपा शासित राज्यों भी यह छुट्टी अगल-अलग रही है।
वाजपेयी भाजपा के वरिष्ठतम नेता थे। आडवानी और वाजपेयी ने भाजपा को कैसे सत्ता तक पंहुचाया है यह भाजपा ही नही सारा देश जानता है। यह वाजपेयी-आडवानी ही थे जिन्होने दो दर्जन राजनीति दलों को साथ लेकर सरकार बनायी और चलाई। संघ की विचारधारा के प़क्षधर होते हुए भी गुजरात दगों पर मोदी सरकार की भूमिका को लेकर यह कहने से नही हिचकिचाए की मोदी ने राजधर्म नही निभाया है। भले ही इस वक्तव्य के बाद वाजपेयी हाशिये पर चले गये थे। लेकिन उन्होने यह धर्म निभाया। संघ के मानस पुत्र होते हुए भी वाजपेयी शासन में मुस्लिमों की देश के प्रति निष्ठा पर कोई सवाल नही उठा था। वह वास्तव में ही सर्वधर्म समभाव की अवधारणा पर व्यवहारिकता में ही अमल करते थे। यही कारण है कि आज वाजपेयी के जाने के बाद भाजपा के लिये यह मुस्लिम सवाल एक नये रूप में खड़ा है। क्यांकि वाजपेयी के वक्त में भाजपा ने मुस्लिमों को चुनाव में टिकट देने के लिये अछूत नही समझा था। जबकि आज की भाजपा में मुस्लिम चुनावी टिकट के लिये अछूत होने के बाद भीड़ हिंसा का शिकार होने के कगार पर पंहुच गये हैं। वाजपेयी ने सत्ता के लिये अनैतिक जोड़ तोड़ से कैसे कोरे शब्दों में इन्कार कर दिया था इसके लिये उनके निधन पर उनके इस भाषण को सभी चैनलों ने अपनी चर्चा में विशेष रूप से उठाया है।
वाजपेयी के शासन में पहली बार विनिवेश मंत्रालय का गठन हुआ था और कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को प्राईवेट सैक्टर को सौंपा गया था। लेकिन इसके बावजूद भी उन पर यह आरोप नही लगा था कि वह कुछेक औद्यौगिक घरानों की ही कठपुतली बनकर रह गये हैं। जबकि आज मोदी सरकार को अंबानी-अदानी की सरकार करार दिया जा रहा है। रफाल सौदा मोदी और अबानी के रिश्तों की ही तस्वीर माना जा रहा है। वाजपेयी सरकार में करंसी का मुद्रण कभी भी प्राईवेट सैक्टर को नही दिया गया था। जबकि आज नोटबंदी के बाद मोदी सरकार ने करंसी का मुद्रण अबानी की प्रैस से करवाया। आज सरकारी क्षेत्रा के बैंकों का 31000 करोड़ का डुबा हुआ ट्टण जिस ढंग से एआरसी लाकर माफ किया गया है ऐसा देश की आर्थिकी के साथ उस समय नही हुआ था। आज सरकारी क्षेत्र की कीमत पर प्रोईवेट सैक्टर को खड़ा किया जा रहा है। ऐसे बहुत सारे मुद्दे आने वाले समय में देश के सामने आयेंगे जहां मोदी के हर काम को वाजपेयी के आईने से परखा जायेगा।
अभी पन्द्रह अगस्त को मोदी का जो भाषण लाल किले से आया है और उसमें उपलब्धियों के जो आंकड़े देश के सामने परोसे गये हैं अब उन आंकड़ो को हर गांव और हर घर में खोजा जायेगा। जब वह आंकड़े व्यवहारिकता के धरातल पर नही मिलेंगे तब मोदी का एकदम तुलनात्मक आकलन वाजपेयी के साथ किया जाने लगेगा। क्योंकि वाजपेयी जनता को लुभाने के लिये तथ्यों को बढ़ा चढ़ाकर पेश नही करते थे। जो दावा किया जाता था वह ज़मीन पर मिल जाता था। जबकि आज मोदी को लेकर यह धारणा बनती जा रही है कि वह कहीं भी कुछ भी बोल सकते हैं। अभी जो रूपया डालर के मुकाबले गिरावट की सारी हदें पार करता जा रहा है उसको लेकर जब मोदी के 2013 में दिये गये ब्यानों के आईने में भाजपा से सवाल पूछे जायेंगे तो उसकी स्थिति निश्चित रूप से खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली होना तय है। ऐसे में देश की जनता वर्तमान भाजपा का आकलन वाजपेयी के कार्यकाल से करने पर विवश हो जायेगी और तब यह एक और सवाल पूछा जायेगा कि जिस मोदी शासन में वाजपेयी के सहयोगी रहे सभी बड़े नेताओं को आज हाशिये पर धकेल रखा गया है उसके हाथों में भविष्य कितना सुरक्षित रह सकता है। आज वाजपेयी की सियासी विरासत को भाजपा कितना सहेजती है और कितना हाशिये पर धकेलती है। आज वाजपेयी के निधन के बाद भाजपा के लिये यह सबसे ज्वलंत प्रश्न होंगे। आने वाले दिनों में वाजपेयी की विरासत भाजपा के लिये हर समय एक कड़ी कसौटी बन कर खड़ी रहेगी। भाजपा-मोदी के हर कार्य को वाजपेयी के तराजू में तोलकर देखा जायेगा। वाजपेयी को अब कौन और कितना याद करेगा उसके लिये तो यही कहना सही होगा-

