Friday, 19 September 2025
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क्या मीडिया को गोदी मीडिया होने से बचा पायेंगे अनुराग ठाकुर

शिमला/शैल। अनुराग ठाकुर हिमाचल से ताल्लुक रखते हैं इसलिये राज्यमन्त्री से अब कैबिनेट मन्त्री बनने पर प्रदेश की जनता का उत्साहित होना स्वभाविक हो जाता है। कोरोना में भी उन्होंने प्रदेश की जनता और सरकार की बहुत सहायता की है। बल्कि उनकी सक्रियता के बाद ही जे पी नड्डा, किश्न कपूर और सुरेश कश्यप सक्रिय हुए हैं। हिमाचल में क्रिकेट के लिये जो कुछ उन्होंने किया है उसके कारण अब फिर प्रदेश का युवा उनकी ओर देखने लग गया है। प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं के लिये वह क्या कर पाते हैं इस पर सबकी नज़रें लगी रहेंगी। खेल और युवा सेवाओं के अतिरक्ति उनके पास सूचना और प्रसारण मन्त्रालय भी हैं यह मन्त्रालय एक समय स्व. श्रीमति गांधी और लाल कृष्ण आडवानी जैसे नेताओं के पास भी रहा है तथा अभी ही यहां से प्रकाश जावडेकर की मन्त्रीमण्डल से छुट्टी भी हुई है। सूचना और प्रसारण मन्त्रालय हर सरकार के लिये महत्वूपर्ण तथा संवदेनशील मन्त्रालय माना जाता है क्योंकि इसका सीधा संबंध मीडिया से रहता है। सरकार की छवि इसी मीडिया के माध्यम से बनती बिगड़ती है। और आज मीडिया के एक बड़े वर्ग को गोदी मीडिया की संज्ञा मिल चुकी है। यह संज्ञा मिलना समाज, सरकार और स्वयं मीडिया सभी के लिये घातक है। क्योंकि आम आदमी मीडिया को आज भी ‘‘गर तोप मुकबिल हो तो अखबार निकालो’’ की भूमिका में ही देखना चाहता है। क्या अनुराग ठाकुर मीडिया पर लग रहे गोदी मीडिया के लान्छन से बाहर आने में मद्द कर सकेंगे यह बड़ा सवाल रहेगा।
यही नहीं आज वैचारिक असहमति को देशद्रोह करार देने का चलन हो गया है। इस सरकार में वैचारिक मत भिन्नता के लिये कोई स्थान नहीं रह गया है इसी मत भिन्नता पर पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह से लेकर कई अन्य मामले परोक्ष/अपरोक्ष में बनाये जा रहे हैं। अनुराग ठाकुर के अपने ही गृह राज्य हिमाचल में कई पत्रकारों के खिलाफ मामले बनाये गये हैं और यहां भाजपा की ही सरकार है। विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल में मामला दर्ज करवाया गया था। इस मामले में आये फैसले से भी सरकार ने कोई सीख नहीं ली है। आज सरकार की पॉलिसी को पीटीआई जैसी न्यूज़ ऐजैन्सी ने ही अदालत में चुनौती दे रखी है। देशद्रोह के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से जवाब तलब कर रखा है। इस तरह आज मीडिया और सरकार के संबंधों को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ चुकी है। स्वभाविक भी है कि जब मीडिया संस्थान बड़े उद्योगपतियों की मलकियत हो जायें और उनका पहला काम उस उ़द्योगपति के हितों की रक्षा करना हो जाये जो सरकार की कृपा से ही सुरक्षित रह सकते हैं तब मीडिया के मूल धर्म से समझौता करना अनिवार्यता हो जाती है। आज मीडिया इसी दौर से गुजर रहा है क्योंकि सरकार की कोई निश्चित पॉलिसी नहीं है। सरकार विज्ञापन देने वाला सबसे बड़ा स्त्रोत है लेकिन आज सरकारें विज्ञापन के पैसे को सरकार की बजाये पार्टी के हितों के हिसाब से खर्च कर रही है। इस दिशा में एक पारदर्शी नीति की आवश्यकता है। इस संद्धर्भ में सबसे पहले डी ए वी पी में सुधार लाने की आवश्यकता है क्योंकि वहां पर तो जवाब देने तक की परम्परा नहीं है।