अब कोई याद करे या न करे
हम तो पैमाने पे भी निशां छोड़ चलें

संपर्क से समर्थन-कुछ सवाल

भाजपा ने अगले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ‘‘संपर्क से समर्थन’’ का कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत भाजपा पार्टी और सरकार के प्रमुख लोग समाज के विभिन्न वर्गों के प्रबुद्ध लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर संपर्क स्थापित करके उनसे समर्थन मांग रहे हैं। यह समर्थन मांगते हुए इन लोगों को सरकार की योजनाओं की जानकरी दी जा रही है। मोदी सरकार की जन कल्याणकारी 109 योजनाओं की एक सूची सोशल मीडिया के माध्यम से भी सामने आयी है। इस सूची में पहली योजना प्रधानमन्त्री जन-धन योजना और अन्तिम योजना चप्पल पहनने वाला आम नागरिक भी हवाई जहाज में सफर कर सके इसके लिये 900 नये हवाई जहाज का आर्डर दे दिया गया है। सरकार की इन योजनाओं से आम आदमी को व्यवहारिक तौर पर कितना लाभ पंहुचा है इसका कोई आंकलन अभी तक सामने नही आया है। न ही यह सामने आया है कि यदि यह योजनाएं न लायी जाती तो समाज का कितना नुकसान हो जाता। क्योंकि किसी भी योजना का मूल्यांकन इस बात पर निर्भर करता है कि क्या सही में ही इस योजना की आवश्यकता थी भी या इसे केवल अपना प्रचार करने के लिये ही लाया गया है। क्योंकि बेरोजगारी, मंहगाई और भ्रष्टाचार की जो हकीकत 2014 के चुनावों से पहले थी वह आज भी है इसलिये इन योजनाओं का होना और न होना ज्यादा मायने नही रखता है।
बल्कि प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के तहत जो गरीब लोगों के बैंको में खाते खुलावाये गये थे उस समय इनमें जीरो बैलेन्स का दावा किया गया था। लेकिन आगे चलकर इसमें न्यूनतम बैलेन्स की शर्त जोड़ दी गयी। न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर इसमें जुर्माना लगाये जाने की बात कर दी गयी। अभी भारतीय स्टेट बैंक ने पिछले महीनों में यह न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर 235.06 करोड़ रूपये का जुर्माना इन खाताधारकां से वसूल किया है। जो लोग न्यूनतम बैलेन्स भी नही रख पाये हैं वह सही में ही गरीब मेहनतकश लोग हैं। जिनके पास यह न्यूनतम राशी भी नही थी। न्यूनतम बैलेन्स गरीब की समस्या है अमीर की तो अधिकतम बैलेन्स की होती है। ऐसे में जिन करोड़ों लोगों पर यह जुर्माना लगा होगा क्या उन्हें सही में इस योजना का लाभार्थी माना जा सकता है। फिर यह आंकड़ा तो अकेले एसबीआई का ही है और यही स्थिति अन्य बैंकों की भी होगी। ऐसे में यदि प्रधानमन्त्री जन-धन योजना के तहत यह खाते न खुलवाये जाते तो इन गरीबों का यह करोड़ों रूपया बच जाता।
इसी तरह अब राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में वित्त राज्य मन्त्री ने एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी है कि पिछले तीन वित्तिय वर्षों में बैंको का धोखधड़ी के कारण 70,000 करोड ़का नुकसान हुआ है। 2015-16 में 16409, करोड़ 2016-17 में 16652 करोड़ और 2017-18 में 36694 करोड़ का नुकसान हुआ है। यह नुकसान इन बैंको द्वारा अंधाधुंध एडवांस देने के कारण हुआ है। 2008 में यह एडवांस 25.03 लाख करोड़ था जो कि 2014 में 68.75 लाख करोड़ तक पंहुच गया। यह एडवांस आज Bad Loan बन गया है। लेकिन इसके लिये बैंक प्रबन्धनां के खिलाफ कारवाई की बजाय इन बैंकां की सहायता के लिये । ARC बनाई जा रही है। यह asset reconstruction company, Bad bank  तैयार किया जा रहा है। क्योंकि इन बैंकों का एनपीए जो 2013 में 88500 लाख करोड़ था आज 31 मार्च 2017 को यह 8.41 लाख करोड़ को पहुंच गया है। सरकार इस स्थिति को सुधारने के लिये कोई ठोस कदम नही उठा रही है। क्योंकि यह एनपीए और धोखाधड़ी सब बड़े लोगों के ही काम हैं। अदानी जैसे उद्योगपति ने कैसे एक सम्प्रेषण नेटवर्क विकसित करने के ठेके में ही 1500 करोड़ की काली कमाई कर ली। इसको लेकर राजस्व निदेशक ने 97 पेज की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। यह रिपोर्ट 15 अगस्त 2017 के गार्डियन अखबार ने पूरे विस्तार के साथ छापी है। लेकिन भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर आज तक कोई कारवाई नही की है। अडानी जैसे दर्जनों और मामले हैं जिनके कारण देश की पूरी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पंहुचा है। लेकिन मोदी सरकार इन लोगों के खिलाफ कारवाई करने की बजाये जन-धन में न्यूनतम बैलेन्स न रहने पर जुर्माना लगाकर फिर गरीब की कीमत पर अमीर के साथ खड़ी हो रही है।
आज जब सत्तारूढ़ दल प्रबुद्ध लोगों से संपर्क साध कर उनसे समर्थन मांग रहा है तब यह आवश्यक हो जाता है कि यह कुछ सवाल इन लोगों के सामने रहे हैं। ताकि जब यह अपने समर्थन का वायदा करें तक इन मुद्दों को भी अपने जहन में रखें। क्योंकि यह चुनाव देश के भविष्य के लिये एक महत्वपूर्ण घटना होने जा रही है। 2014 के चुनाव में देश ने देखा है कि भाजपा ने एक भी मुस्लिम को लोकसभा का उम्मीदवार नही बनाया था। आज तो स्थिति चुनाव टिकट न देने से आगे निकलकर भीड़ हिंसा तक पंहुच गयी है। जहां इस भीड़ हिंसा पर सर्वोच्च न्यायालय तक ने चिन्ता जताई है वहीं पर एक वर्ग अपरोक्ष में इसकी वकालत भी कर रहा है। इसलिये प्रबुद्ध वर्ग से यह आग्रह रहेगा कि वह इन व्यवहारिक सच्चाईयों पर आंख मूंद कर ही अपना फैसला न ले।

भारी पड़ेगी अवैधताओं की वकालत

इस समय प्रदेश अवैध कब्जों और निर्माणों की समस्या से जूझ रहा है। यह समस्याएं कितना विकाशल रूप धारण कर चुकी हैं इसका आकलन इसी से किया जा सकता हैं कि यह मुद्दे आज सरकार से निकलकर अदालत तक पंहुच चुके हैं। अवैध कब्जे छुड़ाने के लिये उच्च न्यायालय को सेना को यह जिम्मेदारी देने की नौवत आ गयी। अवैध निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अनुपालना सुनिनिश्चत करने के लिये गोली चल गयी जिसमें दो लोगों की मौत हो गयीं यह मसले एक लम्बे अरसे से अदालतों में चले आ रहे थे। अदालतों तक इसलिये मामलें पंहुचे थे क्योंकि लोगों ने इस संद्धर्भ में सरकार द्वारा ही बनाये गये नियमों/कानूनों को अंगूठा दिखाते हुए अवैध कब्जों और अवैध निर्माणों को अंजाम दिया था। जब यह अवैधताएं हो रही थी तब संवद्ध प्रशासन ने इस ओर से ऑंखे मूंद ली थी। अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये तो वर्ष 2000 में एक पॉलिसि तक बना दी गयी थी। इसके तहत अवैध कब्जाधारकों से वाकायदा आवेदन मांगे गये थे और 1,67000 आवदेन आ गये थे लेकिन प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस योजना पर रोक लगा दी थी। आज उसी न्यायालय ने एक ईंच से अवैध कब्जे हटाने के आदेश कर दिये हैं। अवैध कब्जों में ऐसे-ऐसे कब्जे सामने आये हैं जहां लोगों ने सैंकड़ों -सैकड़ों बीघे पर कब्जे किये हुए थे। इन कब्जों को हटाने के लिये एसआईटी तक का गठन करना पड़ा है।