इस परिदृश्य में आज नये मन्त्री के लिये यह एक कसौटी हो जायेगी कि वह मीडिया को गोदी मीडिया बनने की बाध्यता से बाहर निकालने में योगदान करे। इसके लिये एक पॉलिसी व्यापक विचार-विमर्श के बाद सामने लायें।

निगम चुनावों में भाजपा ही नहीं मुख्यमन्त्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर

शिमला/शैल। प्रदेश की चार निगमों के चुनाव चल रहे हैं। सात अप्रैल को मतदान होगा। धर्मशाला, पालमपुर और मण्डी में भाजपा को अपने ही विद्रोहीयों ने परेशानी में डाल दिया है। क्योंकि मुख्यमन्त्री के व्यक्तिगत प्रयासों के बाद भी यह विद्रोही चुनाव मैदान से नहीं हटे है। मुख्यमन्त्री को अधिकृत उम्मीदवारों के लिये लगभग सभी वार्डों में न केवल चुनावी सभाएं करनी पड़ी है बल्कि डेरा डालकर तीनों जगह बैठना भी पड़ा है। केवल सोलन में ऐसी स्थिति नहीं आयी है। इन चुनावों में लगभग सारा मन्त्रीमण्डल और अन्य बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में झोंक दिया गया है। केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर से भी चुनाव प्रचार का आग्रह किया गया है। पंचायतनुमा इन नगर निगमों के लिये इतनी बड़ी टीम को चुनाव प्रचार में उतारने मात्र से ही जनता की ओर से यह प्रतिक्रियाएं आ रही हैं कि यदि इन तीन वर्षों में कोई काम किया होता तो आज पूरी सरकार को गली-गली न घूमना पड़ता बहुत हद तक यह आरोप सही भी है।
सरकार की करनी और कथनी में कितना अन्तर है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन 70 राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये केन्द्र सरकार की बड़ी देन के रूप में भुनाया गया था वह अभी सैंद्धान्तिक स्वीकृत के स्तर से नीचे नहीं उतर पाये हैं। इनके लिये प्रदेश सरकार ने केन्द्र से पत्राचार भी अब 12-3-20 से शुरू किया गया है। 12 मार्च 2020 को मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने केन्द्रिय भूतल परिवहन मन्त्री को पत्र लिखकर प्राथमिकता के आधार पर 25 सैद्धान्तिक रूप घोषित राष्ट्रीय राजमार्गों की मंजूरी प्रदान करने का आग्रह किया है। 12 मार्च 2020 से 6-2-2021 तक प्रदेश सरकार द्वारा लिखे गये दस पत्रों में से पांच पत्र तो भूतल परिवहन मन्त्री से लेकर मुख्य अभियन्ता क्षेत्र 2 भूतल परिवहन एंव राजमार्ग मन्त्रालय नई दिल्ली तथा प्रधानमन्त्री को 25 राजमार्गों की सैद्धान्तिक मंजूरी प्रदान करने के लिये ही लिखे गये हैं। लेकिन इस पत्राचार के बाद भी यह मंजूरी अभी तक नहीं मिल पायी है। इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि किस गति से काम हो रहे हैं।
मण्डी, पालमपुर और सोलन के नगर निगम पिछले वर्ष 2020 में बनाये गये थे। इनके लिये 28-10-20 से 31-1-2021 तक 886.87 लाख रूपये स्वीकृत किये गये हैं। इनमें मण्डी के लिये 3,24,36,594/- पालमपुर के लिये 2,76,68,488/- और सोलन के लिये 2,85,81,779/- रूपये स्वीकृत किये गये हैं। इस स्वीकृति के बाद मण्डी में विभिन्न कार्यों के लिये 29,12,223 रूपये खर्च भी कर दिये गये हैं। मण्डी मुख्यमन्त्री का अपना गृह जिला है इसलिये वहां खर्च भी शुरू हो गया है। लेकिन पालमपुर और सोलन में अभी कुछ भी खर्च नहीं हुआ है। मण्डी में वार्ड न. 4,8,9,10,11 और 12 में ज्यादा खर्च हुआ है। मण्डी में खर्च हुए पैसे का ब्योरा यह है।