यह अवैध कब्जे कई दशको से चले आ रहे थे। वर्ष 2000 से तो वाकायदा शपथपत्रों के साथ सरकार के रिकार्ड और संज्ञान में आ गये थे। लेकिन सरकार ने इन्हे हटाने के लिये कोई कारगर कदम नही उठायें जबकि जो काम आज उच्च न्यायालय को करना पड़ा है यह काम तो कायदे से सरकार को करना चाहिये था। कांग्रेस और भाजपा दोनो की ही सरकारें सत्ता में रही है। दोनो की ही सरकारें कानून का शासन स्थापित करने में बुरी तरह असफल ही नही पूरी तरह बेईमान रही है।
प्रदेश में 1977 से टीपीसी एक्ट लागू हैं यह अधिनियम इसलिये लाया गया था ताकि पूरे प्रदेश में सुनियोजित निर्माणों को अंजाम दिया जा सके। नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग को यह जिम्मेदारी दी गयी थी कि वह प्रदेशभर के लिये एक सुनिश्चित विकास योजना तैयार करे। इस जिम्मेदारी के तहत 1997 में एक अन्तरिम प्लान अधिसूचित किया गया था। इस प्लान में परिभाषित किया गया था कि किस एरिया में कितना मंजिल का निर्माण कैसा किया जा सकता है और उस निर्माण के अन्य मानक क्या रहेंगे यह सब उस अन्तरिम प्लान में समायोजित था। इस प्लान की अनुपालना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी नगर निगम पालिका आदि स्थानीय निकायों के साथ नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग को सौंपी गयी थी। जहां कहीं विशेश नगर/कालोनी बनाने -बसाने की योजनाएं बनाई गयी थी वहां पर इस अधिनियम की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये साडा का गठन करने का भी प्रावधान किया गया था। लेकिन यह सब होते हुए भी आज प्रदेया के हर बडे़ शहर में अवैध खड़ें हैं क्योंकि 1979 से लेकर 2018 तक नगर एवम् ग्राम नियोजन विभाग प्रदेश को एक स्थायी विकास योजना नही दे पाया हैं यही अन्तरिम प्लान में ही अठारह बार संशोधन किये गये है। नौ बार तो रिटैन्शन पॉलिसियां लायी गयी है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मुद्दे पर भी कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सरकारें बराबर की दोषी रही हैं। अवैध निर्माणों की स्थिति यह है कि यदि कल को राजधानी शिमला में ही भूकंम्प का ठीक सा झटका आ जाता है तो 50%भवन क्षतिग्रस्त हो जायेंगे और 30,000 से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है। अवैध निर्माण शिमला , कसौली, कुल्लु, मनाली ओर धर्मशाला में खतरे की सीमा से कहीं अधिक हो चुके है। अवैध निर्माणों पर प्रदेश उच्च न्यायालय एनजीअी और सर्वोच्च न्यायालय कड़ा संज्ञान लेकर इन्हें गिराने के आदेश जारी कर चुके है। एनजीटी ने नये निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगा रखा हैं प्रदेश सरकार ने एनजीटी के फैसले पर एक रिव्यू याचिका दायर की थी जो अस्वीकार हो चुकी है। लेकिन राज्य सरकार इस बारे मे सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने की बात कर रही हैं मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने पिछले दिनों कुल्लु-मनाली के अवैध निमाणों के दोषियों को यह आश्वासन दिया है कि इन अवैध निर्माणों को कानून के दायरे में लाकर उन्हे राहत प्रदान करेंगीं मुख्यमन्त्री जयराम का यह आश्वासन ओर प्रयास इन अवैधताओं को रोकने में नही बल्कि इन्हे प्रात्साहित करने वाला होगा। मुख्यमन्त्री को यह स्मरण रखना होगा कि दनकी पूर्ववर्ती सरकारें भी अन्तरिम प्लान में बार- बार संशोधन करके और रिटैन्शन पॉलिसियां लाकर इन्हे बढ़ावा ही देती रही हैं आज यदि जयराम ठाकुर भी ऐसा ही प्रयास करेंगे तो उनका नाम भी उसी सूची में जुड़ जायेगा और वह भी भविष्य के बराबर के दोषी बन जायेंगे।  