मण्डी मुख्यमन्त्री का गृह जिला है। फिर मण्डी में पंडित सुखराम परिवार का अपना एक स्थान और योगदान है। यह पंडित सुखराम की संचार क्रान्ति का ही योगदान है कि मण्डी के सिराज जैसे क्षेत्र में भी आज दूरसंचार सुविधायें उपलब्ध हैं। इस समय सुखराम परिवार और जयराम ठाकुर तथा महेन्द्र सिंह के साथ 36 का आंकड़ा चल रहा है। चुनाव प्रचार में जयराम की पूरी टीम अनिल शर्मा को हर वार्ड में कोसना नहीं भूल रही है। अनिल शर्मा ने अभी तक इसका कोई जवाब नहीं दिया है। संभव है कि वह आखिरी दिनों में पत्रकार वार्ता करके इसका जवाब देंगे। फिर मण्डी नगर निगम के सत्रह वार्ड हैं। लेकिन जो 29 लाख रूपया अभी निगम के नाम पर खर्च किया गया है वह केवल छः वार्डो में ही है। छः वर्षों में ही पार्टी के विद्रोही उम्मीदवार भी मैदान में हैं और चुनाव पार्टी चिन्ह पर हो रहे हैं। ऐसे में यह चुनाव परिणाम सरकार के साथ ही मुख्यमन्त्री को व्यक्तिगत रूप से भी प्रभावित करेंगे यह तय है।
इसी तरह धर्मशाला नगर निगम में पिछले तीन वर्षों में केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक सभी स्त्रोतों से केवल 61 करोड़ की धन राशी ही प्राप्त हुई है। यह जानकारी शहरी विकास मन्त्री ने विधानसभा में विधायक विशाल नेहरिया के एक प्रश्न के उत्तर में दी है। लेकिन कांगड़ा के सांसद और धर्मशाला के ही विधायक रहे किश्न कपूर ने आरोप लगाया है कि केन्द्र ने धर्मशाला के 271 करोड़ रूपये स्मार्ट सिटी परियोजना में दिये हैं और उसके खर्च में घपला हुआ है। लेकिन विधानसभा में आये उत्तर से कूपर के इस आंकड़े में भारी अन्तर है। ऐसे में आंकड़ों और आरोपों का यह खेल इन चुनावों में किस करवट बैठता है यह देखना रोचक होगा।

घातक होगी चुनावों में उभरी बगावत

शिमला/शैल। प्रदेश की चार नगर निगमों के चुनाव होने जा रहे हैं। सात अप्रैल को मतदान होगा। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशीयों की नामांकन वापसी के बाद अन्तिम सूचियां जारी हो गयी हैं। यह चुनाव पार्टीयों के अधिकृत चुनाव चिन्हों पर करवाये जा रहे हैं। नगर निगमों के इन चुनावों के बाद कांगड़ा के फत्तेहपुर की विधानसभा सीट और मण्डी की लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव होने हैं। अगले वर्ष के अन्त में विधानसभा के लिये चुनाव होंगे। इस नाते नगर निगमों के इन चुनावों को प्रदेश के राजनीतिक भविष्य की दशा-दिशा के संकेतक के रूप में देखा जा रहा है। इस गणित के आईने में अगर आकलन किया जाये तो सबसे बड़ा खुलासा यह सामने आता है कि अब भाजपा में भी बगावत खुलकर सामने आने लग गयी है। भाजपा को एक समय अनुशासित पार्टी माना जाता था। यह कहा जाता था कि इसका चाल चरित्र और चेहरा देश की अन्य पार्टीयों से भिन्न है लेकिन नगर निगमों के इन चुनावों में यह भ्रम टूट गया है क्योंकि पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत करते हुए वह कार्यकर्ता और स्थानीय नेता निर्दलीयों के रूप में चुनाव लड़ने जा रहे हैं जो लम्बे अरसे से पूरे समर्पण के साथ पार्टी के लिये काम कर रहे थे। पार्टी अध्यक्ष सुरेश कश्यप और मुख्यमन्त्री जयराम के निर्देश भी इन लोगों को चुनाव मैदान से नहीं हटा पाये हैं।
सारे प्रयासों के बाद भी जब यह लोग चुनाव से नहीं हटे हैं तब ऐसे 24 लोगों को तुरन्त प्रभाव से पार्टी की सदस्यता और दूसरी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। निष्कासित किये गये लोगों में मण्डल, जिला और प्रदेश स्तर तक की जिम्मेदारीयां कुछ लोगों के पास थी। निष्कासित 24 लोगों में से 14 कांगड़ा, 6 मण्डी और चार पालमपुर से हैं। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और इस जिले में ही ढ़ेड दर्जन लोगों का निकाला जाना कोई शुभ संकेत नहीं माना जा रहा है। कांगड़ा में पार्टी के अन्दर सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है इसके संकेत सबसे पहले इन्दु गोस्वामी के पत्र, फिर रेमश धवाला -पवन राणा द्वन्द, शान्ता के नाम खुले पत्र प्रकरण का अन्त रविन्द्र रवि के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने और उसके बाद मन्त्री सरवीण चौधरी के खिलाफ लगे आरोपों के रूप में अरसे से सामने आते रहे हैं। यहां तक की पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की धर्मशाला में हुई दो दिवसीय बैठक में खुलकर सामने आ गये थे। लेकिन इस सबका संज्ञान लेकर इसे सुलझाने के प्रयास नहीं किये गये। क्योंकि पार्टी से ज्यादा व्यक्ति को अहमियत दी जाने लगी। कार्यकर्ताओं में यह संदेश चला गया कि नेता के प्रति वफादारी निभाने से ज्यादा लाभ मिल सकता है।
मण्डी तो मुख्यमन्त्री का अपना गृह जिला है और मुख्यमन्त्री ने यहां बागियों को मनाने का प्रयास भी किया है लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। अन्ततः आधा दर्जन बागियों को निष्कासित कर दिया गया है। यहां पर यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर मुख्यमन्त्री की भी यहां क्यों नहीं सुनी गयी। मण्डी में यह आम चर्चा है कि मुख्यमन्त्री अपने कुछ पुराने साथियों के दायरे से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। मण्डी में दवाईयों की खरीद में बड़े स्तर पर घपला हुआ है यह कैग रिपोर्ट में दर्ज है। लेकिन इस घपले को लेकर कोई कारवाई नहीं की गयी है। इससे यह संदेश गया है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कारवाई करने की बजाये उसे संरक्षण दे रही है। मण्डी में पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों मुख्यमन्त्री के क्षेत्र से वाम दलों के उम्मीदवार का जीतना और महेन्द्र सिंह के क्षेत्र में उन्हीं के खिलाफ ‘‘गो बैक’’ के नारे लगना भी मण्डी के नये राजनीतिक समीकरणों की ओर एक बड़ा संकेत रहा है। क्योंकि विधानसभा चुनावों में पंडित सुख राम के परिवार का पूरा सक्रिय सहयोग भाजपा और जयराम के साथ था। अनिल शर्मा बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतकर मन्त्री बने थे। लेकिन आज केवल रिकार्ड में अनिल शर्मा भाजपा में है व्यवहार में नहीं। भाजपा चाह कर भी अनिल शर्मा को अभी तक पार्टी से निकाल नहीं पायी है क्योंकि ऐसी कारवाई से अनिल की सदस्यता पर कोई आंच नहीं आती है। ऐसे में व्यवहारिक दृष्टि से अनिल शर्मा का सहयोग नहीं वरन उनका विरोध ही भाजपा को मिल रहा है। मण्डी में सुखराम परिवार के राजनीतिक प्रभाव को कम आकना सही नहीं होगा। इस तरह कुल मिलाकर जो तस्वीर उभर रही है उसमें यह बगावत भाजपा के लिये घातक हो सकती है। फिर निगम चुनावों में पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल भी सक्रिय भूमिका में नजर नहीं आ रहे हैं।

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