जयराम के साथ भी यह जुड़ जायेगा कि वह भी कानून का शासन स्थापित करने में असफल ही नहीं वरन् पूर्ववर्तीयों की तरह बेईमान रहे हैं। सरकार का अपना आपदा प्रबन्धन इस बारे में आंकड़ो सहित गंभीर चेतावनी दे चुका है। एनजीटी के पास जब निर्माणों की अनुमतियां मांगने की कुछ सरकारी विभागों की याचिकाएं गयी थी तब इन्हें अस्वीकार करते हुए एनजीअी ने शिमला पर और निर्माणों का बोझ डालने की बजाये इन कार्यालयों को ही प्रदेश के दूसरे भागों में ले जाने का सुझाव दिया है। आज आवश्यकता इन अवैध निर्माणों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की है न कि इन्हें कानून के दायरे में लाकर राहत प्रदान करने की।

घातक होगी भीड़ हिंसा की वकालत

भीड़ हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी चिन्ता व्यक्त करते हुए सरकारी तन्त्र को कड़े निर्देश देते हुए सरकार को भी कहा है कि वह इन घटनाओं को रोकने के लिये कानून बनाये। जब शीर्ष अदालत ने यह निर्देश जारी किये उसी दिन झारखण्ड में भीड़ ने सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर हमला कर दिया। हमला करने वाले जयश्रीराम के नारे लगा रहे थे। इस घटना के बाद अलवर में हिंसक भीड़ ने एक व्यक्ति की जान ले ली। इस भीड़ में शामिल लोग भी अपने को स्थानीय विधायक के आदमी होने का दम्मभर रहे थे। यह दोनां घटनाए संसद में उठी और विपक्ष ने इस पर सरकार को घेरा। शीर्ष अदालत जब ऐसी घटनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हुए निर्देश तक जारी कर चुकी हो तब मामले की गंभीरता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। इसलिये यह उम्मीद की जा रही थी कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस पर संसद में चर्चा होगी। लेकिन इस विषय पर उठी बहस का जबाव गृहमन्त्री राजनाथ सिंह ने यह कहकर दिया कि देश 1984 में भीड़ हिंसा का सबसे बड़ा ताण्डव देख चुका है और आज की हिंसा उसके मुकाबले में कही कम है। इस बहस में एक दूसरे पर आरोप लगाने के अतिरिक्त कुछ भी सामने नही आया है। यही नही संसद के बाहर आरएसएस नेता इन्द्रेश कुमार ने तो यहां तक कह दिया कि यदि लोग वीफ खाना और गाय को मारना छोड़ दे तो इस तरह की घटनाएं अपने आप ही बन्द हो जायेगीं।
आज केन्द्र में भाजपा की सरकार है इस नाते इन घटनाओं पर सबसे पहला सवाल उसी से पूछा जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को कानून बनाने के निर्देश दिये हैं तो उनकी अनुपालना भी मोदी सरकार को ही करनी है। अलवर की घटना के बाद एक और घटना घट गयी है। कुल मिलाकर एक ऐसा वातावरण बनता जा रहा है कि जहां आदमी को आदमी से ही डर लगने लग गया है। कानून का डर बिल्कुल खत्म होता जा रहा है। जब कानून का डर खत्म हो जाये और आदमी को आदमी से ही डर लगने लगे तथा भीड़ कहीं भी किसी की हत्या कर दे तो ऐसी स्थिति को ‘‘सिविल वार’’ के संकेतक माना जाता है। आज गोरक्षा के नाम पर भीड़ को हिंसक होने के लिये एक तरह से लाईसैन्स मिल गया है। कानून का डर खत्म हो चुका है इसका प्रमाण बढ़ती बलात्कार की घटनाएं है। निर्भया कांड के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और अरूणाचल प्रदेश बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा़ देने का प्रावधान कर चुकी है और भी कई राज्य ऐसे ही कानून लाने की बात कर चुके हैं। मौत से बड़ी कोई सज़ा नही हो सकती है लेकिन यह सब होने के बाद भी बलात्कार की घटनाएं खत्म नही हुई है। कानून का जब डर खत्म हो जाता है व समाज में अराजकता का माहौल खड़ा हो जाता है जो किसी भी सभ्य समाज के लिये एक घातक स्थिति हो जाती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसा हो क्यां रहा है। यह एक स्थापित सत्य है कि "Justice delayed is justice denied" देर से मिला न्याय न मिलने के ही बराबर होता है। हमारे देश में अभी तक व्यवस्था नही हो पायी है कि आपराधिक मामले के फैसले एक निश्चित समय सीमा के भीतर आ पायें। 2014 के लोकसभा चुनावों से पूर्व पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल खड़ा हुआ था उसी के कारण इस तरह का सत्ता परिर्वतन देखने को मिला था। उस समय लोकपाल की व्यवस्था लाने के लिये पूरा देश आन्दोलित हो उठा था। अन्ना हजा़रे, स्वामी राम देव, किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल उस आन्दोलन के सबसे बड़े चेहरे बन गये थे। सरकार को लोकपाल विधेयक संसद में लाना पड़ा था मोदी और केजरीवाल की सरकारें इसी आन्दोलन का प्रतिफल हैं। आज मोदी प्रधानमन्त्री हैं, केजरीवाल मुख्यमन्त्री हैं। किरण बेदी उपराज्यपाल, अन्ना हजारे सुरक्षा कवच लेकर बैठ गये हैं और स्वामी राम देव एक स्थापित उद्योगपति हो गये हैं। लेकिन अब तक देश को लोकपाल नही मिल पाया है। मोदी सरकार इसके लिये वांछिच्त कमेटीयों का गठन नही कर पायी है। सर्वोच्च न्यायालय इस पर भी अपनी नाराज़गी जाहिर कर चुका है। यही नही भ्रष्टाचार निरोधक कानून का जो नया रूप कुछ दिनों में अधिसूचित होने जा रहा है उसके लागू होने के बाद किसी भी भ्रष्टाचारी को आसानी से सज़ा नही मिल पायेगी। इस कानून में संशोधन का प्रारूप 2013 में तैयार हुआ था जिसे अब मोदी सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा से पारित करवाया है। उम्मीद थी की इसमें कुछ नये कड़े उपबन्ध जोड़े जायेंगें लेकिन ऐसा नही हुआ है। इससे भ्रष्टाचार और अपराध पर सरकार की सोच और गंभीरता का अन्दाजा लगाया जा सकता है।
2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने एक भी मुस्लिम को टिकट नही दिया था। अब गो हिंसा को लेकर जो वातावरण खड़ा किया जा रहा है और उसके लिये एक वर्ग विशेष को ही जिम्मेदार ठहराने की नीति चल रही है इससे ध्रुवीकरण के लिये एक और भी ठोस ज़मीन तैयार की जा रही है। गोरक्षा के नाम पर की जा रही हिंसा को जब जयश्रीराम के नारे के आवरण में परोसा जायेगा तो एकदम सारा आयाम ही बदल जायेगा अगला पूरा चुनाव इसी गोरक्षा के नाम पर केन्द्रित किये जाने की पूरी-पूरी संभावना बनती जा रही है। जबकि मंहगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर सवाल आज भी उसी धरातल पर खड़े हैं जहां 2014 में थे। आज अन्तर केवल इतना है कि आने वाला चुनाव इन बुनियादी मुद्दों पर न लड़ा जाये। उसके लिये गोरक्षा और आरक्षण जैसे मुद्दे खड़े किये जा रहे हैं। क्योंकि यदि गोरक्षा सही में एक प्रमुख मुद्दा है तो उसकी हत्या के खिलाफ कानून क्यों नही लाया जा रहा है जबकि संसद में पूरा बहुमत है फिर जो ऐसे कानून का विरोध करेगा वह स्वयं जनता के सामने नंगा हो जायेगा। लेकिन जब कानून बन जायेगा तब सब कुछ कानून के अनुसार होगा भीड़ के अनुसार नही। कानून बन जाने के बाद भीड़ की हिंसा की वकालत नही हो पायेगी।

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